Home गेस्ट ब्लॉग 2014 के बाद की बड़ी उपलब्धि – गर्व पर गर्व करना है ! गर्व ही गर्व !

2014 के बाद की बड़ी उपलब्धि – गर्व पर गर्व करना है ! गर्व ही गर्व !

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हेमन्त कुमार झा, एसोसिएट प्रोफेसर, पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय, पटना

एक आर्थिक परिचर्चा में सुना था – 2014 में हमारा देश भुखमरी से जूझने वालों की लिस्ट में 55वीं पोजिशन पर था. फिर, ऐसे महामानव का केंद्रीय राजनीति में अवतरण हुआ जिन्होंने हमें बताया कि बीते 70 सालों में कुछ नहीं हुआ. उन्होंने हमें भरोसा दिलाया कि जो अब तक नहीं हुआ वह अब होगा. फिर जो होना था वह होने लगा. आज हमारा देश भुखमरी से जूझने वालों की उसी लिस्ट में 107वीं पोजिशन पर पहुंच गया है. 55वीं से सीधे 107वीं…

म्यांमार का नाम सुनते ही हमारे जेहन में एक अशांत, पिछड़े देश की छवि बनती है. वहां के रोहिंग्या भाग-भाग कर इस देश, उस देश शरण मांग रहे हैं. एक परसेप्शन हमारे मन में बैठा है कि वह असभ्य टाइप का देश है, जहां राजनीतिक उथल पुथल होती ही रहती है, जो विकास के मानकों पर पिछड़ता ही जा रहा होगा. लेकिन, लिस्ट देखने से पता चलता है कि वहां हमारे देश से कम भुखमरी है. पाकिस्तान को ‘विफल स्टेट’ बताते हम नहीं थकते. इस लिस्ट में वह भी हमसे ऊपर है.

अब जब हम 107वें पर हैं तो जाहिर है, सब ऊपर ही होंगे हमसे. कुछ नीचे जरूर होंगे. दुनिया अकर्मण्यों और नालायकों से खाली थोड़े ही है लेकिन, उनका नाम जनरल नॉलेज की किताबों में ही कहीं मिले शायद. हमसे नीचे जो होंगे, वे ऐसे ही होंगे जिन्हें जानने की कोई खास जरूरत भी नहीं होती होगी. बाकी, तमाम जान पहचान वाले हमसे इस मायने में आगे हैं कि उनकी आबादी हमारे मुकाबले भूख से कम लड़ती है.

2014 के बाद एक बात तो हुई है, हमें गर्व करना सिखाया गया है. 70 साल में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिस पर हम गर्व कर सकें लेकिन, इन आठ सालों में इतना कुछ हो चुका कि हमें अब गर्व करने के लिए एक एक कर टाइम निकालना पड़ता है. एक हो तो गर्व करके फुर्सत पा लें. लेकिन, यहां तो गर्व पर गर्व करना है. गर्व ही गर्व.

वैसे, रोजी-रोजगार नहीं हो तो गर्व करने के लिए टाइम अधिक मिलता है. इसलिए, हमारे देश में सबसे अधिक गर्व वे नौजवान कर रहे हैं जो बेरोजगार हैं. उनके पास टाइम भी है, व्हाट्सएप युनिवर्सिटी से निरंतर, अबाध मिल रहा ज्ञान भी है. जब दुनिया पेड़ों पर फुदक कर फल तोड़-तोड़ कर खा रही थी, हमारे पूर्वज प्लास्टिक सर्जरी कर इसका सिर उसके कंधे पर सेट कर रहे थे. कितने गर्व की बात है !

इतिहास की किताबों में जो राजा किसी युद्ध में हार गया उसे मोबाइल पर विद्युत गति से आ रहे संदेशों में जीता हुआ बता रहे हैं. इतिहास को नकारने का अपना गर्व है. अपने मन माफिक नैरेटिव गढ़ लो और खुश रहो. सबसे अधिक गर्व तो तब होता है जब हमें पता चलता है कि हमारे छेड़दादा, लकड़दादा के जमाने में देश विश्वगुरु था. फिर, एडवांस में हम गर्व करने लगते हैं कि जल्दी ही फिर से विश्व गुरु बन जाने वाले हैं !

फिलहाल तो इस मामले में एडवांस में ही खुश होना होगा, क्योंकि वर्तमान के हालात थोड़े ठीक नहीं हैं. एक और कोई लिस्ट जारी हुई है जिसमें दुनिया के शीर्ष 200-300 युनिवर्सिटीज में हमारा कोई भी संस्थान शामिल नहीं है.

नई शिक्षा नीति आ रही है न, बल्कि आ ही गई. उसके संकल्प में ही लिखा हुआ है कि ‘यह नीति हमें फिर से विश्व गुरु बना कर ही दम लेगी.’ भले ही इस नीति में गरीबों को शिक्षा से महरूम करने की सारी योजनाएं हैं, लेकिन, इससे क्या ! विश्व के गुरु बनेंगे तो धनी देशों के धनी बच्चे आएंगे पढ़ने. यहां के गरीब बच्चे उनके लिए खाना बनाएंगे, उनकी प्लेटें धोएंगे, कपड़े धोएंगे. कितने बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन होगा ! है न गर्व की बात !

रोजगार से याद आया, इस लिस्ट में भी फिलहाल तो हमारा देश बहुत पीछे है. वे 70 साल बहुत भारी पड़ रहे हैं. दो करोड़ नौकरियां सालाना के बाद भी आज हमारे देश में दुनिया के सबसे अधिक बेरोजगार बसते हैं. हालांकि, इस बीच वे भी बहुत बिजी रहे. घर घर तिरंगा अभियान में उनकी व्यस्तता देखते ही बनती थी. उनका देश प्रेम देख कर, महसूस कर मन तो भर ही आया, गर्व भी फील हुआ.

हम गर्व करने के मौके और बहाने तलाशते रहते हैं कि दुनिया वाले अक्सर कोई न कोई लिस्ट, जिसे पढ़े लिखे लोग ‘इंडेक्स’ कहते हैं, जारी कर देते हैं. मसलन, मीडिया की स्वतंत्रता के इंडेक्स में हम इन आठ सालों में पिछड़ते ही गए हैं. कुपोषण हो, जच्चा बच्चा मृत्यु दर हो, एजुकेशन की क्वालिटी हो, प्रति व्यक्ति डॉक्टर की उपलब्धता हो, मानव विकास सूचकांक हो, क्वालिटी ऑफ लाइफ हो…जो भी इंडेक्स जारी होता है, गर्व करने की जगह हम थोड़ी देर के लिए शर्मसार हो जाते हैं. लेकिन, फिर शर्म को भूल हम गर्व करने के नए बहाने खोज ही लेते हैं.

अपने अडानी सर इन आठ सालों में कहां से कहां पहुंच गए ! यह क्या कोई कम गर्व की बात है ? देश ही नहीं, दुनिया के कारपोरेट इतिहास में है कोई माई का लाल, जो इतनी तेजी से तरक्की की सीढ़ियां चढ़ा हो ?

अब, किसी को रोते ही रहने, बिसूरते ही रहने का मन करे तो कोई क्या करे वरना, महामानव के राज में गर्व करने की जो ट्रेनिंग मिल रही है उसमें तल्लीनता से भाग लेना चाहिए. गर्व दर गर्व की ऐसी फीलिंग आती रहेगी कि तमाम दुःख भूल जाएंगे. भूख, बीमारी और बेरोजगारी की ऐसी की तैसी. इस महान देश में ऐसी तुच्छ बातों पर चर्चा भी क्या करनी !

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