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जैसे को तैसा : बिहार की सत्ता से भाजपा बाहर

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माननीय जनता,
जिस दौर में मोदी-शाह की ED के डर से विपक्ष के विधायक ख़ुद ही कार चलाकर BJP में चले जाते हैं, उस दौर में नीतीश ने BJP को सरकार से कैसे निकाल दिया ? ED के अधिकारियों को निलंबित कर देना चाहिए, मुर्दा हो चुके लोकपाल का भूत खड़ा करना चाहिए.
आपका
रवीश कुमार
जैसे को तैसा : बिहार की सत्ता से भाजपा बाहर
जैसे को तैसा : बिहार की सत्ता से भाजपा बाहर
रविश कुमार

जांच एजेंसियों के सहारे राजनीति करने से पता नहीं चलता कि जनता में नेता कौन है ? ED और आयकर विभाग के डर से गांव से लेकर ज़िले तक के संसाधन वाले लोग भाजपा में चले गए हैं. विरोधी दलों की आर्थिक ताक़त ख़त्म हो गई है. ऐसे में कोई बीजेपी को सरकार से बाहर कर दे, साधारण घटना नहीं है. बीजेपी ज़रूर पलटवार करेगी लेकिन फ़िलहाल सरकार बनाने और गिराने की उसकी सारी चुस्ती धरी की धरी रह गई. नीतीश कुमार के इस्तीफ़ा देने से पहले ही इस्तीफ़ा देकर बीजेपी के मंत्री सरकार से बाहर हो सकते थे, मगर बीजेपी इंतज़ार करती रही कि नीतीश मान जाएंगे और सत्ता का स्वाद मिलता रहेगा.

जब आप ED के सहारे राजनीति करने लगते हैं, तब राजनीतिक फ़ैसले भूल जाते हैं. सहयोगियों को ग़ुलाम समझने लगते हैं. उनके विधायकों को फ़ोन कर पैसे के दम पर तोड़ने के खेल में लग जाते हैं. नीतीश का यह आरोप साधारण नहीं है. आज बीजेपी को इसका खंडन तो करना ही चाहिए था मगर बीजेपी ने इसकी भी चुनौती नहीं दी. ज़ाहिर है बिहार में बीजेपी के हाथ जल गए हैं.

बिहार की राजनीति का मिज़ाज दूसरा है. बिहारी नेताओं को ड्रिल पसंद नहीं है. वे स्वायत्त मिज़ाज के होते हैं, चाहें वे किसी भी दल के नेता हों. यह उनकी अच्छाई भी है और बुराई भी. बिहार के नेताओं को बार-बार टोकेंगे कि यहां मत थूको तो ग़ुस्सा कर वहीं थूक देंगे और इंतज़ार करेंगे कि मना करने वाला क्या करता है ? अतः ED, CBI, IT के पीछे छुप कर राजनीति बंद होनी चाहिए. इनका भय इतना बढ़ गया है कि उसी से छटपटा कर बिहार की राजनीति ने दूसरा रास्ता ले लिया और बीजेपी को ही धक्का दे दिया.

बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल युनाइटेड के पास 43 विधायक हैं, आज नीतीश कुमार ने 74 विधायकों वाली बीजेपी को गठबंधन और सरकार से बाहर कर दिया. उधर, महाराष्ट्र में बीजेपी के 105 विधायक हैं लेकिन उसने 46 विधायकों वाले शिंदे गुट को अपना नेता मान लिया, जिसे अभी पार्टी की मान्यता भी नहीं मिली है और बीजेपी शिंदे के नेतृत्व में सरकार में शामिल हो गई.

बिहार की कहानी सरकार गिरा कर फिर से बनाने की नहीं है बल्कि इस कहानी में सबसे बड़ी कहानी है कि क्या मोदी सरकार के मंत्री फोन कर विधायकों को करोड़ों रुपये की लालच दे रहे थे और जदयू तोड़ रहे थे ? अगर यह बात सच है और जैसा कि नीतीश ने अपने विधायकों को इसकी रिकार्डिंग सुनाई है, तो आज सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या बीजेपी अपने सहयोगी दल की सरकार गिरा रही थी, करोड़ों रुपये का लालच दे रही थी जिससे गुस्सा कर नीतीश ने बीजेपी को ही सरकार से बाहर कर दिया ?

