मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद विश्व इतिहास का एक ऐसा वैज्ञानिक दृष्टिकोण है, जो मनुष्य के द्वारा मनुष्य के शोषण के खिलाफ डटकर खड़ा रहा है. जो कोई इसके पक्ष में खड़ा रहेगा वह सदैव याद किया जाता रहेगा, और ज़ो इसके विरोध में रहेगा वह इतिहास के कुड़ेदान में घृणा के साथ फेंक दिया जायेगा.
इसी कड़ी में सर्वहारा के पांचवें शिक्षक माओ त्से-तुंग की पत्नी जियांग किंग, जिन्हें चीन की संशोधनवादी गद्दारों द्वारा ‘गैंग ऑफ फोर’ कहकर बदनाम करने का जितना ही कोशिश किया, अन्तर्राष्ट्रीय सर्वहारा ने उतना ही ज्यादा उन्हें प्यार और सम्मान दिया.
अन्तर्राष्ट्रीय सर्वहारा के पांचवें शिक्षक माओ त्से-तुंग की मृत्यु के उपरांत उनकी पत्नी जियांग किंग मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद के पक्ष में संशोधनवादियों के खिलाफ डटकर न केवल खड़ी ही रही बल्कि उन्होंंने संशोधनवादियों के खिलाफ अंत तक समझौताहीन संघर्ष जारी रखा, उसे हमेशा बेनकाब करती रही.
एक जानकारी के अनुसार संशोधनवादियों ने जियांग किंग के सामने एक शर्त रखा था कि ‘वे माओ के (सिद्धांत के) खिलाफ बयान दे दें तो उन्हें न केवल रिहा कर दिया जायेगा बल्कि उनको पार्टी में वापस भी ले लिया जायेगा’, जिसे जियांग किंग ने घृणा के साथ ठुकरा दिया और जेल में रहना स्वीकार किया.
माओ त्से-तुंग की मृत्यु के बाद समाजवादी चीन के सामाजिक साम्राज्यवाद में पतन के बाद जियांग किंग अन्तर्राष्ट्रीय सर्वहारा में याद की जाने वाली सर्वमान्य नेता हैं, जिन्होंने माओ की सर्वोत्कृष्ट सैद्धान्तिक खोज – सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति – का नेतृत्व करते हुए संशोधनवादियों पर जोरदार हमला किया था. जिससे बौखलाये संशोधनवादियों ने माओ त्से-तुंग की मृत्यु के बाद की उथलपुथल का फायदा उठाकर जियांग किंग पर जोरदार हमला करते हुए मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद से गद्दारी किया.
पत्रकार ए. के. ब्राईट ने जियांग किंग पर शानदार आलेख लिखा है, जिसे हर क्रांतिकारी प्रगतिशील ताकतों को पढ़ना चाहिए और संशोधनवादियों के खिलाफ निरंतर संघर्ष करते हुए मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद को समृद्ध करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए – सम्पादक
आज हम एक ऐसी अदम्य साहसी और प्रखर मार्क्सवादी-लेनिनवादी महिला क्रांतिकारी व्यक्तित्व के बारे में बात कर रहे हैं, जिसने अपनी जगह इतिहास में न केवल रोजा लक्जमबर्ग व क्लारा जेटिकन के समतुल्य बनाई बल्कि 20वीं सदी के पूर्वाद्ध से लेकर उत्तरार्द्ध तक दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिला का खिताब हथियाने में भरपूर तरीके से कामयाब रही, जिसके चलते उन्हें विश्व में होती रही समाजवादी क्रांतिकारियों के फलसफे में याद किया जाता रहा है और याद किया जाता रहेगा.
हम बात कर रहे हैं साम्यवादी चीन के ‘प्रथम राष्ट्रपति माओ महान’ की चौथी जीवनसाथी जियांग किंग के बारे में. जियांग किंग एक ऐसी क्रांतिकारी महिला जिसने जिंदगी के आखिरी क्षणों तक सर्वहारा वर्ग के पक्ष में बतौर सर्वज्ञ क्रांतिकारी शिल्पी की भूमिका में रहकर समाजवादी तटरक्षा को मुकाम दिया. हम जिस शासन व्यवस्था में हैं यह पूंजीवाद है और पूंजीवाद किसी भी सूरतेहाल में समाजवाद के कालजयी प्रभामंडल को सही नहीं ठहरा सकता.
