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राक्षस और नृशंसता का प्रतीक हिटलर का अंधविश्वास

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राक्षस और नृशंसता का प्रतीक हिटलर का अंधविश्वास
राक्षस और नृशंसता का प्रतीक हिटलर का अंधविश्वास
जगदीश्वर चतुर्वेदी

हिटलर ने जर्मनी में अपनी सत्ता प्रतिष्ठित करने के लिए अंधविश्वास और दैवी शक्ति की सत्ता के प्रौपेगैंडा का जमकर इस्तेमाल किया. उसका मानना था शैतान को परास्त करने, पाप से मुक्ति और जीवन की समस्याओं से मुक्ति का उपाय है दैवी शक्ति में विश्वास करो. हिटलर ने बारह साल शासन किया लेकिन जनता से वह सबसे अधिक दूर रहा. वह जनता में मिथ बना रहा. उसे मिथ बनाने में उसके प्रचारकों ने मदद की. वह सत्ता में रहते हुए जितना अपील करता था, सत्ता से जाने के बाद वह खलनायक बन गया. उससे आम जनता नफ़रत करने लगी, वह नफ़रत का सबसे बड़ा प्रतीक बन गया. राक्षस और नृशंसता का प्रतीक बन गया. चर्चित किताब ‘दि नाजी ऑकल्ट वार : हिटलर इंपेक्ट विद् दि फोर्सेज ऑफ इविल’ (2013) में मिशेल फिट्जगेरल्ड ने इस पहलू का विस्तार से विश्लेषण किया है.

हिटलर ने अपने कल्ट या नायकत्व के निर्माण के लिए विभिन्न गिरजाघरों पर जमकर लाइट की व्यवस्था कराई. उसकी न्यूरेमबर्ग की 1936 की रैली की रोशनी और चमक-दमक का गिरिजाघरों पर कराई की रोशनी से गहरा संबंध है. हिटलर की रणनीति थी – गिरिजाघरों को सजाओ, जनता में धर्म का प्रचार करो और नायक पदवी पाओ. हिटलर जब आया था तो उसका लक्ष्य था पूंजीपतियों की सेवा करना. सत्ता उसके लिए राजनीति न होकर एक तरह से बड़ा बिज़नेस थी. बड़ी संख्या में बेकारी थी जिसने हिटलर को सत्ता में आने का मौका दिया.

बेकारी और पूंजीवादी राजनीतिक असफलताओं से ध्यान हटाने के लिए हिटलर ने सामूहिक स्व-शासन, राष्ट्र पर गर्व करो, जर्मन समुदाय की अनुभूति में रहो, सामुदायिक भावोन्माद में रहो, स्वयं पर गर्व करो, यह महसूस करो कि तुम महान हिटलर के समर्थक हो, जर्मनी के स्वामी हो. औरतों को आकर्षित करने के लिए उसने सेक्स अपील का दुरुपयोग किया. भाषणकला के ज़रिए जर्मनी की जनता की सामूहिक और राष्ट्रीय भावनाओं का जमकर दोहन किया. वह जनता की कमियों और शक्ति का नाजी प्रचार अभियान में जमकर इस्तेमाल करता था. हिटलर के अंधविश्वासों का व्यापक स्तर पर मनोवैज्ञानिक विशेलेषण मिलता है.

हिटलर ने दूसरा अंध विश्वास यह पैदा किया कि वह राष्ट्रपिता है, संरक्षक है, तारणहार है. वह जो कह रहा है वही भविष्य है. इस अंधविश्वास को पैदा करने के लिए उसने पहले जनता में ‘राष्ट्र के अपमान’ का खूब प्रचार किया. प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी की पराजय और उसके बाद हुए समझौते को हिटलर ने राष्ट्रीय अपमान कहा. जर्मनों के राष्ट्रीय अपमान को दूर करने के लिए अपने को नायक और राष्ट्रपिता के रुप में पेश किया. इसके बहाने उसने जीवन के हरेक क्षेत्र में अविवेकवाद का प्रसार किया और साधारण जनता को अविवेकवाद के नशे में डुबो दिया.

