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पीएफआई पर प्रतिबंध तो आरएसएस पर क्यों नहीं ?

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पीएफआई पर प्रतिबंध तो आरएसएस पर क्यों नहीं ?
पीएफआई पर प्रतिबंध तो आरएसएस पर क्यों नहीं ?

केन्द्र की आरएसएस एजेंट मोदी सरकार ने पीएफआई जैसे संगठनों पर 5 साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया है और देशभर में उसके 250 से अधिक कार्यकर्ताओं और नेताओं की धड़पकड़ की है और उनकी सम्पत्तियों को जप्त करने का अभियान चलाया है. ऐसे में शरदेन्दु कुमार पाण्डेय सवाल उठाते हुए लिखते हैं –

पीएफआई मुस्लिमों के बीच वही काम करता है जो संघ हिन्दुओं के बीच करता है अर्थात रेडिक्लाइजेशन. सवाल यह है कि प्रतिबन्ध सिर्फ पांच साल के लिए क्यों लगा है, हमेशा के लिए प्रतिबंधित करो. दूसरा संघ पर प्रतिबंध क्यों नहीं ?

दरअसल ये दोनों चरमपंथी संगठन एक दूसरे के पूरक, एक दूसरे की जरूरत और एक दूसरे के लिए फायदेमंद हैं, इसलिए एक पर सिर्फ पांच साल के लिए प्रतिबन्ध लगा है और एक को छोड़ दिया गया है ताकि एक प्रतिबन्ध के नाम पर सवाल खड़े करें और दूसरा उसके खिलाफ रिएक्शन करे, फिर क्रिया प्रतिक्रिया के कचरे फैलाने का सियासी खेल चलता रहेगा.

देश का सबसे बड़ा आतंकवादी संगठन आरएसएस ने आज 100 सालों बाद खुद को इस मजबूत स्थिति में ले आया है कि वह अपने नये-पुराने तमाम विरोधियों को एक साथ सिरे से किनारे लगा दिया है, यहां तक की कांग्रेस जैसी तत्कालीन पार्टी तक को देशद्रोहियों की कतार में ला खड़ा कर दिया है. ऐसे में पीएफआई जैसी मुस्लिम परस्त संगठनों को प्रतिबंधित करना कोई आश्चर्य की बात नहीं है. लेकिन जो चीजें आश्चर्य पैदा करती है वह है स्वयं आरएसएस और उसके गुंडा वाहिनी संगठनों को इस प्रतिबंध के दायरे में न लाना.

पीएफआई को मोदी सरकार ने प्रतिबंधित क्यों किया ?

केन्द्र की मोदी सरकार ने कथित रूप से आतंकी गतिविधियों में संलिप्तता और आईएसआईएस जैसे आतंकवादी संगठनों से ‘संबंध’ होने के कारण ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ (पीएफआई) व उससे संबद्ध कई अन्य संगठनों पर पांच साल का प्रतिबंध लगा दिया है. पीएफआई और उसके नेताओं से जुड़े ठिकानों पर छापेमारी के बाद सरकार ने यह कदम उठाया है. आतंकवादरोधी कानून ‘यूएपीए’ के तहत प्रतिबंधित संगठनों में ‘रिहैब इंडिया फाउंडेशन’ (आरआईएफ), ‘कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया’ (सीएफ), ‘ऑल इंडिया इमाम काउंसिल’ (एआईआईसी), ‘नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन’ (एनसीएचआरओ), ‘नेशनल विमेंस फ्रंट’, ‘जूनियर फ्रंट’, ‘एम्पॉवर इंडिया फाउंडेशन’ और ‘रिहैब फाउंडेशन (केरल)’ के नाम शामिल हैं.

इस 16 साल पुराने संगठन के खिलाफ मंगलवार को सात राज्यों में छापेमारी के बाद 150 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया या गिरफ्तार किया गया. इससे पांच दिन पहले भी देशभर में पीएफआई से जुड़े ठिकानों पर छापेमारी की गई थी और करीब 100 से अधिक लोगों को उसकी कई गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया गया था, जबकि काफी संख्या में संपत्तियों को भी जब्त किया गया.

केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से मंगलवार देर रात जारी एक अधिसूचना के अनुसार, पीएफआई के कुछ संस्थापक सदस्य ‘स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया’ (सिमी) के नेता हैं और पीएफआई के जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) से भी जुड़े हैं. जेएमबी और सिमी दोनों ही प्रतिबंधित संगठन हैं. जारी अधिसूचना में कहा गया कि पीएफआई के ‘इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया’ (आईएसआईएस) जैसे आतंकवादी संगठनों के साथ संबंधों के भी कई मामले सामने आए हैं.

अधिसूचना पृष्ठ – 1

अधिसूचना पृष्ठ – 2

अधिसूचना पृष्ठ – 3

इस अधिसूचना में दावा किया गया कि पीएफआई और उसके सहयोगी या मोर्चे देश में असुरक्षा होने की भावना फैलाकर एक समुदाय में कट्टरता को बढ़ाने के वास्ते गुप्त रूप से काम कर रहे हैं, जिसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि पीएफआई के कुछ कार्यकर्ता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय आतंकवादी संगठनों में शामिल हुए हैं. उक्त कारणों के चलते केंद्र सरकार का दृढ़ता से यह मानना है कि पीएफआई की गतिविधियों को देखते हुए उसे और उसके सहयोगियों या मोर्चों को तत्काल प्रभाव से गैरकानूनी संगठन घोषित करना जरूरी है. संबंधित अधिनियम की धारा-3 की उपधारा (3) में दिए गए अधिकार का इस्तेमाल करते हुए इसे गैर-कानूनी घोषित किया जाता है.’

अधिसूचना में आरोप लगाया गया है कि पीएफआई आतंक-आधारित दमनकारी शासन को बढ़ावा देते हुए उसे लागू करने की कोशिश कर रहा है, देश के प्रति वैमनस्य उत्पन्न करने के लिए राष्ट्र विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देने और समाज के एक विशेष वर्ग को कट्टरपंथी बनाने की लगातार कोशिश कर रहा है. इसमें कहा गया है कि संगठन ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है, जो देश की अखंडता, सुरक्षा व संप्रभुता के लिए खतरा हैं.

गृह मंत्रालय ने दावा किया कि जांच में पीएफआई और उसके सहयोगियों या मोर्चों के बीच संबंध के स्पष्ट सबूत मिले हैं. अधिसूचना में कहा गया कि ‘रिहैब इंडिया फाउंडेशन’ पीएफआई सदस्यों के जरिए कोष एकत्रित करता है. पीएफआई के कुछ सदस्य ‘कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया’, ‘एम्पॉवर इंडिया फाउंडेशन’ और ‘रिहैब फाउंडेशन (केरल)’ के भी सदस्य हैं. इसके अलावा ‘जूनियर फ्रंट’, ‘ऑल इंडिया इमाम काउंसिल’ (एआईआईसी), ‘नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन’ (एनसीएचआरओ) और ‘नेशनल विमेंस फ्रंट’ की गतिविधियों पर पीएफआई के नेता नजर रखते हैं.

अधिसूचना में कहा गया कि पीएफआई ने समाज के विभिन्न वर्गों जैसे युवाओं, छात्रों, महिलाओं, इमामों, वकीलों या समाज के कमजोर तबकों के बीच अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए अपने अलग-अलग मोर्चे बनाए, जिसका एकमात्र लक्ष्य अपना विस्तार करना, प्रभाव बढ़ाना और धन एकत्रित करना रहा. केंद्र ने एक अन्य अधिसूचना में राज्य सरकारों को उन संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार दिया, जो पीएफआई से जुड़े थे. उनकी गिरफ्तारी की जा सकती है और संपत्ति आदि जब्त भी की जा सकती है.