पूंजीवाद हर हाल में अमानवीयता व हाहाकार के साथ समाजवाद के विरुद्ध खूनी शत्रुता रखता रहेगा. इसीलिए पूंजीवादी शिक्षा प्रशिक्षा से संबंधित इतिहास में जियांग किंग को एक रक्तरंजित राजनीति प्रेमी के तौर पर पढ़ाया व बताया जाता रहा है लेकिन यह आप सभी बुद्धिजीवियों के क्रांतिकारी विमर्शों के मद्देनजर बुनियादी कार्यभार हैं कि मार्क्सवाद-लेनिनवाद की केन्द्रीयता की परिधि में हमेशा सर्वहारा अधिनायकवादी राजनीति की वैचारिक धार को कुंद नहीं होने देना है और एक सजग प्रहरी की मानिंद मेहनतकशों के मुक्तिकामी राजनीति के अलखता को कायम रखना है.
यूं तो इतिहासकार भी जियांग किंग के शुरुआती जीवन पर अलग-अलग तरह से बातें करते हैं. चीनी भाषा में ‘जियांग किंग’ का मतलब ‘नीली नदी’ है. जियांग ने यह नाम 1932 में भूमिगत कम्युनिस्ट कार्यकर्ता के तौर पर छद्म नाम के रूप में रखा था. उनके पिता ने उसका नाम ‘ली-जिंहाई’ रखा था, बाद में ली-शुमेंग कर दिया. अपने स्कूली अभिलेखों में ली-यून्हे नाम से जानी गई. जियांग का बचपन बेहद दारुण व निर्धनता में बीता.
सन् 1926 में जियांग के पिता का निधन हो गया और वह मां के साथ अपने नाना-नानी के घर चली गई. महज 12 वर्ष की उम्र में जियांग ने कई महीनों तक सिगरेट बनाने वाली फैक्ट्रियों में काम किया. कुछ स्रोत बताते हैं कि इसी बीच जियांग की मां ने ली-दीवेन नाम के एक लकड़ी कारीगर से जियांग की शादी करा दी थी लेकिन जियांग ने इस शादी को कभी भी कबूल नहीं किया.
इसी दौरान उन्हें यानान के एक ड्रामा स्कूल में काम करने का मौका मिला और जियांग की जिंदगी ने यहीं से यू-टर्न लेकर जियांग को शोहरत की बुलंदियों तक पहुंचा दिया. इसी बीच जियांग ने एक बिजनेस मैन के बेटे पेई-मिंगलुन से शादी कर ली और जियांग फिल्म अभिनेत्री बनने की ओर बढ़ गई.
सन् 1932 में जियांग, शेडांग यूनिवर्सिटी में फिजिक्स पढ़ने वाले एक छात्र यू-किवेई के संपर्क में आई. किवेई उन दिनों भूमिगत राजनीतिक क्रिया-कलापों को अंजाम दे रहे थे. जियांग, यू-किवेई के राजनीतिक कार्यक्रमों से न केवल आश्वस्त थी बल्कि स्वयं जियांग भी बेधड़क भूमिगत राजनीति में उतर आई. राजनीति में भागीदारी करने के कारण ससुराल वालों ने जियांग को छोड़ दिया. क्रांतिकारी भूमिगत राजनीति के चलते सरकार ने पकड़वाने के लिए उन पर ईनाम भी रखा, हालांकि एक नुक्कड़ नाटक प्रदर्शनी के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें दो साल की सजा हुई.
कम्युनिस्ट आंदोलनों में बराबर सक्रियता ने जियांग को उस समय के युवा व धाकड़ कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग के नजदीक ला दिया और नवंबर 1938 में यानान में जियांग और माओ की शादी हो गई. इसके साथ ही अब वह माओ की चौथी पत्नी के तौर पर भी जानी जाने लगी थी. हालांकि माओ की पूर्व पत्नी से पूर्णतया विवाह-विच्छेद नहीं हुआ था, जिसके चलते माओ को पार्टी के भीतर भारी असहज स्थितियां झेलनी पड़ी और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. पार्टी ने जियांग पर भी कुछ राजनीतिक पाबंदियां लगा दी थी.