पूरे दिन के इंतज़ार के बाद यह पहली तस्वीर है जब नीतीश कुमार सार्वजनिक रुप से दिखाई दिए, जब उनका काफिला उनके निवास स्थान से चंद कदम दूर राजभवन की तरफ निकला. नीतीश कुमार के साथ तेजस्वी यादव भी साथ में बताए गए. राजभवन और मुख्यमंत्री का निवास करीब है इसलिए आज समर्थकों की काफी गहमागहमी नज़र आ रही थी. इसके पहले जनता दल युनाइटेड की बैठक की कोई तस्वीर मीडिया को जारी नहीं की गई है.

जब नीतीश अपने विधायकों और सांसदों के फोन की रिकार्डिंग सुना रहे थे तो इसकी खबर सूत्रों से बाहर आई बताया कि केंद्र के मंत्री विधायकों को करोड़ों रुपये की पेशगी दे रहे थे और जदयू तोड़ने की बात कर रहे थे. मंत्री की संख्या एक है या दो है, मंत्री कौन है ? नाम क्या है ? इसकी जानकारी लीक नहीं की गई लेकिन नीतीश ने कहा कि अपनी पार्टी को बचाने के लिए वे इस गठबंधन को समाप्त कर रहे हैं. नीतीश का गुस्सा हो या भरोसा हो, इस दौर में जब बीजेपी तमाम खतरनाक जांच एजेंसियों से लैस है और राजभवन पर उसके इशारे पर काम करने के आरोप लगते हैं, नीतीश ने राजभवन जाकर इस्तीफा दे दिया !

बिहार की राजनीति में इज़ इक्वल टू हो गया है. जितना आरोप आप दूसरे पर लगाएंगे, उतना ही आरोप लगाने वाले पर भी लग जाता है. यह दौर मोदी शाह का दौर है. पूरे देश में उनकी राजनीति का डंका बजता है. मान लिया गया है कि दोनों जब चाहें ED, CBI, IT लगाकर कहीं भी सरकार गिरा सकते हैं और बना सकते हैं, के इस दौर में इतनी ताकतवर पार्टी को कोई सरकार से बाहर कर दे, यह कोई साधारण बात नहीं है. बीजेपी चाहें जितना सामान्य दिखने का दावा करे लेकिन मोदी शाह को रिजेक्ट करने का साहस ही दिखा देना बड़ी बात है. यह बात आप कांग्रेस के उन नेताओं से मिलकर पूछ सकते हैं जो डर के मारे पार्टी छोड़ गए और बीजेपी में मंत्री बन गए.

यह वो तस्वीर है जिसे देखकर बीजेपी को अच्छा नहीं लगेगा. नीतीश और तेजस्वी यादव आगे आगे चल रहे हैं, ललन सिंह और राजद के दूसरे नेता इन दोनों के पीछे पीछे चल रहे हैं. इस्तीफा देने के बाद नीतीश कुमार सीधे तेजस्वी के घर गए और राबड़ी देवी से मुलाकात की. नए गठबंधन में राजद बड़ी पार्टी है. नीतीश के इस्तीफा देते ही बिहार मंत्रिमंडल अपने आप बर्खास्त हो गया. नीतीश ने बीजेपी के मंत्रियों को निकाल कर इस्तीफा देने के बजाए, खुद इस्तीफा देकर सरकार खत्म करने का रास्ता चुना. उसके बाद उनके घर पर राजद, लेफ्ट और कांग्रेस के नेताओं के साथ बैठक होने की खबर आती है.

नए गठबंधन की सरकार में डिप्टी सीएम कौन बनेगा और स्पीकर कौन बनेगा यह सवाल उतना बड़ा नहीं है जितना कि केंद्र का वह मंत्री कौन है जो विधायकों को करोड़ों रुपये दे रहा था, इसी सवाल में महाराष्ट्र में सरकार गिराने का जवाब है, इसी सवाल में झारखंड में कांग्रेसी विधायकों को पैसे देकर हेमंत सरकार गिराने का जवाब है, इसलिए यह सवाल बड़ा है.

