अरविन्द केजरीवाल भारतीय राजनीति में न केवल संघियों को जोरदार टक्कर दी है बल्कि उन्होंने संघियों के साथ-साथ तथाकथित वामपंथियों और लिबरलों (उदारतावादियों) के गिरोह को भी सरेआम नंगा कर दिया है. तथाकथित वामपंथियों और उदारतावादियों के इसी गिरोहों ने भारतीय राजनीति में अछूत बन चुके आरएसएस-भाजपा को आम जनों तक पहुंचाया है, जिसमें लोहिया, जय प्रकाश जैसे उदारतावादी सबसे आगे रहे हैं.
ये तथाकथित वामपंथी और उदारतावादियों के गिरोहों ने हर उस राजनीतिक पार्टियों को अपना निशाना बनाया है, जिसने भारतीय राजनीति में सार्थक हस्तक्षेप करने का प्रयास किया है. इन गिरोहों और संघियों के गिरोहों में कोई फर्क नहीं है. ये सभी गिरोह भारतीय जनता का दुश्मन है, जो न केवल राजनीतिक तौर पर आम जनता को आगे बढ़कर सत्ता पर कब्जा करने की कोशिश का विरोध करते हैं अपितु देश की जनता को राजनीतिक तौर पर कमजोर, कायर और भ्रमित भी करते हैं. इन गिरोहों ने आज तक भारतीय जनता का भला नहीं किया है.
पिछले आठ सालों से देश की सत्ता पर काबिज ये संघी-भाजपाई गिरोहों ने देश का न केवल लाखों करोड़ रूपया लूट लिया अपितु देश की जनता को सबसे ज्यादा राजनीतिक तौर पर अपंग बनाने का कार्य किया है. कहना न होगा, ये तथाकथित वामपंथी और उदारतावादियों का गिरोह इस काम में संघी-भाजपाई गिरोह का अप्रत्यक्ष मदद करता आया है.
ताजा प्रकरण में अरविन्द केजरीवाल का वह बयान है, जिसने इन संघी-भाजपाई गिरोह से ज्यादा तथाकथित वामपंथियों और उदारतावादियों को देश और दुनिया के सामने नंगा खड़ा कर दिया है, वह है भारतीय करेंसी (नोटों) पर लक्ष्मी-गणेश की फोटो को स्थापित करने का बयान. मीडिया को संबोधित करते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा था –
‘हम सब देख रहे हैं कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. डॉलर के मुकाबले रुपया रोज कमजोर होता जा रहा है. इसकी मार देश के आम आदमी को भुगतनी पड़ती है. हम सब चाहते हैं कि भारत विकसित और अमीर देश बने. इसके लिए बहुत सारे प्रयास करने की जरूरत है. हमें बड़ी संख्या में स्कूल खोलने हैं. अस्पताल बनाने हैं. इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करना है. लेकिन हम देखते हैं कि ये प्रयास तभी फलीभूत होते हैं जब हमारे ऊपर देवी-देवताओं का आशीर्वाद होता है. अगर देवी-देवताओं का आशीर्वाद हो तो प्रयासों का फल मिलने लगता है.’
आगे केजरीवाल ने कहा,
“दिवाली पर हमने भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की पूजा की. अपने परिवार, देश की समृद्धि की प्रार्थना की. जितने व्यापारी, उद्यमी हैं, वे अपने कमरे में जरूर गणेश, लक्ष्मी की मूर्ति लगाते हैं और रोज उनकी पूजा करते हैं. आज मेरी केंद्र सरकार से अपील है कि भारतीय करेंसी पर एक तरफ गांधी की तस्वीर हो. लेकिन दूसरी तरफ गणेश, लक्ष्मी की तस्वीर लगाई जाए. हमें अपने देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए बहुत एफर्ट्स लगाने की जरूरत है, लेकिन साथ ही भगवान के आशीर्वाद की भी जरूरत है. अगर भारतीय करेंसी पर गांधीजी के साथ गणेश जी और लक्ष्मी जी की तस्वीर होगी तो इससे पूरे देश को आशीर्वाद मिलेगा. लक्ष्मी को समृद्धि की देवी माना गया है. गणेश को विघन दूर करने वाला देवता माना गया है. इन दोनों की तस्वीरें करेंसी पर लगनी चाहिए.
‘हम ये नहीं कह रहे कि नोट बदले जाएं. लेकिन जो नए नोट छपते हैं, उनके साथ ये शुरुआत हो सकती है. धीरे-धीरे ये नोट भी सर्कुलेशन में आ जाएंगे. इंडोनेशिया एक मुस्लिम देश है. दो पर्सेंट से कम हिंदू हैं वहां. लेकिन उन्होंने भी अपने नोट पर गणेश की तस्वीर छापी हुई है. ये एक बहुत अहम कदम है जो केंद्र सरकार को उठाना चाहिए.’
