Home ब्लॉग NO SURRENDER : पत्रकारिता के महान योद्धा जूलियन असांजे को मुक्त करो !

NO SURRENDER : पत्रकारिता के महान योद्धा जूलियन असांजे को मुक्त करो !

22 second read
0
0
266
NO SURRENDER : पत्रकारिता के महान योद्धा जूलियन असांजे को मुक्त करो !
NO SURRENDER : पत्रकारिता के महान योद्धा जूलियन असांजे को मुक्त करो !

अगर जूलियन असांजे आज बाहर होते तो नाटो की औकात नहीं थी कि यूरोप, अमेरिका की जनता को अंधेरे में रखकर रूस को खतरे में डालते हुए यूक्रेन को नाटो जॉइन करने को उकसा पाते. यही कारण है कि यूरोप, अमेरिका आदि में असांजे की आज़ादी के लिए रोज कम से कम 100 प्रदर्शन होते हैं. फिलहाल असांजे दुनिया में अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जिन पर हर किसी का अटूट विश्वास है.

ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में जन्मे, 47 वर्षीय कंप्यूटर प्रोग्रामर जूलियन असांजे ने वर्ष 2010 में विश्व स्तर पर सुर्खियां बटोरीं, जब उनके द्वारा स्थापित वेबसाइट विकीलीक्स ने कई महीनों के दौरान इराक और अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य गतिविधि के बारे में विकिलीक्स वेबसाइट पर इराक युद्ध से जुड़े चार लाख गोपनीय दस्तावेज प्रकाशित कर सार्वजनिक कर दिये थे. यह लीक दस्तावेज अंततः ओबामा प्रशासन के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी में बदल गई, जिसके परिणामस्वरूप असांजे के खिलाफ फिर से एक आपराधिक जांच शुरू की गई.

वर्ष 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान असांजे फिर से बातचीत का विषय बन गए जब विकीलीक्स ने हिलेरी क्लिंटन के अभियान और डेमोक्रेटिक नेशनल कमेटी के अंदर से हजारों हैक किए गए ईमेल जारी किए. नतीजतन, विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे एक बार फिर क्लिंटन और डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थकों के निशाने पर आ गए.

1

भारतवासियों, क्या आपको पता है कि दुनिया भर के कितने शहरों में जूलियन का जन्मदिन सेलिब्रेट किया जाता रहा है ! जी हां, दुनिया के लगभग 300 शहरों और 50 से ज्यादा देशों में जूलियन असांजे का जन्मदिन मनाया जा रहा है. यही नहीं बल्कि पिछले 30 दिनों से 50 से ज्यादा देशों और सैकड़ों शहरों में उनकी आज़ादी की मांग की जा रही है. खुद अमेरिका के 50 से ज्यादा शहरों में रोजाना उनकी रिहाई की मांग के साथ फर्स्ट अमेंडमेंट को कॉल किये जाने की बात हो रही है, इसके लिए फण्ड इकट्ठा किया जा रहा है.

दुनिया खासकर यूरोप को समझ आ गया है कि उनकी आज़ादी की रक्षा के लिए जूलियन असांजे का रिहा होना बहुत अहम है. इस समय जूलियन असांजे दुनिया में अकेला ऐसा इंसान समझा जा रहा है जिस पर दुनिया विश्वास करती है. यही कारण है कि किसी भी अन्य मुद्दे की अपेक्षा जूलियन की रिहाई पर सब बुद्धिजीवी एक हो गए हैं. आपको बता दिया जाए कि कोरोना को लेकर कई यूरोपियन देशों की सरकार जनता का विश्वास खो चुकी है. कई बड़े प्रदर्शनों में ‘कोरोना फेक है’ का नारा लगाया गया है.

आज के समय जब दुनिया के तमाम तथाकथित लोकतंत्र जनता को अंधेरे में रखकर उनके अधिकारों का हनन करने में लगी है. कोरोना को लेकर कई यूरोपियन देशों की सरकार जनता का विश्वास खो चुकी है. उस अंधेरे की चीरफाड़ करना अत्यंत आवश्यक हो गया है; और इसके लिए जूलियन असांजे का जेल से बाहर होना बेहद अहम हो गया है.

