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यह कैसी देशभक्ति है जिसे जगाने के लिए किसी को बार-बार आगे आना पड़ता है ?

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भाजपा-आरएसएस की ऐसी देशभक्ति पर वर्षों पहले सैमुअल जानसन की सटीक टिप्पणी मौजूद है कि –  देशभक्ति, लफंगों की आखिरी शरणस्थली होती है.’ लगभग सवा दो सौ साल पहले की गई सैमुअल जानसन की यह टिप्पणी आज के भारत में भाजपा-आरएसएस जैसे लम्पट सांप्रदायिक संगठनों और भगवा ‘देशभक्तों’ पर बिलकुल सटीक बैठती है. इसकी देशभक्ति सिर्फ आड़ है और इस आड़ में यह तमाम देशविरोधी और देशद्रोही गतिविधियों को अमलीजामा पहनाती है. इनकी ‘देशभक्ति’ की हकीकत देश के औद्योगिक घरानों खासकर अंबादानी के लाखों करोड़ रुपये माफ कर देश की बदहाल जनता के खाने-पहनने की जरूरतमंद चीजों पर बेतहाशा टैक्स लाद देने में झलकता है.

यही कारण है कि देश को लूटने खसोटने से लेकर बेचने तक से उपजे जनआक्रोश को शांत करने के लिए भाजपा-आरएसएस को बार-बार देशभक्ति का नाटक करना पड़ता है. देश के हजारों करोड़ रुपये जरुरतमंद लोगों के शिक्षा, चिकित्सा जैसी बुनियादी जरुरतों पर खर्च करने के बजाय बड़ी बड़ी मूर्तियां, मंदर, सेन्ट्रल विष्ठा, नकली रोड, नौटंकियों के लिए खुद पर हजारों करोड़ रुपये खर्च करना वगैरह जैसी हरकतें करते रहते हैं. यहां तक की जनता के आक्रोश को दबाने के लिए जनता के बीच अजीब-अजीब कसमें खिलाई जा रही है, ताकि लोग विरोध न करे और इसके आड़ में जनया के सवालों को उठाने वाले कप्पन सरीखे लोगों को मौत तक पहुंचाया जा सके. रविश कुमार लिखते हैं –

यह कैसी देशभक्ति है जिसे जगाने के लिए किसी को बार-बार आगे आना पड़ता है ?
यह कैसी देशभक्ति है जिसे जगाने के लिए कप्पन जैसे पत्रकारों को जेल में बंद कर किसी को बार-बार आगे आना पड़ता है ?
रविश कुमार

अगर आप किसी ऐसे मुद्दे को लेकर परेशान है, जिससे समाज का हित जुड़ा हो, चाहते हैं कि मीडिया में चर्चा हो, तो आप 15 अगस्त तक थिकिंग ब्रेक ले लीजिए अर्थात कुछ भी न सोचें. कोई फायदा नहीं है. 15 अगस्त तक तिरंगा को लेकर ही बहस होती रहेगी. तिरंगा के आस-पास भांति-भांति के मुद्दे खड़े होंगे. अखबारों में छपने लगा है कि मोर्च और मार्च निकलने लगे हैं ताकि आपके भीतर देशभक्ति की भावना जगाई जा सके. मेरी अपील है कि आप देशभक्ति की भावना खुद से जगा लें, जैसे आप खुद से खाते हैं, खुद से नहाते हैं, इसी तरह से आप खुद से देशभक्ति की भावना क्यों नहीं जगा सकते. ऐसा क्यों है कि हर दूसरा आ जाता है बताने कि देशभक्ति की भावना नहीं है. कब तक आपको जगाने का काम दूसरे किया करेंगे. इसके लिए बहुत ज़रूरी है कि भारत में एक विशालकाय घंटा लगाया जाए.

जगह-जगह यह घंटा लगे, घंटा विशालकाय और भीमकाय होना चाहिए. पर्वतों से ऊंचा होना चाहिए ताकि विमान की खिड़की के बराबर दिख जाए और उड़ते उड़ते भी देशभक्ति जागती रहे. हर घंटे का यह घंटा पूरे देश में बजे और देशभक्ति की भावना को सोने न दे. क्या क्या नहीं किया गया कि देशभक्ति जागती रहे. पहले 100 फीट ऊंचा तिरंगा फहराया गया, फिर 150 हुआ और 200 और 250 फीट के बीच प्रतियोगिता होने लगी है. इसका मतलब है कि आपके भीतर की देशभक्ति इतनी आसानी से नहीं जागती है.

