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अडानी अन्तर्राष्ट्रीय ड्रग माफिया है !

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अडानी अन्तर्राष्ट्रीय ड्रग माफिया का है !
अडानी अन्तर्राष्ट्रीय ड्रग माफिया है !

2014 में झूठ बोलकर देश की सत्ता पर काबिज होने वाले लाशों के सौदागरों ने देश की सत्ता पर कब्जा कर लिया. इसके बाद से तमाम गैरकानूनी और असंवैधानिक कामों को कानूनी बनाने के लिए देश की तमाम संस्थाओं (सुप्रीम कोर्ट सहित) के अंदर एक से एक कुख्यात माफिया गिरोह के लोगों की बहाली की जाने लगी और माफियाओं का बकायदा एक तंत्र खड़ा कर दिया गया.

माफियाओं के ऐसे ही एक गिरोह अडानी को कानूनी तौर पर संरक्षित कर ड्रग माफिया का सुसंगठित तंत्र खड़ा किया और उसे विश्व के तीसरे नम्बर के धन्नासेठों की कतार में ला खड़ा किया, जिसे महज 106 पन्ने की हिंडेनबर्ग रिपोर्ट ने आज 22 वें नम्बर पर लाकर पटक दिया है, जिसे और भी नीचे 100वें से बाहर निकल जाने की संभावना है.

यह अनायास ही नहीं है कि आज देश के अंदर राजधानी से लेकर छोटे-छोटे गांव कस्बों तक में ड्रग डीलर मौजूद है, जो तमाम तरीकों के नशीले पदार्थों को खुलेआम बेच रहा है. देश के युवा इसके लती होकर अपने जीवन के साथ-साथ अपना सर्वस्व लुटा रहे हैं और प्रशासन तंत्र मूकदर्शक बना न केवल देख रहा है बल्कि उसमें सहयोग भी कर रहा है.

यहां यह भी जानना समीचीन होगा कि जैसे जैसे देश के अंदर नशीले पदार्थों की बिक्री गांव के छोटे स्तर तक फैलती गई वैसे वैसे ही अडानी का कारोबार भी बढ़ता गया. वह धन्नासेठों की अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी में शामिल होता गया. अब जब 24 जनवरी को हिंडेनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट सामने आई है, तब जिस तरह अडानी के अवैध कारोबार के गोरखधंधा का पर्दाफाश होता गया, अडानी के वैध कारोबार के गुब्बारे का हवा निकलता गया क्योंकि अडानी अपने अवैध कारोबार को अपना नहीं बता सकता.

अंबानी की तुलना में अडानी का 2020 के बाद बढ़ता ग्राफ

उपरोक्त ग्राफ पर ध्यान दीजिए, वर्ष 2020 में जब सारी दुनिया कोरोना जैसी ‘महामारी’ से जूझ रही थी, उसी वक्त अडानी की दौलत में बेशुमार बढ़ोतरी हो रही थी. ऐसा नहीं है कि हिंडेनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट के बाद ढ़हते साम्राज्य के कारण अडानी के पास दौलत नहीं है. उसके पास बेशुमार दौलत है, लेकिन इस दौलत का जरिया मुख्यतः ड्रग कारोबार है, वरना किसी के वैध कारोबार का गुब्बारा न तो इतनी तेजी से फूलता है और न ही पचकता है. अदानी सेठ का 60% बाज़ार लुट चुका है, सिर्फ़ 40% बाकी है, जो आगे और भी लुट जाने की राह देख रहा है.

अब, जनप्रिय पत्रकार रविश कुमार द्वारा भारत में नशे के कारोबार पर व्यवस्थित यह पूरा विश्लेषण पढ़ डालिए. सितंबर 2021 में गुजरात के मुंद्रा पोर्ट से जब 21,000 करोड़ का ड्रग्स पकड़ा गया, ईरान के बंदर अब्बास पोर्ट से करीब तीन हज़ार किलोग्राम हेरोईन की खेप मुंद्रा पोर्ट पर उतरी थी. डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यु इंटेलिजेंस ने इस खेप को पकड़ा था. यह इतनी बड़ी कामयाबी थी कि लोगों की नज़र जानी ही थी कि आखिर गुजरात में 21,000 करोड़ की हेरोईन कैसे पकड़ी गई है ? क्या भारत में या गुजरात में ड्रग्स का जाल इतना बिछ गया है कि 21,000 करोड़ के ड्रग्स की खपत होने लगी है ?

