70 के दशक में ‘नक्सलबाड़ी एक ही रास्ता’ का नारा बुलंद कर हथियारबंद संघर्ष का आह्वान करने वाले चारु मजुमदार समेत 20 हजार बंगाली युवाओं को मौत की नींद सुलाने के बाद भारतीय शासक वर्ग ने सोचा था कि उसने नक्सलबाड़ी को खत्म कर दिया है. लेकिन नक्सलबाड़ी की अनुगूंज ‘नक्सलबाड़ी एक ही रास्ता’ बंगाल से निकलकर समूचे भारत में फैलकर माओवादी आंदोलन का स्वरूप ग्रहणकर भारत सरकार के सीधी चुनौती पेश कर रही है.
जिस वक्त ‘नक्सलबाड़ी एक ही रास्ता’ का नारा बुलंदकर देश के किसानों ने देश में सशस्त्र संघर्ष का रास्ता चुना था, तब देश में आंदोलन के अन्य रास्ते भी थे, मसलन, चुनाव लड़ना, कानूनी प्रक्रिया, शांतिपूर्ण जनान्दोलन बगैरह. परन्तु, आज जब न्यायालय और शांतिपूर्ण आन्दोलन लगातार बेमानी होते जा रहे हैं, शांतिपूर्ण आंदोलन पर माफिया गिरोह का सीधा हमला बकायदा पुलिस संरक्षण में हो रहा है, तब क्या यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि क्या अब हथियारबंद आंदोलन ही एकमात्र विकल्प बच गया है ? शांतिपूर्ण आंदोलन की अब कोई भी जगह इस देश में बच नहीं गया है ?
हम बात कर रहे हैं मौजूदा वक्त में पूर्णतः शांतिपूर्ण आंदोलन के जरिए अपनी मांगों को आईजीआईएमएस के प्रशासनिक अधिकारियों व सत्ता की गलियारों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हजारों आऊटसोर्सिंग कर्मचारियों के शांतिपूर्ण आंदोलन पर माफिया सरगना मनीष मंडल का कायराना हमला और मजदूर नेता अविनाश कुमार समेत आधे दर्जन से अधिक अन्य आऊटसोर्सिंग कर्मचारियों को झूठे मुकदमों में फंसाकर बर्बाद कर देने की घृणास्पद कोशिश.