दिल्ली सरकार ने एक शहर के भीतर 100 करोड़ के बजट से 500 जगहों पर राष्ट्रीय झंडा लगाने का बजट रखा था. ज़्यादातर जगहों पर झंडा लगाने का काम पूरा हो चुका है. इनकी ऊंचाई 115 फीट रखी गई है. एक शहर जो तिरंगा लगाने पर 100 करोड़ रुपया खर्च कर चुका हो, इसके बाद भी इस शहर में घर-घर तिरंगा अभियान चल रहा है. इसका मतलब है कि लोगों में अभी तक देशभक्ति नहीं जागी है इसलिए अब घंटा लगाने की ज़रूरत है ताकि हर घंटे यह घंटा देशभक्ति की भावना को जगाता रहे. सॉरी, मैं आपको डांट रहा हूं लेकिन मेरा क्वेश्चन वाजिब है कि आप देशभक्ति की भावना को सोने ही क्यों देते हैं कि कोई भी जगाने आ जाता है ?

सोचिए कि जब हम देश को इतना प्यार करते हैं तो क्यों किसी को बार-बार देशभक्ति जगाने के लिए आगे आना पड़ता है ? हमने सुना है और पाया भी है कि प्यार में तो रातों की नींद उड़ जाती है, लेकिन आपका इस देश से यह कैसा प्यार है कि देशभक्ति सो जाती है ? मेरी आप जनता से बहुत शिकायत है. आपके भीतर अगर देशभक्ति जागती रहती तो आज जगह जगह तिरंगा लगाने में सरकारों को करोड़ों रुपये खर्च नहीं करने पड़ते. अच्छी बात है कि देश के इतने सांसद मोटरसाइकिल पर बैठकर आपके भीतर देशभक्ति जगाने निकले हैं, वो भी उस दिल्ली में जहां 300 से अधिक तिरंगा झंडा लगाया गया है. इसका मतलब है कि दिल्ली में लोगों के भीतर देशभक्ति की भावना जाग कर फिर सो गई तभी तो इतनी मेहनत करनी पड़ रही है.

एक्सप्रेस ने लिखा है कि दिल्ली से बीजेपी के सांसद मनोज तिवारी बिना हेल्मेट के चले आए, किसी में प्रदूषण का सर्टिफिकेट नहीं था. तो दिल्ली पुलिस ने सासंद मनोज तिवारी का 41,000 हज़ार का चालान बना दिया. मुझे यह दृश्य कविता की तरह नज़र आ रहा है. मन में ख्याल फूट रहे हैं कि कहीं इन सांसदों में भी देशभक्ति खूब जाग गई तो सत्ता और राजनीति के कौन कौन से सच बाहर आ जाएंगे, कितने झूठ का पर्दाफाश हो जाएगा, मौका सही है तो मेरा सवाल भी कम सही नहीं है.

पूछ लेता हूं कि पार्टी को हज़ारों करोड़ का चंदा कौन दे रहा है ? इलेक्टोरल बान्ड में यह जानकारी गुप्त क्यों रखी गई है ? क्या इस प्रश्न का उत्तर देने की देशभक्ति सांसदों में जागृत हो गई है ? अखबारों में ऐसे कई अभियानों की खबरें छपने लगी हैं. ‘घर-घर तिरंगा’ का एक मकसद देशभक्ति जगाना भी बताया जा रहा है. कितनी खुशी की बात है कि हमारे देश में देशभक्ति जगाना भी एक काम है और इस काम को लोग ईमानदारी से करते हैं. हमारे सांसद कितनी मेहनत करते हैं तभी तो सरकार ने सांसदों और पूर्व सांसदों की रेल यात्रा से सब्सिडी नहीं हटाई और न ही कोई सीमा तय की है, जबकि वरिष्ठ नागरिकों को रेट टिकटों पर मिलने वाली सब्सिडी बंद हो गई है. देशभक्ति जागने के बाद सांसदों को पेंशन और सब्सिडी बंद करने की भी मांग करनी चाहिए. मुझे विश्वास है कि वे करेंगे, बस देशभक्ति जाग जाए !