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— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) October 26, 2022
सभी जानते हैं कि संघी-भाजपा का यह गिरोह जब से देश की सत्ता पर काबिज हुआ है, तब से वह एक-एक कर उन तमाम देशद्रोही और गद्दारों को महिमामंडित करने का कार्य किया है, जो न केवल देश को गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चला है बल्कि अमर शहीद भगत सिंह को फांसी के तख्ते पर भी पहुंचाया है, क्रांतिकारियों की जासूसी कर उन्हें मौत के घाट उतरवाया है या अंग्रेजों की जेलों में बंद करवाया है और देश के विभाजन से लेकर तमाम तरीके से दंगों में इनकी खुली सहभागिता रही है. ये सभी जासूस और देशद्रोही संघी गिरोहों से जुड़े रहे हैं और आज उस सबका महिमामंडन किया जा रहा है.
इतना ही नहीं, ये संघी भाजपाई गिरोह भारतीय नोटों पर सावरकर जैसे देशद्रोहियों की तस्वीर भी लगाना चाहता है, जो न जाने कब से बुलबुल के पंख पर सवार होकर देश के लोगों के सर पर मंडरा रहा है. नत्थू राम गोडसे जैसे हिन्दू आतंकवादी, जिसने मुस्लिम भेष बनाकर गांधी की हत्या किया था, ताकि देश एक बार फिर भयानक दंगों की आग में झुलस जाये, को शहीद बताया जा रहा है और जगह-जगह उसका मंदिर बनाया जा रहा है.
आज देश के हर उस व्यक्ति की हिफाजत संघी-भाजपाई गिरोहों द्वारा बकायदा भारतीय राजसत्ता का इस्तेमाल कर किया जा रहा है, जो देश के हर उस अपराध में शामिल है, जो नीचता और व्यभिचार की श्रेणी में आता है. मसलन, हत्यारा, बलात्कारी, भ्रष्टाचारी, दंगाईयों को बकायदा सम्मान दिलाया जा रहा है और जो कोई इस देश की आम जनता के दुःख-दर्द-पीड़ा के सवाल को उठाता है, यही संघी-भाजपाई गिरोह भारतीय सत्ता – खासकर सुप्रीम कोर्ट – का इस्तेमाल कर उसकी हत्या कर रही है या उन्हें जेलों में सड़ाया जा रहा है.
संघी-भाजपाई गिरोह के समस्त नीचतापूर्ण देशद्रोही कामों में ये तथाकथित वामपंथी और उदारतावादियों को गिरोह खामोश है या थोड़े-बहुत विरोध कर आम जनता के सवालों को उठाते हुए मूल सवाल – सत्ता पर कब्जा करने के – सिरे से नकार रहा है क्योंकि वह देश की आम जनता को किसी भी सूरत में देश की सत्ता पर कब्जा करने की राजनीति से दूर हटाना चाहती है. उधर, संघी-भाजपाई का सरगना भागवत और नरेन्द्र मोदी मस्जिद-मस्जिद, मंदिर-मंदिर घूमता फिर रहा है. पहले से ही धार्मिक धर्मान्ध जनता को भ्रमित कर रहा है.
ऐसे वक्त में आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भारतीय राजनीति में सशक्त हस्तक्षेप कर देश के आम जनता को देश की सत्ता पर कब्जा करने के लिए उत्प्रेरित किया है. कहना न होगा सत्ता पर कब्जा करने की जिस राजनीति को देश के वामपंथियों को करना चाहिए था, वह काम आम आदमी पार्टी के द्वारा किया जा रहा है. इससे तिलमिलाया संघी-भाजपा गिरोह ने तो आम आदमी पार्टी और उसके संयोजक अरविन्द केजरीवाल पर खुला हमला कर रखा है. आये दिन उनके विधायकों, सांसदों, मुख्यमंत्रियों पर छापे मारे जा रहे हैं. उनको फर्जी मामलों में जेलों में बंद किया जा रहा है. कभी न ये तथाकथित वामपंथी और उदारतावादियों का गिरोह इन हमले के विरोध में सवाल नहीं उठाता है, बल्कि अपने घरों में बैठकर केवल आम आदमी पार्टी पर उंगली उठाना ही इनकी नियती बन गई है.
