जी, तो 20 रुपए में एक वक्त के खाने के हिसाब से 30 हज़ार किसानों को 1 करोड़, 80 लाख रुपए का खाना कैसे मिला…
तो एक काम कीजिए, गूगल कीजिए…देखिए वो समाचार चैनल्स के इंटरव्यू, जिनमें गुरुद्वारों से लेकर सड़क तक सिख समुदाय, मंदिरों के सेवक, मस्जिदों के नमाज़ी, मदरसों के तालिब और गांव-शहर-सड़क के लोग, ढाबे वाले इनके लिए खानो-पानी और विश्राम के प्रबंध में लगे थे…
वो ये कर रहे थे और कर पा रहे थे क्योंकि वे अभी भी मनुष्य हैं…और वो नासिक से मुंबई तक ये कर रहे थे, क्योंकि वे अभी भी आपके असर से इतना अछूते हैं कि उनके मन में मनुष्यता बची है…
इन लोगों में भाजपा यानी कि आपके वोटर भी थे…आपके समर्थक भी थे…और अब जब आप सोशल मीडिया से व्हॉट्सएप तक ये सवाल पूछ रहे हैं…तो वे वाकई आपका कॉ़लर पकड़ कर जवाब देना चाहते होंगे…पर फिर भी, चुनाव आएंगे और वो जवाब दे देंगे…
आप उन में नहीं थे, जो किसानों को खाना खिला रहे थे…उनको चप्पलें लाकर दे रहे थे…उनको दवाएं लगा और खिला रहे थे…उनको गीत सुना रहे थे…उनको पानी बांट रहे थे…
शाम को आंदोलन की समाप्ति की घोषणा के बाद…आज़ाद मैदान के बाहर की एक चाय-नाश्ते की दुकान चलाने वाला परिवार…अपने पूरे परिवार के साथ खड़ा…बाहर निकल, अपने गांव की ओर वापस लौट रहे एक-एक किसान को जूस का टेट्रापैक और नाश्ता दे रहा था…ठीक वैसे ही, जैसे आपके घर वाले आपको रेल पकड़ते वक्त देते हैं…मैं उस परिवार को खड़ा निहार रहा था, जो सख्ती से दुकान का हिसाब-किताब करता है…पर पूरे परिवार की आंखों में पानी था…
आज़ाद मैदान से सोमैया मैदान तक, मैं उन परिवारों को देख कर आया हूं, जो अपने बच्चों के साथ वहां थे…दवाएं देते…खाना देते…नाश्ता कराते…टॉफी बांटते…जिसकी जैसी आर्थिक हैसियत थी, वह वैसा कर रहा था…जिसकी जेब जितनी छोटी थी, उसकी झोली उतनी ही उदार थी…
आप जानते क्या हैं इस देश के बारे में? आप जो भी करते हों और कहते रहें…इस देश के आम लोग, किसान को किसान की तरह देखते हैं…वो झंडा नहीं देखते…वो पैरों के ज़ख्म और बिवाईयां देखते हैं…आप मनुष्य से ट्रॉल हो गए हैं, तो सब नहीं हो गए हैं…
मुंबई में किसानों के लिए जिस तरह से लोगों ने समर्थन दिखाया है, वह ही तो शायद हम कब से देखना चाहते थे…ये खाना-दवा-चप्पल बांटते वही लोग थे, जो आपकी रैलियों में भी आए…नरेंद्र से लेकर नरेश तक, सभी को वोट भी दिया…तो इनको भी कहिए देशद्रोही…
जब दिमाग में धर्मांधता की दीमक लगती है, तो सबसे पहले मस्तिष्क और विवेक को खाती है…अगर आपको ये किसान, किसान नहीं लगते, तो यकीन मानिए, आपको मनुष्य, मनुष्य नहीं दिखेगा…हां, गाय ज़रूर देवी दिखती रहेगी…जब तक कि वह मनुष्य की जान लेने के काम आए…
ज़रा देख लीजिएगा मदरसे के उन छात्रों की तस्वीरें…उन गृहणियों के चेहरे, उन सिख सेवादारों के हाथ, अम्बेडकरवादी एक्टिविस्टों के पानी के पाउच…
और हां, हिसाब हम भी पूछेंगे कि आखिर चुनाव में खर्च करने के लिए हज़ारों करोड़ कहां से आते हैं…और चुनाव जीते जाने के बाद, जो हज़ारों करोड़ बांटे जाते हैं…क्या वो खर्च के लिए जो इन्वेस्टमेंट था, उसका ही प्रॉफिट बंट रहा है…पर ये सवाल, हम ढंग से पूछेंगे…सुबूतों के साथ…झूठ के साथ नहीं…याद रहे, हम जनता हैं…और हम ही असली विपक्ष हैं…2014 में विपक्ष थे, तो कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया…इस बार….याद रहे, हम विपक्ष हैं…और ऐसे विपक्ष हैं कि जब विपक्षी पार्टी इस आंदोलन में दिख भी नहीं रही थी, तब भी हम यानी कि जनता ही इसके साथ खड़े थे, अपने हाथों में भोजन-दवा और मदद लेकर…
अगर अभी भी दिल न भरा हो, तो एक बार ढूंढ लेना वो तस्वीरें, जो मुंबई में किसानों के मार्च पर फूल बरसाते लोगों की हैं…दिल का दौरा आए, तो मदद मांगना…जनता अभी भी मनुष्य है, ट्रोल नहीं है..
– मयंक सक्सेना के पोस्ट से साभार
Shakeel Ahmad
March 13, 2018 at 4:02 am
मीडिया कितना गिरेगी यह किसी को नही मालूम
Sakal Thakur
March 13, 2018 at 4:04 am
देख लो मोदी सरकार जनता का हाल जवाब देना ही पड़ेगा भुगतना होगा