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आध्यात्म के नाम पर सत्ता का फासीवादी प्रयोग

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आध्यात्म के नाम पर सत्ता का फासीवादी प्रयोग
आध्यात्म के नाम पर सत्ता का फासीवादी प्रयोग

भारत मूर्खों का देश है और इस मूर्खता को बनाये रखने के लिए शासक वर्ग लाखों करोड़ रुपया हर साल खर्च करता है. 1947 में बनी सरकार और उसके बाद लागू हुए भारतीय संविधान ने बेशक वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विकसित करने हेतु कुछ कार्य किया था, लेकिन बीतते वक्त के साथ यह प्रयास कमतर होता चला गया और आज नौबत यह आ गई है कि बकायदा सत्ता के संरक्षण में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के खिलाफ अध्यात्मिक कल्चर को विकसित किया जा रहा है.

आज विज्ञान की जगह सरेआम गालिबाजों, मूर्खों, धूर्तों, ठगों और पाखण्डियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. हर दिन नये-नये धूर्त बाबाओं की शक्ल में घूम रहे हैं और नये-नये देवी देवता पैदा हो रहा है. अभी हालिया ‘कोरोना माई’ को जन्म लेते हम सबने देखा है और सत्ता पर बैठे पाखण्डियों द्वारा फैलाये जा रहे ढ़ोंगियों को भी हम सब देख रहे हैं, जिसमें सबसे अग्रणी देश के प्रधानमंत्री पद पर बैठा पाखंडी नरेन्द्र मोदी है, जो आये दिन ढोंग करता है और टीवी, सोशल मीडिया आदि के माध्यम से लोगों को मूर्ख बना रहा है और कहता है कि भारत आध्यात्मिक लोगों का देश है.

लोगों को आध्यात्म के नाम पर किस तरह मूर्ख बनाकर हजारों करोड़ रूपये का अट्टालिका बनाया जाता है, इसका एक बेहतरीन उदाहरण धीरेंद्र नाथ शास्त्री जैसा पाखण्डी है. क्रांति कुमार लिखते हैं कि मध्यप्रदेश राज्य के छतरपुर जिले के गढा ग्राम में शमशान घाट है. इसी शमशान घाट के पास में गांव समाज की ज़मीन पर भगवान दास गर्ग नाम के व्यक्ति ने रोजी रोटी के लिए हनुमान मंदिर बनाया. भगवानदास गर्ग पूजा अर्चना, भगवत कथा सुनाना और भूत पिशाच भगाने के नाम पैसा कमाने लगे. चमत्कार और दिव्य शक्ति का भी दावा किया, लेकिन कोई खास प्रसिद्ध नहीं मिली.

भगवानदास गर्ग का पोता था जो 12वीं पास था लेकिन बेरोजगार था. नाम था उसका धीरेंद्र कृष्ण गर्ग, जो रोजगार की तलाश में इसी हनुमान मंदिर को अपना कमाने का अड्डा बनाता है और अपना नाम बदलकर धीरेंद्र नाथ शास्त्री रख लेता है. धीरेंद्र के पिता एक नशेड़ी व्यक्ति थे, जो कुछ नहीं करते थे. धीरेंद्र ने चमत्कार, दिव्य शक्ति, भूत पिशाच भगाने का दावा किया, इसके बावजूद धीरेंद्र कृष्ण गर्ग को वो कामयाबी नही मिली, जिस कामयाबी की उसे चाहत थी.

उसने स्थानीय मीडिया को भी बुलाकर चमत्कार करने का दावा किया. उसका और उसके चेलों का दावा था इस मंदिर में कोई बल्ब लगता है तो फुट जाता है. लेकिन स्थानीय मीडिया ने कोई तवज्जो नहीं दिया. उसके बाद उसने सोशल मीडिया का सहारा लिया. अपने झूठे चमत्कार का वीडियो, भूत प्रेतों को भगाने का दावा करने का वीडियो सोशल मीडिया पर छोटे-छोटे क्लिप की शक्ल में अपलोड करने लगे.

सोशल मीडिया ने उसे प्रसिद्धि दिलाई. दरबार में भीड़ बढ़ने लगी. बिना किसी जाने उसके बारे में सब कुछ बताने का षड्यंत्र रचा जाने लगा. मूर्ख अनुयायियों ने धन की वर्षा की. धन की वर्षा में पाखंडी बाबा डूब गया. अधिक धन कमाने के लालच में अधिक चमत्कार, अधिक दिव्य शक्ति और भूत पिशाच भगाने का दावा करने लगा और एक दिन सरेआम उसकी चोरी पकड़ी गई.

