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भाकपा (माओवादी) के गद्दार कोबाद पर शासक वर्ग का अविश्वास

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भाकपा (माओवादी) के गद्दार कोबाद पर शासक वर्ग का अविश्वास
भाकपा (माओवादी) के गद्दार कोबाद पर शासक वर्ग का अविश्वास

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के पोलिट ब्यूरो से गद्दार घोषित कर निष्कासित किये गए कोबाद गांधी ने ‘फ्राक्चर्ड फ्रीडम ए जेल मेमोयर” नामक पुस्तक जेल में रहते हुए लिखा, जिसे भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने ‘गद्दारी का दस्तावेज’ बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया. अब उसी पुस्तक के मराठी अनुवाद को 6 दिसंबर 2022 को, भाजपा की महाराष्ट्र सरकार ने उक्त पुस्तक को दिए गए वर्ष 2021 के पुरस्कार को वापस लेने का घोषणा कर दिया. इतना ही नहीं महाराष्ट्र सरकार ने इस पुरस्कार के लिए पुस्तक की सिफारिश करने वाली समिति को ही भंग कर दिया.

ऐसा करने के पीछे कारणों को गिनाते हुए महाराष्ट्र के मराठी भाषा विभाग के भाजपाई मंत्री दीपक केसरकर ने जो बताया, वह बेहद दिलचस्प है. उसने कहा – ‘हर किसी को विचार की स्वतंत्रता है फिर भी नक्सली विचारों का उभार हमारी सरकार को मंजूर नहीं है. हमारे लिए देश सबसे पहले है. साहित्य को लेखन की स्वतंत्रता है लेकिन जो प्रतिबंधित है वह लिखा नहीं जा सकता. किसी भी परिस्थिति में राज्य सरकार द्वारा नक्सलवाद का महिमामंडन नहीं किया जा सकता है.’

यह बेहद दिलचस्प है कि कोबाद गांधी लिखित पुस्तक को एक ओर भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ‘गद्दारी का दस्तावेज’ बताती है तो वहीं सत्तासीन भाजपा की महाराष्ट्र सरकार ‘माओवादी साहित्य’ बताती है. बीच के कुछ उदारतावादी लोग पेंडुलम की भांति दोलन करते हुए चीख-पुकार मचा रहे हैं, जो ज्यादा देर नहीं चलेगा. अब क्रूर सत्ता की गोद में जा बैठे गोबाद गांधी की ठीक वही स्थिति है जो कल्पित साहित्य ‘रामायण’ के पात्र ‘बिभीषण’ की है, जिसे न तो उसकी गद्दारी के कारण जनता कभी अपना पायी और न ही शासक ने ही भरोसा किया, बल्कि वह लांक्षित-वंचित अपयश का शिकार हो गया.

बहरहाल, कोबाद गांधी की इस पुस्तक की आलोचना करते हुए भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने 19 नवम्बर, 2021 को गोबाद गांधी को गद्दार बताते हुए पार्टी से निकालने का ऐलान कर दिया और इस एलानिया दस्तावेज – ‘भाकपा (माओवादी) से कोबाद गांधी के बहिष्कार पर’ – में जिस कारणों को गिनाया है, वह इस प्रकार है –

2019 में जेल से जमानत पर रिहा होने के बाद से अपने परिवार के साथ रहते हुए कोबाड घैंडी ने ‘फ्राक्चर्ड फ्रीडम ए प्रिजन मेमोयर’ नामक किताब लिखकर 2020 में प्रकाशित किया है. इस किताब के जरिए यह स्पष्ट हो गया है कि उन्होंने मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद के सिद्धांत से पूरी तरह संबंध विच्छेद कर लिया है.

जेल में रहते समय ही उन्होंने 2020 में इस किताब के प्रधान प्रस्तावनाओं को मेन स्ट्रीम पत्रिका में ‘क्वेश्चन आफ फ्रीडम पीपुल्स एमान्सिपेशन’ शीर्षक से 6 लेख लिखे थे. उन लेखों ने मानवतावाद, आध्यात्मवाद को ऊंचा उठाते हुए विचारधारा के तौर पर बुर्जुआ सिद्धांत को प्रस्तुत किया. उनकी वर्तमान किताब ‘फ्राक्चर्ड फ्रीडम ए प्रिजन मेमोयर’ द्वारा उनके विचार घनीभूत होकर और स्पष्ट तौर पर सामने आए हैं.