क्या नीतीश नए सिरे से शपथ के पहले रिकार्डिंग जारी करेंगे, या इसका मनोवैज्ञानिक तौर पर इस्तेमाल करेंगे ताकि सत्ता का हस्तांतरण आराम से हो सके ? लेकिन जब तक रिकार्डिंग की वह आवाज़ सामने नहीं आती, उस केंद्रीय मंत्री का नाम सामने नहीं आएगा, जिसने करोड़ों रुपये की लालच विधायकों को दी है. आम तौर पर नीतीश पर आक्रामक हमला करने वाले गिरिराज सिंह ने भी संयमित प्रतिक्रिया दी और कहा कि वे अकेले कुछ नहीं कर सकते, पटना जा रहे हैं, 10 अगस्त को पटना में बीजेपी की बैठक है.

गठबंधन धर्म कौन निभा रहा था इसका फैसला तो अब रिकार्डिंग के बाहर आने से ही होगा. बीजेपी ने उस चिराग पासवान की पार्टी तोड़ दी जिसके नेता को चिराग हनुमान बताया करते थे. रामविलास पासवान ने नीतीश से पहले मोदी का साथ दिया लेकिन उनके मरने के बाद लोक जनशक्ति पार्टी टूट गई और रामविलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस मोदी सरकार में मंत्री बन गए.

सवाल बीजेपी के भीतर उठेगा कि किसके इशारे पर गठबंधन तोड़ने की स्थिति पैदा की गई ? जो भी मंत्री करोड़ों रुपए देकर विधायकों को खरीद रहा था, वो कौन है उसके पीछे किसका हाथ है ? नीतीश और राजद के बीच करीब होने की खबरें आती रहीं हैं, अफवाह तो इसकी भी उड़ी कि राजद और बीजेपी करीब आ रहे हैं लेकिन इसी बीच नीतीश कुमार तेजस्वी की इफ्तार पार्टी में जाते हैं. इसी बीच नीतीश कुमार राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू को समर्थन देते हैं. इसी बीच जाति की जनगणना का सबसे बड़ा फैसला लेते हैं.

मोदी सरकार जाति की गणना के विरोध में हैं मगर बिहार में बीजेपी नीतीश के इस फैसले का विरोध नहीं कर पाती है. बीजेपी कुर्सी का मोह नहीं छोड़ सकी. तेजस्वी यादव ने लगातार जाति की गणना को लेकर दबाव बनाया और जब नीतीश कुमार ने इसका फैसला किया तो विपक्ष में रहते हुए भी राजनीति की एक बाज़ी तेजस्वी के हाथ में आ गई, बस सत्ता का आना बाकी था. यह वो सिक्का है जिसकी गणना का सवाल देश में पिछड़ों की राजनीति का आधार पूरी तरह बदल देगा. पिछड़ों को लेकर बीजेपी ने जो समीकरण बनाए हैं, उस पर भी असर डालेगा.

आज का दिन नीतीश के आत्मविश्वास का है तो तेजस्वी के राजनीतिक कौशल का भी है. बिहार की राजनीति में नंबर वन तो नीतीश कुमार ही हैं लेकिन पूरी राजनीति को देखें तो तेजस्वी यादव ने किस तरह से नंबर टू से खुद को नंबर वन के बराबर किया है, यह तस्वीर उसी की कहानी कहती है. लंबे समय तक अपने पिता लालू के जेल में रहने के बाद भी तेजस्वी राजनीति के मैदान में टिके रहे, ED, CBI का सामना करते हुए भी टिके रहे.

तेजस्वी चिराग नहीं हैं. चिराग खुद को मोदी का हनुमान कहते रहे, और उनकी पार्टी टूट गई. उनके चाचा मोदी सरकार में मंत्री बन गए. यहां तेजस्वी ने अपने चाचा नीतीश को बीजेपी के हाथों गंवा दिया मगर आज तेजस्वी ने फिर से अपने चाचा को बीजेपी से हासिल कर लिया है. क्या सबसे बड़ी पार्टी राजद को कभी यह पद दोबारा मिलेगा, इस सवाल का जवाब भविष्य में छिपा है. बिहार में महागठबंधन वजूद में आ रहा है. यह वो समीकरण है जिसे बीजेपी हल्के में तो नहीं ले रही होगी, मगर इस बार के महागठबंधन के भीतर भी काफी कुछ नया होने जा रहा है. हमारे सहयोगी मनीष कुमार कहते हैं कि यह सरकार तीन दिन में नहीं बनी है पिछले ढाई महीने में बनी है.

