‘कश्मीर फ़ाइल्स’ को ‘अश्लील और प्रोपेगेंडा बताने वाले भारतीय अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह (आईएफ़एफ़आई) के इजरायली जज नदाव लपिड की टिप्पणी असलियत में भारत की अश्लील और प्रोपेगैंडा वाली मोदी सत्ता पर गंभीर टिप्पणी है. स्वभाविक तौर पर इससे बौखलाया मोदी सत्ता और उसका गैंग भारी असमंजस में पड़ गया है क्योंकि मोदी गैंग इजरायल को अपना आदर्श मानता है. इसलिए अब डैमेज कंट्रोल करने के लिए इजरायल के ही राजदूत व अन्य लोगों के माध्यम से उनकी ‘आलोचना’ की या करवाई जा रही है.
दरअसल गोवा में आयोजित 53वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह (आईएफ़एफ़आई) में 53वें इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल ऑफ़ इंडिया का समापन समारोह में चुनी हुई फ़िल्मों की घोषणा से पहले नदाव लपिड को मंच पर बुलाया गया और फ़ेस्टिवल के ज्यूरी चेयरमैन इसराइली फ़िल्ममेकर नदाव लपिड ने ‘कश्मीर फ़ाइल्स’ को ‘प्रोपेगेंडा और अश्लील’ क़रार देते हुए गंभीर टिप्पणी कर दी.
अपना भाषण शुरू करने से पहले लपिड ने कहा – ‘वो आम तौर पर लिखित भाषण नहीं देते हैं, लेकिन इस बार वो लिखा हुआ भाषण पढ़ेंगे क्योंकि वो सटीकता’ के साथ अपनी बात कहना चाहते हैं.’ फिर उन्होंने अपना लिखा हुआ सटीकता से जो भाषण पढ़ा, वह मोदी गैंग के मूंह पर कालिख पोत गया. अब यह मोदी गैंग इस कालिख को छुड़ाने के लिए इजरायल के ही शरण में पहुंच गया है. इसके साथ ही भारत की विभिन्न गोदी मीडिया की मदद से अफवाह फैलाना शुरू किया कि ‘लिपिड ने माफी मांग ली है’, लेकिन लिपिड ने अगले ही पल इसे गलत बता दिया और साफ कर दिया कि वह अपने बयान पर डटे हुए हैं. बहरहाल, लपिड ने भरे मंच से क्या कहा, उसे जानते हैं –
‘हमने डेब्यू कंपटीशन में सात फ़िल्में और इंटनेशनल कंपटीशन में 15 फ़िल्में देखी. इनमें 14 फ़िल्में सिनेमैटिक क्वालिटी की थीं और इन्होंने बहुत शानदार बहस छेड़ी. 15वीं फ़िल्म ‘कश्मीर फ़ाइल्स’ को देख हम सभी विचलित और हैरान थे. यह एक प्रोपेगैंडा और अश्लील फ़िल्म जैसी लगी, जो कि इस तरह के प्रतिष्ठित फ़िल्म फ़ेस्टिवल के कलात्मक कंपटीशन के अयोग्य थी.
‘इस मंच से खुलकर अपनी भावनाएं साझा करते हुए मैं पूरी तरह खुद को सहज पा रहा हूं. क्योंकि इस फ़ेस्टिवल की आत्मा गंभीर बहस को निश्चित रूप से स्वीकार कर सकती है, जो कि कला और ज़िंदगी के लिए ज़रूरी है.’
कौन हैं नदाव लपिड ?
नदाव लपिड इसराइली फ़िल्म मेकर हैं और उन्हें ज्यूरी का चेयरमैन बनाया गया था. 1975 में इसराइल के शहर तेल अवीव में पैदा हुए नदाव लपिड ने तेल अवीव यूनिवर्सिटी से दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की है और सैन्य सेवा में जाने के बाद लपिड कुछ समय के लिए पेरिस चले गए थे. बाद में लपिड ने इसराइल वापस लौटकर यरूशलम के फ़िल्म एंड टेलीविजन स्कूल से डिग्री ली. गोल्डन बीयर और कान ज्यूरी प्राइज हासिल करने वाले लपिड की चर्चित फ़िल्मों में पुलिसमैन, किंडरगार्टन टीचर शामिल हैं.