तिहाड़ जेल में पेड़ों के नीचे बैठकर लंबे समय विचार करने वाले कोबाड अब यह कह रहे हैं कि अपने 40 साल के क्रांतिकारी जीवन के प्रतिफलन में दुनिया को बदलने के कार्य में सबसे पहले समाज में स्वेच्छा, अच्छे मूल्य, आनंद की जरूरत है और आनंद को हासिल करने के गोल पोस्ट के तौर पर हमारा व्यवहार जारी रहना चाहिए. नीति कथाओं का सारांश ग्रहण करने की भी बात कह रहे हैं. इस तरह आध्यात्म का रास्ता चुनने वाले कोबाड यह कह रहे हैं कि मार्क्सवादी व्यवहार में स्वेच्छा, अच्छे मूल्य व आनंद नहीं हैं और इसके फलस्वरूप मार्क्सवाद अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर सका.

परंतु यहां असल बात यह है कि वे मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद की गलत व्याख्या कर रहे हैं. मार्क्सवाद यह कहता है कि वर्ग संघर्ष, उत्पादन, वैज्ञानिक शोध के जरिए ही समाज में सही विचार उत्पन्न होते हैं. कॉमरेड्‌ मार्क्स ने अपनी पुस्तक पूंजी में लिखा – ‘बाहरी दुनिया पर प्रतिचर्या करते हुए, उसे बदलने के जरिए वह उसी समय अपने स्वयं के चरित्र को ही बदलता है. वह अपने भीतर छुपी हुई शक्ति व क्षमताओं को विकसित कर, इन आंतरिक शक्तियों को अपने अधीन कर लेता है.’

दुनिया में बदलाव के लिए क्रांतिकारी प्रतिचर्या के बिना मनुष्य में भी बदलाव की आशा नहीं कर सकते हैं. आध्यात्मिक विचार एवं मार्ग सामंती, बुर्जुआई भाववादी विचारधारा से संबंधित सोच-विचार के सिवाय और कुछ नहीं. उनका मार्क्सवाद जोकि अत्यंत वैज्ञानिक, दार्शनिक व चिंतनयुकत है, से कोई नाता नहीं है.

इंद्वात्मक व ऐतिहासिक भौतिकवाद, मार्क्सवाद के बुनियादी उसूलों व वर्ग संघर्ष को छोड़कर भाववादी विचारों के साथ समाज में आनंद को हासिल करने के आध्यात्म के रास्ते को कोबाड ने चुना है.

50 साल से भी अधिक समय से नक्सलबाड़ी की राजनीति का अनुसारण करते हुए पूर्व की सीपीआई (एम-एल) (पीपुल्सवार) की केंद्रीय कमेटी के सदस्य, महाराष्ट्र राज्य कमेटी के नेता, बाद में एकीकृत पार्टी भाकपा (माओवादी) की केंद्रीय कमेटी के पोलित ब्यूरो सदस्य के तौर पर वे अपनी गिरफ्तारी के समय तक कार्य करते रहे. वे 2009 में गिरफ्तार होकर जेल गए. जेल में रहते समय एवं दस साल बाद जेल से रिहा होने के बाद भी इस पूरी समयावधि के दौरान वे यही कहते आए कि वो माओवादी पार्टी के सदस्य नहीं हैं, पुलिस उन पर माओवादी होने का आरोप लगा रही है, उन्हें कई माओवादी केसों में फंसाया गया है.

इस बात को उन्होंने न सिर्फ अपनी किताब में लिखा बल्कि विगत में पत्रकार वार्ताओं में भी वे कहते आए. एक क्रांतिकारी पार्टी की सर्वोच्च कमेटी में काम करने वाले, गिरफ्तार होते ही सच को दबाते हुए शासक वर्गों की शाबासी पाने के लिए उनके द्वारा जो उतावलेपन दिखाया जा रहा है, उससे यह स्पष्ट हो रहा है कि उन्होंने ईमानदारी खो दी है. बेईमान व्यक्ति समाज के लिए क्या संदेश दे सकते हैं ?उसका क्या मूल्य रहेगा ?

जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने पार्टी के साथ संपर्क नहीं किया. उतना ही नहीं, पार्टी के साथ चर्चा किए बगैर ही पार्टी के सिद्धांत और राजनीति के खिलाफ एवं पार्टी संविधान और जनवादी केंद्रीयता के उसूल व अनुशासन का उल्लंघन कर, इस किताब को प्रकाशित किया और विमोचन किया. अच्छे मूल्यों के बारे में बताने वाले कोबाड के भीतर के अराजकतावादी रुझानों का यह खुलासा करता है. एक ऐसे समय में जब मोदी के नेतृत्व में ब्राह्मणीय हिंदुत्व फासीवादी भाजपा सरकार समाधान-प्रहार के क्रूर हमलों के जरिए माओवादी पार्टी का सफाया करने का गंभीर प्रयास कर रही है, इस किताब के जरिए कोबाड जनता के बीच में निराशा पैदा कर, शासक वर्गों की सेवा में डूबे रहना चाहते हैं. इसके साथ ही स्वयं के बचाव में अधिकारियों के साथ कंधे पर कंधा डालकर सुविधाभोगी जीवन बिताकर, बेशर्मी के साथ अपनी किताब में उनका गुणगान किया.

