जगदीश्वर चतुर्वेदी
मैं कोलकाता में सत्ताइस साल रहा हूं और इस महानगर में वेश्यावृत्ति बड़े पैमाने पर होती है. शहर में अनेक बड़े अड्डे हैं. कोलकाता वेश्यावृत्ति को इंडोर और आउटडोर दोनों ही स्थानों में सहज ही देख सकते हैं. वेश्याएं यह जानती हैं कि देह-व्यापार का धंधा देह शोषण है. औरत का इस धंधे में बहुस्तरीय शोषण होता है. यह धंधा छत के नीचे बंद कमरे में चले या खुले में धंधेवाली को पुलिस को पैसा देना पड़ता है.
आश्चर्य इस बात का है कि इस शहर में बड़े पैमाने पर लोकतांत्रिक चेतना है. वाम और गैर-वाम दोनों ही किस्म की विचारधाराओं का यह बड़ा केन्द्र है, इसके बावजूद वेश्यावृत्ति का इतना व्यापक कारोबार कैसे चल रहा है ? मैं इसे किसी भी तर्क से समझने में असमर्थ हूं. अनेक इलाकों में तो शाम को गलियों और पार्क वगैरह में आना-जाना संभव नहीं होता. कभी-कभार पुलिस वाले डंडा फटकारते भी दिखते हैं लेकिन पुलिस के जाते ही सब कुछ पहले की तरह चलने लगता है. यह बात यहां के सारे बुद्धिजीवी, राजनीतिक लोग और प्रशासन के लोग जानते हैं लेकिन कोई रास्ता नहीं दिखता कि इस धंधे को कैसे रोका जाए ?
मैं अचम्भित भी हूं कि जो लोग रैनेसां से लेकर वाम तक, ममता से लेकर महाश्वेता देवी तक का आए दिन जय-जयकार करते रहते हैं, उनमें से किसी ने भी इस धंधे के खिलाफ किसी भी किस्म की कार्रवाई करने, वेश्याओं के पुनर्वास, इलाज, उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई आदि के सवालों पर कभी सार्वजनिक बहस नहीं चलायी बल्कि समय-समय पर वेश्याओं के संगठनों के द्वारा प्रदर्शन आदि जरूर निकलते हैं और उनमें इस धंधे को कानूनी जामा पहनाने की मांग एक-दो दिन जरूर उठती है. बाद में फिर सब कुछ धंधे में खो जाता है.
कुछ लोग यह मानते हैं कि इन औरतों को कानूनन अधिकार दे दिया जाना चाहिए क्योंकि वे बंद घरों में ही तो धंधा कर रही हैं. यह किसी को दिखाई थोड़े ही दे रहा है. सार्वजनिक स्थानों पर धंधा करने से बेहतर है इन वेश्याओं को घर के अंदर धंधे का कानूनी अधिकार दे दिया जाय.
यह एक कॉमन तथ्य है कि इस धंधे में औरतें स्वेच्छा से नहीं आतीं बल्कि वे दलालों के द्वारा लाई जाती हैं. दलाल ही है जो गरीबी, अभाव, भुखमरी, दंगा प्रभावित, हिंसा प्रभावित इलाकों में गिद्ध की तरह मंडराते रहते हैं. इन इलाकों में उन्हें धंधे के लिए आसानी से लड़कियां कम से कम दाम में मिल जाती हैं.
वेश्यावृत्ति एक तरह से ‘भुगतान बलात्कार’ या ‘स्वैच्छिक गुलामी’ है. वेश्यागामी मर्द वेश्या को बलात्कार करने के लिए भुगतान करता है. प्रसिद्ध स्त्रीवादी आंद्रिया दोर्किन के अनुसार –
‘वेश्यावृत्ति: क्या है ? यह पुरुष द्वारा मैथुनक्रिया के लिए स्त्री शरीर का उपयोग है. वह रुपया खर्च करता है और जो चाहे करता है. जैसे ही आप इससे दूर होते हैं, वेश्यावृत्ति से अलग दूसरी दुनिया, विचारों की दुनिया में चले जाते हैं, सच्चाई बदल जाती है. आप अच्छा महसूस करते हैं; आप अच्छे समय में होते हैं; आपको ज्यादा मज़ा आता है; यहां विवेचन करने के लिए बहुत कुछ है, किंतु आप वाद-विवाद विचारों पर करते हैं वेश्यावृत्ति पर नहीं. वेश्यावृत्ति विचार नहीं है, यह मुख है, जननांग है, मलाशय है जिसका एक पुरुष के नहीं बल्कि अनेकानेक पुरूषों के लिंग, कभी-कभी हाथों, कभी वस्तुओं द्वारा भेदन किया जाता है. यही इसका मूल वीभत्स स्वरूप है.’