गांधीनगर में गृह मंत्री अमित शाह ने नोरकोटिक्स ब्यूरो के कार्यों की समीक्षा की है. उनकी ऑनलाइन मौजूदगी में अंकलेश्वर और दिल्ली में कई हज़ार किलोग्राम ड्रग्स जलाया गया है, इसकी कीमत 632 करोड़ बताई जाती है. कुछ समय पहले गुवाहाटी में भी 40,000 किलोग्राम ड्रग्स जलाया गया है. चंडीगढ़ में 30,000 किलोग्राम ड्रग्स. इसके बहाने ही हम यह सवाल पूछ रहे हैं कि गुजरात से लेकर देश भर में ड्रग्स का जाल कैसे फैल गया ?

इसकी जवाबदेही से हर कोई बच रहा है, इसलिए हम आज एक प्रयास कर रहे हैं. ड्रग्स को लेकर छपी खबरों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं जिससे अंदाज़ा हो सके कि गुजरात में ड्रग्स का जाल कितना फैल गया है और अमित शाह के सामने इसके जलाने का क्या महत्व है.

पिछले साल सितंबर में कितना हंगामा मचा कि गुजरात के मुंद्रा बंदरगाह पर 21,000 करोड़ की हेरोईन पकड़ी गई है. सरकार चुप हो गई और पत्रकारों ने चुप्पी साध ली. हर कोई हैरान था कि इतनी बड़ी घटना हुई है मगर कहीं कोई डिबेट नहीं, कहीं कोई सवाल नहीं. इसी चुप्पी को लेकर सवाल उठने लगे और NIA जांच का काम अपने हाथ में लेती है. NIA ने दिल्ली के अलावा तीन राज्यों में 20 ठिकानों पर छापे मारे थे. कई लोग गिरफ्तार हुए हैं. दिल्ली के हरप्रीत सिंह तलवार और प्रिंस शर्मा को इस मामले में गिरफ्तार किया गया है.

मुंद्रा बंदरगाह का संचालन अदाणी का समूह करता है. उसे लेकर भी आरोप लगे तब अदाणी समूह ने एक बयान जारी किया, ‘कच्छ के मुंद्रा बंदरगाह पर ड्रग्स पकड़ा गया है. कंपनी केवल बंदरगाह का संचालन करती है. उसके पास बंदरगाह पर आने वाले कंटेनरों की जांच करने का अधिकार नहीं है.’

विपक्ष आक्रामक हो गया था. कांग्रेस के प्रवक्ता सवाल पूछ रहे थे कि गुजरात में ड्रग्स का कारोबार फैल गया है, इसके लिए कौन जवाबदेह है ? ध्यान रखिएगा कि रणदीप सुरजेवाला का यह बयान पिछले साल का है, क्या प्रधानमंत्री जवाब देंगे –

  1. 1,75,000 करोड़ के 25,000 किलो हेरोइन ड्रग्स कहां गए ?
  2. नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, डीआरआई, ईडी, सीबीआई, आईबी, क्या सोए पड़े हैं या फिर उन्हें मोदी जी के विपक्षियों से बदला लेने से फुर्सत नहीं ?
  3. क्या यह सीधे-सीधे देश के युवाओं को नशे में धकेलने का षड़यंत्र नहीं ?
  4. क्या यह राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं, क्योंकि यह सारे ड्रग्स के तार तालिबान और अफगानिस्तान से जुड़े हैं ?

लोग पूछ रहे थे कि मंदिर का उदघाटन होता है, प्रधानमंत्री दर्शन को जाते हैं तब गोदी मीडिया का तंत्र तमाम रिपोर्टरों को भेजता है, घंटों कवरेज होता है, लेकिन 21,000 करोड़ का ड्रग्स पकड़ा गया है, उसका कवरेज क्यों नहीं हो रहा है ?

