Home कविताएं उल्टा जमाना

उल्टा जमाना

0 second read
0
0
330

ऎसा ज़माना आ गया है उल्टा
कि कोई तुम्हें रास्ता बताए तो
शक करो
वह तुम्हें लूट सकता है सुनसान पाकर
कोई तुम्हें रात में सोने की जगह दे तो सोचो
तुम्हारा ख़ून कर सकता है चुपचाप
और लाश आंगन में गाड़ देगा

दुकानदार यदि पीने को चाय दे
तो समझो कि ठगने की ताक में है
थानेदार कभी हंसते हुए कंधे पर हाथ दे
तो तय है किसी दफ़ा में फंसने वाले हो

क्या करोगे, समय ऎसा है कि
कोई भलाई भी करे तो सोचना पड़ता है
ख़ुश होने की बात नहीं
थोड़ा सोचने का काम है

तुम्हारे गांव तक यह सरकार जो दो हफ़्ते में
पक्की सड़क बनवा रही है
ख़ुश मत हो कि इस पर चलेंगी गाड़ियां
और तुम घंटे-आधे घंटे में शहर पहुंच जाओगे
और खाने के वक़्त तक
वापस घर लौट आओगे

यह भी सोचो कि इसी से होकर
मिनट भर में पहुंचेगी सरकारी फ़ौज
और तुम्हारा गांव राख बन जाएगा.

  • अरुण कमल

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध

    कई दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण ये शहर अब अपने पिंजरे में दुबके हुए किसी जानवर सा …
  • मेरे अंगों की नीलामी

    अब मैं अपनी शरीर के अंगों को बेच रही हूं एक एक कर. मेरी पसलियां तीन रुपयों में. मेरे प्रवा…
  • मेरा देश जल रहा…

    घर-आंगन में आग लग रही सुलग रहे वन-उपवन, दर दीवारें चटख रही हैं जलते छप्पर-छाजन. तन जलता है…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…