उम्मीद है घर घर तिरंगा अभियान से देशभक्ति काफी जागने लगी होगी. मध्य प्रदेश के पंचायत सदस्यों और पार्षदों में अगर जागी होती तो वे लापता न होते. खरीद लिए जाने या मिला लिए जाने के भय से यहां वहां छिपे न होते. बीजेपी और कांग्रेस के पार्षद अंडर ग्राउंड हो गए हैं. इन सभी के हाथ में एक एक तिरंगा दिया जाए ताकि ये सच सच बताएं कि कौन कितना पैसा दे रहा है ? पार्षदों को लेकर भी रिज़ार्ट पोलिटिक्स शुरू हो गया है.

मोदी सरकार ने अलग-अलग समय में जगाने वाले कई अभियान लांच किए हैं. कई प्रकार के शपथ लेने के भी अभियान हैं. इस साल घर-घऱ तिरंगा अभियान की बात हो रही है, इसी तरह पिछले साल राष्ट्रगान गाने का अभियान चला. जिस तरह से हर घर तिरंगा के लिए अलग वेबसाइट बनी है, उसी तरह राष्ट्रगान के लिए अलग से वेबसाइट बनी है. अमृत महोत्सव के दौरान जितने भी प्रचार वीडियो बने हैं, किसी को सारा देखकर अध्ययन करना चाहिए कि उनमें 75 साल की बड़ी उपलब्धियों को कैसे याद किया गया है ? याद भी किया गया है या नहीं ? क्या छोड़ा गया है, क्या जोड़ा गया है, इसका अध्ययन होना चाहिए. यह समय 75 साल के एक एक मील के पत्थरों को याद करने का था लेकिन सारा ज़ोर शपथ और जागृति अभियान पर डाल दिया गया. पिछले साल इसी वक्त संस्कृति मंत्रालय ने लोगों से अपील की कि राष्ट्रगान गाकर अपना वीडियो अपलोड करेंगे.

एक प्रचार वीडियो भी बनाया था. इसमें पोलियो उन्मूलन और मंगल मिशन तो है, मगर क्या इसकी जगह संविधान का अंगीकार करना, पहली बार चुनाव कराना, आईआईटी की स्थापना से लेकर इसरो की स्थापना, चंद्रयान जैसे मील के पत्थर नहीं हो सकते थे ? यह समय इसका हिसाब करने का समय नहीं है, मगर ध्यान में रख सकते हैं. पिछले साल राष्ट्रगान अभियान काफी सफल रहा था, इसकी वेबसाइट पर ही ढाई करोड़ यूज़र की संख्या दिख रही है. इसके बाद आम लोगों ने राष्ट्रगान गाया, उसका वीडियो अपलोड किया.

इस अभियान का भी मकसद था कि आपमें एकता का भाव पैदा हो, गर्व का भाव पैदा हो. मोदी सरकार के दौरान कई प्रकार के ऐसे जन अभियान चले हैं. आज़ादी के अमृत महोत्सव के दौरान जो अभियान चले हैं, उनका जब इतिहासकार पाठ करेंगे तो हांफने लग जाएंगे. एक अभियान तो यह भी था कि आप व्हाट्स नंबर पर क्लिक करें, बताए गए पते पर वीडियो रिकार्ड कर. बताया गया था कि आपका संदेश दिल्ली के कनाट प्लेस के सेंट्रल पार्क के स्क्रिन पर फ्लैश करेगा. इस प्रचार वीडियो में लिखा है कि कोई भी ऐसा दिन न हो, जो समय की स्मृति से आपको मिटा दे. देश के लिए बलिदान देने वालों को याद करने के लिए यह अभियान दिल्ली के कनाट प्लेस में चला है. किसने देखा किसने नहीं देखा, हम कैसे कह सकते हैं. जो डेटा है उसके अनुसार आज़ादी के नायकों के प्रति 49 लाख श्रद्धांजलियां अर्पित की गई थीं.

क्या आपको कुछ अजीब नहीं लगता कि समय समय पर इतने सारे जागृति अभियान चलते हैं. इनका वाकई आपके ऊपर कोई नैतिक और मनोवैज्ञानिक असर होता है ? कितनी बार देशभक्ति की भावना को इस तरह अभियानों से जगाया जाए, क्या ये अभियान कुछ ज़्यादा नहीं हो रहे ? ऐसा लगता है कि जनता नर्सरी कक्षा में है, उसे नहाने, धोने, खाने-पीने से लेकर सोने-जागने का तरीका सिखाया जा रहा है. 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो जागृति पर बहुत ज़ोर दिया जाने लगा. सरकार ने कई प्रकार के शपथ अभियान चलाए हैं.