हमने पुरानी खबरों को खंगाल कर देखने की कोशिश की है कि गुजरात में ड्रग्स का कारोबार कैसे इतना फैल गया ? वहां पर कच्चा माल को साफ कर श्रेष्ठ माल बनाने की फैक्ट्रियां कैसे बन गईं ? 27 साल से बीजेपी की सरकार है, किसकी नाक के नीचे गुजरात में ड्रग्स का कारोबार फैला है या गुजरात के ज़रिए फैला है ? यह केवल गुजरात की चिन्ता का विषय नहीं है, हर घर की चिन्ता का विषय होना चाहिए.

चेक कीजिए कि आपके घर के बच्चे इसकी चपेट में तो नहीं हैं ? क्या आप मान सकते हैं कि 21,000 करोड़ का ड्रग्स, तीन हज़ार करोड़ का ड्रग्स पकड़ा जाता हो और यह पैसा राजनीति तक न गया हो ? इसके सरगना बिना किसी राजनीतिक शह के हज़ारों करोड़ के ड्रग्स का कारोबार करते हों ? क्या आप यह सब मान सकते हैं ? गिरफ्तार हुए लोगों के नाम और हुलिया से लगता है कि पाकेटमार लेवल के लोग इस कारोबार में लगे हैं ? जिस पर यकीन तभी किया जा सकता है कि जब दिल और दिमाग़ दोनों हम मीडिया के प्रोपेगैंडा के आगे गिरवी रख दें.

तीन दिन पहले भास्कर की खबर है कि आणंद के विरसद पुलिस थाने से 144 किलोग्राम गांजा चोरी हो गया. थाने से गांजा चोरी हो जा रहा है. अक्तूबर में ही 8 तारीख के हिन्दू अखबार में खबर छपी है कि गुजरात ATS ने बीच सागर में इंडियन कोस्ट गार्ड के साथ मिल कर 350 करोड़ की हेरोईन पकड़ी है. पाकिस्तानी नाव से 50 किलोग्राम हेरोईन पकड़ी गई और इस पर सवार छह लोग भी गिरफ्तार हुए हैं.

इसी साल 17 अगस्त की खबर है कि गुरजार में 1600 किलोग्राम ड्रग्स पकड़ा गया है जिसकी कीमत 1500 करोड़ है. गुजरात पुलिस ने भरुच से दस लोगों को गिरफ्तार किया था. 13 जुलाई 22 के हिन्दू अखबार में खबर है कि गुजरात के मुंद्रा पोर्ट से 75 किलोग्राम हेरोईन पकड़ी गई है.

इसी बंदरगाह से सितंबर 2021 में 21,000 करोड़ की हेरोईन पकड़ी गई थी. पंजाब पुलिस और गुजरात के एंटी टेरर स्कावड ने मिलकर 375 करोड़ का ड्रग्स पकड़ा था. ड्रग्स दुबई से आया था. 26 मई 2022 के हिन्दू में ख़बर छपी है कि गुजरात के मुंद्रा पोर्ट से 500 करोड़ का कोकेन ज़ब्त हुआ है. इसी साल अप्रैल महीने में गुजरात ATS ने केंद्र के डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यु इंटेलिजेंस के साथ साझा ऑपरेशन में 1300 करोड़ की हेरोईन पकड़ी थी कच्छ के कांडला बंदरगाह से.

13 फरवरी 22 के इंडियन एक्सप्रेस में खबर छपी है कि गुजरात में 2000 करोड़ का ड्रग्स पकड़ा गया है. नारकोटिक्स ब्योरो और भारतीय नौ सेना ने पकड़ा था. 2022 में गुजरात ATS ने 3,586 करोड़ के ड्रग्स पकड़े हैं. 23 लोग गिरफ्तार हुए हैं जिसमें 16 पाकिस्तानी और तीन अफगान नागरिक हैं. 2020 और 21 में गुजरात ATS ने 1,591 करोड़ का ड्रग्स पकड़ा. 41 लोग गिरफ्तार हुए, जिसमें 12 पाकिस्तानी और सात ईरानी नागरिक भी थे.