आपको याद होगा कि 10 साल पहले जब असांजे ने विश्व भर के राजनेताओं की गठजोड़ भरी बातें विकीलीक्स के माध्यम से सार्वजनिक की थी तो कम से कम 6 देशों की सरकारें भरभराकर गिर गयी थी. इसकी आंच जब ताकतवर अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी तक पहुंचने लगी तो आनन-फानन में असांजे के खिलाफ स्वीडन के महिला द्वारा ब्लात्कार के आरोप लगवा दिए गए. स्वीडन की महिला द्वारा आरोप लगवाने के पीछे मुख्य कारण था स्वीडन का कठोरतम लास्ट मिनट नो वाला कानून, जिसके तहत लगभग आरोप लगाना ही एक अन्यथा यौन संबंध अपने आप में ब्लात्कार की पुष्टि माना जाता है.

सैनफ्रांसिस्को, शिकागो, मेलबॉर्न, सिडनी, रोम, ब्रुसेल्स, इरोस, लंदन, डेन्वेर, कोलोन, फिलाडेल्फिया, जंग फेर्नस्टीग, हैम्बर्ग, न्यूयॉर्क, नीस, लास वेगास, मोंट्रियल, विएना, बर्लिन, रियो, नटाल आदि उन 300 से ज्यादा शहरों में शामिल हैं जहां रोजाना कोई न कोई प्रदर्शन, कॉन्फ्रेंस, विरोध मार्च आदि जूलियन की रिहाई की मांग के लिए हो रहा है.

आपकी जानकारी के लिए बात दूं कि ऑस्ट्रेलिया में 24 सांसदों की सपोर्ट टीम जूलियन की रिहाई पर काम कर रही है, उनमें से एक अभी हाल में बदलते राजनैतिक समीकरणों के बीच वहां का उप प्रधानमंत्री भी बनाया गया है. 3 दिन पहले यूके के 21 क्रॉस पार्टी सांसदों की सपोर्ट टीम की तरफ से प्रमुख विपक्षी नेता जेरेमी कॉर्बिन इस संदर्भ में गवर्नर को अपना ज्ञापन दे चुके हैं. इटली की संसद में क्रॉस पार्टी अनेकों सांसदों ने जूलियन की पोर्ट्रेट के साथ उनकी कैद पर सवाल खड़े कर रिहाई की मांग की है.

भारत में संसद सदस्यों को तो छोड़ ही दें, बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि पिछले 10 सालों में इस देश में शायद एक बार भी जूलियन असांजे की कैद पर प्रश्न या रिहाई की मांग या कोई अन्य प्रदर्शन आदि नहीं देखा गया है.

15 सितम्बर को मेक्सिको में इंडिपेंडेंस डे के सेलेब्रेशन्स के इस बड़े अवसर पर मेक्सिको के राष्ट्रपति आंद्रेस ओब्राडॉर ने पूरी दुनिया में सम्मानित तीन परिवारों को स्पेशल गेस्ट के रूप में बुलाया गया है. ये 3 परिवार हैं – क्रांति नायक चे ग्वेरा, वेनेजुएला के समाजवादी राष्ट्रपति ह्यूगो चावेज़ और आधुनिक समय के शांति यौद्धा और महान पत्रकार जूलियन असांजे के परिवार, जिन्हें इस अवसर पर राष्ट्रपति ओब्राडॉर ने आमंत्रित किया.

जब मैं इंडिया की तरफ देखता हूँ तो यहां के कम्युनिस्ट और अम्बेडकरवादी क्रांतिकारियों का जूलियन असांजे की कैद के प्रति उदासीन रवैये को जानकर अच्छा महसूस नहीं कर पाता ! उम्मीद करता हूं कि इंडिया के क्रांतिकारी और अन्य प्रगतिशील बंधु भी जल्द ही जूलियन असांजे के महत्व को समझेंगे कि जूलियन असांजे का आज़ाद होना हम सब की आज़ादी के लिए जरूरी है.

2

जूलियन असांज की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला इतने सालों से घोंटा जा रहा है, बल्कि अमरीकी-ब्रिटिश सत्ता ने उसकी जीते जी हत्या कर दी है. पर अभिव्यक्ति की आजादी वाले कुछ लोग जो बीच-बीच में इतना जबरदस्त विक्षोभ दिखाते हैं, इस-उस समुदाय के आम लोगों (जिनके हाथ में कोई ताकत नहीं) से इतने सवाल पूछते हैं, कभी उस पर उन्हें विक्षुब्ध होते नहीं देखा, जबकि अभिव्यक्ति की आजादी के लिए जितना योगदान और फिर बलिदान, हाल के सालों में असांज ने किया है, उतना शायद बहुत कम व्यक्तियों ने किया है.

