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Gaslighting : भारतीय को मोरबी पसंद है !

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Gaslighting : भारतीय को मोरबी पसंद है !
Gaslighting : भारतीय को मोरबी पसंद है !

‘गैस लाइटिंग (Gaslighting) – यह शब्द साल 2022 के वर्ड ऑफ द इयर (Word of The Year) है. यह कोई नया शब्द नहीं है, इसकी खोज करीब 80 साल पहले हुई थी लेकिन इसके इस्तेमाल में पिछले कुछ सालों में अभूतपूर्व लोकप्रिय हुई है. यही कारण है कि इस खास शब्द को इस टाइटल से नवाजा गया है.

कहा जाता है कि हम सब लोग फेक न्यूज़ के युग में जी रहे हैं. आज जानकारी के सोर्स तो बहुत सारे हैं, लेकिन उनके विश्वसनीय होने की गारंटी नहीं है. इस बीच फेक न्यूज़ (Fake News), डीप फेक (Deep Fake), कॉन्सपिरेसी थ्योरी (Conspiracy Theories) और ट्रोल्स (Trolls) के इस युग में मरियम-वेबस्टर ने ‘गैसलाइटिंग’ को साल 2022 का शब्द यानी वर्ड ऑफ इयर के रूप में  (Word Of The Year) चुन लिया है. यानी इस शब्द के बढ़ते इस्तेमाल की वजह से इसे साल का यादगार शब्द माना गया है.

मरिएम वेबस्टर के संपादक पीटर सोकोलोवस्की ने द एसोसिएटेड प्रेस को दिए इंटरव्यू में बताया कि Gaslighting शब्द का इस्तेमाल पिछले कुछ महीनों में बहुत ज्यादा तेजी से बढ़ा है. हालांकि 80 साल पहले ही इसे खोजा जा चुका था, लेकिन अब इस शब्द को भाषणों और आम बोलचाल की भाषा में भी जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है. यूं तो बीते करीब चार सालों में इसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है लेकिन इसे साल के सबसे खास शब्द की पहचान इस साल 2022 मिली है.

गैस लाइटिंग का मतलब

मेरियम-वेबस्टर के अनुसार, इस शब्द की दो परिभाषाएं हैं. दोनों के शाब्दिक अर्थ और भाव एक जैसा ही है. इसका आशय भटकाव, अविश्वास, चालाकी और स्वार्थ के मकसद से किए गए कामों से लगाया जाता है. आसान शब्दों में कहा जाए तो इस गैसलाइटिंग का मतलब अपने फायदे के लिए दूसरे को भरमाना है. यानी किसी के साथ मनोवैज्ञानिक तौर पर इस तरह खेल खेला जाए और उसे धोखे में रखते हुए इस तरह से भ्रमित कर दिया जाए कि पीड़ित शख्स अपने विचारों और खुद की काबिलियत पर संदेह करने लगे. यानी वो काम जिससे किसी दूसरे के आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को इतनी ठेस पहुंचाई जाए कि वह पूरी तरह से निर्भर हो जाए.

गैसलाइटिंग का इतिहास

गैसलाइटिंग की उत्पत्ति की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. गैस लाइट पैट्रिक हैमिल्टन का लिखा हुआ एक नाटक है, जिस पर 1940 के दशक में दो फिल्में भी बनीं थीं. दरअसल हैमिल्टन का नॉवेल गैस लाइट एक बेमेल जोड़े की मिसाल है. ये छल यानी धोखे से हुई एक शादी की काली कहानी है, जिसमें पति जैक मनिंघम अपनी पत्नी बेला के साथ ऐसी हरकतों का सहारा लेता है कि वह पागल होने के कगार पर पहुंच जाती है.

‘साइकोलॉजी टुडे’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, रिलेशनशिप में ऐसा कई बार पार्टनर ही ऐसा करने लगते हैं, इससे सामने वाला शख्स बुरी तरह से मानसिक तौर पर प्रताड़ित होता है और आखिर में पूरी तरह से टूट जाता है. मनोवैज्ञानिकों के नजरिए ये गैसलाइटिंग एक आपराधिक कृत्य और गैरकानूनी काम है. ये राजनैतिक और व्यावसायिक स्तर की चालबाजी भी हो सकती है. आजकल राजनेता भी जनता को भरमाने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं.

राजनेता या सत्ता के द्वारा जनता के साथ गैसलाईटिंग

हमने यहां शीर्षक बनाया है – ‘भारतीय को मोरबी पसंद है’. मोरबी गुजरात में घटी एक घटना है, जहां एक दीवाल घड़ी बनाने वाली कंपनी ने पुल का निर्माण किया था, जो भ्रष्टाचार का अनोखा उदाहरण था. इस पुल के टूटकर गिरने के कारण सैकड़ों लोग मारे गए थे. बावजूद इसके न तो सत्ता के कानों में जूं रेंगी और न ही देश के किसी कोने में कोई हंगामा खड़ा हुआ. यहां तक कि मरने वालों के परिजन भी रो-कलप कर सत्ता के साथ हो लिए और खुद को दोषी मान लिए.

अब तो देश में आए दिन हत्या, बलात्कार, गैंग रेप, हजारों से लेकर लाखों करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार की खबरें रोज आती हैं, लेकिन सभी लहरों की तरह आती है और यूं गायब हो जाती है मानो कुछ हुआ ही नहीं हो. पिछले दो साल से मणिपुर जल रहा है. हत्या, बलात्कार, गैंग रेप, नग्न परेड आदि जैसी जघन्य घटनाएं घट रही है, आये दिन पूल गिर रही है, सड़कें टूट रही है, ट्रेन उलट रही है, हजारों करोड़ से बनी शिवाजी की मूर्ति ढह गई, यहां तक कि संस्कृति और संस्कृत की बात करने वाले मोदी का सेंट्रल विस्ता’ पहली ही बरसात में पानी गिर गया और पूरा कैंपस में बाढ़ से भर गया, फिर भी सब कुछ शांत है, मानो कुछ हुआ ही नहीं है, कारण है – गैसलाइटिंग.

यानी, केन्द्र की मोदी सरकार ने अपने फायदे के लिए जनता को इस कदर भरमा दिया है, इस कदर मनोवैज्ञानिक तौर पर इस खेल को खेला है और उसे धोखे में रखते हुए इस तरह से भ्रमित कर दिया है कि पीड़ित शख्स और जनता अपने विचारों और खुद की काबिलियत पर संदेह करने लगी है कि  वह सब कुछ जानने के बाद भी अनजान बनी रहती है. पीड़ित को ही दोषी मानने लगती है और मुंह फेर लेती है. भारत का मौजूदा हालात गैसलाइटिंग का सबसे उपयुक्त उदाहरण है, जहां कोई भी वारदात विशाल विक्षोभ को पैदा नहीं कर पाता.

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