हिमांशु कुमार
आदिवासियों के साथ भारत को कैसा व्यवहार करना चाहिए ? हम लंबे समय से पूछ रहे हैं. बदले में सरकार आदिवासियों का एक और संहार करती है. यह 2012 का फोटो है जब हम जंतर मंतर पर आदिवासियों के लगातार हो रहे जनसंहार के खिलाफ धरने पर बैठे थे. सवाल पूछते पूछते हमारा जेल जाने का टाइम आ गया लेकिन जवाब नहीं मिला. क्या भारत अपने ही नागरिकों की हत्या करके एक महान राष्ट्र बनेगा ? क्या भारत अपने संविधान को नहीं मानेगा ? क्या भारत की अंतरात्मा कभी नहीं जागेगी ?
पुलिस वाला आत्मरक्षा में किसी को मार दे तो उसे कोई सज़ा नहीं होती. इसी तरह, अगर कोई नागरिक किसी को आत्मरक्षा करते हुए मार दे तो उसे भी सज़ा नहीं होगी. लेकिन कोई नागरिक जब किसी को आत्मरक्षा करते हुए मार डालता है तो इस बात का फैसला अदालत का जज करता है कि यह हत्या आत्मरक्षा के उद्देश्य से हुई थी या कहीं यह इरादतन हत्या तो नहीं थी ? पुलिस को हत्या के हर मामले को अदालत में ले जाना ही पड़ता है. हत्या करने वाले व्यक्ति को अदालत ही निर्दोष घोषित कर सकती है, पुलिस नहीं.
लेकिन इसी कानून के अंतर्गत जब पुलिस किसी नागरिक को जान से मार डालती है तो पुलिस खुद ही जज बन बैठती है. पुलिस हत्या करने वाले अपने पुलिसवाले को आरोपी नहीं बनाती. पुलिस मरने वाले नागरिक को ही आरोपी बना देती है. फिर पुलिस कहती है कि आरोपी तो मर गया इसलिए मामला खतम.
एक बार आंध्र प्रदेश के हाई कोर्ट ने एक फैसला दिया. कोर्ट ने कहा कि जब पुलिस और नागरिक के अधिकार बराबर हैं तो पुलिस वाले द्वारा किसी भी नागरिक की हत्या के मामले में पुलिस खुद ही कैसे जज बन जाती है ? कोर्ट ने फैसला दिया कि अब से पुलिस अगर किसी भी नागरिक को मारेगी तो उसे हत्या का मामला माना जाएगा और उस मामले को पुलिस बंद नहीं कर सकेगी बल्कि उस मामले को अदालत में पेश किया जायेगा. सिर्फ जज ही मुकदमा चलाने के बाद उस मामले को बंद करने का आदेश दे सकेगा.
अब आपको तो पता ही है पुलिस की गोली से सबसे ज़्यादा कौन लोग मरते हैं ? सबसे ज़्यादा मरते हैं अपनी ज़मीन बचाने की कोशिश करने वाले आदिवासी. अपनी झुग्गी झोंपड़ी बचाने की कोशिश करने वाले गरीब. बराबरी की मांग करने वाले दलित और मुसलमान. अपने अधिकार मांगने वाले मजदूर. और क्या आपको पता है कि पुलिस को इन्हें मार डालने का हुकुम देने वाले कौन लोग हैं ? आदेश देने वाले होते हैं अमीर व्यपारी, उद्योगपति और विदेशी कंपनियों के एजेंट.
तो जैसे ही आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट का यह फैसला आया, पूंजीपति हडबड़ा गए कि अब हमारे लिए आदिवासियों, दलितों और मजदूरों पर गोली कौन चलाएगा ? ऐसे तो हमारा मुनाफा कमाना मुश्किल हो जाएगा . हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ़ इन अमीरों का गुलाम एक वकील इस शानदार आदेश को लागू होने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में खड़ा हो गया और सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ़ मुकदमा कर दिया कि माई बाप इससे तो पुलिस का मनोबल गिर जाएगा. और उस फैसले पर आज तक अमल नहीं होने दिया गया.
आप जानना चाहेंगे कि पूंजीपतियों का वो गुलाम वकील कौन था ? उस वकील का नाम अरुण जेटली था. सबसे भयानक बात यह है कि इसे भारत की जनता ने कभी भी चुना ही नहीं. यह शख्स कभी चुनाव ही नहीं जीता, फिर भी विदेशी कंपनियों के कहने से मोदी ने इसे भारत का वित्त मंत्री बना दिया था.
वित्त मंत्री बन कर विदेशी कंपनियों के लिए, भारत के विकास के नाम पर आदिवासियों की ज़मीन छीनो और आदिवासी इसका विरोध करें तो आदिवासियों के खिलाफ़ भारत के सैन्यबलों का इस्तेमाल करो, आदिवासियों की हत्या करो, उनकी महिलाओं से बलात्कार करो और बंदूक के बल पर भारत की संपदा को लूटो और अमीरों और विदेशियों को सौंप दो.
विश्व बैंक और बहुराष्ट्रीय कंपनियां जिसे चाहती हैं वह भारत का वित्त मंत्री बनता है, चाहे वह चुनाव जीते या न जीते. और ऐसे लोग भारत की जनता के मानव अधिकारों के पक्ष में दिए गए फैसलों के खिलाफ काम करते हैं. संविधान को क्यों कुचला जाता है, मानव अधिकारों को क्यों कुचला जाता है, इसे समझना बहुत जरूरी है कि यह सिर्फ पूंजीपतियों के लालच के कारण होता है. यही पूंजीपति नेताओं को रिश्वत देते हैं, जजों को रिश्वत देते हैं, पुलिस अधिकारियों को रिश्वत देते हैं इसलिए पूरा तंत्र इनकी मदद करता है और जनता को मारता है.
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