गृह मंत्रालय का दावा है कि इन सहयोगियों या संबद्ध संगठनों या मोर्चों का ‘चोली दामन’ का साथ है. आयकर विभाग ने ‘रिहैब इंडिया फाउंडेशन’ का पंजीकरण भी रद्द कर दिया है. वहीं खाते और पीएफआई के कार्य भी उसके घोषित उद्देश्यों के अनुसार नहीं पाए गए, इसलिए आयकर विभाग ने, आयकर अधिनियम, 964 ( 964 का 3) की धारा 42-/& या 2-// के तहत मार्च, 202 में इसका पंजीकरण रद्द कर दिया. इन्हीं कारणों से , आयकर विभाग ने, आयकर अधिनियम, 496 की धारा 42-/ या 2-/ के तहत, रिहैब इंडिया फाउन्डेशन के पंजीकरण को भी रद्द कर दिया.

पीएफआई और इसके सहयोगी संगठन या सम्बद्ध संस्थाएं या अग्रणी संगठन देश में आतंक फैलाने और इसके द्वारा राष्ट्र की सुरक्षा और लोक व्यवस्था को खतरे में डालने के इरादे से हिंसक आतंकी गतिविधियों में शामिल रहे हैं तथा पीएफआई की राष्ट्र- विरोधी गतिविधियां राज्य के संवैधानिक ढ़ांचे और सम्प्रभुता का अनादर और अवहेलना करते हैं, और इसलिए इनके विरुद्ध तत्काल और त्वरित कार्रवाई अपेक्षित है. गौरतलब है कि आरएसएस संचालित भाजपा की उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात राज्य सरकारों ने पीएफआई को प्रतिबंधित करने की अनुशंसा की है.

केंद्रीय सरकार का यह मत है कि यदि पीएफआई और इसके सहयोगी संगठन या सम्बद्ध संस्थाओं या अग्रणी संगठनों के विधिविरुद्ध क्रियाकलापों पर तत्काल रोक अथवा नियंत्रण न लगाया गया, तो पीएफआई और इसके सहयोगी संगठन या सम्बद्ध संस्थाएं या अग्रणी संगठन इस अवसर को निम्नलिखित हेतु प्रयोग करेंगे –

  • अपनी विध्वंसात्मक गतिविधियों को जारी रखेंगे, जिससे लोक व्यवस्था भंग होगी और राष्ट्र का संवैधानिक
    ढांचा कमजोर होगा;
  • आतंक आधारित पश्चगामी तंत्र (रिग्रेसिव रिजीम)को प्रोत्साहित एवं लागू करेंगे;
  • एक वर्ग विशेष के लोगों में देश के प्रति असंतोष पैदा करने के उद्देश्य से उनमें राष्ट्र-विरोधी भावनाओं को भड़काना और उनको कट्टरवाद के प्रति उकसाना जारी रखेंगे;
  • देश की अखण्डता, सुरक्षा और सम्प्रभुता के लिए खतरा उत्पन्न करने वाली गतिविधियों को और तेज करेंगे.

आतंकवादी संगठन आरएसएस

केंद्र की मोदी सरकार जिन कारणों को गिनाते हुए पीएफआई समेत अन्य संगठनों को प्रतिबंधित किया है, ठीक उसी कारणों से आतंकवादी संगठन आरएसएस ‘देशभक्त’ संगठन बन जाती है. आरएसएस पर काफी कुछ लिखा जा चुका है इसलिए यहां यहां इस आतंकवादी संगठन आरएसएस को तस्वीरों में देखने और समझने के लिए तस्वीरों को साझा कर रहे हैं –

चित्र – 1

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चित्र – 8

हिन्दू धर्म के नाम पर अग्नेयास्त्रों और पौराणिक हथियारों की पूजा और प्रदर्शन करते संघियों के लिए क्या यह शांति का यज्ञ है, जहां आये दिन हत्या, बलात्कार की घटनाएं रिकॉर्ड तोड़ती है ?

पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने पर देश के बुद्धजीवियों का मत

प्रसिद्ध गांधीवादी हिमांशु कुमार लिखते हैं –

भाजपा सरकार ने पीएफआई पर छापामारी की और करीब 250 मुसलमानों को जेलों में डाल दिया है. हम सब जानते हैं कि भाजपा की यह कार्यवाही बिगड़ती अर्थव्यवस्था, बदहाल राजनैतिक हालात पर पर्दा डालने और अपने गिरते हुए समर्थन को दोबारा हासिल करने के लिए की गई है लेकिन इसके जवाब में राहुल गांधी का बयान राजनीतिक नासमझी और भाजपा की राजनीति की जीत है.

