लखीमपुर खीरी जिले में संयुक्त किसान मोर्चा के तीन दिवरीय धरने के बाद भारतीय जनता पार्टी के गालीबाज और हत्यारा नेता एवं केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी, जिसका बेटा 5 किसानों जिसमें एक पत्रकार भी शामिल थे, को अहंकार में भर कर अपने गाड़ी से रौंद डाला था और अभी जेल में बंद है, ने भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत को गाली देते हुए कुत्ता और दो कौड़ी का आदमी बताया तो वहीं पत्रकारों को बेवकूफ करार दिया.
उत्तर प्रदेश के नोएडा सेक्टर 93-बी स्थित ग्रैंड ओमेक्स सोसायटी में एक महिला के साथ अभद्रता करने वाला गालीबाज भाजपा नेता श्रीकांत त्यागी को पुलिस ने अनेक धाराओं के साथ गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया है. श्रीकांत त्यागी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा- 419 (भेष बदलकर धोखाधड़ी), धारा-420 (धोखाधड़ी), धारा-482 (गलत संपत्ति पहचान) के तहत दर्ज किया गया है.
नोएडा के ही जेपी विशटाउन सोसायटी में रहने वाली एक गालीबाज महिला भाव्या राय एक गार्ड को भद्दी-भद्दी गालियां देती दिखाई दे रही है. वहीं इस दौरान वह गार्ड के साथ हाथापाई और धक्का-मुक्की भी करती नजर आ रही है, जबकि वहां मौजूद दूसरे गार्ड उसे ऐसा नहीं करने की बात कहते नजर आ रहे हैं. नोयडा पुलिस ने इस मामले को संज्ञान लेकर थाना नोएडा सेक्टर-126 पुलिस ने भाव्या रॉय के खिलाफ भारतीय दंड सहिता की धारा 153-A, 323, 504, 505(2), 506 के महत मामला दर्ज किया है.
पटना के आईजीआईएमएस के गालीबाज चिकित्सा अधीक्षक मनीष मंडल अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ न केवल अश्लील गालियां ही देता है अपितु अपने साथ लेकर चल रहे पालतु बाऊंसरों के सहयोग से मारपीट भी करता है. न केवल कर्मचारियों, मरीजों और उसके परिजनों के साथ ही बल्कि रिपोर्टिंग करने आये पत्रकारों के साथ भी यह गालीबाज मनीष मंडल गालीगलौज और मारपीट करता है.
इस गालीबाज मनीष मंडल के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं किया जा सका है. क्यों ? क्योंकि यह शातिर गालीबाज अपने खिलाफ सबूतों को ही मिटा देता है. सीसीटीवी रिकार्डिंग को डिलीट करवा देता है और लेकर पत्रकारों द्वारा की गई रिकार्डिंग को गायब करने के लिए उसे पैसे देकर खरीद लेता है या गुंडों द्वारा पिटवा कर डिलीट करवा देता है. यानी इस गालीबाज को कैमरे पर आकर गाली देने का साहस नहीं है, उम्मीद है कि भविष्य में वह यह क्षमता विकसित कर ले. एकाध मामले तो ऐसे भी सामने आये हैं जब यह अपने रसूख का इस्तेमाल कर पत्रकारों को ही जेल भेजवाने का धमकी पुलिस द्वारा दिलवाता है. यानी, पुलिसिया खेमा इससे मिला हुआ है.
उपरोक्त चारों मामले गालीबाज समाज की एक विकृत मानसिकता के लोगों की विकृत तस्वीर है, जिसमें गालीबाजों के इन प्रतिनिधियों ने गालियों को अपना हथियार बनाकर अपना आतंक पैदा करने की कोशिश करता है. आज तक के सिनियर असिस्टेंट एडिटर अमित राय का लिखते हैं कि आखिर हम गाली क्यों देते हैं ? क्या कोई ऐसा शख्स है जो गाली न देता हो ? कहां से आईं गालियां ? गालियों के केंद्र में क्यों औरतें और बेटियां ही होती हैं. क्या गाली देना ह्यूमर है ? या कोई बीमारी ? क्या इसके पीछे केवल संस्कार है ?
अमित राय आगे लिखते हैं – कहा जाता है कि गालियां अमूमन परिवेश से जुड़ी होती हैं. गालियों की तासीर बताती है कि आप कहां से आए हैं. ‘गालीबाज’ कहते हैं कि गालियों का बंद लगाने से शब्द धारदार हो जाते हैं, बात में वजन आ जाता है. भोजपुरी जैसी अनौपचारिक संस्कृतियों में गाली देने और गाली सहने की अपरंपार क्षमता होती है. कई गांवों में तो युवाओं की ऐसी जमात देखी जाती है जिन्हें गाली देना ही नहीं सुनना भी बहुत अच्छा लगता है, मजा आता है. वो टारगेट खोजते हैं. किसी कम अक्ल को चिढ़ाते हैं जो उन्हें गालियों से नवाज सके.
वो कहते हैं कि अगर आपने गालियां सह लीं इसका मतलब आप अहंकार शून्य हैं. दूसरा यह भी कहा जाता है कि गालियां सहने की क्षमता बड़े-बड़ों में नहीं होती. तलवारें खिंच जाती हैं, खून खराबा हो जाता है. ऐसा माना जाता है कि अगर परिवार के लोग गालीबाज हैं तो बच्चा पक्का गालीबाज होगा. समाज से तो वह ग्रहण करेगा ही परिवार की पाठशाला से भी वह सीखेगा.