उसने यह भी कहा कि विज्ञान में तरक़्क़ी करके जर्मनी अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा हासिल नहीं कर सकता. उसने पूर्वाग्रहों के दायरे के परे जाकर नस्लीय नफ़रत का जमकर प्रचार किया. अनेक लोग हैं जो हिटलर की स्टालिन-माओ से तुलना करते हैं लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि हिटलर की स्टालिन-माओ से तुलना करना सही नहीं है क्योंकि इन नेताओं ने नस्लीय नफ़रत का अपने देश की जनता में प्रचार नहीं किया. दूसरा यह कि अपने राजनीतिक सत्ता विस्तार के लिए कभी किसी देश पर हमला नहीं किया. तीसरा बड़ा कारण है विज्ञान और विवेकवाद के प्रति अपमानजनक आचरण नहीं किया, जबकि हिटलर तो विज्ञान और विवेकवाद को एक सिरे से अस्वीकार करता था, उनका अपमान करता था.

हिटलर को जर्मनी के राष्ट्र पिता बनाने में मेनीपुलेटेड प्रौपेगैंडा की महत्वपूर्ण भूमिका थी. नरसंहार और युद्ध उसके प्रमुख कार्यक्षेत्र थे. हिटलर का भाग्यवाद और उससे जुड़े भाग्यवाद में गहरा विश्वास था. इसे जर्मनी में ‘हॉरविगेर ग्लेसिकल कॉस्मोगोनी’ कहते हैं. हिटलर के विचारों पर अविवेकवाद की गहरी छाप है. उसका सत्ता में आना और नस्लवाद के प्रति अतिरिक्त आग्रह सबसे ख़तरनाक चीज थी.

भाग्यवाद की पराकाष्ठा यह थी कि गोयबेल्स ने एक ज्योतिषी से जर्मनी की जन्मकुंडली को भी दिखाया था, खासकर जब वह सोवियत संघ से हार रहा था, तब उसने जर्मनी की जन्मकुंडली दिखाई थी. आम तौर पर इतिहासकार इन पक्षों की अवहेलना करते हैं या कम करके आंकते हैं. कुंडली दिखाने और अविवेकवाद का सहारा लेने से जर्मनी की जनता के दुःख दूर होने वाले नहीं हैं. भाग्यवाद और अंधविश्वास से जुड़े कारकों का हिटलर और नाजियों पर गहरा असर था.

जर्मनी में बारह साल के नाजी शासन ने जो मॉडल दिया जिसे अविवेकवादी शासन प्रणाली कहते हैं, इसमें आम लोगों में हिटलर के जादुई शासन की बातें खूब की गईं. जादुई शासन असल में दैवी भावना और अंधविश्वास से प्रेरित अवधारणा है. हिटलर और उनकी शासक मंडली यह मानती थी कि वे जिस तरह शासन कर रहे हैं, उस तरह का शासन अनंतकाल तक जर्मनी में चलेगा और यूरोप में भी चलेगा. इस क्रम में दैवीय शक्तियों के प्रचार प्रसार पर सबसे अधिक ज़ोर दिया गया.

सवाल यह है जर्मनी जैसे देश मे ज़ो विवेकवाद और प्रबोधनयुगीन चेतना से भरा हुआ देश था वहां दैवीय चमत्कार और अंधविश्वासों पर विश्वास की चेतना कैसे आई ? देश ऐसे लोगों के हाथ में कैसे चला गया जो विवेकवाद और प्रबोधनयुगीन मूल्यों को एकदम नहीं मानते थे. ये ही लोग नस्ल की कृत्रिम धारणा में विश्वास करते थे. महामानव में विश्वास करते थे. जर्मनी को शुद्ध करने के लिए नरसंहार में विश्वास करते थे. उनका मानना था घटिया नस्ल भ्रष्टाचार की देन है.

हिटलर का अंधविश्वास से पहली बार परिचय तब हुआ जब वह विएना में रहता था और उसके पास रहने की जगह नहीं था, निराश्रितों के लिए बने शेल्टर होम में उसने शरण ली थी. उसमें ही उसने यह बात सीखी कि अंधविश्वास वर्तमान यथार्थ से पलायन की शिक्षा देते हैं. उसी समय जोजेफ ग्रिनेर नामक व्यक्ति ने हिटलर को अनेक जादू-टोने सिखाए. इनके ज़रिए ही हिटलर ने साधारण लोगों में शक्ति पाने का मंत्र सीखा. यह सीखा कि जादू किस तरह साधारण लोगों को नियंत्रण में लाने में मदद करते हैं. जादू के ज़रिए वर्तमान परिस्थितियों में अति काल्पनिक विजन और विचार बनाया जा सकता है.

