Home गेस्ट ब्लॉग कुरआन और प्रिंटिंग प्रेस : शिक्षा एवं कला में मुसलमान 500 साल पीछे

कुरआन और प्रिंटिंग प्रेस : शिक्षा एवं कला में मुसलमान 500 साल पीछे

2 second read
0
0
305

दुनिया का पहला प्रिंटेड कुरआन 1537 में इटली के शहर वीनस के एक प्रिंटिंग प्रेस में छापा गया. दूसरा कुरआन 1694 में जर्मनी के शहर हैंम्बर्ग में और तीसरा कुरआन रूस में छापा गया. ये वो वक़्त था जब मुस्लिम देश या मुस्लिम समुदाय में किसी भी तरह का प्रिंटिंग प्रेस लगाना या कोई प्रिंटेड किताब रखना हराम और सख़्त जुर्म था.

सुल्तान बायज़ीद दोम नामी एक ख़लीफा ने 1485 में उलेमाओं की मदद से प्रिंटिंग प्रेस और उससे छपने वाली वस्तुओं को हराम क़रार दे कर मुस्लिम देशों में बैन कर दिया. उसके बाद 1515 में सुल्तान सलीम नामी एक बादशाह ने उससे भी दो क़दम आगे बढ़कर ये फरमान जारी किया कि ‘सल्तनत उस्मानिया में किसी भी नागरिक के पास कोई प्रिंटेड किताब पकड़ी गई तो उसे क़त्ल कर दिया जाएगा.’ ये वो वक़्त था जब यूरोप में दो करोड़ से ज्यादा प्रिंटेड किताबें बेची जा चुकी थी.

उससे पहले 1492 में सल्तनत उस्मानिया के रियासत एंदोलसिया (एंदोलस स्पेन) के कुछ यहूदियों ने सुल्तान से निवेदन किया कि उनके पास अपनी प्रिंटिंग प्रेस है और वह उन्हें इससे फायदा उठाने की इजाज़त दें. सुल्तान ने इस शर्त पर इजाज़त दी कि तुम किसी भी मुसलमान को कोई किताब नहीं बेचोगे. तो इस तरह स्पेन के यहूदियों और ईसाइयों ने अपने अपने प्राइवेट प्रेस से लाखों किताबें छापीं और उससे मुसलमानों को छोड़कर सभी क़ौमों को फायदा पहुंचा.

ये वो वक़्त था जब यूरोप और नये-नये अमेरिका में शिक्षा एवं कला अंगड़ाईयां लेकर बेदार हो रही थी और मुस्लिम देश कोताही और जिहालत का चादर ओढ़कर सोने की तैयारी कर रही थी. इसी किताबी क्रांति से हजारों डाक्टर, शिक्षक, दार्शनिक और वैज्ञानिक पैदा हुए. हालांकि सातवीं सदी से तेरहवीं सदी तक सारा यूरोप जिहालत की नींद सो रहा था और शिक्षा एवं कला का ख़ज़ाना मुसलमानों के पास था.

पहली सलीबी जंग जो कि ग्यारहवीं सदी में लड़ी गई, जिसमें ईसाइयों ने यरुशलम पर क़ब्जा किया और बहुत सारे धन दौलत के साथ काग़ज़ भी उनके हाथ लगा. इसी काग़ज़ से बाद में उन्होंने एक बहुत बड़ी क्रांति ला दी.

सत्रहवीं सदी तक मुसलमानों पर ये जहालत पूरी तरह बरकरार रहा. अंततः 1720 में एक नव मुस्लिम इब्राहिम अलमुक़ातिर (जो कुछ महीने पहले ही ईसाई से मुसलमान हुआ था) ने उस वक़्त के मुफ्ती आजम के पास एक अर्जी लेकर गया कि 300 साल हो गये यूरोप में प्रिंटिंग प्रेस को. खुदा के लिये अब तो जाग जाओ और मुस्लिम देशों में भी इसकी इजाज़त दे दो.

फिर उसने अपने हाथ से लिखी हुई कई सौ पृष्ठ की एक किताब मुफ्ती आजम को दी जो प्रिंटिंग प्रेस के बारे में थी. किताब को पढ़कर मुफ्ती साहब इम्प्रेस हो गये लेकिन उन्होंने तीन कड़ी शर्तों के साथ उसकी इजाज़त दी –

  1. कोई भी अरबी की किताब प्रिंट नहीं होगी.
  2. कोई इस्लामी किताब प्रिंट नहीं होगी.
  3. हर छपने वाली किताब हुकूमत से स्वीकृत होगी.

इस तरह सल्तनत उस्मानिया में लूली लंगड़ी प्रिंटिंग प्रेस आई लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. यूरोप शिक्षा एवं कला में मुसलमानों से 300 साल आगे निकल चुका था और अब ये फासला 500 साल तक पहुंच चुका है.

  • मोहम्मद शहजाद कुरैशी

Read Also –

मुसलमानों के हाथों पांच मुस्लिम वैज्ञानिकों का भाग्य
दुनिया में मुसलमानों के पतन के कारण
सेकुलर ‘गिरोह’ की हार और मुसलमानों की कट्टरता
सिवाय “हरामखोरी” के मुसलमानों ने पिछले एक हज़ार साल में कुछ नहीं किया

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

किस चीज के लिए हुए हैं जम्मू-कश्मीर के चुनाव

जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए चली चुनाव प्रक्रिया खासी लंबी रही लेकिन इससे उसकी गहमागहमी और…