क्या यह गठबंधन बीजेपी की वजह से टूटा है ? इसका जवाब इस सवाल में है कि बीजेपी के किस कैबिनेट मंत्री ने करोड़ों रुपये की पेशकश कर नीतीश के विधायकों को तोड़ने की कोशिश की. बिहार की राजनीति में नैतिकता कहीं खड़ी नहीं है. हर किसी ने नैतिकता को ताक पर रखा है. क्या बीजेपी के हाथ से बाज़ी निकल चुकी है ?

नीतीश कुमार बिहार विधान सभा के स्पीकर को भी लेकर नाराज़ थे. स्पीकर विजय कुमार सिन्हा ने 7 अगस्त को ट्विट किया था कि वो कोविड पोज़िटिव हो गए हैं. वे आइसोलेशन में चले गए लेकिन एक दिन बाद 8 अगस्त को ट्विट करते हैं कि निगेटिव हो गए. क्या स्पीकर की कोई भूमिका होनी है इसलिए निगेटिव पोजिटिव या पोजिटिव निगेटिव होते रहे ? महाराष्ट्र में जब संकट शुरू हुआ तो वहां के राज्यपाल को भी कोविड हो गया था मगर मामला लंबा चल गया तो इस दौरान वे ठीक भी हो गए.

नीतीश कुमार ने जब 2017 में राजद का साथ छोड़ा तब गोदी मीडिया ने इसे नीतीश का मास्टर स्ट्रोक कहा, आज गोदी मीडिया याद दिला रहा है कि नीतीश को तेजस्वी ने पलटू चाचा कहा था ! कहा तो सुशील मोदी ने भी बहुत कुछ था. 2015 में सुशील मोदी ने नीतीश को धोखेबाज कहा था. गिरिराज सिंह कितना कुछ कहा करते थे, इसके बाद भी बीजेपी 2017 में नीतीश का दामन थामती है तो जनता की सेवा के नहीं बल्कि कुर्सी के लिए.

बेशक नीतीश ने कहा था कि कभी राजद के साथ गठबंधन में लौट कर नहीं जाएंगे. 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तो कहा था कि नीतीश के DNA को लेकर सवाल उठाए थे. ये सारे बयान जनता के सामने हैं लेकिन क्या बिहार में बीजेपी अति आत्मविश्वास का शिकार हो गई थी ? हाल ही में बीजेपी के सभी मोर्चाओं का पटना में बैठक हुई थी, उसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा ने कहा था कि आने वाले दिनों में विपक्ष का वजूद मिट जाएगा.

लेकिन इस बैठक के बाद यही बयान जारी हुआ कि बिहार में गठबंधन के नेता नीतीश ही रहेंगे. क्या बीजेपी भी नीतीश को बीच बीच में उकसाती रही, फुसलाती रही ? आज पहला दिन है, आज गठबंधन टूटा है बीजेपी उस हिसाब से आक्रामक नज़र नहीं आई. 2017 में जब बीजेपी ने जदयू का साथ दिया तब क्या बिहार की जनता ने उसे जनादेश दिया था ? आज संजय जायसवाल कह रहे हैं कि जनादेश का अपमान हुआ है !

‘2020 के चुनाव में NDA के तहत चुनाव लड़ा था. मेजोरिटी NDA को दिया. हम 74 सीट जीतने में कामयाब हुए मगर मोदी का वादा पूरा किया. आज जो कुछ भी हुआ वह बिहार की जनता और भाजपा के साथ धोखा है, यह जनादेश का उल्लंघन है जो बिहार की जनता ने दिया था. 2005 की सरकार के खिलाफ जनादेश था. और बिहार की जनता कत्तई बर्दाश्त नहीं करेगी.’

देखिए बात है उस रिकार्डिंग की. क्या किसी केंद्रीय मंत्री ने करोड़ों रुपये का आफर दिया और नीतीश के विधायकों को तोड़ने की कोशिश की थी ? मध्य प्रदेश में जनादेश कांग्रेस को मिला था लेकिन कमलनाथ की सरकार तोड़ कर शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बन गए. महाराष्ट्र में किसी को साफ जनादेश नहीं मिला था, सरकार उद्दव की थी लेकिन शिवसेना को ही तोड़ दिया गया. पिछले चुनाव में गोवा में जनादेश बीजेपी को नहीं मिला था लेकिन किस तरह कांग्रेस को तोड़ कर सरकार बनाई गई. ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं.

