Home गेस्ट ब्लॉग सेलेब्रिटी का नंगा हो जाना क्या नंगापन नहीं है ?

सेलेब्रिटी का नंगा हो जाना क्या नंगापन नहीं है ?

8 second read
0
0
526
सेलेब्रिटी का नंगा हो जाना क्या नंगापन नहीं है ?
सेलेब्रिटी का नंगा हो जाना क्या नंगापन नहीं है ?
girish malviyaगिरीश मालवीय

कल रात से रणवीर सिंह के ऐसे फोटो वायरल होने पर मै तो हैरान था. नंगे होने का विरोध मत कीजिए, आपको पिछड़ा हुआ मान लिया जाएगा. आपको हमको रणवीर सिंह के नंगेपन पर गर्व करना होगा नहीं तो अल्ट्रा लिबरल होता समाज आपकी कुपमंडुकता की दुहाई देता नहीं थकेगा. नंगे हो जाना ही मॉर्डन होने की पहचान है, नेता तो हो ही गए थे अब अभिनेता भी हो गए.

आप भूल रहे हैं इनकी अर्धांगनी दीपिका जी 2015 में फैशन मैगजीन वॉग के लिए ‘माय बॉडी माई चॉइस, वाले वीडियो बनवा चुकी हैं. फिल्मफेयर मैगजीन की संपादक रही शोभा डे ने उनके इस वीडियो पर कहा था कि ‘जिस तरह की मांग इस वीडियो में लड़कियां कर रही हैं, अगर कोई पुरुष ऐसा करे तो क्या उसे स्वीकार कर लिया जाएगा ? क्या उसकी सरेआम पिटाई नहीं हो जाएगी ?’ 2022 में इसका जवाब मिल गया है कि ‘नहीं होगी !’

सब एक पैटर्न के रूप में हो रहा है. आप खुद ही देखिए एक से एक भ्रष्टाचार के आरोप लगे होंगे लेकिन मोदी सरकार के मंत्री साफ़ बच निकले. लेकिन जैसे ही mee too में विदेश राज्य मंत्री एम. जे. अकबर का नाम आया उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. गोया mee too में नाम आना सबसे बडा जुर्म है और उस वक्त mee too कहां से आया था, ये भी आप जानते होंगे.

पिछली बार जब मलाला का एक बयान उछला था, तब मैंने एक लेख में चित्रकार प्रभु जोशी के कुछ साल पुराने आलेख का एक हिस्सा डाला था, उन्होंने लिखा था – बौद्धिक स्तर पर कमजोर और बावला भारतीय समाज मूर्ख बनने के लिए हमेशा तैयार रहता है. राजनीति तो बनाती ही है, भूमंडलीकरण भी बना रहा है.

फ्रेडरिक जेमेसन ने तो कहा ही था कि जब तक भूमंडलीकरण को लोग समझेंगे, तब तक वह अपना काम निबटा चुकेगा. वह आधुनिकता के अंधत्व से इतना भर दिया जाता है कि उसको असली निहितार्थ कभी समझ में नहीं आते.

‘मेरा शरीर मेरी मर्जी’ का स्लोगन पोर्न व्यवसाय के कानूनी लड़ाई लड़ने वाले वकीलों ने दिया था. उसे हमारे साहित्यिक बिरादरी में राजेन्द्र यादव जी ने उठा लिया और लेखिकाओं की एक बिरादरी ने अपना आप्त वाक्य बना लिया. इस तर्क के खिलाफ, मुकदमा लड़ने वाले वकील ने ज़िरह में कहा था –

अगर व्यक्ति का शरीर केवल उसका है तो किसी को आत्महत्या करने से रोकना, उसकी स्वतंत्रता का अपहरण है. अलबत्ता, जो संस्थाएं, आत्महत्या से बचाने के लिए आगे आती है वे दरअसल, व्यक्ति की स्वतंत्रता के विरूद्ध काम करती है. उनके खिलाफ मुकदमा दायर करना चाहिए.

बाज़ारवाद की कोख से जन्मे इस फेमिनिज़्म का रिश्ता, वुमन-लिव से नहीं है. ये तो रौंच-कल्चर का हिस्सा है, जिसमे पोर्न-इंडस्ट्री की पूंजी लगी हुई है. याद रखिये कि किसी भी देश और समाज का पोरनिफिकेशन परिधान में ही उलटफेर कर के किया जाता है, स्त्री इसके केंद्र में है. आलेख कुछ साल पुराना है अब पोर्नफिकेशन के केन्द्र में पुरुष को लाया जा रहा है. सवाल है सेलेब्रिटी का नंगा हो जाना क्या नंगापन नहीं है ?

Read Also –

ऐतिहासिक दृष्टिकोण से सामंतवाद का कामुकता से, पूंजीवाद का अर्द्धनग्नता (सेमी पोर्नोग्राफी) से और परवर्ती पूंजीवाद का पोर्नोग्राफी से संबंध
स्मृति ईरानी और स्त्री की “अपवित्रता”
सामूहिक बलात्कार है वेश्यावृत्ति
वेश्‍यावृत्ति को वैध रोजगार बताने वाले को जानना चाहिए कि सोवियत संघ ने वेश्यावृत्ति का ख़ात्मा कैसे किया ?
महिला, समाजवाद और सेक्स 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…