कश्मीर फ़ाइल्स
अपने बयानों से हमेशा विवाद में रहने वाले विवेक अग्निहोत्री ने ‘कश्मीर फ़ाइल्स’ को डायरेक्ट किया है, जिसमें अनुपम खेर ने मुख्य भूमिका निभाई है. मिथुन चक्रवर्ती और पल्लवी जोशी भी इस फ़िल्म में मुख्य भूमिकाओं में हैं. ‘कश्मीर फ़ाइल्स’ अपने रिलीज़ से ही विवादों के घेरे में रही है और कई फ़िल्म आलोचक इसे प्रोपेगैंडा फ़िल्म क़रार दे चुके हैं. यह फ़िल्म कथित रूप से 1990 के दशक में कश्मीर पंडितों के पलायन और हत्याओं पर आधारित है.
यह फ़िल्म 11 मार्च को रिलीज़ हुई है. कई थियेटरों में फ़िल्म हाउसफ़ुल रही. देश के चार राज्यों ने फ़िल्म को टैक्स-फ्री घोषित कर दिया और टैक्स फ्री करनेवाले ये चारों राज्य (हरियाणा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात) बीजेपी शासित हैं. दावा ये भी है कि इस साल रिलीज़ होने वाली फ़िल्मों में इसने सबसे अधिक कमाई की. रिलीज़ के एक दिन बाद ही तब विवाद पैदा हो गया जब विवेक अग्निहोत्री की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक तस्वीर वायरल हो गयी. फ़िल्म के प्रोड्यूसर अभिषेक अग्रवाल ने नरेंद्र मोदी के साथ एक तस्वीर शेयर किया जिसे विवेक अग्निहोत्री ने रि-ट्वीट किया था.
अश्लील और प्रोपेगैंडा वाली भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उसकी सरकार
कश्मीर फाइल्स पर लिपिड की टिप्पणी असलियत में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उसके गैंग्स पर भी लागू हो गई क्योंकि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 मार्च को रिलीज़ हुई फ़िल्म TheKashmirFiles पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए खुला समर्थन दिया था. बीजेपी के संसदीय बोर्ड की मीटिंग को अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ़िल्म को लेकर विस्तार से बात की थी, जैसा कि सभी जानते हैं मोदी झूठी जानकारियों और तथ्यों के साथ घंटों बोलने के लिए कुख्यात हो चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा था –
‘हमारे देश का दुर्भाग्य है कि इतिहास को सही परिपेक्ष्य में समाज के सामने सही समय पर रखना, जिसमें किताबों का महत्व होता है, कविताओं का महत्व होता है, साहित्य का महत्व होता है और वैसा ही फ़िल्म जगत का भी महत्व होता है.
‘आज़ादी के बाद दुनिया के सामने महात्मा गांधी को सचमुच में, सारी दुनिया मार्टिन लूथर की बात करती है, नेल्सन मंडेला की बात करती है लेकिन दुनिया महात्मा गांधी की चर्चा बहुत कम करती है.
‘अगर उस समय किसी ने हिम्मत करके महात्मा गांधी के पूरे जीवन पर एक फ़िल्म बनाई होती और उसे दुनिया के सामने रखा होता तो शायद हम संदेश दे पाते. पहली बार एक विदेशी ने जब महात्मा गांधी पर फ़िल्म बनाई और पुरस्कार पर पुरस्कार मिले तो दुनिया को पता चला कि महात्मा गांधी कितने महान थे.
‘बहुत से लोग फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन की बात तो करते हैं लेकिन आपने देखा होगा कि इमरजेंसी पर कोई फ़िल्म नहीं बना पाया क्योंकि सत्य को लगातार दबाने का प्रयास होता रहा. भारत विभाजन, जब हमने 14 अगस्त को एक हॉरर डे रूप में याद करने के लिए तय किया तो बहुत से लोगों को बड़ी दिक़्क़त हो गई.