एकेश्वरवाद और फासीवाद का गठजोड़

सुब्रतो चटर्जी लिखते हैं –

‘एकेश्वरवाद, जो शिव हैं, वही शनि हैं और जो परम ब्रह्म हैं वही सृष्टि, स्थिति और मृत्यु हैं. जो ईश्वर हैं, वही अल्लाह हैं और जो अल्लाह हैं वही गॉड या यहोवा हैं. ईश्वर अल्लाह तेरो नाम ! जो particle है, वही universe है. जो अंश है, वही पूर्ण है. ईश्वर एक है, नाम अनेक.’

उपरोक्त बकवास सुनते हुए और बिना प्रश्न किए मानते हुए मानव सभ्यता का एक बड़ा हिस्सा आज अपनी जवानी के उस दौर में है, जहां एक तरफ़ ईश्वर के अस्तित्व को नकारने वाले लोगों की एक श्रेणी है और दूसरी तरफ़ ईश्वर को मानने वाले लोगों की अलग श्रेणी है.

ईश्वर को मानने वाले और नहीं मानने वाले भी दो अलग-अलग श्रेणियों में बंटे हुए हैं. एक तरफ़ वे लोग हैं जो अपने विचारों और व्यवहारों में ईश्वर को मानते हैं और दूसरी तरफ़ वे लोग जो अपने विचारों और व्यवहारों में इसे नहीं मानते. एक sub altern group है, जो ईश्वर को विचारों में मानते हैं, लेकिन व्यवहारों में नहीं, ये पाखंडी कहलाते हैं.

ईश्वर को विचार और व्यवहार में नहीं मानने वालों की संख्या बहुत कम है, लेकिन जहां पर भी वे एक समूह के रूप में हैं, वहां पर हम सामाजिक और आर्थिक रूप में दुनिया के सबसे बेहतरीन देशों को पाते हैं और ईश्वरवादी देश के लोगों का सपना इन्हीं देशों में जाकर बसने की होती है. आज जो भारत से प्रतिदिन क़रीब पांच सौ अमीर रोज़ देश छोड़ कर भाग रहे हैं, वे ऐसे देशों में जा रहे हैं जो सही मायने में secular देश हैं. ब्रिटेन इसका एक उदाहरण है, जहां पर ऐसे ही एक पलायित हिंदू आज प्रधानमंत्री बना है.

पलायन का यह सिलसिला तब से ज़ोर पकड़ा है जब से भारत में हिंदुत्ववादी सरकार आई है और अकलियतों के हत्यारों को माला पहनाकर स्वागत करने का रिवाज शुरू हुआ है. सेक्युलर शब्द को संविधान से हटाए बिना मन, कर्म और वचन से इसे मिटाने की कोशिश में प्रयास मोदी सरकार की यह सबसे बड़ी नकारात्मक उपलब्धि रही है. भारत की गिरती हुई अर्थव्यवस्था के पीछे भी सेक्युलर सोच को तिलांजलि देना एक कारण है.

एकेश्वरवाद के मूल में केंद्रीयकरण की एक सोच है, जिसे समझने की ज़रूरत है. रूप और तत्व की द्वंद्वात्मक व्याख्या को तिलांजलि देकर रूप की विविधता को तात्विक एकता की बलि चढ़ा कर एक ऐसे तिलिस्म को बुना जाता है जो कालांतर में व्यक्ति केंद्रित हो जाता है और अधिनायकवाद को जन्म देता है. यही धारणा राजतंत्र के मूल में रहता है जहां राजा ईश्वर का प्रतिनिधि होता है.

लेकिन अधिनायकवाद इससे आगे की चीज़ है. इसमें रामलला का हाथ पकड़ कर दुनिया का सबसे बड़ा क्रिमिनल उनके घर पहुंचाता है और ईश्वरवादी गोबरपट्टी उस पर लहालोट हो जाता है. दूसरी तरफ़ एक क्रिमिनल तड़ीपार चुनाव जीतने के लिए 1 जनवरी 2024 तक राम मंदिर पूरा करने का झूठा वादा जोंबियों की भीड़ के सामने करता है और भाड़े की भीड़ की तालियां बटोर लेता है.