राहुल गांधी ने कहा कि सांप्रदायिकता और हिंसा का विरोध किया जाएगा और चाहे वह किसी के द्वारा भी की जा रही हो. पीएफआई द्वारा कौन-सी सांप्रदायिकता की गई ? कौन सी हिंसा की गई उसके बारे में आज तक ना कहीं हमने पढ़ा है, ना कहीं सुना है, ना कहीं देखा है.

अलबत्ता यह जरूर है कि आरएसएस के राम सेना या विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के गुंडों का मुकाबला दक्षिण भारत में पीएफआई ने जरूर करने की कोशिश की लेकिन उसके द्वारा कोई आतंकवादी या हिंसक गतिविधियां नहीं की गई है. भाजपा सरकार को इसी बात से आग लगी हुई है और इसीलिए उसने पीएफआई पर यह बदले की कार्रवाई की है.

भाजपा की इस दमनकारी कार्यवाही पर कांग्रेस को कमर कस के पलटवार करना चाहिए था. कांग्रेस को भाजपा सरकार से पूछना चाहिए था कि वह पीएफआई की हिंसक सांप्रदायिक या आतंकवादी गतिविधियों पर पहले श्वेत पत्र जारी करे, जिससे देश को यह पता चले कि यह संस्था किस तरह की गतिविधियों में लिप्त है, जिसके कारण इसके खिलाफ कार्रवाई करने की जरूरत है.

लेकिन मुसलमानों पर हमला करने की भाजपा की राजनीति का कांग्रेस लंबे समय से डटकर मुकाबला नहीं कर पा रही है इसलिए कांग्रेस को लंबे समय से मुसलमानों ने छोड़ दिया है और कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई है. मैं अगर कांग्रेस में होता तो मैं जवाब देता कि देश की सबसे बड़ी आतंकवादी संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बजरंग दल, हिंदू महासभा और भारतीय जनता पार्टी खुद है.

मैं राजनीतिक अभियान चलाता और बताता कि देश का बंटवारा करने समाज को तोड़ने सांप्रदायिक आधार पर नफरत फैलाने और देश को कमजोर करने का काम भाजपा जैसी देशद्रोही पार्टी लगातार कर रही है और यही सबसे बड़ा देशद्रोह है.

भाजपा से डरिए मत, उसका डटकर मुकाबला करिए और बताइए कि इसने बाबरी मस्जिद में षडयंत्रपूर्वक पहले मूर्तियां रखी, फिर उसको तोड़ा, फिर जज को सेक्स स्कैंडल में फंसाया और एक गैरकानूनी फैसला अपने पक्ष में करवाया है. लेकिन आप अखबार में छपवाते हैं कि राम मंदिर हमारी वजह से बन रहा है.

आप भाजपा की राजनीति से डर क्यों जाते हैं इस तरह से तो आप देश को जोड़ नहीं पाएंगे. आप डरते हैं कि भाजपा आपको मुस्लिमपरस्त कहेगी, हिंदुओं का दुश्मन कहेगी और आप डरकर भाजपा की बिछाई हुई बिसात पर फंस जाते हैं और हार जाते हैं.

आप ब्राह्मणवाद के खिलाफ लड़ाई सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़िये, मजदूरों की लड़ाई लड़िये, किसानों की लड़ाई लड़िये, महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़िये, छात्रों की सस्ती शिक्षा की लड़ाई लड़िये, मुसलमानों पर होने वाले लगातार हमलों के खिलाफ लड़ाई लड़िये. पूंजीवादी लूट कारपोरेटीकरण के खिलाफ बोलिए.

पदयात्रा में आप इन मुद्दों को रोज उठाइए. रोज वहां से एक नए मुद्दे पर भाजपा पर हमला बोलिए. भाजपा को डिफेंसिव हालत में ले आइए, इतना जोरदार हमला बोलिए. आपके पास तथ्य है, सच्चाई है, हकीकत है. भाजपा के झूठ की धज्जियां उड़ा दीजिए, तार-तार कर दीजिए इनकी राजनीति को लेकिन उसके लिए आपको भारत के स्वर्ण मध्यमवर्गीय हिंदू वोटों का लालच छोड़ना पड़ेगा. तब आपके साथ भारत का दलित, मुसलमान, मजदूर, किसान, महिला, छात्र जुड़ेंगे और कांग्रेस फिर से अखिल भारतीय पार्टी बन सकती है.