1949 में साम्यवादी चीन की स्थापना हुई और जियांग को 1950 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (CPC) का प्रचार विभाग के फिल्म सेक्शन का उप निदेशक नियुक्त किया गया. जियांग किंग हर हाल में सर्वहारा वर्ग के मुक्ति सवालों के हल को संजीदगी के साथ न केवल समझ रही थी बल्कि इस्पाती तौर पर संशोधनवाद को मटियामेट करने के लिए विमर्शों व वाद-संवाद की अगुवाई करने लगी.
सख्त राजनीतिक प्रतिबद्धता और दक्ष रणनीतियों के लिए जानी जाने वाली जियांग किंग को 1966 में ‘केन्द्रीय सांस्कृतिक क्रांति समूह’ का उप-निदेशक नियुक्त कर दिया गया और 1969 के सीपीसी के राष्ट्रीय अधिवेशन में जियांग को पोलित ब्यूरो सदस्य बनाया गया.
जियांग किंग ने माओ के संघर्षों को माओवाद कहकर प्रचारित किया. बुद्धिजीवियों का एक धड़ा तो यहां तक कहता था कि माओ के माओवाद को अंतर्राष्ट्रीय पहचान जियांग किंग ने ही दिलाई थी. बुद्धिजीवियों को महसूस हुआ कि चीनी समाजवाद के समानांतर व विरुद्ध बहुत सारे विरोधी गुट पनप रहे हैं, जिन्हें सीपीसी अपने क्रांतिकारी कार्यक्रमों के जरिए हल कर देना चाहती थी लेकिन संशोधनवाद के पक्ष में लामबंदियों को देखते हुए चीन ने सांस्कृतिक क्रांति करने का फैसला लिया.
नवंबर 1966-77 की अवधि को चीन में सांस्कृतिक क्रांति का काल माना जाता है, जिसे जियांग किंग नेतृत्व दे रही थी. सांस्कृतिक क्रांति के तहत ग्रामीण क्षेत्रों के मजदूर किसानों को समाजवादी पद्धति के बारे में प्रशिक्षण किया जाता था. गैंग आफ फोर नाम से जाना जाने वाला दल, सांस्कृतिक क्रांति के नेतृत्वकारी लोग हैं.
जियांग किंग के अलावा अन्य तीन क्रांतिकारी भी इस कार्यक्रम के महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट का हिस्सा व जियांग किंग के क्रांतिकारी साथी थे. जियांग के अन्य तीन साथियों को संक्षेप में जानते हैं –
- झांग चुनकियाओ – (1 फरवरी, 1917 – 21 अप्रैल, 2005) – झांग एक विद्वान लेखक व पत्रकार थे. 1938 में सीपीसी में शामिल हुए. पार्टी के पोलित ब्यूरो सदस्य भी रहे. सांस्कृतिक क्रांति के दौरान 1966-76 तक नेतृत्वकारी लोगों में से एक थे. उन्हें 6 अक्टूबर 1976 को गिरफ्तार किया गया. 1984 से 1998 तक जेल में रहे. 2005 में शंघाई में कैंसर का इलाज न होने के कारण उनकी मृत्यु हो गई.
- याओ वेनयुआन – (12 जनवरी, 1931 – 23 दिसम्बर, 2005) – याओ, चाइना लिबरेशन डेली के संपादक थे. सीपीसी की 1969 की कांग्रेस में इन्हें पोलित ब्यूरो सदस्य चुना गया. सांस्कृतिक क्रांति को पुरजोर तरीके से आगे बढ़ाया. 6 अक्टूबर 1976 को इन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया. 1981 में इन्हें 20 साल की सजा सुनाई गई. 5 अक्टूबर 1996 को रिहा कर दिया गया. शेष जीवन इन्होंने एकदम राजनीतिक गुमनामी में गुजारा और शंघाई में ही राजनीतिक अध्ययन करते रहे. 74 साल की उम्र में मधुमेह की बीमारी से दिसंबर 2005 में इनकी मृत्यु हो गई.