18 अगस्त, 2022 के इंडियन एक्सप्रेस में खबर छपी है कि मंगरोल तट से ड्रग्स के 104 पैकेट पकड़े गए हैं. इस मामले में 15 ईरानी नागरिकों को जूनागढ़ पुलिस ने गिरफ्तार किया है. इसके पहले चरस के 457 पैकेट गिर सोमनाथ, जूनागढ़ और पोरबंदर के तटीय इलाके से पकड़ा गया था. पुलिस जांच कर रही है कि ड्रग्स कहां से आया.

इन खबरों से पता चलता है कि गुजरात के तटीय इलाकों का खूब इस्तेमाल हो रहा है. कांडला, मुंद्रा और अन्य बंदरगाहों से कई हज़ार करोड़ के ड्रग्स पकड़े गए हैं. इनसे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जो ड्रग्स नहीं पकड़ा गया है, वह कितने का रहा होगा और कितनों की ज़िंदगियां ख़राब हो रही होंगी. हम इन खबरों की पड़ताल इसलिए कर रहे हैं क्योंकि गुजरात में गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में ड्रग्स जलाया गया है. अगर इसका संबंध राजनीतिक संदेश से है तब फिर सवाल और सख्त होते है, ये सारे सवाल जवाबदेही से शुरू होते हैं ? ड्रग्स का कारोबार फैला कैसे ?

20 सितंबर 2022 को द वायर में एक रिपोर्ट छपती है. इसमें वैशाली बासु शर्मा बता रही हैं कि ‘सरसरी तौर पर भी देखने से पता चलता है कि गुजरात का कच्छ ड्रग्स की तस्करी का केंद्र बन गया है. अरब सागर के रास्ते से भारी मात्रा में ड्रग्स पहुंचाया जा रहा है क्योंकि कच्छ का समुद्री किनारा एक हज़ार किलोमीटर लंबा है और खुला हुआ है. तस्करों के लिए यह रूट आसान हो गया है.

इस रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि गुजरात भर में हेरोईन को संशोधित करने की छोटी-छोटी फैक्ट्रियां फैल गई हैं. अगस्त 2021 में मुंबई पुलिस ने अंकलेश्वर में एक ऐसी ही फैक्ट्री से 1026 करोड़ का ड्रग्स पकड़ा था, जिसे मेफेड्रॉन कहते हैं. 513 किलोग्राम मेफेड्रॉन को यहां साफ कर असरकारी ड्रग में बदला जा रहा था.

2020 में सिमरनजीत सिंह संधु की गिरफ्तारी हुई थी. उसी ने बताया कि उसका गिरोह समुद्री मार्ग का इस्तेमाल करता रहा है, मांडवी के तट पर खेप उतरती है और फिर सड़क मार्ग से अलग-अलग पहुंचाया जाता है. मांडवी कच्छ का सदियों पुराना व्यापारिक बंदरगाह है. संधु का गैंग उत्तरी गुजरात के ऊंझा में मसालों के बाज़ार का भी इस्तेमाल कर रहा था, जिनके पैकेट के भीतर ड्रग्स छुपा कर पहुंचाया जा रहा था. इन लोगों ने अमृतसर के बाहर ड्रग की एक फैक्ट्री भी बनाई थी, जहां हेरोईन का कच्चा माल साफ कर सेवन के लायक बनाया जाता था, फिर यहां से भारत और यूरोप के बाज़ारों में बेचा जाता है.

द वायर की रिपोर्ट और उससे पहले की कई मीडिया रिपोर्ट में आपने ध्यान दिया होगा कि ड्रग्स पकड़ने के लिए मुंबई पुलिस, पंजाब पुलिस, दिल्ली पुलिस गुजरात के चक्कर लगा रही है. केंद्र की कई एजेंसियां भी गुजरात के चक्कर लगा रही हैं. द वायर की इस रिपोर्ट में एक बेहद ख़तरनाक बात यह कही गई है कि ड्रग्स का कच्चा माल लकर गुजरात भर में बनी फैक्ट्रियों में साफ किया जाता है और उसे उच्च कोटी का बनाया जाता है. हमने इसी सवाल को लेकर कुछ खबरों को सर्च किया.