आज से ढ़ाई साल पहले कन्हैया कुमार पर लगे देशद्रोह के मुकदमें में अरविन्द केजरीवाल सरकार द्वारा सहमति पर दिये जाने पर जिस तरह यह तथाकथित वामपंथी और उदारतावादियों के गिरोह बुक्का फाड़कर रो रहा था, और अरविन्द केजरीवाल पर लानतें भेज रहा था आज ढ़ाई साल बाद यह साबित हो गया है कि तथाकथित वामपंथी और उदारतावादियों का यह गिरोह उस वक्त भी संघियों के पिच पर खेल रहा था और आज भी लक्ष्मी-गणेश के मुद्दे पर संघियों के पिच पर खेल रहा है. संघी उक्त वक्त भी केजरीवाल की राजनीति के आगे असहाय था और आज भी असहाय है. बस, संघियों की तरफ से यह पागल तथाकथित वामपंथी और उदारतावादियों का गिरोह केजरीवाल के खिलाफ भौं-भौं कर रहा है.
अब जब अरविन्द केजरीवाल की पार्टी ने दिल्ली, पंजाब में सत्ता पर कब्जा करने के बाद गुजरात में संघियों के गढ़ में जाकर उसे उसकी औकात बताई है और उसकी धर्मान्ध राजनीति को चीर कर शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सवालों को लेकर आगामी गुजरात की सत्ता पर काबिज होने की संभावना को जतला दिया है तब इन संघी गिरोहों ने अरविन्द केजरीवाल के आम आदमी पार्टी पर नंगा हमला बोल दिया है. गुजरात में उसकी सभायें नहीं होने दी जा रही है, उसके नेताओं और कार्यकर्त्ताओं को बकायदा पीटा जा रहा है, फर्जी मुकदमों में जेलों में बंद किया जा रहा है और उधर जोर-शोर से प्रधानमंत्री पद का दुरूपयोग कर नरेन्द्र मोदी देश के टैक्सपेयर का हजारों करोड़ रूपया धामों की यात्रा में फूंक रहा है, तब अरविन्द केजरीवाल का यह सवाल – देश के रूपयों पर गणेश-लक्ष्मी का फोटो लगाया जाये ताकि देश की अर्थव्यवस्था में सुधार लाया जा सके – संघी-भाजपाई गिरोह के उन आकांक्षाओं पर करारा हमला है, जो आये दिन धार्मिक नौटंकी कर देश की जनता को गुमराह कर रहा है.
अरविन्द केजरीवाल के इस बयान पर संघियों से ज्यादा तथाकथित वामपंथी और उदारतावादियों का गिरोह छाती पीट रहा है. उंगली दिखा-दिखाकर केजरीवाल को संघियों का बी-टीम बता रहा है. ऐसे में सहज सवाल उठता है कि भीड़ के पीछे घिसट रहे ये लोग संघियों-भाजपाईयों के गिरोहों के धार्मिक अनुष्ठान पर चुप रहकर और अरविन्द केजरीवाल के उपर हमलाकर दरअसल संघी-भाजपाई गिरोहों की मदद कर रहा है क्योंकि अरविन्द केजरीवाल के इस मांग के बाद संघी-भाजपाई बगलें झांक रहा है. उसे कोई किनारा नहीं दीख रहा है.
अरविन्द केजरीवाल केवल यह सवाल उठा कर ही चुप नहीं रह गये बल्कि अब तो उन्होंने प्रधानमंत्री के नाम पर एक चिट्ठी भी जारी कर दिया है जिसमें उन्होंने साफ तौर पर सवाल उठाया है कि यह देश के 130 करोड़ लोगों की इच्छा है कि भारतीय करेंसी पर एक तरफ गांधी जी और दूसरी तरफ श्री गणेश जी और लक्ष्मी जी की तस्वीर होनी चाहिए. कल लिखे इस पत्र में केजरीवाल ने कहा है –
‘देश के 130 करोड़ लोगों की इच्छा है कि भारतीय करेंसी पर एक तरफ गांधी जी की और दूसरी तरफ श्री गणेश और लक्ष्मी जी की तस्वीर होनी चाहिए. आज देश की अर्थव्यवस्था बहुत बुरे दौर से गुजर रही है. आजादी के 75 साल बाद भी भारत विकासशील और गरीब देशों में गिना जाता है. हमारे देश में आज भी इतने लोग गरीब हैं, क्यों ?
एक तरफ हम सब देशवासियों को कड़ी मेहनत करने की जरूरत है तो दूसरी ओर हमें भगवान का आशीर्वाद – इसके संगम से ही देश तरक्की करेगा.
