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एफआरसीए, 2010 संशोधन विधेयक: भ्रष्टाचार पर भाजपा की ‘जीरो-टाॅलरेन्स’ नीति

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एफआरसीए, 2010 संशोधन विधेयक
आम आदमी पार्टी के 2 करोड़ के ‘‘विदेशी चंदे’’ पर बबाल काटने वाली भाजपा, कांग्रेस और भाजपा के स्पीलर एजेंट कपिल मिश्रा को जब भ्रष्टाचार के मामले में आम आदमी पार्टी को फंसाने के लाख जतन करने के बाद भी जब आम आदमी पार्टी पर कोई भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ, उल्टे इस लपेटे में खुद कांग्रेस और भाजपा आ गई, तब केन्द्र की भाजपा सरकार ने भ्रष्टाचार पर ‘जीरो टाॅलरेन्स’ की नीति पर काम करते हुए राजनीतिक दलों को विदेशों से मिले चंदे को कानूनी बनाने के लिए विदेशी चंदा नियमन कानून, 2010 में एक संशोधन विधेयक संसद में बिना किसी बहस के पारित करा लिया. केन्द्र की भाजपा सरकार ने कांग्रेस और भाजपा सहित विभिन्न राजनैतिक दलों को मिले विदेशी चंदे पर किसी भी जांच की संभावना को खारिज करने के लिए संसद में लाई इस संशोधन विधेयक के माध्यम से सन् 1976 ई. तक से इस कानून को प्रभावी बना दिया है, जिससे भविष्य में भी कभी इस विदेशी चंदे की किसी भी जांच से बचा जा सके और भविष्य में लिये गये करोड़ों के विदेशी चंदे को भी काूननीजामा पहनाया जा सके.

इस एफआरसीए, 2010 काूनन में संशोधन विधेयक के 976 से प्रभावी किये जाने के बाद भाजपा और कांग्रेस के तमाम विदेशी चंदे अब कानूनी बन जायेंगे, अर्थात्, भ्रष्टाचार पर ‘जीरो टालरेन्स’ की नीति पर चलते हुए केन्द्र की भाजपा सरकार ने विदेशी चंदे को अब काूननी बना दिया है. मालूम हो कि दिल्ली उच्च न्यायालय के 2014 ई. के फैसले में एफसीआरए, 2010 कानून के तहत भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों को दोषी पाया था. विदेशी चंदा नियमन कानून, 2010 विदेशी कंपनियों को राजनीतिक दलों को चंदा देने से रोकता था, जो अब पूर्णतः निष्प्रभावी बना दिया गया है. केन्द्र की भाजपा सरकार ने वित्त विधेयक, 2018 में 21 संशोधनों को बिना किसी बहस के पारित करा लिया है, जिसमें एक संशोधन यह विदेशी चंदा नियम कानून, 2010 भी था.

वहीं भाजपा सरकार ने वित्त अधिनियम, 2016 के जरिये विदेशी कम्पनियों की परिभाषा में भी बदलाव किया है. इस नई परिभाषा के अनुसार अगर किसी कम्पनी में 50 प्रतिशत से कम शेयर पूंजी विदेशी कम्पनियों के पास है, तो वह विदेशी कम्पनी नहीं मानी जायेगी. इस संशोधन को पिछले तिथि सितम्बर, 2010 से लागू किया गया है.

शोध संस्थान एसोसिएशन फाॅर डेमोक्रेटिक रिफाॅर्म की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘वित्त वर्ष 2012-13 से 2015-16 के बीच के 4 वर्षों में भाजपा और कांग्रेस सहित कुछ पांच राष्ट्रीय पार्टी को 956.77 करोड़ रूपये का काॅरपोरेट चंदा मिला है, जिसमें अकेले भाजपा को 705 करोड़ रूपये जबकि कांग्रेस को 198 करोड़ रूपये मिला है, जबकि भाकपा और माकपा को क्रमशः 4 और 17 फीसदी चंदा मिला है.

इस रिपोर्ट के अनुसार देश की पांच राष्ट्रीय पाटियां जिसमें भाजपा, कांग्रेस, भाकपा, माकपा और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) को माना गया है, 1,933 ऐसे दानदाताओं से कुल 384.04 करोड़ रूपये चंदा मिला है, जिन्होंने चंदे के फार्म में पैन नम्बर का उल्लेख नहीं है. इसके अलावे 355.08 करोड़ रूपये ऐसे हैं, जिसमें चंदा देने वाले दानदाताओं ने अपने पतों का भी उल्लेख नहीं किया है. इस बेनामी चंदे की राशि का 99 फीसदी (159.59 करोड़ रूपया) अकेले भाजपा को मिला है.

देश की राजनीतिक दलों को दिये जा रहे ये बेनामी चंदे निश्चित तौर पर देश की जनता के हितों के खिलाफ भारी मुनाफा कमाने के लिए देश की नीतियों में बदलाव लाने हेतु ही दी जा रही है, जिसका परिणाम देश की विशाल आबादी को भूखमरी, अशिक्षा, बेरोजगारी, बदहाल किसान की आत्महत्या के भयावह कालिमा के रूप में देखा जा सकता है, जो आगे और भी भयानक होते जायेंगे. देश के विदेशी कम्पनियों के हाथों बिक चुके ये राजनीतिक दल देश की जनता के लिए कोढ़ के समान है, जिसकी विश्वसनीयता देश की जनता के सामने जितनी जल्दी खत्म हो जाये, देश और देश की जनता का भला होगा ताकि देश की जनता द्वारा नये राजनीतिक विकल्प तलाशे जा सके.

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