विद्या कसम, हमने इस पेज पर शपथ अभियानों की गिनती की तो उनकी संख्या 60 हो चुकी है. शपथ के दो अभियान राज्यों के भी हैं, बाकी 58 शपथ अभियान मोदी सरकार के हैं. इनमें से 23 शपथ अभियान शुरू होकर बंद हो चुके हैं और 35 शपथ अभियान चल रहे हैं. लोग 35 मामलों में कसमें खा रहे हैं. इन दिनों भारत के लोगों को जो कसमें खिलाई जा रही हैं, उनके कुछ नाम दे रहा हूं ताकि आप प्राइम टाइम देखते देखते कुछ कसमें खा सकें. एक शपथ का नाम है – मुझमें हैं गांधी, Gandhi in Me. इसके लिए आपको मोबाइल फोन का नंबर देना होगा, ओटीपी आएगा तब जाकर ‘आप मुझमें हैं गांधी’ का शपथ पत्र प्राप्त कर सकेंगे.

2019 में यह शपथ अभियान शुरू हुआ था. इसके तहत एक प्रमाण पत्र मिलता था कि मुझमें गांधी हैं और मैं प्रतिज्ञा लेता हूं कि मैं गांधी की तरह जीवन के हर क्षेत्र में सत्य और ईमानदारी बरतूंगा. बापू की आज्ञा का पालन करूंगा. 60,584 नागरिकों ने शपथ ली है कि उनके भीतर गांधी हैं. क्या यह शानदार बात नहीं है कि आज इस देश में यानी todays india, 60,584 लोग मानते हैं कि मुझमें हैं गांधी !

काश इन साठ हज़ार लोगों से हम मिलकर पूछ पाते उनमें इस वक्त गांधी हैं या अब नहीं हैं ? क्या ये 60,000 लोग गांधी की तरह सत्य का आचरण कर रहे हैं. इन सभी के हाथ में तिरंगा देकर 15 अगस्त को इनकी रैली निकालनी जानी चाहिए. सरकार के पास इनका फोन नंबर तो आ ही गया है, सबको फोन कर लाल किला बुलवाना चाहिए. शपथ पत्र के पेज पर भारत के 1 करोड़ 29 लोगों ने भांति भांति की शपथ ली है. पुरुष काफी आगे हैं. 81 लाख पुरुष हैं मगर महिलाएं केवल 47 लाख है। इससे अंदाज़ा लगता है कि हमेशा की तरह कसम खाकर तोड़ देने में पुरुषों का ही प्रतिशत ज़्यादा निकलेगा. महिलाओं का कम रहेगा. 60 प्रकार की कसमें यह देश खा चुका है. इनदिनों एक और कसम खा रहा है – I support agnipath !

इसके पेज में जाकर देखा तो दिल टूट गया. केवल 8288 लोगों ने कसम खाई है कि वे अग्निवीर का समर्थन करते हैं जबकि लाखों नौजवान तो अग्निवीर बनने के लिए फार्म भर चुके हैं. भारत के युवाओ ने दिखा दिया है कि अगर उन्हें चार साल की नौकरी मिले और उसके बाद निकाल देने का विकल्प मिले तो उसका स्वागत करेंगे. यह एक बहुत बड़ा बदलाव है जो हो चुका है. जल्दी ही युवा यह भी शपथ लेंगे कि वे नौकरी ही नहीं करेंगे. नौ सेना के तीन हज़ार पदों के लिए अग्निवीर योजना में करीब साढ़े नौ लाख फार्म आए हैं, मगर यहां 8000 लोगों ने ही अग्निवीर को सपोर्ट किया है.

प्राइम टाइम के दर्शकों एंड देशवासियों, हर शपथ लाजवाब है मगर दहेज विरोधी शपथ को बहुत समर्थन नहीं मिला है. घर-घर तिरंगा अभियान से पहले हर घर शादी में जाकर दहेज विरोधी शपथ दिलानी चाहिए और वहां जो सामान रखा हो उसे लेकर सरकारी ख़ज़ाने में जमा कर देना चाहिए. मुझे यकीन है नोटबंदी की तरह जनता इसका भी स्वागत करेगी. इस समय जनता जिस बौद्धिक स्तर पर है, किसी भी कालखंड में इस स्तर पर लोक मानस नहीं रहा है.