क्या इसलिए कि वहां दुनिया की सबसे बड़ी सत्ताओं से सवाल पूछना पडता है ? करीयर खराब हो सकता है ? वीजा नहीं मिलेगा भविष्य में ? आजकल वो वीजा के लिए सोशल मीडिया अकाउंट भी मांगते हैं न ? जिनके पास सत्ता की ताकत नहीं, उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरा बता, विरोध जताकर बहादुर बनना बहुत आसान है ना !

साम्राज्यवादी ‘डेमोक्रेसी समिट’ की शुरुआत जूलियन असांज की हत्या (शारीरिक नहीं तो मानसिक) की तैयारी के ऐलान के साथ हुई है. अचंभा भी क्या एंग्लो-सैक्सन ‘उदारवाद, मानव अधिकार और जनतंत्र’ की पूरी परंपरा का आधार ही अमरीकी, अफ्रीकी, एशियाई, ऑस्ट्रेलियाई जनसमुदायों का सफाया व गुलामी रही है. पूरा हिसाब लगे तो शायद इन ‘उदारवादी’ कत्लों की तादाद अरब पार पहुंच जाये. (विस्तार से जानने हेतु डोमेनिको लोसुर्डो की ‘काउंटर हिस्ट्री ऑफ लिबरलिज्म’ पढने लायक है.)

एंग्लो-सैक्सन साम्राज्यवाद से ‘गद्दारी’ कर उत्पीडितों के पक्ष में आ खड़े होने वाले गोरों को भी यह सजा मिलती रही है. छिपी साम्राज्यवादी करतूतों को दुनिया की जनता के सामने उजागर करने का असांज का ‘जुर्म’ है भी तो बहुत संगीन, आखिर ये करतूतें इतनी घिनौनी हैं कि बस अंधेरे में ही रखी जा सकती हैं. साम्राज्यवादी पूंजी की नजर से भी 1917 में रूसी समाजवादी क्रांति का अन्य के साथ एक बड़ा अपराध यही था कि उसने जारशाही की मजबूत अलमारियों में बंद सारे ‘डिप्लोमेटिक’ राजों को खु्ल्ला कर दिया था. इस अपराध की सजा बतौर 14 देशों की फौजों ने रूसी मेहनतकशों की सत्ता को कुचलने की कोशिश की थी, और इस भयावह जंग व नतीजन भुखमरी में अंततः एक करोड़ जनता को कुर्बानी देनी पड़ी थी.

3

अरुंधति रॉय 2015 में John Cusack की कोशिशों से उनके और Daniel Ellsberg के साथ Edward Snowden व Julian Assange से मिलीं थीं तो उन्होंने ‘द गार्जियन’ में एक लेख लिखा था, जिसका हिन्दी में रूपांतर शिवप्रसाद जोशी ने किया था. उसी से कॉपी किया गया यह हिस्सा यहां प्रस्तुत है –

मध्यपूर्व (पश्चिम एशिया) में दशकों पुरानी अमेरिकी और यूरोपीय विदेश नीति के नतीज़तन जब शरणार्थी बड़े पैमाने पर यूरोप में चले आ रहे हैं ऐसे वक़्त में ये सब लिखते हुए- मुझे ये बात हैरान करती है कि आख़िर शरणार्थी कौन है ? क्या एडवर्ड स्नोडेन शरणार्थी है ? बिल्कुल, वो तो है. जो उसने किया है उसके चलते वो उस जगह तो नहीं लौट पाएगा, जिसकी कल्पना वो अपने देश के रूप में करता है. (हालांकि वो वहां रहना जारी रख सकता है जहां वो सबसे ज़्यादा सुविधापूर्ण ढंग से रह पाएगा- इंटरनेट के भीतर.)

अफ़ग़ानिस्तान, इराक़ और सीरिया के युद्धों से भाग कर यूरोप जा रहे शरणार्थी, जीवनशैली में तब्दीली लाने वाले यानी लाइफ़स्टाइल युद्धों के शरणार्थी हैं. लेकिन भारत जैसे देशों के वे हज़ारों लोग शरणार्थी नहीं कहलाए जाते हैं जिन्हें जेल में डाला जा रहा है या उन्हीं लाइफ़स्टाइल लड़ाइयों में मारा जा रहा है, उन लाखों लोगों को शरणार्थी नहीं कहते हैं, जिन्हें अपनी जमीनों और खेतों से खदेड़ा जा रहा है, जो कुछ भी वे जानते हैं, उस सबसे से उन्हें बेदख़ल और निर्वासित किया जा रहा है- अपनी भाषा, अपना इतिहास, वो लैंडस्केप जिसने उनकी रचना की है.