इसी तिलिस्म के पीछे छुपकर जीएसटी के माध्यम से देश के फ़ेडरल सिस्टम को ध्वस्त कर दिया जाता है और दक्षिणपंथी दलों की क्या बात करें, तथाकथित कम्युनिस्ट पार्टियां भी इसका विरोध नहीं कर पाती है. ‘एक देश एक क़ानून’ के नारे के पीछे छुपा असल एजेंडा NRC और CAA जैसे क़ानूनों को बना कर क्रिमिनल योगी के अस्सी बनाम बीस के रास्ते चल कर देश की बीस प्रतिशत आबादी को पहले चुनावी राजनीति में महत्वहीन करना है और प्रकारांतर में उनको दोयम दर्जे का नागरिक बना देना है. ये ठीक उसी तरह का खेल है जिसे हिटलर ने यहूदियों के खिलाफ खेला था.

नस्लीय श्रेष्ठता का बोध आज communal superiority के रूप में उपस्थित हुआ है. फासीवाद हरेक युग में अपना चेहरा बदलकर सामने आता है. मोदी सरकार के पिछले आठ सालों में सिर्फ़ एक व्यक्ति को केंद्र में रख कर सारी बहस या गुणगान होता रहा है, वह व्यक्ति है खुद नरेंद्र मोदी. कभी सोचा है कि इसका कारण क्या है ?

एक बार एक फ्रॉड बंगाली बाबा को कहते हुए सुना था कि ईश्वर हैं और ईश्वर नहीं हैं, दोनों वाक्यों में ईश्वर मौजूद है. मतलब पलायन या मुक्ति का कोई पथ नहीं है. आपकी सोच, आपके विचार आचार, आपका जीवन बस एक व्यक्ति की परिक्रमा कर रहा है, ठीक उसी तरह से जैसे एकेश्वरवाद आपको एक काल्पनिक ईश्वर के चारों तरफ़ परिक्रमा कराता है. अस्थिर संसार में एक स्थिर बिन्दु की तलाश सिर्फ़ ध्रुवतारा को ही आसमान में स्थापित नहीं करता वरन धरती पर भी एक नायक की तलाश में रहता है और यहीं पर अधिनायकवाद स्वीकृत और स्थापित हो जाता है.

हरे राम हरे राम, हरे कृष्ण हरे कृष्ण
राम राम हरे हरे, कृष्ण कृष्ण हरे हरे !

जीसस द सेवियर !

अल्लाह हूं अकबर !

कोई प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है क्या ? अविकसित, अतार्किक, अज्ञानी मस्तिष्क की जीवन की कठिन परिस्थितियों में एक तारणहार के तलाश की करुण पुकार ! भोले बाबा पार करेगा !.यही भाग्यवाद ईश्वरवाद के मूल में है और इसी बिन्दु पर आकर दरअसल ईश्वर अल्लाह तेरो नाम जैसे भजनों के पीछे से एकेश्वरवाद को स्थापित किया जाता है, जो कि कालांतर में राजनीतिक ज़मीन पर अधिनायकवाद को स्थापित करता है. मेरे विचार से गांधीवाद में ही मूलतः फासीवाद के बीज छुपे हुए हैं, जैसे एकेश्वरवाद में गांधीवाद के बीज छुपे हुए हैं.

बदहाली का मुख्य कारण है अंधविश्वास और चमत्कार

क्रांति कुमार लिखते हैं – मध्यकालीन यूरोप पर भी कभी केवल शासक वर्ग और चर्च का आधिपत्य था. अंधविश्वास और चमत्कार के नाम पर जनता को काबू में रखकर उनपर शासन करते थे. चारों ओर दरिद्रता थी, किसान और आम आदमी बेहाल थे. जैसे ही विज्ञान ने ईसाई पादरियों को चर्च के भीतर बंद किया अंधकार के बादल छंट गए.

यूरोप और अमेरिका भले विकसित हैं लेकिन लैटिन अमेरिका और दक्षिण अमेरिका आज भी पिछड़े मुल्क हैं. कारण लिबरल गोरों ने मूलनिवासियों पर अपना आधिपत्य बनाए रखने के लिए अंधविश्वास, चमत्कार और पादरियों को चर्च के भीतर बंद नही किया.

आज भी लैटिन अमेरिकी देश अंधविश्वास और भूत प्रेतों के चक्कर में चर्च और पादरियों के इर्द गिर्द घूमते हैं. भारत में ब्राह्मण जो इस देश का शासक वर्ग है, ऐसे बाबाओं की करतूतों को जानता है, समझता है लेकिन अपना आधिपत्य बनाए रखने के लिए उन्हें अंधविश्वासी बनाए रखना है और यह सब वे धीरेंद्र नाथ शास्त्री, आशाराम, राम रहीम, रामदेव जैसों के द्वारा ही अंजाम देते हैं.

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