इसी साल 18 अगस्त की यह रिपोर्ट इंडियन एक्सप्रेस में छपी है. वडोदरा के एक गांव से 225 किलोग्राम मेफेड्रोन ड्रग्स बरामद किया गया, जिसकी कीमत 1125 करोड़ आंकी गई है. गुजरात पुलिस और गुजरात ATS की साझा कार्रवाई में यह ज़ब्ती हुई थी. एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में छह लोग गिरफ्तार किए गए हैं. मोक्सी गांव में रसायन बनाने की फैक्ट्री में ड्रग्स तैयार हो रहा था. सूरत के महेश धोराजी और वडोदरा के पीयूष पटेल को गिरफ्तार किया गया था. इन दोनों ने पूछताछ के दौरान बताया था कि वडोदरा और आणंद में एक फैक्ट्री स्थापित की थी जहां मेफेड्रोन ड्रग तैयार किया जाता है. राकेश मकानी को मास्टर माइंड बताया गया है.

सोचिए फैक्ट्री बना कर हज़ार हज़ार करोड़ के ड्रग के कारोबार में लोग लगे हुए हैं. इससे पता चलता है कि इस खेल में बहुत से लोग शामिल हैं. इससे हासिल पैसा किसी न किसी तरह राजनीति में तो जाता ही होगा. आपको अगर लगता है कि यह सब हाल के वर्षों की घटना है तो 2013 में इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट का ज़िक्र करना चाहूंगा.

इस रिपोर्ट में लिखा है कि नारकोटिक्स ब्यूरो और संयुक्त राष्ट्र की कमेटी के अनुसार भारत ड्रग्स तैयार करने का सेंटर बनता जा रहा है. गुजरात और महाराष्ट्र में बहुत सारे ऐसे गुप्त लैब पकड़े गए हैं. 2017 में हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट है. इसमें नारकोटिक्स ब्यूरो के पूर्व अधिकारी का बयान छपा है कि ड्रग्स के तस्कर समुद्री मार्गों का इस्तेमाल कर रहे हैं. अफगानिस्तान से हेरोईन लाकर भारत में खपा रहे हैं. भारत से दूूसरे देशों में भी भेजा जा रहा है. 2017 में गुजरात के तटीय इलाके से 3500 करोड़ का ड्रग्स पकड़ा गया था.

गुजरात के गांवों में ड्रग्स तैयार करने की फैक्ट्रियां लगीं, यह कैसे संभव हुआ ? इसी साल 27 जून को संयुक्त राष्ट्र ने विश्व ड्रग रिपोर्ट जारी किया था. डाउन टू अर्थ की इस खबर को अब फ्लैश बैक में ही जाकर पढ़ लीजिए. इसमें संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट का ज़िक्र किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार भारत नशे के सेवन के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार बन गया है. जिस तादाद में ड्रग्स के ग्राहक हैं, लगता है कि सप्लाई और बढ़ेगी.

2022 में भारत में एक टन से कुछ अधिक मॉरफिन पकड़ा गया था जो दुनिया में तीसरा सबसे अधिक था. हेरोईन पकड़ने जाने के मामले में भारत दुनिया में पांचवे नंबर पर आता है. इस रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि पंजाब और हिमाचल नशे के मामले में सबसे आगे हैं और गुजरात तीसरा प्रदेश हो गया है, जहां ड्रग के ओवरडोज़ से लोगों की मौत हुई है.

राष्ट्रीय अपराध शाखा NCRB की रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी जाती है. 2017 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में ड्रग्स के ओवरडोज़ से 745 लोग एक साल में मरे थे. 2018 में ड्रग के ओवरडोज़ से 875 लोग मरे. 2020 में ड्रग ओवरडोज़ से 514 लोग मरे और 21 में 737. आज की रिपोर्ट में उन परिवारों के हाल नहीं हैं जिनके बच्चे ड्रग्स की चपेट में आए और सब कुछ बर्बाद हो गया. समय और संसाधनों की कमी के कारण ऐसा हो जाता है इसलिए अब भी आप पूरी तस्वीर नहीं देख रहे हैं, ड्रग के भयंकर असर का आधा से भी कम हिस्सा देख रहे हैं. सवाल है कि गुजरात ड्रग्स के कारोबार का अड्डा कैसे बन गया ?