‘भारत विभाजन की वास्तविकता पर क्या कभी कोई फ़िल्म बनी…! अब इसलिए आपने देखा होगा कि इन दिनों जो नई फ़िल्म ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ आई है, उसकी चर्चा चल रही है. और जो लोग हमेशा फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन के झंडे बुलंद किए रहते हैं, वो पूरी जमात बौखलाई हुई है बीते पांच-छह दिनों से और इस फ़िल्म की तथ्यों और बाकी चीज़ों के आधार पर विवेचना करने के बजाय, उसके ख़िलाफ़ मुहिम चलाए हुए हैं.
‘अगर कोई सच को उजागर करने का साहस करे तो, उसको जो सत्य लगा उसने प्रस्तुत करने की कोशिश की लेकिन उस सत्य को ना कोई समझने के लिए तैयार है, ना स्वीकारने करने के लिए. साथ ही कोशिश ये भी की जा रही है कि दुनिया इसे ना देखे और इसके लिए पांच-छह दिनों से षड़यंत्र चल रहा है.’
‘मेरा विषय कोई फ़िल्म नहीं है, मेरा विषय है कि जो सत्य है उसे सही स्वरूप में देश के सामने लाना देश की भलाई के लिए होता है. उसके कई पहलू हो सकते हैं. किसी को कोई एक पहलू नज़र आ सकता है तो किसी दूसरे को दूसरा पहलू. अगर आपको ये फ़िल्म ठीक नहीं लगती है तो आप दूसरी फ़िल्म बनाएं. कौन मना करता है लेकिन उन्हें हैरानी हो रही है कि जिस सत्य को इतने सालों तक दबा कर रखा, उसे तथ्यों के आधार पर बाहर लाया जा रहा है तो उसके ख़िलाफ़ पूरी कोशिश लग गयी है.
‘ऐसे समय जो सत्य के लिए जीने वाले लोग हैं, उनके लिए सत्य के ख़ातिर खड़े होने की ज़िम्मेदारी होती है और मैं आशा करूंगा कि ये ज़िम्मेदारी सब लोग निभाएंगे.’
फिल्मों के जरिए इतिहास जानने वाले अनपढ़ और मक्कार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने आदर्श हिटलर से सीख हासिल करते हुए देश के लोगों को गुमराह कर रहे हैं और झूठी जानकारी दे रहे हैं.
कश्मीर पर कई किताबें लिखी जा चुकी हैं और कई फ़िल्में भी बनाई जा चुकी हैं. इनमें से कुछ कश्मीरी पंडितों के विस्थापन पर केंद्रित भी हैं. संजय काक ख़ुद एक कश्मीरी पंडित हैं और एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्मकार भी हैं. वे कहते हैं, ‘मैं हैरान हूं कि लोग ये कह रहे हैं कि ये कहानी पहले नहीं सुनाई गई है. ये सच है कि बॉलीवुड ने ये कहानी नहीं की है लेकिन बॉलीवुड तो ऐसी कहानियों पर फ़िल्में बनाता ही नहीं है. बॉलीवुड ने दिल्ली में 1984 में हुए दंगों पर भी कोई फ़िल्म नहीं बनाई है. और न हीं गुजरात में 2002 में हुए दंगों पर. इस देश में हज़ारों ऐसी कहानियां हैं जिन्हें मुख्यधारा में जगह नहीं मिली है.’
देश में लाखों सरकारी स्कूलों को बंद कर लोगों को अनपढ़ और प्रोपेगैंडा का शिकार बनाये रखने की कोशिश करने वाले नरेन्द्र मोदी इसके लिए फिल्मों को भी अपना जरिया बना रहे हैं, जिस पर इजरायली ज्यूरी नदाव लपिड की बिना किसी लागलपेट की सीधी टिप्पणी ने मोदी सरकार की चरित्र पर लागू हो गया, जिससे भारत का यह मोदी गैंग अन्तर्राष्ट्रीय समूह के सामने नंगा हो गया.
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