बीजेपी को मौका मिला था कि वह राजनीति में नई नैतिकता कायम करे, मगर बीजेपी ने नैतिकताओं की सारी मर्यादाएं ध्वस्त कर दी. ED आज की राजनीति का नेता हो गया है. सभी सवाल कर रहे हैं कि ED के अधिकारी कब पटना जाते हैं और अपना काम शुरू करते हैं, ये ED की छवि हो गई है ?

10 अगस्त बुधवार को नीतीश कुमार आठवीं बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे. इस्तीफा देने के बाद नीतीश राजभवन दोबारा गए. उनके साथ तेजस्वी भी थे. जदयू नेता ललन सिंह थे. हम पार्टी के नेता जीतन राम मांझी थे. अजीत शर्मा कांग्रेस के नेता थे. इसके पहले नीतीश को गठबंधन का नेता चुना गया. सभी राजभवन गए और नई सरकार बनाने का दावा किया. नीतीश को कमज़ोर बताया जा रहा था लेकिन इसके बाद भी राजनीति के केंद्र में बना हुआ है, इसका जवाब वो नहीं दे सकते तो ED, CBI और गोदी मीडिया के दम पर राजनीति करते हैं, इसका जवाब वही देगा जो अपने दम पर राजनीति करता है.

नीतीश और तेजस्वी का एक साथ मार्च करना कई पुराने सवालों को मांज कर नया कर रहा है. क्या नीतीश ने केवल सरकार बनाई है या बचाई है ? नीतीश के इस कदम से लगता है कि वे सत्ता का खेल खेलते हुए वे हमेशा पिछड़ा वर्चस्व की राजनीति के प्रति वफादार रहना चाहते हैं. उनकी यही वफादारी तेजस्वी के करीब बार-बार ले आती है. मोदी शाह ने हिन्दुत्व के बैनर तले पिछड़ावाद को काफी मज़बूत किया है, इसके लिए समाजवादी धारा के नेताओं को तोड़ा गया और आधार को भी मिलाया गया. तो क्या समाजवादी हिन्दुत्व के पिछड़ावाद से अपना पिछड़ावादी हासिल कर पाएंगे ? पटना में ही जे. पी. नड्डा ने कहा था कि बीजेपी विचारधारा के लिए लड़ती है,जीती मरती है मगर वे भूल गए कि लोहिवादियों के भीतर बहुत सारे नेता रहते हैं. लोहिया, जेपी, कर्पूरी, चंद्रशेखर, मुलायम न जाने कितने मगर सबकी विचारधारा एक है. बेशक ये टूट कर बिखरते रहे हैं मगर फिर से ज़िंदा भी हो जाते हैं.

जाति की जनगणना की राजनीति अभी किस तरफ करवट लेगी, कोई नहीं जानता है मगर पिछड़ी जाति के इन समाजवादी नेताओं ने अपनी विचारधारा को बचाने की दिशा में एक कदम बढ़ाया तो है ही. अगर आप लोहियावादियों की बेचैनी को समझना चाहते हैं तो सत्यपाल मलिक की तरफ देखिए. प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें राज्यपाल बनाया मगर सत्यपाल मलिक अपनी विचारधारा के प्रति वफादारी निभा रहे हैं. उनकी ट्रेनिंग बोलने की है. जवानी में सत्यपाल मलिक धुरंधर छात्र नेता थे, बुढ़ापे में भी उनकी जवानी बोल रही है. राज्यपाल होकर भी बोलने की हिम्मत रखते हैं कि मोदी सरकार ED का दुरुपयोग करती है.

बीजेपी के लिए समाजवादियों को खत्म करने का सपना कांग्रेस को मिटा देने के सपने से बड़ा है. बीजेपी चाहे जिस दम पर हिन्दू एकता का दावा करती है, लेकिन इस एकता के नीचे पिछड़ी राजनीति छटपटा रही है. पिछड़े नेता जानते हैं कि वे दूसरे की विचारधारा की नाव में खड़े होकर नेता नहीं हो सकते इसलिए यूपी चुनाव के समय कई पिछड़े नेताओं ने बगावत कर दी. पिछड़े नेताओं का एक जुनून नेता बनने का भी है, जिसे बीजेपी की हिन्दूवादी राजनीति में निखरने का मौका नही मिलता.