जब तक उनकी दुर्दशा उनके ‘अपने’ देश की मनमाने तरीक़े से खींची गई सीमाओं के दायरे में घिरी है, उन्हें शरणार्थी नहीं माना जा सकता है. लेकिन वे शरणार्थी हैं. और निश्चित रूप से, संख्या के लिहाज़ से भी देखें तो दुनिया में आज ऐसे लोगों की संख्या सबसे ज़्यादा है. बदक़िस्मती से, उन कल्पनाशीलताओं में उनकी कोई जगह नहीं है जो देशों और सीमाओं के खांचे में तालाबंद हैं, उन दिमागों में भी उनकी जगह नहीं है जो झंडों की तहों की तरह उनमें लिपटे हुए हैं.

शायद लाइफ़स्टाइल युद्धों का सर्वाधिक ज्ञात शरणार्थी जुलियन असांज है, विकीलीक्स का संस्थापक और संपादक, जो इस समय लंदन स्थित इक्वाडोर के दूतावास में बतौर भगोड़ा-मेहमान अपना चौथा साल काट रहा है. हाल तक सामने के दरवाजे के ठीक बाहर बनी छोटी लॉबी तक पुलिस तैनात थी. छतों पर स्नाइपर मुस्तैद थे, जिनके पास उसे उस स्थिति में फ़ौरन पकड़ लेने का, शूट कर देने का, बाहर खींच ले आने का आदेश था, अगर वे दरवाजे से जो अपने पांव का अंगूठा भी बाहर रख दे. ये तमाम क़ानूनी मक़सदों से एक अंतरराष्ट्रीय सीमा है. इक्वाडोर का दूतावास दुनिया के सबसे प्रसिद्ध डिपार्टमेंट स्टोर हैरॉड्स जाने वाली सड़क के सामने स्थित है.

जिस दिन हम जुलियन से मिले, हैरॉड्स, क्रिसमस के हाहाकारी ख़रीदारों को अपने भीतर सोखता जाता था और बाहर फेंकता जाता था. वे सैकड़ों या शायद हज़ारों की संख्या में होंगे. उस टोनी लंदन हाई स्ट्रीट के बीचों-बीच, समृद्धि और अत्यधिकता की गंध, क़ैद के हालात और मुक्त दुनिया में मुक्त अभिव्यक्ति के भय की गंध से मिली. (उन दोनों ने हाथ मिलाएं और कभी भी दोस्त न बनने पर अपनी सहमति जताई). उस दिन (वास्तव में रात को) हम लोग जुलियन से मिले थे. हमें अपने साथ फ़ोन, कैमरा या कोई रिकॉर्डिंग यंत्र कमरे में ले जाने की इजाज़त नहीं थी. लिहाज़ा वो बातचीत भी ऑफ़ द रिकॉर्ड ही रह गई है.

अपने संस्थापक-संपादक के ख़िलाफ़ लाद दी गई मुश्किलों के बावजूद, विकीलीक्स ने अपना काम जारी रखा है, हमेशा की तरह शांत और चिंतामुक्त ढंग से. एकदम हाल में उसने एक लाख डॉलर के एक ईनाम का ऐलान किया है जो उस व्यक्ति को दिया जाएगा जो पराअटलांटिक व्यापार और निवेश साझेदारी (ट्रांसअटलाटिंक ट्रेड ऐंड इनवेस्टमेंट पार्टनरशिप- टीटीआईपी) से जुड़े ‘स्मोकिंग गन’ दस्तावेज विकीलीक्स को लाकर देगा.

यूरोप और अमेरिका के बीच ये एक ऐसा मुक्त व्यापार समझौता है जिसका लक्ष्य बहुराष्ट्रीय निगमों को उन संप्रभु सरकारों पर मुक़दमा ठोक सकने की ताक़त से लैस करना है, जो उनके कॉरपोरेट मुनाफ़ों पर ग़लत असर डालेंगी. सरकारें अगर कामगारों के न्यूनतम भत्तों को बढ़ाती हैं, ‘दहशतगर्द’ गांववालों पर कार्रवाई नहीं करती है, खनन कंपनियों के काम में रुकावट डालती है या कह लीजिए कि कॉरपोरेटी पेटेंट वाले जीन संवर्धित बीजों की मौनसान्टो (एक मल्टीनेशनल) की पेशकश को ठुकरा देने की गुस्ताख़ी कर देती है तो ये सब सरकारों के आपराधिक कृत्य के दायरे में आ जाएंगें. टीटीआईपी, घुसपैठी सर्विलांस या संवर्धित यूरेनियम जैसा ही एक और हथियार है जो लाइफ़स्टाइल युद्धों में इस्तेमाल किया जाएगा.

