रियल एस्टेट के बिजनेस में तीन चीजें मायने रखती है – पहली लोकेशन, दूसरी, लोकेशन, और तीसरी लोकेशन. एशिया की सबसे शानदार लोकेशन आज के दिन पाकिस्तान के नाम हुई थी. एक ऐसा चौराहा, जिससे गुजरना आधी दुनिया की मजबूरी है क्योंकि सेंट्रल एशिया के प्लेन्स और समुद्र के बीच सबसे छोटा रास्ता – पाकिस्तान है. चीन और तिब्बत के बड़े पूर्वी इलाकों के लिए नजदीकी रास्ता – पाकिस्तान है. भारत और अरब दुनिया, यानी आगे यूरोप के बीच पाकिस्तान है.
इस्लामिक देशों के बीच सबसे नया उपजा, यानी उसके एतिहासिक सामाजिक बैगेज से फ्री देश कोई है, तो वह पाकिस्तान है. सूखे रेगिस्तानों से अलग, हरीभरी, नदियों, पहाड़ों, खनिज से भरा देश पाकिस्तान है. एशिया के सबसे खूबसूरत पहाड़, सबसे पुरानी सभ्यता, और बहुरंगी ट्राइबल कल्चर का देश पाकिस्तान है. न बेहद बड़ा, न बेहद छोटा देश, न बड़ी न छोटी पॉपुलेशन, एक परफेक्ट देश पाकिस्तान है.
मगर ठहरिये, परफेक्ट … ?? न, न, न …; भारत के एक विजनरी लीडर ने अपनी जनता से कहा था- ‘धरती, नदी, नाले, पहाड़, लोकेशन, इलाका, सीमाएं, सेनाएं देश नहीं होते. देश है उस पर रहने वाली जनता.’ तो जनता, जनमानस तय करता है कि अपनी लोकेशन, संसाधन, सेना, युवा, बच्चे, महिलाओं और पॉपुलेशन को किस दिशा में लेकर जाना है. उस नेता ने जो धारा रची, भारत विज्ञान, व्यापार और विकास की धारा में गतिमान हुआ.
पाकिस्तान की किस्मत मे वह नेता न था. जो नेता मिलेे, उनमें एक जिद थी. जिस बैगेज से फ्री होकर, एक नए देश को एक नया जन्म मिला था, उस बैगेज को ढोने की जिद, खुद को कठमुल्ला राष्ट्र बनाने की जिद, अपने बच्चों को इंसान की जगह, हथियार बनाने की जिद … जिद की जगह, नजरिया खुला रखा होता, तो हम कैसा पाकिस्तान देखते ? क्या शान्ति और सुविधाओं से युक्त पाकिस्तानी पहाड़ियां, स्विट्जरलैंड से कम होती ? क्या गिलगित, बाल्टिस्तान, नीलम वैली, हुंजा जैसे इलाकों में पूरी दुनिया के टूरिस्ट झूम न पड़ते ?
क्या ग्वादर- कराची जैसे कई बंदरगाह, सेंट्रल एशिया के अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान, ईरान, उज्बेकिस्तान और पूर्वी चीन के आयात निर्यात का बिंदु और नोट गिनने की मशीन न बन जाते ? क्या ये सारे देश, अपने फायदे के लिए पूरे पाकिस्तान में सड़कों, रेलों हवाई अड्डों का जाल न बिछाते ? क्या सेंट्रल एशिया और ईरान के बीच तेल-गैस की पाइपलाइन, आवागमन सरल न होता ? क्या इसकी कीमत उसे न मिलती ?
ओह, उसे भारत से दुश्मनी निबाहनी थी. तो बताईये, मजबूत पाकिस्तान के हाथ भारत की गर्दन न होती ? क्या दुनिया उसे सुरक्षित, शांत, फायदेमन्द बनाए रखने को भारत की मुश्कें न बांध देती ? एक शान्त, कास्मोपोलिटन पाकिस्तान ने कठमुल्लेपन और हिंदुस्तान से नफरत पर नियंत्रण रखा होता, अगर खुद में और आसपास के देशों में आग न लगाई होती तो सत्तर साल में वह एशिया का यूरोप होता. सबसे ताकतवर इस्लामी राष्ट्र और बड़ी वैश्विक ताकत होता. वो एशिया का प्रमुख चौराहा होता, जहां उसकी खानदानी दुकान होती.
नहीं, मुझे पाकिस्तान की चिंता नहीं है, मुझे हिंदुस्तान की चिंता है. हम दुनिया के सामने जो है, वो इसलिए है, क्योकि हम पाकिस्तान नहीं हुए. हमने शांति, खुलेपन, काम धंधों, दोस्ती, मुस्कान को तरजीह दी. हमने बंदूकों, लाठियों और चाकुओं को कभी तरजीह न दी थी. मुठ्ठी भर हरे संतरे कठमुल्ले, जो हमें भड़काते थेे, उन्हें इग्नोर किया. इस ‘इग्नोर’ करने को ‘तुष्टिकरण’ मानकर, अब पूरी उर्जा इसी पर झोंक रहे हैं. कौम खतरे में होने का जो नारा पाकिस्तान दशकों पहले लगाकर ढलान पर फिसला, वह नारा हमने 8 साल पहले अंगीकार किया.
सात साल पहले आपको बताया गया कि सत्तर साल में कुछ नहीं हुआ. आज शायद घटती समृद्धि और बढ़ते पागलपन के बीच अहसास कर सकें कि उन सत्तर साल में क्या क्या हुआ ? कितने सेक्टर्स में हम अग्रिम पंक्ति में थे, कितने सेक्टर्स में फिसल और पिछड़ गए हैं ? सच ये है कि, इन सात सालों में हम पाकिस्तान बनने की यात्रा शुरू कर चुके हैं. पाकिस्तान से लडने की हुनक में पाकिस्तान की सारे कुटैव, अपने जनजीवन में उतार रहे हैं, उससे भी बेहतर कॉपी बन रहे हैं.
इतिहास यही लिखता है कि कोई कौम क्या हो गयी. वह ये नही लिखता की वो कौम क्या हो सकती थी. कौम और देश का मुस्तकबिल तो उस दौर में जी रही पीढ़ी की प्राथमिकतायें तय करती हैं. कभी सोचिये कि हमारी पीढ़ी का इतिहास कैसा लिखा जाएगा. क्या हम लोग ‘हिंदुस्तान का पाकिस्तानीकरण’ करने वाली पीढ़ी के तौर पर याद किये जायेंगे ? सोचिये ! खुद को बदलिए, आसपास लोगों को समझाइए. तुरंत और अभी, यदि आपको भी पाकिस्तान की नहीं हिन्दुओं की, और उनके हिंदुस्तान की चिंता है.
- मनीष सिंह
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