पार्टी पर कोबाड यह बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं कि जेलों में बंद माओवादी कैदी माफियाओं के साथ मिले हुए हैं, कुछेक बार उनका नेतृत्व भी करते हैं. नक्सलबाड़ी के जमाने से जेलों में क्रांतिकारियों द्वारा स्थापित संघर्ष की परंपराओं, बलिदानों को लज्जित करते हुए पार्टी पर नीच हमले कर रहे हैं. कोबाड ने जेल में निःस्वार्थ भाव से साधारण कैदियों के हकों के लिए जेल अधिकारियों के खिलाफ कोई एक दिन भी आंदोलन नहीं किया. ऊपर से उनके द्वारा व्यक्तिगत तौर पर कई रियायतें प्राप्त की. क्या ऐसे व्यक्ति को माओवादी कैदियों के बारे में बात करने का हक भी रहेगा ? वो माओवादी पार्टी पर यह निंदापूर्वक आरोप लगा रहे हैं कि उसे जनता का समर्थन प्राप्त नहीं है, पार्टी घूमंतू दस्तों के रूप में काम कर रही है. यह शासक वर्गों के सुर में सुर मिलाने के सिवाय और कुछ नहीं है.

कोबाड घैंडी ने अपनी किताब में मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद के सिद्धांत और राजनीतिक व्यवहार पर अपनी आलोचना का निशाना साधा है. मार्क्स, लेनिन, स्तालिन, माओ के नेतृत्व में समाजवाद के लिए जारी संघर्ष क्‍यों हार गया ? चीन में माओ के निधन के बाद सांस्कृतिक क्रांति के विफल होने के कारण क्या हैं ? मार्क्स की शुरुआती सैद्धांतिक रचनाओं में मानवतावादी मूल्य प्रकट हुए थे परंतु बाद के समय में आचरणात्मक आंदोलनों के आगे आने के कारण वे दब गए.

कोबाड ने अपनी पुस्तक में लिखा कि लेनिन, स्तालिन, माओ के नेतृत्व में स्थापित समाजवादी राज्यों में इन मानवतावादी मूल्यों को महत्व नहीं दिया गया, आर्थिक निर्णायकवादी सिद्धांतों का ही प्रभुत्व रहा, कम्युनिस्ट पार्टियों में भी जनवादी केंद्रीयता के जरिए तानाशाही का ही प्रभुत्व रहा, इसी कारण से समाजवाद पीछे हट की स्थिति में पहुंच गया. उन्होंने यह कहते हुए कि विश्व युद्ध के समय में ही क्रांतियां सफल हुईं, शांतिकाल में क्रांतियां सफल नहीं हुईं, इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश कर रहे हैं.

जबकि मार्क्सवाद ने यह बताया कि सत्ता और मुद्रा से पिंड छुड़ाना साम्यवादी समाज में ही संभव है. उसने यह भी बताया कि उस हेतु कौनसा रास्ता अपनाया जाए. फिर भी कोबाड यह कहते हुए कि समाज में सत्ता और मुद्रा ही प्रधान समस्याएं हैं, उन्हीं के कारण कई अनहोनियां घट रही हैं, जनता को सत्ता के लिए संघर्ष से दूर करने का प्रयास कर रहे हैं. इस तरह वे मार्क्सवाद-लेनिनवाद- माओवाद के बुनियादी उसूलों का ही विरोध कर रहे हैं. तकरीबन 75 सालों से मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद ने बुर्जुआ सिद्धांत पर जो सैद्धांतिक-राजनीतिक हमले किए, व्यवहार में जो जीतें हासिल की, उन सबसे इनकार करते हुए वे सर्वहारा वर्ग एवं समस्त उत्पीड़ित जनता के साथ वे गद्दारी कर रहे हैं.