यह सब कुछ उसने अपने मित्र जोजेफ ग्रिनेर से सीखा. वहीं पर उसने सम्मोहन और योग भी सीखा. इसके अलावा उन तमाम चीजों को सीखा जो इच्छाशक्ति को मज़बूत बनाते हैं. हिटलर ने ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन किया. वह जन्मपत्री बनाना, अंक फलित ज्योतिष, हस्तलेखन से भविष्य फल कथन, चेहरा और शरीर देखकर फलादेश करना जानता था. इसकी पुष्टि उसके मित्रों ने भी की है. उनमें से एक हैं रेनहोल्ड हनीष, वे ग्रिनेर की तरह ही हिटलर के मित्र थे, उसके घर आते-जाते थे.

सन् 1909 में 20 साल की उम्र में हिटलर की मुलाक़ात एडोल्फ लंज से होती है. ये सज्जन विएना में जादू-टोने वालों का एक सम्प्रदाय चलाते थे. लंज एक न्यूजलेटर ओस्त्रा के नाम से प्रकाशित करते थे. हिटलर इस न्यूजलेटर को नियमित एक तम्बाकू के दुकानदार से मांगकर लाकर पढ़ता था। उनकी लंज से अनेक मुलाक़ातें हुईं. उससे उन्होंने जादू-टोना-मंत्र आदि सीखे, उनकी ट्रेनिंग ली.

लंज के जादू-टोना और न्यूजलेटर ने पहली बार हिटलर के मन में यहूदी विरोधी भावबोध निर्मित किया. यहूदी विरोधी पूर्वाग्रहों का पहली बार निर्माण किया. लंज ने अपना जीवन एक सिस्टीरशियन संयासी के रुप में शुरू किया. बाद में 25 साल की उम्र में उनको सिस्टीरशियन मठ से निष्कासित कर दिया गया. उन पर अंट-शंट विचारों के प्रचार का आरोप भी लगा.

लंज ने मठ से निकलने के बाद सीधे जर्मन राष्ट्रवादी का मुखौटा धारण कर लिया. वह घनघोर यहूदी विरोधी था. वह आए दिन ईसा मसीह पर हमले किया करता था. बाद में उसने अपना मंदिर खोल लिया और वह कैथोलिक चर्च की तरह उपासना आदि करने लगा. लंज ने आर्यन हीरोज़ के नाम से अपना सेंटर बनाया. जर्मनी और हंगरी में आर्यन हीरोज़ के नाम से उसने केन्द्र खोले. उसका मानना था इस पृथ्वी पर आर्य एकमात्र हैं जो भगवान के असली उपासक हैं, उनमें दैवीय ऊर्जा है.

लंज ने लोकतंत्र, पूंजीवाद और भौतिकवाद का घनघोर विरोध किया. उसका मानना था उसके रक्त में आर्यों का रक्त मिला हुआ है. इस सम्मिश्रण के कारण उसका ह्रास हुआ है. उत्थान के लिए शुद्ध आर्य नस्ल का होना जरूरी है. शुद्ध नस्ल का निर्माण शुद्ध रक्त के बिना संभव नहीं है. उसके कल्ट की सदस्यता के नस्लवादी नियम थे. उसका मानना था शुद्ध रक्त वालों के घुंघराले बाल, नीली आंखें और चौड़ा माथा होता है. छोटे हाथ और छोटे पैर होते हैं. लोगों को नस्लीय शुद्धता बनाए रखने के लिए शुद्ध नस्ल की औरतों से शादी करनी चाहिए. औरतों के ज़रिए ही इस दुनिया में पाप आता है. औरतें निकृष्ट होती हैं जैसे पशु निकृष्ट होते हैं.

एडोल्फ लंज को नग्नता को लेकर ऑब्शेसन था. उसने ओस्त्रा न्यूजलेटर के कई अंक नग्नता पर ही निकाले. वह उस स्वर्ग की कल्पना करता था जहां आर्य नंगे नृत्य किया करते थे. वह आर्य औरतों को शुद्ध मानता था. वह अंतर्नस्लीय शादी के ख़िलाफ़ था. यदि पड़ोसी आर्य है तो उससे प्यार कर सकते हो, अन्य नस्ल का है तो प्रेम नहीं कर सकते.