गालियां समय, स्थान, व्यक्ति पर निर्भर नहीं करतीं. ऐसे-ऐसे गालीबाज होते हैं जिनके मुंह से गाली पहले और शब्द बाद में निकलते हैं. कई लोगों के लिए यह जरूरी नहीं कि वह किसी व्यक्ति को ही गाली दें, मंदिर की सीढ़ियों पर टकराकर भी उनके मुंह से गाली निकल जाती है. वो आसमान, बरखा, बारिश तक को सूत सकते हैं. किसी स्थान को गाली दे सकते हैं, किसी समय को गाली दे सकते हैं.
अमित राय आगे लिखते हैं कि गालियों को फ्रस्ट्रेशन का नतीजा भी माना जाता है. जरुरी नहीं कि आप जिसे गाली दे रहे हों वो सामने मौजूद ही हो, पीठ पीछे उन सभी लोगों को गालियां दी जाती हैं, जिन्हें सामने से देना नामुमकिन होता है. इसमें बिना हानि पहुंचाए दिल का गुबार निकल जाता है, और अगर सामने से देने का अवसर मिल जाए तो कहने ही क्या, लेकिन इसका अंजाम वैसा ही हो सकता है जैसा श्रीकांत त्यागी और भाव्या का हुआ.
आमतौर पर गाली गलौज करने वाले को जाहिल, गंवार माना जाता है, उस कम भरोसेमंद माना जाता है. लेकिन यह रिसर्च का विषय है. बीबीसी में छपी एक खबर के मुताबिक बच्चा 6 साल की उम्र से ही गालियां देना शुरू कर देता है. आगे इसमें ये भी बताया गया है कि व्यक्ति अपना अच्छा खासा वक्त गालियां देने में बर्बाद करता है.
मनोवैज्ञानिक रिचर्ड स्टीफेंस ने गालियों पर अच्छा खासा काम किया है. बीबीसी में छपी उनकी रिपोर्ट के मुताबिक, आम बोलचाल के लिए हम दिमाग के एक हिस्से का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन गालियों के लिए दूसरे हिस्से का, दूसरा हिस्सा पुराना है जो विकास के क्रम में पीछे छूट गया. इसलिए गंवार, मंदबुद्धि बोलने में भले ही परेशानी महसूस करे लेकिन गालियां धाराप्रवाह दे लेता है. आगे वो बताते हैं कि यूरोप में पहले गालियां धर्म को लेकर दी जाती थीं लेकिन रेनेसा यानी पुर्नजागरण के बाद के दौर में यह औरतों पर केंद्रित हो गईं क्योंकि औरत इज्जत की प्रतीक बन गई. एशियाई देशों में पहले ही औरतें और हैसियत पर फोकस था.
प्राचीन काल में महिलाओं और पुरुषों का स्थान बराबर था. संस्कृत, पाली, प्राकृत में कृपण, मूर्ख, दुष्ट जैसे शब्द ही मिलते हैं. कहा जाता है है कि गालियों की शुरुआत ब्रज क्षेत्र में हुई, कन्हैया गोपिकाओं को चिढ़ाते थे और गोपिकाएं उन्हें गालियों से नवाजती थीं. लेकिन इसे गल्प की तरह ही लिया जा सकता है.
दरअसल समाज में महिलाओं की हैसियत धीरे-धीरे घटती गई. धीरे-धीरे वह प्रतिष्ठा का सवाल बन गई, पुरुषों की संपत्ति बन गईं, घर परिवार की सबसे कमजोर नस, दोयम दर्जे की नागरिक और ऐसे में उन पर प्रहार करना सबसे आसान टारगेट हो गया. दो मर्द भी आपस में झगड़ा कर रहे हों तो गाली बहन-बेटी और मां की ही दी जाती है. क्योंकि चोट सबसे ज्यादा यहीं होती है.
कुल मिलाकर गालियां समाज का, व्यक्तित्व का हिस्सा हैं, आपके पूरे वजूद को परिभाषित करने की क्षमता रखती हैं. आप की इमेज जितनी बड़ी होगी गालियों से आप उतने ही दूर होंगे ऐसी मान्यता है लेकिन निर्धारण तो आपके परिवेश और उस परंपरा से होगा जहां आप पले बढ़े हैं.
अमित राय की बातें यहां खत्म हो जाती है. असलियत में गालीबाजों की गालियां उसके कुंठित व्यक्तित्व का परिचायक होता है. ऐसे कुंठित व्यक्ति को मानसिक व शारीरिक इलाज की जरूरत होती है. मसलन, श्रीकांत त्यागी और भाव्या राय को जेल भेजा गया तो वहीं, टेनी के खिलाफ किसानों ने मोर्चा खोल दिया और जैसा कि राकेश टिकैत कहते हैं किसानों की हत्या के जुर्म में एक साल से जेल में उसका बेटा बंद है, इसलिए वह गालियां देकर अपना कुंठा मिटा रहा है.
वहीं, शातिर गालीबाज माफिया सरगना मनीष मंडल के खिलाफ कोई मामला दर्ज.नहीं हो पा रहा है क्योंकि एक तो यह डरपोक कैमरे पर गाली देने.का साहस नहीं जुटा पा रहा है, दूसरा वह गुंडों का गिरोह पाल रहा है. जरूरत है इस गालीबाज को एक्सपोज करने की. इतना ही नहीं, ऐसे बीमार गालीबाजों के खिलाफ एक मुहिम भी चलाने की जरूरत है ताकि उसे समाज से अलग-थलग किया जा सके क्योंकि ये गालीबाज समाज को भी बीमार बनाता है. यह लड़ाई इसलिए भी जरूरी है कि आज देश की सत्ता पर इस गालीबाजों का मुखिया नरेन्द्र मोदी बैठा हुआ है, जो हर दिन देश और समाज को बीमार बना रहा है.
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