Home कविताएं उल्टा जमाना

उल्टा जमाना

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ऎसा ज़माना आ गया है उल्टा
कि कोई तुम्हें रास्ता बताए तो
शक करो
वह तुम्हें लूट सकता है सुनसान पाकर
कोई तुम्हें रात में सोने की जगह दे तो सोचो
तुम्हारा ख़ून कर सकता है चुपचाप
और लाश आंगन में गाड़ देगा

दुकानदार यदि पीने को चाय दे
तो समझो कि ठगने की ताक में है
थानेदार कभी हंसते हुए कंधे पर हाथ दे
तो तय है किसी दफ़ा में फंसने वाले हो

क्या करोगे, समय ऎसा है कि
कोई भलाई भी करे तो सोचना पड़ता है
ख़ुश होने की बात नहीं
थोड़ा सोचने का काम है

तुम्हारे गांव तक यह सरकार जो दो हफ़्ते में
पक्की सड़क बनवा रही है
ख़ुश मत हो कि इस पर चलेंगी गाड़ियां
और तुम घंटे-आधे घंटे में शहर पहुंच जाओगे
और खाने के वक़्त तक
वापस घर लौट आओगे

यह भी सोचो कि इसी से होकर
मिनट भर में पहुंचेगी सरकारी फ़ौज
और तुम्हारा गांव राख बन जाएगा.

  • अरुण कमल

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