मेरे सामने मेज के पार जुलियन असांज बैठा था. उसके चेहरा पीला पड़ा हुआ था और वो चूर दिखता था. 900 दिन हो गए हैं, उसके शरीर को पांच मिनट की धूप भी नहीं मिली है. फिर भी वो अदृश्य हो जाने या सरेंडर कर देने से इंकार कर रहा है, जैसा कि उसके दुश्मन चाहते हैं. मैं इस बात पर मुस्कराई कि कोई भी उसे ऑस्ट्रेलियाई नायक या ऑस्ट्रेलियाई गद्दार की तरह नहीं देखता है. अपने दुश्मनों के मामले में असांज ने एक देश से ज़्यादा को धोखा दिया है. उसने सत्ताधारी ताकतों की विचारधारा के साथ धोखा किया है. इसके लिए वे उससे नफ़रत करते हैं, एडवर्ड स्नोडेन से भी ज़्यादा उससे नफ़रत करते हैं. और ये कहना बहुत कहना है.

4

ऐसा लगता है कि ब्रिटेन और अमेरिका ने मिलकर तय कर लिया है कि वो Wikileaks के संस्थापक जूलियन असांज की बलि चढ़ाकर मानेंगे. ये दोनों देश दुनिया भर में लोकतंत्र और ‘बोलने की आजादी’ के सबसे बड़े निर्यातक रहे हैं, इनसे एक बोलने वाला आदमी बर्दाश्त नहीं हो रहा है. लोकतंत्र बचाने और बोलने की आजादी को बनाए रखने के लिए विभिन्न एनजीओ के माध्यम से पश्चिम ने अरबों रुपये भारत जैसे देशों में बांटे हैं लेकिन जूलियन असांज और एडवर्ड स्नोडेन का हश्र देखकर लगता नहीं है कि इनको सचमुच इन चीजों की ज्यादा चिन्ता है.

आज एक विश्लेषक का आलेख पढ़ रहा था जिसमें उन्होंने दिखाया था कि पत्रकार खशोगी की हत्या मामले में बाइडन एण्ड कम्पनी ने डोनाल्ड ट्रम्प पर सऊदी अरब के संग गलबहियां करने के तीखे आरोप लगाये थे और कहा था कि सत्ता में आते ही पत्रकार की हत्या करने वालों को सबक सिखाया जाएगा, हुआ उल्टा. बाइडन सत्ता में आते ही यूटर्न ले लिया. सत्ता में आते ही सऊदी को सीने से चिपका लिया.

अमेरिकी सम्राज्यवाद की धज्जियां उड़ने वाले पत्रकार जूलियन असांज का जीवन संकट में आने वाला है. ब्रिटेन की अदालत ने थोड़ी देर पहले ही उन्हें अमेरिका को सौंपने का फैसला सुनाया है. अगर उन्हें अमेरिका को सौंपा गया तो जैसा की उन्हें डर था या तो उन्हें मार दिया जाएगा या आजीवन उम्र कैद की सज़ा मिलेगी. ऐसा कतई नहीं होना चाहिए. दुनिया को इसके खिलाफ खड़ा होना होगा. सारे पत्रकारों को, हर उस इंसान को जो यह मानता है कि मनुष्य होने के नाते प्राप्त अधिकारों से समझौता नहीं किया जा सकता, उन्हें इसके खिलाफ़ बोलना होगा. लड़ना होगा. हाल ही में हमने देखा है कि अगर सच्चाई के लिए लड़ा जाए तो जीत मनुष्यता की ही होती है.

(जार्ज ओरवेल, मुकेश असीम, अरुंधति रॉय के टिप्पणियों के आधार पर)

Read Also –

जेल से जाएगा पत्रकारिता का रास्ता ?
पत्रकारिता के सिस्टम को राजनीतिक और आर्थिक कारणों से कुचल दिया गया
पत्रकारिता की पहली शर्त है तलवार की धार पर चलना
सिद्दीकी कप्पन : सत्ता पर काबिज सफेदपोश गुंडों की शिकार बनी ‘प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार’

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

किस चीज के लिए हुए हैं जम्मू-कश्मीर के चुनाव

जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए चली चुनाव प्रक्रिया खासी लंबी रही लेकिन इससे उसकी गहमागहमी और…