- वांग होंगवेन – ( सन् 1935 – 3 अगस्त 1992) – गैंग आफ फोर कहे जाने वाली टीम के सबसे कम उम्र के सदस्य थे. वांग, सीपीसी के दूसरे उपाध्यक्ष भी रहे. इन्होंने कोरियाई युद्ध में भी भाग लिया था. 1953 में सीपीसी में शामिल हुए. सीपीसी की 9वीं कांग्रेस के बाद राष्ट्रपति माओ ने वांग को सीधे तौर पर कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी. पार्टी की दसवीं कांग्रेस में पोलित ब्यूरो सदस्य चुना गया. इन्हें भी गैंग आफ फोर के एक सदस्य के तौर पर 6 अक्टूबर 1976 की रात को गिरफ्तार कर लिया गया. इन्होंने अपनी गिरफ्तार का हिंसक विरोध किया और दो ‘गार्डों’ को जान गंवानी पड़ी. 56 साल की उम्र में इनकी कैंसर मौत हो गई.
संक्षिप्त में ये गैंग आफ फोर की जानकारी थी. गैंग आफ फोर कोई आधिकारिक शब्द नहीं है, यह जियांग किंग और उनके सहयोगी क्रांतिकारी कॉमरेड चुनकियाओ, याओ वेनयुआन और वांग होंगवेन के तीन साथियों की टीम को कहा गया है. ‘गैंग आफ फोर’ शब्द माओ की मृत्यु के बाद चाइना के विरोधी मीडिया का दिया हुआ उपनाम है. बाद में जियांग किंग की छवि एक कट्टर-कठोर कम्युनिस्ट नेता के तौर पर गैंग आफ फोर के नेतृत्व नेता के तौर गढ़ी जाने लगी.
9 सितम्बर 1976 को माओ त्से तुंग की मृत्यु हो गई. सांस्कृतिक महाक्रांति मिशन, माओ त्से तुंग की मृत्यु के एक महीने बाद तक निर्बाध जारी रहा. 6 अक्टूबर 1976 को सीपीसी ने एक बैठक का हवाला देकर सांस्कृतिक क्रांति को गति दे रहे लगभग सभी शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर लिया. इसी रात सदन में साढ़े दस बजे जियांग किंग को सीढ़ियों से छत की ओर जाते समय गिरफ्तार कर लिया.
सुंग-चिंग नेतृत्व समाजवादी सरकार माओ के चीनी गणराज्य को नेस्तनाबूद करने को अमादा थी. जियांग किंग के लिए 1981 में मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया. कारावास के दौरान उन्हें गले के कैंसर होने की पुष्टि हुई. सरकार ने स्वास्थ्य कारणों से जियांग को रिहा कर दिया.
सरकार दावा करती है कि उसने जियांग के इलाज के लिए बात की थी, जिसे जियांग ने ठुकरा दिया था. कैंसर ला-इलाज होने के चलते जियांग किंग ने 14 मई 1991 को अस्पताल के एक बाथरूम में आत्महत्या कर ली. हालांकि कुछ लोग जियांग किंग की आत्महत्या को सरकार द्वारा लगातार मानसिक उत्पीड़न का दबाव मानते हैं.
इन सबके बीच चाइना समाजवादी पद्धति में अन्य बड़े नेताओं का नाम भी आता है जिन्होंने गैंग आफ फोर यानि मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद की राजनीतिक रीढ़ चीन की सांस्कृतिक क्रांति को तबाह करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी. यानी कि माओ की मृत्यु के बाद संशोदनवादियों ने समाजवादी चीन को बर्बाद करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी. लियू शाओ ची, हुआ गुओफेंग आदि जैसे तमाम अन्य बड़े चीनी नेताओं को माओवाद के साथ सहानुभूतिपूर्ण संशोधनवाद के रास्ते चीन को आज के विनाशकारी राजनीतिक हालात पर लाने के लिए जिम्मेदार माना जाता है.