लेकिन यदि आप भाजपा की बिछाई बिसात पर ही खेलते रहेंगे और भारत के हिंदू स्वर्ण मिडिल क्लास को खुश करने के काम में लगे रहेंगे, जैसा कि भारत की दूसरी राजनीतिक पार्टियां कर रही हैं तो आपको कोई राजनीतिक सफलता मिलने वाली नहीं है. हम चाहते हैं कि भारत भाजपा मुक्त हो लेकिन हम कांग्रेस की हालत और तैयारी देख कर बहुत निराश हैं

राजीव यादव लिखते हैं –

पीएफआई पर आरोप है कि वह इस्लामिक राष्ट्र बनाने की साजिश रच रही थी, तो छापे उन पर क्यों नहीं जो हिन्दूराष्ट्र की मांग कर रहे ? पीएफआई के दस्तावेजों का सवाल तो न्यायालय तय करेगा लेकिन खुलेआम हिन्दू राष्ट्र के बैनर, पोस्टर, होर्डिग, धरने, कार्यक्रमों में प्रस्ताव पारित करने वालों के यहां अब तक छापे क्यों नहीं ?क्योंकि वे आरएसएस से जुड़े लोग हैं और भाजपा की सरकार है.

ठीक इसी तरह 9/11 वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद सितंबर 2001 में सिमी को प्रतिबंधित कर दिया गया. ठीक जैसे पीएफआई को टारगेट किया गया, उससे जुड़े लोगों को कुछ साल पहले से आईएसआईएस और आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तार किया गया, ऐसे ही सिमी पर आरोप लगे और आतंकवाद के नाम पर उसके कार्यकर्ताओं के नाम पर गिरफ्तारी हुई.

दिल्ली दंगे जिसमें उमर खालिद, खालिद सैफी जो जेल में बंद हैं, नताशा नरवाल, देवांगना जो जमानत पर रिहा हैं, ये तो पीएफआई के नहीं थे, तो क्यों जेल ? पीएफआई पर दिल्ली दंगे, हाथरस की घटना, रांची और कानपुर की वारदातों का आरोप है. हाथरस की सच्चाई सब जानते हैं कि दलित बहन के साथ रेप के बाद उसकी लाश रातों-रात जला दी. अब कह दीजिये कि ये भी पीएफआई के इशारे पर हुआ ! कानपुर में जो भी तनाव हुआ वो नूपुर शर्मा के बयान के बाद हुआ, कह दीजिए कि वो भी पीएफआई ने दिलवाया !

साफ है कि पीएफआई पर प्रतिबंध को लेकर ये सब हो रहा है. पिछले दिनों दिल्ली की एक बैठक चर्चा में रही जिसमें विभिन्न मुस्लिम संगठनों के लोग भी शामिल थे.

सीमा आजाद लिखती हैं –

पीएफआई के नाम पर हो रहीं गिरफ्तारियां एक ‘सेक्युलर’ घोषित देश में अल्पसंख्यक समुदाय के संवैधानिक अधिकारों पर हमले की कार्यवाही है. उत्तर प्रदेश से पीएफआई के नाम पर गिरफ्तार किए गए लोग नागरिकता कानून का विरोध करने वाले प्रदर्शनों से जुड़े लोग हैं. अगर पीएफआई एक धार्मिक संगठन है भी तो आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल आदि-आदि क्या है ?

पीएफआई से जुड़ाव के नाम पर मानवाधिकार संगठन NCHRO को भी प्रतिबंधित किए जाने की बात आ रही है. यह सबसे बड़े ‘लोकतांत्रिक’ कहे जाने देश के लिए शर्मनाक है. सभी सेक्युलर और लोकतांत्रिक सोच वाले लोगों को इस सरकारी कार्यवाही के विरोध में बोलना चाहिए.

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ROHIT SHARMA

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