बताइये ग्राफिक्स डिज़ाइनर ने कितनी मेहनत की है कि युवा दहेज़ न लेने की शपथ उठाएं, मगर इस देश के युवाओं को क्या हो गया है ? केवल 73,944 युवाओं ने ही शपथ ली है, इसमें से 35 प्रतिशत महिलाएं हैं. पुरुष 62 प्रतिशत है मगर सैंपल बहुत छोटा है. 73 हज़ार शादियां तो सीज़न में एक शहर में हो जाती हैं.

हम 60 शपथों को न तो यहां गिन सकते हैं और न दिखा सकते हैं. 60 शपथों को गिनने में ही सीना फूल जाएगा. सूर्य नमस्कार के लिए भी शपथ की व्यवस्था कर दी गई थी. यह भी कसम दिलाई गई कि अगस्त 2022 तक देश के 15 स्थानों का भ्रमण करना है. करीब ढाई लाख लोगों ने शपथ ली है. क्या वाकई सभी ने 15 स्थानों की यात्रा पूरी की है ? ये कौन लोग हैं, जो सरकारी शपथ उठाकर भारत घूमने निकल गए ? क्या आपको इनसे मिलने का मन नहीं करता ?

इसी तरह एक और शपथ है, जो काफी लोकप्रिय नज़र आता है, संविधान की प्रस्तावना की शपथ. 2021 में संविधान दिवस के मौके पर यह शपथ लांच हुई थी. मायगव पेज के अनुसार 4 लाख 71 हज़ार, 579 लोगों ने शपथ ली है कि वे संविधान की प्रस्तावना का पाठ करेंगे. प्रस्तावना का पाठ करने वालों में 11 प्रतिशत यूपी से हैं, 10 प्रतिशत महाराष्ट्र से और 10 प्रतिशत दिल्ली से है.

हम आपको याद दिला दें कि 2019 के दिसंबर में जब नागरिकता कानून के विरोध में आंदोलन चल रहा था तब शाहीन बाग से लेकर हर जगह संविधान की प्रस्तावना का पाठ हो रहा था. क्या ऐसा हो सकता है कि उस समय प्रस्तावना पाठ की लोकप्रियता को देखते हुए सरकार ने शपथ पत्र लांच किया हो. इस अभियान को सरकार ने घर-घर तिरंगा की तरह क्यों नहीं फैलाया ? सांसदों ने इसके लिए रैली क्यों नहीं निकाली ? 2020 के जनवरी में दिल्ली के स्टीफेंस कालेज की छात्राओं और छात्रों ने भी संविधान की प्रस्तावना का पाठ कर पुलिस के दमन का विरोध किया था.

जब जनता प्रस्तावना पढ़ती है और उसका इस्तेमाल प्रतिरोध के नैतिक बल के रूप में करती है, तब क्या सरकार उसे अपना अभियान मानेगी ? नागरिकता कानून के विरोध के आंदोलन का किस कदर दमन हुआ, गोली मारने के नारे मंत्री लगा रहे थे इसलिए आग्रह है कि देशभक्ति को जगाए रखिए. अगर आप अपनी तरफ से मेहनत करते तो सरकार को 60 प्रकार की कसमें नहीं खिलानी पड़तीं. बार बार देशभक्ति का अभियान नहीं जगाना पड़ता. मेरा सवाल है कि ऐसे अभियानों से क्या सभी जागते हैं, तो लखनऊ में पोस्टर लगाने वाले सुरेश प्रताप सिंह और मनोज श्रीवास्तव क्यों नहीं जाग रहे हैं ?

इन्होंने पोस्टर लगाया है कि 9 अगस्त को जंतर मंतर पर हिन्दू राष्ट्र के लिए भगवा क्रांति करेंगे. भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे. इनके पोस्टर पर हिन्दू राष्ट्र का जो झंडा है वो तो तिरंगा से अलग है. मेरा सवाल है कि अगर इनकी क्रांति 15 अगस्त से पहले हो गई, भारत हिन्दू राष्ट्र बन गया, तब घर घर तिरंगा अभियान का क्या होगा ? इन्हीं प्रश्नों को लेकर रवीश रंजन ने मनोज श्रीवास्तव से सवाल किया. मनोज श्रीवास्तव के इस पोस्टर पर लिखा है कि ‘ये पैसा बांट कर लोगों की मदद करते हैं.’ कहां से पैसा लाते हैं या लाएंगे पता नहीं.