जो इस नियम को न माने उनको भूखा रखकर मार दिया जाय. उससे ज़बरदस्ती काम लिया जाय. चुनकर गर्भाधान किया जाय. नसबंदी की जाय. जबरिया काम लिया जाय. जंगल में छोड़ दिया जाय, यहां तक कि उनकी हत्या की जाय. सन् 1932 में अपने एक प्राइवेट पत्र में लंज ने लिखा – ‘हिटलर उसका एक छात्र है जो हमारे विचारों में निपुण है.’ सन् 1934 में लिखा राष्ट्रीय समाजवाद हमारे चिंतन की पहली अभिव्यक्ति है. लंज से प्रेरणा लेकर ही हिटलर ने फ़ाइनल सोल्युशन नामक नरसंहार की धारणा लागू की थी.

हिटलर के ऊपर एडोल्फ लंज के विचारों का गहरा प्रभाव था. उसके विचारों से प्रभावित होकर ही हिटलर ने छह साल बाद सन् 1913 में म्यूनिख के स्वाविंग क्षेत्र में हिटलर एक बोहेमियन के क्वार्टर में रहता था, साथ ही कलाकारों के साथ घुलने मिलने लगा. वहीं पर हिटलर ने अल्फ्रेड शुलेर और लुडविंग डेरलिथ के विचारों को जाना. उनके विचारों से सहमत होकर ही उसने शुद्ध रक्त की धारणा पर ज़ोर दिया. शुद्ध रक्त माने यहूदी विरोधी.

ये दोनों व्यक्ति उस व्यक्ति से प्रभावित थे जिसने म्यूनिख में कॉस्मिक कंशसनेस के नाम से केन्द्र खोल रखा था. इनका लक्ष्य था विश्व के मौजूदा राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक सिस्टम को उखाड़ फेंका जाय. ये दोनों विवेकवादी चिन्तन की बजाय सहजजात चिन्तन पर ज़ोर देते थे. वे अचेतन मन पर ज़ोर देते थे. वे नेचुरल आदिम समाज की ओर लौटने की बात करते थे. शुलेर ने ही सबसे पहले स्वस्तिक को चिह्न के रुप में चुना था. वह उसका व्यक्तिगत सिम्बल था. वह पवित्रता और शुद्ध रक्त पर ज़ोर देता था.

हिटलर ने विएना में शुलेर के अनेक व्याख्यान सुने थे. बचपन में हिटलर पर स्वस्तिक का असर उतना नहीं था जितना नस्लवादी विचारों का था. तुलनात्मक तौर पर शुलेर के विचारों का बाद में हिटलर पर गहरा असर देखा गया. खासकर नस्लवादी विचारों से हिटलर गहरे प्रभावित था. इन्हीं नस्लवादी विचारों को उसने नाजी पार्टी का अस्त्र बनाया, साथ स्वस्तिक को उसने नाजी पार्टी का चिन्ह बनाया.

शुलेर के साथी लुडविंग डेरलिथ के विचार शुलेर से भी अधिक कट्टर और नस्लवादी थे. वह काला जादू का मास्टर था. वह मानता था कि यदि पृथ्वी को बचाना है तो काले जादू के नरबलि देनी होगी. इन दोनों के विचारों से हिटलर परिचित था और उनको मानता भी था. इन दोनों के विचारों से प्रभावित होकर हिटलर ने एसएस नामक हत्यारे गिरोह का निर्माण किया. इनके विचारों के आधार पर ही शाकाहारवाद, आध्यात्मिकता और व्यवस्था के आधार पर गोल्डन सोसायटी का निर्माण करने का लक्ष्य रखा. इस गोल्डन सोसायटी की अवधारणा पर हिटलर की विश्व की अवधारणा का गहरा असर था.

