राम अयोध्या सिंह
कश्मीर से हिन्दूओं, खासकर कश्मीरी पंडितों का पलायन करवाकर राजनीतिक फायदा उठाने की स़घी योजना सबसे पहले तब क्रियान्वित की गई थी, जब जम्मू और कश्मीर में भाजपाई जगमोहन राज्यपाल था. जानबूझकर दंगे करवाए गए और इस कदर दुष्प्रचार किया गया था कि कश्मीरी पंडितों के लिए पलायन करने के अलावा और कोई रास्ता बचा ही नहीं था. इस पलायन का संघ और भाजपा ने हर संभव तरीके से राजनीतिक फायदा उठाया.
पुनः जब केन्द्र में मोदी सरकार दूबारा आई और अमित शाह जैसा आदमी केन्द्रीय गृह मंत्री बना, तो संघ की पुरानी योजना को अमलीजामा पहनाया गया कश्मीर से धारा 370 को समाप्त कर. यहां तक कि जम्मू और कश्मीर राज्य को कश्मीर और लद्दाख दो केन्द्र शासित राज्यों में विभाजित कर सांप्रदायिक विभाजन की राजनीति को पुख्ता किया गया.
करीब एक साल तक कश्मीर घाटी सेना और केन्द्रीय अर्द्धसैनिक बलों के अधीन एक सैन्य अधिकृत क्षेत्र के रूप में रहा. उस दौर में कश्मीरी मुसलमानों के सारे नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था. साठ लाख मुसलमानों की आवाजाही पर प्रतिबंध था. सेना और अर्द्धसैनिक बलों को किसी भी समय किसी भी घर की तलाशी लेने का अधिकार था.
सारे बाजार, स्कूल, कालेज, मनोरंजन स्थल, सिनेमा हॉल, खेलकूद संबंधी गतिविधियों को बंद कर दिया गया था. यहां तक कि शादियां भी स्थगित कर दी गई थीं. सैंकड़ों मुसलमान युवाओं को रात में बिना कोई कारण बताए उठा लिया गया था और जिनके बारे में कभी कोई खबर भी नहीं आई कि उनका क्या हुआ. रेडियो, टेलीविजन और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तथा समाचारपत्रों को प्रतिबंधित कर दिया गया था.
एक साल के बाद जब इन प्रतिबंधों को उठाया भी गया तो स्थिति सामान्य न हो सकी. हिन्दू और मुसलमानों के बीच खाई और भी चौड़ी बनाने की कोशिश होती रही. कश्मीरी मुसलमानों के व्यापार, खेती और पर्यटन को तबाह किया गया, और सबसे बड़ा जुल्म तो यह किया गया कि इस साल जब सेव की अच्छी फसल तैयार हुई और बाजार में बिकने के लिए ट्रकों से बाहर भेजने की प्रक्रिया शुरू हुई तो ट्रकों को बीच रास्ते एक महीने तक यूं ही रोक रखा गया, जिसके कारण अधिकतर सेव के फल सड़कर खराब हो गए.
दिवाली की रात जब देश के लोग दीप का जश्न मना रहे थे, कश्मीर घाटी से 15 कश्मीरी ब्राह्मणों का परिवार चुपचाप अपने घरों में ताले लगाकर जम्मू के लिए निकल पड़े, फिर कभी वापस न लौटने के लिए. ये वैसे परिवार थे जो तब भी घाटी के अपने घरों में डटे रहे, जब बड़े पैमाने पर कश्मीरी ब्राह्मण कश्मीर से पलायन कर रहे थे.
आज जब कश्मीर पर केन्द्र सरकार का पूर्ण अधिकार है, सारे प्रशासनिक तंत्र उनके ही हाथों में है, सेना और अर्द्धसैनिक बल भी उनके ही हाथों में हैं, शांति-शांति का जप भी कर रहे हैं, फिर भी इन 15 परिवारों को ये लोग बचा नहीं सके.
वास्तव में संघ, भाजपा और मोदी सरकार के लिए कश्मीरी ब्राह्मण सिर्फ राजनीति के बिसात पर शतरंज के मोहरे हैं, जिनका प्रयोग वे अपने हितों के अनुसार करते हैं. कश्मीरी पंडितों के नाम पर सांप्रदायिकता की उनकी राजनीति चलती रहे, इससे ज्यादा उनके लिए इन कश्मीरी पंडितों का महत्व नहीं है.
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