कोबाड यह आलोचना कर रहे हैं कि भारत देश में जब से कम्युनिस्ट पार्टी का गठन हुआ, तबसे अब तक उसने क्‍या हासिल किया ? देश का क्रांतिकारी आंदोलन क्यों पिछड़ गया है ? क्रांतिकारी पार्टियां जांच-पड़ताल किए बगैर निश्चयवाद के साथ यह कहती हैं कि देश में क्रांति अवश्यंभावी है. वो पुराने समय में कम्युनिस्टों की जो आलोचना की जाती थी, उसी को दोहरा रहे हैं कि वे मजदूर वर्ग के भीतर इस दौरान हुए बदलावों को नजर में नहीं रखते हैं, जाति सवाल को वर्ग विभाजन के दायरे में समेटकर औद्योगीकरण के जरिए, क्रांति के जरिए जातीय.भेदभाव स्वयमेव समाप्त हो जाने की बात कहते हैं.

दरअसल देश की ठोस समस्याओं का ठोस विश्लेषण कर, वैज्ञानिक तौर पर जब  तब समझ को बेहतर बनाते हुए पार्टी आवश्यक दस्तावेज तैयार करती आ रही है. कोबाड ने जिन मुद॒दों को उठाया है, उन सभी के जवाब पार्टी दस्तावेजों में मौजूद हैं. माओवादी पार्टी में लंबे समय तक एक नेता के तौर पर कार्य करने एवं इन दस्तावेजों को तैयार करने के लिए आयोजित चर्चाओं में शामिल होने के बावजूद सच्चाई पर परदा डालना उनके अधःपतित होने का सबूत है.

क्रांतिकारी राजनीति को तिलांजलि देकर बुर्जुआई कीचड़ में अब क्‍यों उतरे कोबाड ?

हमें यह देखना होगा कि क्रांतिकारी राजनीति को तिलांजलि देकर बुर्जुआई कीचड़ में अब कोबाड क्‍यों उतरे हैं ? कोबाड संपन्न मध्य वर्गीय परिवार से आए. वे वर्गीय चरित्र के मुताबिक राष्ट्रीय बुर्जुआ वर्ग से पार्टी में भर्ती हुए. कॉरपोरेट दुनिया में पले-बढ़े. डून स्कूल में उनकी पढ़ाई हुई. कुछ समय के लिए उन्होंने लंदन में शिक्षा ग्रहण की. लंदन में पढ़ते समय ही भारत में बसंत के वज़नाथ से प्रभावित होकर वे क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हुए. महाराष्ट्र में क्रांतिकारी पार्टी के निर्माताओं में से एक के तौर पर वे आगे आए.

लंदन के उस ग्रंथालय में जहां मार्क्स ने अध्ययन किया था, कोबाड ने मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद के सिद्धांत का अध्ययन किया. परंतु ठोस परिस्थितियों का ठोस विश्लेषण करने के मामले में जोकि मार्क्सवाद के बुनियादी उसूलों का हिस्सा है, उनके भीतर दार्शनिक तौर पर दंद्वात्मक पद्धति की जगह कठमुल्लावादी विचार हावी रहे. ये विचार उनके द्वारा राजनीतिक तौर पर अक्सर कथनी में वामपंथी एवं करनी में दक्षिणपंथी मटकावपूर्ण विचारों के रूप में अभिव्यक्त होते थे. ये विचार पार्टी में गुटबाजी के लिए रास्ता बनाते थे.

आंतरिक संघर्ष के जरिए कोबाड को सुधारने के लिए पार्टी ने गंभीर प्रयास किए. किंतु सैद्धांतिक, राजनीतिक भटकावों से वे स्वेच्छापूर्वक बाहर नहीं आ सके. देश में माओवादी पार्टी की स्थापना के साथ ही शासक वर्गों द्वारा तीव्र दमन का प्रयोग जिसके गिरफ्तार हो जाने के बाद उनके भीतर घर कर गए, गलत विचार उनके लेखों में व्यक्त हो गए थे. स्वयं को सुधारने के लिए किसी व्यक्ति के लिए यह जरूरी है कि वह वर्ग संघर्ष और जनयुद्ध में शामिल होवें व ठोस परिस्थितियों का अध्ययन करें, तद्वारा मनोगतवादी विचारों में मौजूद कठमुल्लावादी गलत विचारों को सुधारे.

