हिमांशु कुमार
मान लीजिए मेरे पास अपनी ज़मीन होती या मेरा अपना मकान होता, तो मैं हिम्मत से खड़ा होकर यह कभी नहीं कह सकता था कि ‘मैं सुप्रीम कोर्ट द्वारा मुझ पर लगाया गया जुर्माना नहीं भरुंगा और जेल जाऊंगा.’ सुप्रीम कोर्ट मेरी मर्जी के बिना जबरदस्ती पुलिस भेजकर मेरी जमीन या मकान कुर्क करके अपना पैसा वसूल लेता.
मैंने सारी जिंदगी रिश्तेदारों, दोस्तों के ताने सुने कि तू कैसा इंसान है कि तेरा अपना मकान नहीं है. पिताजी ने गांधी जी के आश्रम से अपना सार्वजनिक जीवन शुरू किया. पिताजी बताते थे कि गांधीजी ने अपनी सारी संपत्ति दान की कस्तूरबा और बच्चों से उस दान पत्र पर हस्ताक्षर करवाए. पिताजी बताते थे कि मैंने तभी निश्चय कर लिया था कि जीवन में यथाशक्ति व्यक्तिगत स्वामित्व का विसर्जन करूंगा.
पिताजी जीवन भर गांव-गांव घूमकर जमींदारों से जमीन दान मांग कर गरीबों के बीच बांटने का काम करते रहे. उत्तर प्रदेश में उन्हें मंत्री पद मिला. 20 लाख एकड़ सरकारी ज़मीन भूमिहीनों में बांटी लेकिन खुद भूमिहीन ही रहे. पिताजी ने अपना कोई मकान नहीं बनाया.
शादी के 20 दिन बाद मैं और मेरी पत्नी ने दिल्ली छोड़कर छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के भीतर एक आदिवासी गांव में पेड़ के नीचे रहना शुरू किया था. हम दोनों ने तभी संकल्प किया था कि हम अपनी कोई जमीन नहीं लेंगे. अपना कोई मकान नहीं बनाएंगे. हमने छत्तीसगढ़ में 18 साल संस्था चलाई. ढाई सौ का स्टाफ था. बड़ा बजट था. जब संस्था छोड़कर निकले तो मेरे पास सिर्फ तीस हजार रुपया था.
2016 में हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक मेरी संस्था को मोदी सरकार ने पूरे भारत में हिट लिस्ट में दूसरे नंबर पर रखा था. लेकिन क्योंकि हमारे द्वारा कोई अनियमितता नहीं बरती गई इसलिए सरकार हमारा आज तक कुछ नहीं बिगाड़ पाई. पूरी दुनिया में मेरे परिवार के पास न कोई जमीन है, न मकान है. जीवन भर किराए के मकान में रहे हैं, आज भी रहते हैं.
हम मानते हैं सारी जमीन समाज की है. इस पर सबका बराबर हक है. लेकिन लोगों ने अपनी जरूरत से ज्यादा जमीनों पर मिल्कियत खड़ी कर ली है और उसकी वजह से करोड़ों लोग बेज़मीन हैं. वे बिना मकान और बिना छत के जीने के लिए मजबूर हैं. मैं मानता हूं दुनिया में समानता लाने की शुरुआत व्यक्तिगत जीवन से ही हो सकती है.
हमने एक ऐसी दुनिया बनाने की कल्पना के साथ अपना जीवन शुरू किया था, जिसमें सब समान होंगे. जिसमें किसी के पास दूसरे से ज्यादा संपत्ति नहीं होगी. कोई भूखा नहीं होगा, कोई भी बेघर, बेकपड़ा, बेज़मीन नहीं होगा.
आज जब इंसाफ की लड़ाई लड़ते-लड़ते हम पर शोषक सत्ता तंत्र ने हमला किया, तब मुझे समझ में आया कि फकीरी का जीवन कितनी बड़ी ताकत का सबब बन सकता है. आज मुझे फ़कीरी की ताकत समझ में आई. फकीर को आप ना खरीद सकते, ना डरा सकते, ना झुका सकते. उसके जिस्म को मिटा सकते हैं लेकिन उसकी मर्जी नहीं खरीद सकते.
यही जीवन गांधी ने जिया और यही संदेश भारत के करोड़ों लोगों के भीतर डाल दिया कि अंग्रेज तुम्हारी जमीन और मकान कुर्क करते हैं तो करने दो, वे तुम्हें पीटते हैं तो पीटने दो, तुम्हें जेल में डालते हैं तो डालने दो, गोली से उड़ाते हैं तो सीना तान कर खड़े हो जाओ लेकिन कह दो कि वे अब तुम्हें गुलाम बनाकर नहीं रख सकते. आज भी सब कुछ कुर्बान कर देने की तैयारी और पूरी निर्भयता ही हमें तानाशाही फासीवाद और आर्थिक गुलामी से मुक्ति दिलाएगा.
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