पिछड़े नेताओं को आप अनुशासन के नाम पर मशीन नहीं बना सकते, मशीन बनाएंगे तो वे अपनी पार्टी बनाएंगे इसलिए पिछड़े नेताओं के भीतर दुबका हुआ लोहियावाद करवटें बदल रहा है. लोहियावाद के मूल में है वर्चस्व का विरोध करना. जब नेहरू और कांग्रेस का जलवा था तब लोहियावादियों के पास हौसला था. लोहिया के नेतृत्व में समाजवादियों ने उस समय के वर्चस्व को तोड़ दिया था. क्या समाजवादी ख़ेमा फिर से मोदी के वर्चस्व को तोड़ पाएगा ? यूपी में अखिलेश भले हार गए मगर बीजेपी के वोटों का प्रतिशत और सीटों की संख्या दोनों कम कर दी थी.

सियासी लड़ाई में फैसला एक दिन में नहीं होता और हमेशा के लिए नहीं होता है. इन सवालों का जवाब 2024 के चुनाव में मिलेगा. महाराष्ट्र और बिहार में लोकसभा की 88 सीटें हैं. बीजेपी इस बदलाव को कभी हल्के में नहीं लेगी. मूल सवाल वही है कि किस मंत्री ने फोन कर विधायकों को खरीदने का प्रयास किया, करोड़ों रुपये की लालच दी ? ये कौन है ?

जब शिंदे समर्थक विधायक अपने नेता उद्धव ठाकरे को ठुकरा कर इतना शानदार डांस कर रहे थे तब भी यही आरोप लगा था कि इसके पीछे पैसे का खेल है. जांच एजेंसियों का खेल है. आप राजनीति के चक्कर में अपना डांस भूल गए हैं मगर मुझे खुशी हैं कि विधायकों ने डांस करना नहीं छोड़ा है. होटल का पैसा कहां से आए, जांच एजेंसी ने किसे डराया, इन सवालों पर नहीं आएंगे तो डांस ही देखते जाएंगे और बिहार में क्या होने वाला था, महाराष्ट्र में क्या हुआ कभी नहीं समझ पाएंगे.

मोदी राज के सशक्त आठ साल बीत जाने के बाद भी देश के दो बड़े राज्य बिहार और महाराष्ट्र में बीजेपी अभी भी ED, CBI के दम पर आधार तलाश रही है. महाराष्ट्र में वह सरकार के भीतर बाहरी की तरह नज़र आ रही है तो बिहार में सरकार से ही बाहर कर दी गई है.

सरकार गिराते समय उसका भरोसा देखने लायक होता है लेकिन यह भरोसा कितना मज़बूत है, इसी से पता चलता है कि 36 विधायकों के साथ मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के कैबिनेट में कौन-कौन मंत्री बनेगा इसकी सूची बनाने में 41 दिन लग गए. 30 जून को एकनाथ शिंदे ने शपथ ली थी और मंत्रिमंडल का विस्तार आज हुआ है. अभी इसी का फैसला नहीं हुआ है कि असली शिवसेना कौन, सिंबल किसका है, स्पीकर का फैसला सही था या नहीं ?

जानकार बताते हैं कि शिंदे गुट के साथ ऐसे विधायक भी हैं जिन पर ED की नज़र थी, अब ऐसी सारी चर्चाएं समाप्त हो चुकी हैं आज शपथ लेने वालों में संजय राठौड़ का भी नाम है. एक साल पहले बीजेपी संजय राठौड़ पर आरोप लगा रही थी कि पूजा च्वहान को खुदकुशी के लिए मजबूर किया है. बीजेपी नेता किरीट सौमैया जेल भेजने की मांग कर रहे थे, देवेंद्र फड़णवीस मंत्री पद से इस्तीफे की मांग कर रहे थे, संजय राठौड़ ने इस्तीफा भी दे दिया था, अब इनका फड़णवीस ही हाथ मिलाकर स्वागत कर रहे हैं.

भारत में इन दिनों अमृत काल चल रहा है. इस काल में भी भांति भांति का बवाल चल रहा है. बिहार की एक सियासी आदत है, वो यह कि बहुत ज्यादा सीटी बजाने पर परेड करना बिहार के नेताओं को अच्छा नहीं लगता है. ED को सीटी कम बजानी चाहिए. राजनीति राजनेता ही करें तो अच्छा है. आप ब्रेक ले लीजिए.

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