हिमांशु कुमार
छत्तीसगढ़ के बीजापुर से आदिवासी लड़की का फोन आया था. कह रही थी – ‘गुरुजी आज फिर पुलिस ने आकर आदिवासियों के ऊपर लाठीचार्ज किया. कई लोगों को चोट आई है.’
पिछले कई हफ्तों से आदिवासियों के ऊपर लाठीचार्ज, मारपीट और दमन चल रहा है. लड़की बता रही थी – ‘आदिवासी लोग एक नदी के किनारे खाना बना रहे थे, तभी पुलिस ने चारों तरफ से घेर कर उन्हें मारा. औरतों और बच्चों को भी चोटें आई हैं.’
आदिवासी पिछले लगभग 2 साल से अपने गांवों में जबरदस्ती पुलिस कैंप खोलने का विरोध कर रहे हैं.
पुलिस कैंप खोलने से आदिवासियों का दमन बढ़ता है. महिलाओं के साथ बलात्कार बढ़ते हैं. निर्दोष आदिवासियों को जेलों में डालने का काम शुरू हो जाता है. फर्जी मुठभेड़ बढ़ जाती है इसलिए आदिवासी अपने गांव में पुलिस कैंप नहीं चाहते.
आदिवासी इलाके से खनिजों को खोदकर निकालने के लिए चौड़ी चौड़ी सड़कें बनाई जा रही है, जिसमें आदिवासियों के पट्टे की जमीन, बाड़ी, पूजा स्थल, खेत कब्जा कर लिए गए हैं. पेड़ काट डाले गए हैं.
आदिवासी इस सब का विरोध कर रहे हैं और वे चाहते हैं कि आदिवासी इलाकों में लागू पेसा कानून का पालन हो. ग्राम सभा से बात की जाए. उसकी अनुमति से ही सरकार काम करे. लेकिन शांतिपूर्ण आंदोलन करने वाले आदिवासियों से बात करने की बजाय उन्हें लगातार पीटा जा रहा है.
कांग्रेस को समझना चाहिए कि आज तक कोई भी आंदोलन लाठी, गोली और दमन से दबाया नहीं जा सका है. उल्टे इस तरह आंदोलन और भड़कता है
इतिहास हर बात को नोट कर रहा है. इतिहास लिखेगा कि कांग्रेस ने अपने शासनकाल में छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के लोकतांत्रिक शांतिपूर्ण आंदोलन को हिंसक तरीकों से दबाने की अलोकतांत्रिक कोशिश की थी. इससे कांग्रेस का नैतिक बल खत्म हो जाएगा.
आखिर जनता से बात करने अत्याचारी पुलिस वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने में किसी भी सरकार को क्या हिचक होनी चाहिए ?
हम जानते हैं सत्ता हाथ में आने पर लगता है कि हम किसी भी ऐरे-गैरे से बात क्यों करें ! लेकिन यही ऐरी गैरी जनता वोट देकर उसे सत्ता में पहुंचाती है.
कहते हैं तप से राज्य मिलता है और राज्य मिलने पर जो पाप होते हैं उसके बाद नरक मिलता है. हम अपने दोस्तों को नर्क से बचाना चाहते हैं लेकिन वह हमारी बात नहीं सुन रहे !
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