Home लघुकथा धर्मान्ध यानी चलता फिरता आत्मघाती बम

धर्मान्ध यानी चलता फिरता आत्मघाती बम

14 second read
0
0
409

मैट्रो में सीट हथियाने में कामयाब एक सज्जन भरी भीड़ में अपने मोबाइल पर जोर-शोर से माता की भेंटे सुन रहे थे. जैसे कि ज्यादातर होता है उनका यह भजन किसी फिल्मी गीत की पैरोडी था, जिसे वे परम मुदित भाव से सुने जा रहे थे. उन्हें आस पास की जरा भी चिंता नही थी. विवश लोग इधर उधर देख रहे थे.

दो-एक मिनट बाद दूसरे किसी और सज्जन ने जेब से एक इयरफोन निकाला और विनम्रतापूर्वक उनकी तरफ बढ़ाया –

‘क्या है…’ भक्ति में व्यवधान से विचलित वो बोले.

‘ये ले लीजिए, इसे लगा कर सुनिए अच्छा लगेगा.’

‘आपको क्या मैं कंगला दिखता हूं ? ये साठ हजार का फोन है. समझे तो क्या मैं मामूली इयरफोन नहीं खरीद सकता ?’ सज्जन ने बात को व्यक्तिगत समझ लिया था. शायद भावनाएं आहत हो गई थीं.

‘नहीं भाईसाहब, ये हम आपके लिए नहीं अपने लिए कह रहे हैं. यहां कई लोग हैं जो शायद अभी भजन ना सुनना चाह रहे हों.’ दूसरे सज्जन ने धीरे से निवेदन किया.

‘क्या जमाना आ गया है. लोग अब भगवान के भजन भी नहीं सुनना चाह रहे. बताओ भला तभी तो दुनिया डूब रही है. तुम्हें तो थैंक्यू होना चाहिए कि मैं अपने फोन से सबको सुबह-सुबह भजन सुना रहा हूं, उल्टे आप मेरी इंसल्ट कर रहे हो !’

‘ये हिंदुस्तान है कि पाकिस्तान ? बताओ भला ? यहां भजन और भेंटे नहीं बजेगीं तो कहां बजेगीं ? अब क्या हिंदू भजन भी नहीं सुने…? अभी नमाज होती तो कोई कुछ नहीं बोलता.’

हर जेनुइन भक्त की तरह वो सज्जन भी अब मसले को हिंदू-मुसलमान दिशा में मोड़ने में कामयाब हो रहे थे.

‘भाईसाहब जिसे भजन सुनने की इच्छा होगी वो सुन लेगा. मेरा जब मन होगा में भी सुन लूंगा. अभी तो आप मेहरबानी से इसे लगाकर सुनिए.’

‘नही लगाऊंगा, बिलकुल नहीं लगाऊंगा. मैं वाल्यूम और तेज कर देता हूं, देखता हूं क्या करते हैं आप ? साले- सेक्युलर, नक्सली कहीं के !’ कहते हुए उन्होंने वाल्यूम को और बढ़ाया पर वाल्यूम था कि पहले से ही फुल था, सो बदस्तूर बजता रहा.

पूरे वाल्यूम पर तीन भेंटें सुनकर वे अपना स्टेशन आने पर ही उतरे. डिब्बे में सन्नाटा छाया था. मुझे लगा ये मैट्रो नहीं यही हमारा देश हैं.

  • अशरत परमानंद

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • देश सेवा

    किसी देश में दो नेता रहते थे. एक बड़ा नेता था और एक छोटा नेता था. दोनों में बड़ा प्रेम था.…
  • अवध का एक गायक और एक नवाब

    उर्दू के विख्यात लेखक अब्दुल हलीम शरर की एक किताब ‘गुज़िश्ता लखनऊ’ है, जो हिंदी…
  • फकीर

    एक राज्य का राजा मर गया. अब समस्या आ गई कि नया राजा कौन हो ? तभी महल के बाहर से एक फ़क़ीर …
Load More In लघुकथा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…