Home गेस्ट ब्लॉग आदिवासी भीमा की जमीन पर CRPF ने कब्जा कर कैम्प बनाया, जमीन वापस करें कांग्रेसी सरकार

आदिवासी भीमा की जमीन पर CRPF ने कब्जा कर कैम्प बनाया, जमीन वापस करें कांग्रेसी सरकार

3 second read
0
0
309
कानून के मुताबिक़ किसी अनुसूचित जाति या जनजाति के व्यक्ति की ज़मीन पर कब्ज़ा करना अत्याचार की श्रेणी में आता है और गैर ज़मानती अपराध है.
आदिवासी भीमा की जमीन पर CRPF ने कब्जा कर कैम्प बनाया, जमीन वापस करें कांग्रेसी सरकार
आदिवासी भीमा की जमीन पर CRPF ने कब्जा कर कैम्प बनाया, जमीन वापस करें कांग्रेसी सरकार
हिमांशु कुमार, सामाजिक कार्यकर्त्ताहिमांशु कुमार, गांधीवादी विचारक

मुझसे अक्सर पुलिस अधिकारी शिकायत करते हैं कि आप सरकार की गलती तो बताते हैं लेकिन आप नक्सलियों की गलती कभी नहीं बताते..मैं जवाब देता हूं कि क्योंकि मैं सरकार की तरफ हूं इसलिए सरकार को गलती करने से रोकता हूं. अगर मैं नक्सलियों की तरफ होता तो उनका सलाहकार बन कर उन्हें उनकी गलतियां बताता और उनके आन्दोलन को आगे बढ़ाता.

यही गलती हमारे बहुत अच्छी सोच वाले दोस्त भी करते हैं. वो मोदी और भाजपा के विरोधी हैं, इन्हें हटाना भी चाहते हैं. वे रोज़ मोदी और भाजपा की आलोचना करते हैं. वो मानते हैं कि मोदी को हटाने का काम कांग्रेस कर सकती है इसलिए कांग्रेस की गलतियों को छिपाओ और अगर कोई कांग्रेस को सुधारने की बात करे तो उस तरफ से मूंह घुमा लो लेकिन इससे यह होगा कि जिसकी आप गलतियां छिपाओगे, वह गलतियां करता जाएगा और बर्बाद हो जाएगा. जिसकी आप गलतियां बताओगे, वह खुद को सुधारता जाएगा और बचा रहेगा.

अभी जहां-जहां कांग्रेस की सरकारें हैं वहां कांग्रेस को उसकी गलतियां बताना और उन्हें करने से रोकने से कांग्रेस का फायदा होगा या नुकसान होगा ? तो जो मित्र भाजपा को हटाना चाहते हैं उन्हें कांग्रेस को बताना ही पड़ेगा कि आप ऐसी गलतियां मत कीजिये और खुद को भाजपा से बेहतर बनाइये. मैं एक उदहारण देता हूं.

भीमा एक आदिवासी है. वह छत्तीसगढ़ के सुकमा ज़िले के अपने गांव गोरका का पटेल है. गांव में वह अपने पूर्वजों की ज़मीन पर खेती करके अपने परिवार का गुज़ारा करता है. भाजपा शासन में सन दो हज़ार नौ में पुलिस को भीमा की ज़मीन अपने सैनिकों के लिए कैम्प बनाने के लिए पसंद आ गई. ज़मीन खरीदने के चक्कर में कौन पड़े ? तो पुलिस ने भीमा को घर से उठाया और जेल में डाल दिया. इसके बाद भीमा की ज़मीन पर कब्ज़ा कर उस पर सीआरपीएफ के लिए कैम्प बना दिया गया.

भीमा को जब पुलिस ने पकड़ा था तब हमारी संस्था का कार्यकर्ता पुलिस से पूछने गया कि आपने भीमा को किस अपराध में पकड़ा है ? पुलिस ने हमारे उस आदिवासी कार्यकर्ता को भी जेल में डाल दिया. दो साल बाद जज साहब ने पुलिस से पूछा – ‘इन लोगों का कुसूर क्या है ?’

पुलिस ने कहा – ‘इनके पास से हमें बम और नक्सलवादी साहित्य मिला.’

जज साहब ने पूछा – ‘बम कहां है दिखाओ ?’

पुलिस ने कहा – ‘बम तो हमने फोड़ दिया.’

जज साहब ने कहा – ‘नक्सली साहित्य दिखाओ ?’

पुलिस ने कहा – ‘साहित्य हमने जला दिया.’

चूंकि मामला पूरी तरह फर्जी था इसलिए पुलिस के पास कोई सबूत तो था ही नहीं. जज साहब ने भीमा और हमारे कार्यकर्ता को बाईज्ज़त बरी कर दिया. इस बार मैं गोमपाड़ गया तो भीमा मुझे तेरह साल बाद मिला. उसने अपनी तकलीफ मुझे बताई. मैंने भीमा से कहा – ‘आपको अपनी ज़मीन वापिस मांगनी चाहिए.’

भीमा का आवेदन

भीमा ने अपनी ज़मीन वापिस मांगने के लिए कलेक्टर को लिखा और प्रतिलिपि महामहिम राष्ट्रपति, महामहिम राज्यपाल, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, अनुसूचित जनजाति आयोग, मुख्यमंत्री तथा महानिदेशक सीआरपीएफ को भेजी. भीमा ने यह चिट्ठी 4 अक्तूबर 2022 को स्पीड पोस्ट से सबको भेजी थी जिनकी उसके पास रसीदें मौजूद हैं. कानून के मुताबिक़ किसी अनुसूचित जाति या जनजाति के व्यक्ति की ज़मीन पर कब्ज़ा करना अत्याचार की श्रेणी में आता है और गैर ज़मानती अपराध है.

स्पीड पोस्ट से भेजे गये पत्र का रसीद

भयानक बात यह है कि इस अपराध की सूचना आदिवासी भीमा ने भारत के सबसे बड़े संवैधानिक राष्ट्रपति पद पर बैठी आदिवासी महिला को भेजी है. छत्तीसगढ़ की आदिवासी राज्यपाल को भेजी है. अनुसूचित जनजाति आयोग को भेजी है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भेजी है लेकिन किसी ने एक महीना बीतने के बाद भी जवाब तक नहीं दिया है. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है. मुख्यमंत्री कार्यालय ने भी कोई जवाब नहीं दिया है, ना कोई कार्यवाही शुरू की है.

भीमा के जमीन का कागजात

अगर कांग्रेस आदिवासियों के साथ वैसा ही बर्ताव करेगी, जैसा निर्दयी और संविधान को ठेंगे पर रखने वाले भाजपा वाले करते हैं तो कांग्रेस किस मूंह से कहेगी कि हमें वोट दीजिये हम भाजपा से बेहतर हैं ? इस मामले को हम कोर्ट में ले जायेंगे और भीमा को उसकी ज़मीन वापिस ज़रूर दिलवाएंगे.

अब यह कांग्रेस के ऊपर है कि वह सही का साथ देकर खुद को भाजपा से बेहतर साबित करती है या सिर्फ राहुल के चेहरे के बल पर चुनाव जीतने का सपना देखती रहेगी ? फैसला कांग्रेस को करना है. हमने तो उसे खुद को आदिवासियों का दोस्त और संविधान का सम्मान करने वाली सरकार सिद्ध करने का मौका दिया है.

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…