हिटलर के विचारों पर जिन व्यक्तियों का सन् 1911 में निर्णायक प्रभाव पड़ा वे हैं म्यूनिख निवासी गोटफ्रीड फ़ेडर, डाइड्रिच इकर्ट और अल्फ्रेड रोजेनबर्ग. इन तीनों के विचारों ने हिटलर को निर्णायक तौर पर प्रभावित किया. ये तीनों जादू-टोना के मास्टर थे  इनके प्रभाव के कारण ही जर्मनी में निर्णायक परिवर्तन आए. 12 सितम्बर 1911 को म्यूनिख में जर्मन वर्कर्स पार्टी की एक गोष्ठी में हिटलर जब सुन रहे थे, उसमें मुख्य वक्ता था गोटफ्रीट फेडर, वे पूंजीवाद और उसकी बुराइयों पर बोल रहे थे. उस गोष्ठी में 54 पार्टी सदस्य श्रोता थे. हिटलर यह भाषण सुन रहे थे और प्रभावित थे. उसी गोष्ठी में श्रोताओं के सवाल भी उठे जिनमें यह सुझाव दिया गया कि बावेरिया राज्य को जर्मनी से अलग कर दिया जाय और जर्मनी को राजवंश को सौंप दिया जाय.

हिटलर के आध्यात्मिक गुरु के रुप में डिट्रिच इकर्ट को जाना जाता है। इकर्ट का मानना था सही नेता के अभाव में जर्मन वर्कर्स पार्टी आंदोलन खड़ा नहीं कर सकती. सही नेता के लक्षण उनको हिटलर में नज़र आए. सन् 1911 के पहले इकर्ट ने कहा कि हमें ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत है जो मशीनगन की आवाज़ के सामने सीना तानकर खड़ा रह सके. बेहतर आदमी वह है जो यह जानता हो कि उसे अपने काम के बारे में कैसे बोलना है.

इकर्ट का मानना था कि हमें ऐसा नेता चाहिए जो महान जर्मन राष्ट्र को सारी दुनिया में शक्तिशाली राष्ट्र के रुप में प्रतिष्ठित करे. उसने जब पहलीबार भूतपूर्व ऑस्ट्रियाई सैनिक हिटलर को देखा तो उसमें जर्मनी का मसीहा नज़र आया, जिसका जर्मनी की जनता लंबे समय से इंतज़ार कर रही थी. हिटलर की भाषण कला पर सब मुग्ध थे. इकर्ट का मानना था कि हिटलर को जर्मनी को बचाने वाले भावी नेता के रुप में पेश किया जाना चाहिए. इकर्ट ने हिटलर को बेहतर ढंग से शिक्षित किया. उसे जादू-टोने के विचारों की जमकर दीक्षा दी.

हिटलर के तीन विचार स्रोत हैं – 1. थुलि ऑर्डर 2. अर्मानिन ऑर्डर, और 3. व्रिल सोसायटी. इन तीन के ज़रिए हिटलर ने जादू-टोना आदि सीखे. इससे एकाग्रता, सत्ता की परिकल्पना और प्रत्यक्ष प्रभावित करने की कला सीखी. इकर्ट ने कहा हिटलर गुप्त महाशक्ति के संपर्क में है, यह हवा में उड़कर तिब्बत से आई है और हिटलर के अंदर प्रवेश कर गई है. इकर्ट ने कहा कि हिटलर उस महाशक्ति के प्रतिनिधि के रुप में जर्मनी में काम करेगा.

कुर्ट लुडिस्के एक ज़माने में हिटलर के करीबी मित्र थे. उनका मानना है कि इकर्ट जीनियस है. वह हिटलर के आध्यात्मिक गुरू हैं और वे नाजी मूवमेंट के ग्रांडफादर (बाबा) हैं. इकर्ट ने जोसेनबर्ग से कहा कि हमें हिटलर पर विश्वास करना चाहिए. उसे नेता बनाना चाहिए. उसके ऊपर सिर्फ़ सितारे ही होंगे. फिदेर की तरह इकर्ट भी पूंजीवाद का घनघोर विरोधी था. फिदेर का मानना था ज़रूरी नहीं है कि पूंजीवाद विरोध और यहूदी विरोधी नजरिया एक ही साथ चले. लेकिन इकर्ट का मानना था पूंजीवाद विरोध और यहूदी विरोध एक दूसरे से जुड़े हैं. यहूदी जनक हैं पूंजीवाद के. हिटलर ने अपने यहूदी विरोधी लेखन में आर्यों के श्रेष्ठत्व का प्रतिपादन करते हुए जादू-टोने की हिमायत की.

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