इनके पेज से पता चलता है कि भारतीय केसरिया वाहिनी के 15000 सदस्य हैं. अब अगर 15000 सदस्य हिन्दू राष्ट्र का झंडा फहराने लगे, तिरंगा न फहराएं तो घर घऱ तिरंगा अभियान शत प्रतिशत सफल नहीं हो पाएगा. इनके सोशल मीडिया पर एक तस्वीर भी है, जिसमें वे संघ प्रमुख मोहन भागवत के पीछे खड़े हैं.मैं फोटो को गंभीरता से नहीं लेता, पता नहीं चलता कौन किसके साथ फोटो खिंचा ले लेकिन अगर इनका संबंध आरएसएस से है तो खुद ही बता देंगे.

देश जहां जा रहा है वहां जाएगा लेकिन आप कहां जा रहे हैं, ये पता रखा कीजिए. आज़ादी के अमृत महोत्सव के मौके पर हिन्दू राष्ट्र बनाने की मांग करने वाले संगठन भी कम नहीं हैं. इसी देश में इन लोगों की देशभक्ति कैसे जगाई जाएगी, सरकार ही बता सकती है. फिलहाल आपको पत्रकार सिद्दीक कप्पन के बारे में याद नहीं होगा. कैसे याद होगा ? जब आप 60 प्रकार की शपथ नहीं याद रख सकते तो पत्रकार सिद्दीक कप्पन को कैसे याद करेंगे ? 669 दिनों से जेल में हैं. 22 महीने से सिद्दीक कप्पन जेल में हैं.

कप्पन केरल के मलाप्पुरम से हैं और बाकी अतिक उर रहमान, मसूद अहम और आलम यूपी के रहने वाले हैं. वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन की केरल ईकाई ने एक पत्र जारी किया था और कहा था कि कप्पन पत्रकार हैं. अपना काम कर रहे थे.22 महीने पहले हाथरस में अनुसूचित जाति की एक महिला के साथ बलात्कार और हत्या की खबर को कवर करने आए थे, तब सिद्दीक कप्पन को गिरफ्तार कर लिया गया.

कप्पन पर आरोप है कि उन्होंने समाज में शत्रुता फैलाने की कोशिश की. सांप्रदायिक सदभाव बिगाड़ने की कोशिश की.कप्पन को विदेशी फंड मिलता था, जिसका इस्तेमाल कथित रुप से देश की अखंडता के खिलाफ कर रहे थे. केरल प्रेस क्लब से लेकर एडिटर्स गिल्ड सबने सिद्दीक कप्पन के लिए आवाज़ उठाई, मगर अनसुनी रह गई. मथुरा कोर्ट ने जब ज़मानत याचिका रद्द कर दी तब सिद्दीक कप्प्पन के वकील इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका लेकर गए. जस्टिस कृष्णा पहन की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की और ज़मानत देने से इंकार कर दिया.

लाइव लॉ नाम की वेबसाइट ने लिखा है कि मथुरा के एडिशनल सेशन जज अनिल कुमार पांडे ने ज़मानत नहीं दी थी और मथुरा कोर्ट ने माना था कि कप्पन PFI के सदस्य हैं. राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल रहे हैं. कोर्ट ने कहा था कि कप्पन ने बताया कि वे हाथरस कवर करने जा रहे थे लेकिन उनके पास जिस संस्थान का पहचान पत्र है उसने 2018 में ही काम करना बंद कर दिया था. यूपी पुलिस की टास्क फोर्स ने कप्पन के खिलाफ पांच हज़ार पन्नों की चार्जशीट तैयार की है लिखा है कि कप्पन ज़िम्मेदार पत्रकार के रुप में नहीं लिखते थे. कप्पन पर शांति भंग करने का एक मामला था जिसमें वे बरी हो गए हैं.

कप्पन की लड़ाई मुश्किल हो गई है. 669 दिन हो गए. एडिटर्स गिल्ड ने पिछले साल 26 अप्रैल के लिए बयान जारी किया था. कप्पन को कोविड हो गया था. उनकी पत्नी का आरोप था कि उन्हें बिस्तर से बांध दिया गया है. वे हिल डुल नहीं सकते, न शौच के लिए जा सकते हैं. एडिटर्स गिल्ड ने लिखा था कि यह हतप्रभ करने वाला है. इस बात से एक देश का ज़मीर हिल जाना चाहिए कि पत्रकार के साथ कैसा बर्ताव हो रहा है ? ज़मीर हिल जाना चाहिए. इस समय देश में देशभक्ति जगाने का अभियान चल रहा है, अभी ज़मीर के हिलने का टाइम नहीं आया है. आप ब्रेक ले लीजिए.

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