चीन के सांस्कृतिक क्रांति अभियान के दरमियान ही रूस चीन विभाजन के साथ सन् 1969 में रूस चीन युद्ध तक की नौबत आ गई थी. हालांकि यह अघोषित तौर पर युद्ध था. यह युद्ध लगातार 6 महीने से अधिक समय तक चला, जिसमें दोनों तरफ से तीखी सैन्य झड़पें और भारी जानमाल का नुक़सान हुआ. कहने के लिए यह रूस – चीन का सीमा विवाद का मसला था लेकिन असल में यह मार्क्सवाद-लेनिनवाद की केन्द्रीयता पर दोनों देशों का एक दूसरे पर भटकाव का दोषारोपणस्वरूप युद्ध था.
दुनिया के तमाम पूंजीवादी मुल्कों ने रूस-चीन के इस मूखर्तापूर्ण रवैये पर तब चुटकी लेते हुए कहा कि ‘समाजवादी देश जो हर मुल्क के शोषितों के साथ सहानुभूति रखते हैं और गरीबों के खिदमतगार होने का दावा करते हैं अब कौन-सी मिल्कियत के लिए लड़ रहे हैं ?’ हालांकि गैंग आफ फोर के नेताओं ने इसे एक जल्दबाजी में की गई कार्रवाई के तौर पर चिन्हित तो किया लेकिन इस पर वैकल्पिक लाइन जारी नहीं की गई. रूस चीन सीमा विवाद कुछ भू-भागों के आपसी बंटवारे के बाद 2005 में शांत हुआ.
दूसरी घटना बीजिंग की तियानमेन घटना भी प्रचंड संशोधनवाद को दिखाता है. वर्ष 1989 में तियानवेन चौराहे पर हजारों की संख्या में छात्र व क्रांतिकारी संगठन सरकार के खिलाफ आक्रोश जारी करने के लिए इकट्ठा हुए, जिसमें छात्र संगठन व उसमें शामिल लोग, वैश्विक पूंजीवादी गठजोड़, गैंग आफ फोर के क्रांतिकारियों की रिहाई, भ्रष्टाचार सहित अन्य जनसरोकारी मुद्दों पर सरकार से स्पष्टीकरण मांग रहे थे लेकिन सरकार की तरफ से इस जन-प्रदर्शन पर सैन्य बल इस्तेमाल किया गया, जिसमें लगभग 450 प्रदर्शनकारियों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई और लगभग 9 हजार से अधिक लोग घायल हो गए थे. यह ‘समाजवादी’ चीन का सबसे बड़ा नरसंहार कहा जाता है.
मार्क्सवाद एक वैज्ञानिक राजनीति है. इसमें हर दौर में प्रयोग होते रहे हैं और सफलता-असफलता विज्ञान का कठोर सत्य है, इसे स्वीकार करते हुए दुनिया भर के मार्क्सवादी क्रांतिकारी समाजवाद के लिए संघर्षरत हैं. जहां-जहां समाजवाद का प्रभामंडल बिखरेगा वहां-वहां जियांग किंग जैसी सशक्त प्रतिबद्ध क्रांतिकारी व्यक्तित्व आकार लेंगे.
समाजवाद में विजय पताकाओं को बुलंद मुकाम भविष्य में यूं ही दिये जाते रहेंगे, भले ही विध्वंसकारी शासक वर्ग कितनी ही बाधाएं बनाये लेकिन हर हाल में समाजवाद अपनी ऐतिहासिक जगह को हासिल करके रहेगा. शासक वर्ग के उत्पीड़न के डर से समाजवाद न ही अपनी गति रोकता है और न ही ‘डर’ जैसी किसी चीज के लिए मार्क्सवाद में कोई जगह है.
जियांग किंग की महत्वपूर्ण दस्तावेज –
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1967: To Make New Contributions to the People — Speech at the Enlarged Meeting of the Party Military Affairs Committee
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1967: Talk Given on September 5 at a Conference of Representatives of Anwhei Who Have Come to Beijing
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1968: Reforming the Fine Arts
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1975: Letter to Delegates to the All-China Conference on Professional Work in Agriculture
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1975: Excerpts from Address at the National Conference on Learning from Tachai in Agriculture
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