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वो लौट रहे हैं

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वो लौट रहे हैं
वो लौट रहे हैं

वो लौट रहे हैं विजय नारों की गूंज होकर
जैसे महीनों पहले वो आये थे

वो लौट रहे हैं अपने घरों की यादों में सवार
वो रास्ते में हैं और मन घर पर
वो लौट रहे हैं अपने बेटों भाइयों के समान
ट्रेक्टरों ट्रालियों पर
बड़े बड़े ट्रकों पर अपने होने को लाद कर
वो लौट रहे हैं

वो लौट रहे हैं,
उनके पीछे दौड़ रहा है धूल का गुबार
दौड़ रहीं हैं उन जगहों की स्मृतियां
दौड़ रहा है अनाम प्यार
उनके पीछे दौड़ रहीं हैं ग़रीबों की भूख,
उन असहायों के मन ,उनकी दुआएं,
जिन्हें अब शायद भूखों रहना पड़े

उनके पीछे बहुत कुछ छूट जा रहे हैं
छूट जा रहे हैं उनके सैंकड़ों साथी
जो भेंट चढ़ गए तानाशाही की ज़िद की
यादों से काम नहीं चलता
यादें कमा कर नहीं लातीं हैं
यादें लाठी नहीं बनतीं बूढ़े मां बाप की,
यादें उल्लास नहीं मनातीं
जीते हुओं के साथ में,
यादें नारे नहीं लगातीं
छूट जा रहे हैं वो जांबाज़ सदा के लिए
जिन्होंने ख़ून से सींचा विजय को
अपने मां बाप के एकलौते सहारे/पत्नियों के पति/
बच्चों के बाप/प्रेमिकाओं के प्रेमी/प्रेमियों की प्रेमिकाएं
जो अब कभी नहीं लौटेंगे अपने घर
गांवों में उनके लिए रास्ते इंतज़ार में लेटे रहेंगे
घरों में उनके बैठने खानें की जगहें ख़ाली रहेंगी.

वो लौट रहे हैं और उनका संकल्प
म्यान से आधी निकली तलवार की तरह चमक रहा है
वो युद्ध में हैं पर फ़िलहाल विराम है युद्ध
और वो सजग, औज़ारों को साफ़ कर रहे हैं
वो लौट रहे हैं कि वो बचा लाये अपनी ज़मीन हिरणायक्ष से

वो एक ऐसे युद्ध से लौट रहे हैं जिसमें
उनकी महिलाएं, बच्चे, बेटियां भी साथ लड रहीं थीं
वो जितना युद्ध भूमि में थे उतना ही घरों पर
एक दूसरे की अनुपस्थिति में
वो हो गए थे एक दूसरे का होना
वो आये थे एक महान आश्चर्य की तरह
वो लौट रहे हैं असंभव को संभव बनाते हुए
अकेला उदाहरण होकर महान आश्चर्य की तरह

उनके पीछे छूट गए हैं
उनके बुझे हुए सामुहिक चूल्हे
विशाल पड़ाव के उखड़ने के चिन्ह
जो मिट कर कर भी नहीं मिटेंगे
वो हो चुके हैं कैमरों में क़ैद,
दुनियां के गौरवमय इतिहासों में शामिल

वो लौट रहे हैं,
उनका लौटना समय का आगे बढ़ना है
यथास्थितिवाद का टूटना है।

  • वासुकि प्रसाद ‘उन्मत्त’
    13/12/2021

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