रविन्द्र पटवाल
बचपन में मैं जापानी राष्ट्रवाद से बहुत हद तक प्रभावित था. यह बात हाई स्कूल, इंटर के दिनों की है. तब मैंने लाइब्रेरी से जापान के प्रमुख उद्योगपतियों की जीवनी निकालकर पढ़ी थी. उसमें अनेकों उद्योगपतियों के जीवन के बारे में और साथ ही जापान के मजदूर वर्ग के बारे में बताया गया था कि कैसे जापान में यदि जूता फैक्ट्री में हड़ताल हो जाती थी तो वह प्रोडक्शन बंद नहीं करते थे, बल्कि एक ही पैर के जूते का उत्पादन लगातार करते रहते थे. बहुत बाद में जाकर पता चला कि जापान तो अमेरिका का सैनिक अड्डा है, और यह सारी प्रगति जापान के चंद हिस्सों के ही नसीब में आई थी.
अब उम्र के पांचवें दशक में जब हूं तो लगातार चीनी राष्ट्रवाद आकर्षित करता है. चीन की विशिष्टता वहां पर कम्युनिस्ट पार्टी के शासन की है, जिसमें 140 करोड़ लोगों के विकास के लिए और साथ ही देश के समग्र विकास के लिए नीतियों का कुछ ऐसा समायोजन किया गया है कि अमेरिका और यूरोप तो छोड़िए हमारे जैसे भारत के वामपंथियों तक के लिए इस गुत्थी को समझ पाना आसान नहीं रहा और आज भी नहीं है. आज चीन न सिर्फ एक मजबूत देश है, बल्कि दुनिया की दूसरी महाशक्ति बन चुका है.
अर्थव्यवस्था के लिहाज से दुनिया की पहली अर्थव्यवस्था बनने के बेहद करीब है, लेकिन यह इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उसने अपने व्यापक आबादी को जितनी तेजी से गरीबी की रेखा से ऊपर उठा कर मध्यवर्ग की स्थिति में लाने का काम किया है, वह काम यूरोप और अमेरिका को करने में 300 साल लग गए.
भारत जो कि चीन से 2 साल पहले आजाद हुआ था, वह 50 से 80 के दशक में जरूर कुछ हद तक अमीरी और गरीबी की खाई को पाटने में सफल रहा, लेकिन नौकरशाही और पूंजीवाद के मजबूत होने के साथ वह एक ऐसी चकरघिन्नी में फंस गया कि वह सीधे औंधे मुंह नव उदारवादी व्यवस्था के चंगुल मे जा फंसा. आज हालत यह है कि यूरोप और अमेरिका के पूंजीपति तक भारत के क्रोनी कैपिटल के विकास को देखकर जल भुन रहे हैं.
हमारा देश आज दुनिया में सबसे तेजी से गैर-बराबरी को बढ़ाने में अग्रसर है, और इस लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ी आबादी वाला गरीब देश बन चुका है. या कह सकते हैं कि दुनिया के 70% प्रतिशत गरीब जल्द ही सिर्फ भारत में पाये जाएंगे. आपको कौन सा मॉडल पसंद है ? भूखे पेट रहकर ऐसे लोकतंत्र का जिसमें सिर्फ अब कहने भर को आजादी है – बोलने की, खाने की, पीने की, सोचने की. लेकिन सरकार के पास तमाम अधिकार हैं आपको बोलने, खाने-पीने, सोचने पर पाबंदी लगाकर जेल में ठूंसने और यूएपीए लगाकर बदनाम करने की.
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मेक इन इंडिया के तहत एक भारतीय हार्ड वर्क करने वाली फार्मा कंपनी ने जाम्बिया में खांसी की ऐसी दवा निर्यात की कि उससे 66 बच्चे मर गये. WHO ने इसकी जानकारी दुनिया को दे दी है. भारत में जांच दल पहुंच रहा है. हार्ड वर्क पर यह जोर पिछले कुछ वर्षों से अधिक दिए जाने और पूंजीपति वर्ग को आर्मी से बड़ी देश सेवा का खिताब देने के बाद भारत में तो सभी को सांप सूंघ गया था. लेकिन दुनिया तो खामोश नहीं बैठने वाली.
सोचिये दो दिनों से देश में कितने हादसे हुए ? उत्तराखंड में दो भयानक हादसे, 40 से अधिक मौत. जगह-जगह दशहरे में लोग जल रहे, बह रहे. एक लाइन के ट्वीट में दुःख जता कर धूमधाम से अगले त्योहार के लिए तैयारी में जोर शोर से जुटे रहो. अब देश में दो ही काम बचे हैं. 1. चुनाव 2. त्यौहार. सारे देश को 8 साल से इवेंट मैनेजर ने इवेंट देखो और ताली थाली पीटते रहो, पर लगा रखा है.
पूरा उत्तराखंड इस इवेंट के चलते जगह-जगह से धंस गया है. लोगबाग खेत बेचकर किसी होटल-रिसोर्ट में चौकीदार, माली, खानसामा, दलाल बन चुके हैं. टैक्सी ड्राइवर की एक नई जमात है. इलाहाबाद के संगम की तरह यहां भी पंडित और मल्लाह वाली खेमेबाजी और ग्राहक बटोर अभियान और गिरोहों की भरमार होने वालीं है. यही किया है आज तक तो यही रोजगार मिलेगा. घटिया सामग्री, दवा घर में तो दहाड़ते हुए चलेगी, लेकिन दुनिया वालों का क्या करोगे हुजूर ?
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