यही वो तस्वीर है जिसके बहाने हमें गुजरात और ड्रग्स के कारोबार के जाल को समझने का मौका मिला, जिसके बहाने हमने पुरानी खबरों को खंगाला और देखा कि ड्रग्स के जाल को लेकर पंजाब की चर्चा होती थी, उस पर फिल्में बनती रही हैं, गाने बनते हैं मगर पंजाब के पीछे-पीछे गुजरात कैसे ड्रग्स की चपेट में आ गया. उम्मीद है गृहमंत्री अमित शाह केवल चुनावी माहौल के हिसाब से नहीं सोच रहे होंगे, यह मामला नौजवानों को बचाने का भी है. जिस तादाद में ड्रग्स पकड़े जा रहे हैं, उससे यही लगता है कि गली-गली में इसका मिलना सुलभ हो चुका है.

ड्रग्स का कारोबार हज़ारों करोड़ रुपये का है. इसके पीछे असली खिलाड़ी कौन लोग हैं ? उनका राजनीतिक चेहरा कैसा है ? क्या हम कभी इन सवालों के उत्तर जान पाएंगे ? अभी तक जो गिरफ्तारियां हुई हैं, उसमें कोई बड़े नेटवर्क का खिलाड़ी नहीं लगता. सामान्य रुप से संदेह होता ही है कि असली खिलाड़ी कौन है ?ज़रूर गुजरात ATS, गुजरात पुलिस, दिल्ली पुलिस और मुंबई पुलिस ने ड्रग की कई खेप पकड़ी है मगर उनकी तारीफ से पहले इसकी चिन्ता ज़रूरी है कि गुजरात में यह जाल किसकी नाक के नीचे फैला है ?

यह ट्विट 2013 का है. हर्ष सांघवी गुजरात के गृह राज्य मंत्री हैं, मगर तब नहीं थे. 2013 में लिखते हैं कि ‘Dear Teenager Friends Avoid drugs. They will turn you into an addict, no matter how strong your will Power Is.’ हर्ष सांघवी ने विधायक रहते 2018 में भी एक ट्विट किया है. लिखा है कि ’69 वें गणतंत्र दिवस के मौके पर ड्रग्स के खिलाफ एक रैली का उद्घाटन किया है.’ इसका मतलब है कि गुजरात के नेताओं को पता था कि राज्य में ड्रग्स का जाल फैल गया है.

यहां आकर रविश कुमार की रिपोर्ट खत्म हो जाती है. अब आप 2020 के बाद बेहिसाब गति से बढ़ रही दौलत और देश भर में ड्रग्स के फैले जाल और अडानी के ही पोर्ट से हजारों किलो के पकड़े गये ड्रग्स के आंकड़ों का मिलान कर कीजिए. आप दोनों के बीच में घनिष्ठ समानता पायेंगे.

इसके साथ ही आप यह भी देखेंगे कि अडानी के इस गोरखधंधे पर खिलाफ मुख्य मीडिया को तो छोड़ दीजिए, सोशल मीडिया पर भी रिपोर्ट नजर नहीं आती है. कारण क्या है ? कारण है अडानी और उसके ड्रग्स कारोबार पर जिस किसी ने लिखा, कहा उसे सत्ता का भयंकर दमन झेलना पड़ा है, जिसका जिक्र अमेरिका से जारी हिंडेनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट में भी है.

यहां तक की हिंडेनबर्ग रिसर्च के संस्थापक एंडरसन को भी अडानी माफिया गिरोह ने कानूनी कार्रवाई का धमकी दिया था, लेकिन एंडरसन की सख्ती, अमेरिकी कानून की मजबूती से घबराये माफिया गिरोह अडानी, उसके संरक्षक नरेन्द्र मोदी और उसके गोदी मीडिया के तेवर ढ़ीले पड़ गए. जरूरत है अडानी जैसे अन्तर्राष्ट्रीय माफिया गिरोह पर अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय ही शिकंजा कस सकता है, वरना भारत में व्यवस्थित तौर पर फैले इस कारोबार को रोकना असंभव है.

  • संजय सिंह

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