कल एक प्रेस वार्ता करके मैंने सार्वजनिक रूप से इसकी मांग की. तब से सामान्य जन का इस मुद्दे पर जबदस्त समर्थन मिला है. लोगों में इसे लेकर जबरदस्त उत्साह है. सभी लोग चाहते हैं कि इसे तुरन्त लागू किया जाए.
इस पत्र के मजमून पर गौर कीजिए. जिस धर्मान्ध देश में लाखों करोड़ रूपये हर साल लुटा दिये जाने पर भी कोई सवाल नहीं पूछता है, उसी देश में शिक्षा-स्वास्थ्य पर किये जाने वाले मामूली खर्च पर भी लोग नाक-भौं सिकोड़ने लगते हैं. तथाकथित वामपंथियों के सवाल को ठीक से सुनिए और उसके उंगली दिखाने की प्रवृति पर गौर कीजिए. ये वे लोग हैं जिनके लिए आन्दोलन महज कमाने-धमाने का माध्यम है. इससे उसकी राजनीतिक जीवन चलता है, उसका समाज पर कोई असर नहीं होता क्योंकि शासक वर्ग जानता है कि उसे जनता के लिए सत्ता कब्जाने की राजनीति से कोई मतलब नहीं है, परन्तु, वहीं अरविन्द केजरीवाल का आन्दोलन सीधा सत्ता पर कब्जा करने की राजनीति से प्रेरित है, इसीलिए उस पर सबसे ज्यादा हमला हो रहा है.
जहां तक लक्ष्मी-गणेश के मूर्ति को करेंसी पर छापने का मामला है, मोदी सरकार जानती है कि वह करेंसी पर इस चित्र को नहीं छाप सकता. इसके लिए उसे बड़े संशोधन की जरूरत पड़ेगी, जिसकी वह तैयारी भी कर रहा है. गणेश-लक्ष्मी के मूर्ति के लिए नहीं, सावरकर के लिए. अरविन्द केजरीवाल ने लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति का सवाल उठाकर उसने संघियों-भाजपाईयों के सावरकर के फोटो को करेंसी पर छापने के अभियान को उलट दिया है. अब संघी-भाजपाई के लिए सावरकर को नोटों पर छापना उतना भी आसान नहीं होने वाला, जितना संघियों ने सोच रखा था. संभव है अरविन्द केजरीवाल को सूत्रों से यह जानकारी मिल गई होगी कि संघी एजेंट नरेन्द्र मोदी सावरकर का तस्वीर करेंसी पर छापने वाला है.
अरविन्द केजरीवाल और तथाकथित वामपंथियों में बुनियादी अंतर इस बात को लेकर है कि अरविन्द केजरीवाल भारतीय राजनीति में फ्रंटफुट पर जाकर राजनीति करता है तो वहीं ये तथाकथित वामपंथी और उदारतावादी गिरोह बैकफुट पर जाकर. साफ है भारतीय राजनीति की समझ वामपंथियों और उदारतावादियों में न पहले कभी था और न ही अब है. भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के सौ साल का इतिहास इसका गवाह है. तथाकथित वामपंथी और उदारतावादी गिरोह को एक सलाह है कि वह खुद को अप्रसांगिक बना दिये जाने की हद तक जाने के वजाय अरविन्द केजरीवाल की सत्ता पर काबिज होने की राजनीति का अगर समर्थन नहीं कर सकते तो संघियों के पिच पर भी जाकर खेलने की जरूरत नहीं है.
अगर इन तथाकथित वामपंथी और उदारतावादी गिरोह को लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति पर सवाल है तो उसे यह भी बताना चाहिए कि लोगों को गोलबंद करने के लिए बिरसा मुंडा ने खुद को भगवान घोषित कर लिया था, तभी जाकर उन्होंने अंग्रेजों के विरूद्ध मजबूत प्रतिरोध को गोलबंद कर पाया था. जहां तक नास्तिकता का सवाल है तो तथाकथित वामपंथी और उदारतावादी गिरोहों अपने सौ साल के इतिहास में आम लोगों के बीच कितना प्रचार-प्रसार कर सका है, उसे यह भी बताना चाहिए.
मूल सवाल है सत्ता पर कब्जा करना. इसके दो रास्ते हैं 1. संसदीय रास्ता, 2. सशस्त्र आन्दोलन का दीर्घकालीन लोकयुद्ध का रास्ता. अरविन्द केजरीवाल ने संसदीय रास्ता चुना है. जिन्होंने सशस्त्र आन्दोलन का रास्ता चुना है, वे अपना काम कर रहे हैं. आपने कौन-सा रास्ता चुना है तथाकथित वामपंथी और उदारतावादी गिरोहों के लोग ?
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