कोबाड ने अपने 40 साल के क्रांतिकारी जीवन में इस कार्य को कम महत्व दिया. कोबाड, जैसा कि उन्होंने कहा, अंतरमुखी स्वभाव के हैं. इस कारण किसी भी विषय पर साथी कॉमरेडों के साथ विस्तृत रूप से चर्चा करने, विचारों का आदान-प्रदान करने में उन्होंने रुचि नहीं दिखायी. अपने लंबे क्रांतिकारी जीवन को वे सर्वहारावर्गीय विचारों के अनुरूप बदल न सके. तथापि क्रांतिकारी आंदोलनों में उत्पन्न होने वाले ज्वार-भाटे का मार्क्सवादी पद्धति के मुताबिक विश्लेषण नहीं कर सके. ऐसे मौकों पर अक्सर निराशावाद का शिकार होना, पार्टी गलतियों का एकांगी ढंग से अति आकलन करने की वजह से मन में पार्टी के प्रति विद्वेष बढ़ाना, इस तरह के भटकाव कई बार प्रस्फूटित हुए जो उनके अंदर के पेट्टी बुर्जुआ घमंड को दशति हैं.

आखिर उन्हीं का शिकार होकर मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद के सिद्धांत का विरोध करने के हद्‌ तक वे चले गये. जेल जीवन के बाद वे फिर से कॉरपोरेट दुनिया में चले गए. इसीलिए 50 साल बाद सड़ी-गली साम्राज्यवादी, अर्ध-औपनिवेशिक व अर्ध-सामंती व्यवस्था में अपनी वापसी की वे बढ़ाई कर रहे हैं. क्रांतिकारी आंदोलन में सृजनात्मकता के खत्म होने का उन्होंने रोना रोया. वे गर्व के साथ यह कह रहे हैं कि कॉरपोरेट दुनिया ही उनके विचारों को गतिशीलता प्रदान करेगी. यह सच है कि पहाड़ से लुढ़का पत्थर पाताल पहुंचने तक सफर करता है.

कोबाड द्वारा प्रस्तुत विचार इतिहास में कोई नए नहीं हैं. मार्क्सवाद को स्वीकार करते हुए ही मार्क्सवाद के बुनियादी उसूलों को खारिज करने वाले बेर्नस्टीन, मानवतावादी मार्क्सवादियों तथा डांगे के बगल में ही कोबाड पहुंच गए. मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद के बुनियादी
उसूलों को पलटने, शासक वर्गों के पैरों में गिरकर पार्टी पर कीचड़ उछालने, वर्ग संघर्ष की जगह वर्गसमरसता के विचारों का विकल्प चुनकर भाववादी आध्यात्मिक गुरू बन जाने, पार्टी अनुशासन का घोर उल्लंघन करने की वजह से पार्टी संविधान के मुताबिक केंद्रीय कमेटी कोबाड घैंडी की पार्टी सदस्यता रद्द कर उन्हें पार्टी से बहिष्कार करती है.

प्यारे लोगों ! हमारी पार्टी जनता, जनवादियों, बुद्धिजीवियों व क्रांति के हमदर्दों से अपील करती है कि वे कोबाड द्वारा प्रस्तुत क्रांतिविरोधी, निरा अवसरवादी राजनीति, विचारों व प्रस्तावनाओं को खारिज करें. निराशावाद से ग्रसित, क्रांतिकारी स्फूर्ति के समाप्त होकर शासक वर्गों की विचारधारा के बगल में बैठने वाले कोबाड की अवसरवादी राजनीति को खारिज करते हुए उसका भंडाफोड़ करने केंद्रीय कमेटी पार्टी कतारों का आह्वान करती है.

चरम स्वार्थ के साथ क्रांतिकारी आंदोलन से भागकर सड़े-गले समाज का हिस्सा बनने वालों में कोबाड कोई पहला व्यक्ति नहीं हैं. ऐसे लोगों को इतिहास के कूढ़ेदान में फेंककर क्रांतिकारी आंदोलन आगे बढ़ता आया है. साम्यवादी समाज की स्थापना के लक्ष्य के साथ मजदूर वर्ग के नेतृत्व में तमाम उत्पीडित जनता को गोलबंद करते हुए हमारी पार्टी विजय की ओर सीढ़ी-दर-सीढ़ी आगे बढ़ती रहेगी.

उपरोक्त दस्तावेज की पंक्तियां के नीचे नोट में दर्ज था कि ‘कोबाड घैंडी की किताब ‘फ्राक्चर्ड फ्रीडम ए जेल मेमोयर’ का विस्तारपूर्वक जवाब हम जल्द प्रकाशित करेंगे.’ के वादे को निभाते हुए भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने ‘फ्राक्चर्ड फ्रीडम ए जेल मेमोयर’ गद्दारी का दस्तावेज’ नामक पुस्तक प्रकाशित की है, जिसकी पीडीएफ प्रति लिंक पर क्लिक कर प्राप्त कर सकते हैं.

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