राम अयोध्या सिंह
अभी हाल में ही जेएनयू कैंपस की दीवारों पर लिखे ये नारे दिखाई पड़े कि भारत के ब्राह्मणों और बनिए भारत छोड़ दो. यह समझना कोई मुश्किल काम नहीं है कि ऐसी गंदी हरकतें करने वाले कौन होंगे ? केन्द्र में मोदी सरकार बनने के बाद से लगातार ही जेएनयू का महौल खराब करने की कोशिश होती रही है और यह भी सबको मालूम है कि ऐसा करने वाले विशुद्ध रूप से संघ और भाजपा से जुड़े अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लफंगे ही हैं, जिनके लिए जेएनयू से वामपंथियों को समाप्त करना ही एकमात्र उद्देश्य है.
सांप्रदायिकता का घिनौना खेल संघ के इशारे पर भाजपा, एबीवीपी और उनके अन्य आनुषंगिक ईकाईयां खेल रही हैं. मोदी सरकार ने तो भारतीय राजनीति का केन्द्रीय विमर्श ही सांप्रदायिकता को बना दिया है. संघ और भाजपा के नेताओं के साथ ही तमाम केन्द्रीय मंत्रियों, स्वयं प्रधानमंत्री इस घिनौने सांप्रदायिक खेल में सक्रिय रूप से शामिल हैं.
ये लोग हर जगह और हर समय इसी प्रयास में लगे हुए होते हैं कि सांप्रदायिक दंगों की श्रृंखला सतत जारी रहे. अपने इस अभियान के लिए ये लोग हर तरह के षड्यंत्र, तिकड़म और साजिश में लगे रहते हैं. सांप्रदायिक दंगा इनकी राजनीति के लिए प्राणवायु है, जिसके बिना ये मर जाएंगे. इसके पूर्व ये ही संघी और भाजपाई अयोध्या में भी इसी तरह का खुराफात कर चुके हैं, जब मुसलमानों के वेश में भाजपाई हिन्दुओं ने दंगा फैलाने के लिए मंदिर को अपवित्र करने की कोशिश की थी, और कुछ ही समय के बाद वे पकड़े गए, जिससे सारा भेद खुल गया. तेजपुर और असम के तिनसुकिया में भी ऐसा ही प्रपंच रचा गया. बंगाल के हुगली, कर्नाटक के हुबली और ओडिशा के कटक में भी ऐसा ही घिनौना षड्यंत्र रचा गया था.
इसी कड़ी में हैदराबाद में पाकिस्तान का झंडा फहराया गया, पर वहां भी ऐसा करने वाले भाजपाई ही निकले. बंगाल के मिदनापुर में पुनः सांप्रदायिकता का यही जहरीला खेल खेला गया, और वहां भी पकड़े गए लोग हिंदू और भाजपाई ही निकले. आखिर ये लोग चाहते क्या हैं ? इतना तो स्पष्ट है कि मोदी सरकार के स्थायित्व के लिए ये लोग संघ और भाजपा के नेतृत्व में सांप्रदायिकता का यह जहर पूरे देश में फैलाना चाहते हैं, ताकि चुनाव में हिन्दू मतों का ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में हो, और उनके गोलबंदी और लामबंदी से चुनावी वैतरणी को पार किया जा सके.
देश को बेचने की जो साजिश चल रही है, उसके खिलाफ कोई आवाज़ न उठे, इसके लिए जरूरी है कि सांप्रदायिकता का यह खेल चालू रहे. सांप्रदायिकता के इसी खेल के बीच देश को पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के हाथों बेच दिया गया. संविधान, लोकतंत्र और न्यायपालिका को पंगु बना दिया गया, और संवैधानिक संस्थाओं को तोता बनाकर छोड़ दिया गया है. शिक्षा और स्वास्थ्य को बर्बाद कर दिया गया और उनके निजीकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.
धर्म और खोखले राष्ट्रवाद के मुखौटे तले नागरिकों को संवैधानिक अधिकारों से वंचित कर उन्हें गुलाम बनाने की प्रक्रिया तेजी से चल रही है. राष्ट्रवाद के झूठे नारों के बीच राष्ट्र के विध्वंस का खतरनाक खेल जारी है, और जनता खामोश है. यही तो उनकी राजनीति है कि वे देश को लूटते और लूटवाते रहें और जनता मौन साधे चुपचाप देखती रहे. आज भारत फासीवाद के बूटों के तले रौंदा जा रहा है, और जनता की जुबां बंद है. सांप्रदायिकता के संघी यज्ञ में देश की आहुति दी जा रही है.
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