डर डरकर
जो लिखते हैं
फटी फटी सी रहती है
तिलकधारी जैसी
चेता में रचना रचते हैं
स्त्री दलित रचना
से फटी फटी रहती है
उनके साहस को
हत्सोहाहित करते
बेमानी बताते हैं
वे अंदर अंदर से
अंबेडर से पेरियार से
बुद्ध से भी डरे डरे होते हैं
उनसे भी उनकी
फटी फटी रहती है
मार्क्स से भी ये
डरे डरे से होते हैं
उसे तिलकधारी
बनाते हुए होते हैं
तुलसी चंदन को
मार्क्स बनाते हुए होते हैं
इनकी तो मार्क्स से भी
फटी फटी रहती है
- बुद्धिलाल पाल
23.11.2022
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