ऐसे भी नैतिकतावादी हैं जो कहेंगे कि विश्वविद्यालय प्रोफेसर होकर वेश्यावृत्ति के बारे में चर्चाएं कर रहा है, खासकर कोलकाता में तो कमाल के लोग हैं. वे ज्योंही इस विषय को देखेंगे तुरंत निंदा अभियान आरंभ कर देंगे. इसी तरह के संदर्भ को ध्यान में रखकर आंद्रिया ने लिखा –
‘अकादमिक विभागों की आधारभूत धारणा ही वेश्यावृत्ति में फंसी महिलाओं के जीवन की सच्चाइयों से दूर छिटकी हुई है. अकादमिक जीवन की प्रस्तावना/तथ्य इस विचार पर ही आधारित है कि हमारा कल है, भविष्य है और आनेवाला कल है और यह आगामी अनवरत है, या कोई भी अध्ययन के समय निष्क्रिय बर्फीले निर्जीव के अंदर से निकल सकता है, या यहां विचारों का ऐसा विमर्श संभव है एवं ऐसा स्वाधीन वर्ष भी जहां आप बिना किसी भय के असहमत हो सकते हैं. प्रस्तुत तथ्य पढ़नेवालों तथा पढ़ानेवालों पर हमेशा लागू होते हैं. ये वस्तुत: उन औरतों के जीवन के प्रतिकूल हैं जो या तो वेश्यावृत्ति में हैं या थीं.’
‘यदि आप वेश्यावृत्ति में हैं तो आपके मस्तिष्क में कोई कल नहीं होता क्योंकि कल बहुत दूर होता है. आप नहीं मान सकते कि आप केवल एक क्षण से दूसरे क्षण ही जीएंगें. आप ऐसा नहीं मान सकते और आप ऐसा नहीं मानते. यदि मानते है तो आप मूर्ख हैं, और वेश्यावृत्ति के संसार में मूर्ख होना घायल होना है, मृत होना है.’
सब जानते हैं कि वेश्यावृत्ति के धंधे में हिंसा चरम पर रहती है. इससे औरत को शारीरिक और मानसिक रूप से गंभीर क्षति पहुंचती है. वह संवेदना के धरातल पर पूरी तरह बर्बाद हो जाती है. इन औरतों की दलालों के द्वारा इस कदर दिमागी धुलाई की जाती है कि वे अपने धंधे के बारे में सार्वजनिक तौर पर पत्रकारों या समुदाय के नेताओं से बातें करने से परहेज करती हैं. यह एक सर्वस्वीकृत तथ्य है कि धंधेवाली घर में धंधा करे या अड्डे या सार्वजनिक स्थान पर उसे बार-बार शारीरिक हमलों और हिंसाचार का शिकार होना पड़ता है.
आंद्रिया ने लिखा है –
‘यदि मैं आप से कहूं कि आप अपने शरीर के बारे में सोचें-तो ऐसा करते हुए आपको पोर्नोग्राफरों द्वारा निर्मित नीरस, निष्क्रिय, मृत मुखों, जननांगों एवं गुदा के दर्शन होंगे. मैं चाहती हूं कि आप अपने शरीर के इस उपयोग को लेकर ठोस और गंभीर चितंन करें. यह दृश्य कितना कामुक है ? कितना आनंददायक है ? जो व्यक्ति वेश्यावृत्ति और पोर्नोग्राफी की प्रतिरक्षा करते है, वे वस्तुत: आप में उसी आलोड़न, सनसनी, रोमांच को देखना चाहते है ताकि आप हमेशा स्त्री में कुछ घुसेड़ा हुआ या चिपका हुआ ही कल्पित करें. मैं चाहती हूं कि आप उसके शरीर के कोमल तंतुओं को महसूस करें जिनका अब तक दुरुपयोग होता रहा है. मैं चाहती हूं कि आप इस अहसास को महसूस करें कि कैसा लगता है जब यह बार-बार यह घटित होता है: क्योंकि यही वेश्यावृत्ति है
‘इसलिए वेश्यावृत्ति में फंसी स्त्री या वेश्यावृत्ति में रह चुकी स्त्री के नजरिए से स्थान भिन्नता, फिर चाहे वह प्लाज़ा होटल हो या कोई घटिया स्थान, का कोई अर्थ नहीं होता. ये बेमेल तथ्यों पर आधारित असंगत धारणाएं हैं. आपके अनुसार ज़ाहिरा तौर पर परिस्थितियों का बड़ा महत्व होता हैं. जीन नहीं, कारण कि हम मुख, जननांग और मलाशय की बात कर रहे हैं. वेश्यावृत्ति को परिस्थितियां न तो बदल सकती हैं न ही न्यून कर सकती हैं.’
एक फिनोमिना यह भी देखा गया है कि इस धंधे में खाते-पीते घरों की लड़कियां भी तेजी से आ रही हैं. ये वे लड़कियां है जो धंधा करके जल्दी से मोटी रकम कमाना चाहती हैं. शानो-शौकत की जिंदगी जीना चाहती हैं. गरीब घरों की लड़कियां अभाव और गरीबी के कारण आ रही हैं लेकिन खाते-पीते मध्यवर्गीय परिवारों की लड़कियां ड्रग एडिक्शन, पॉकेटमनी की तलाश और बालशोषण की शिकार होने के कारण इस धंधे में आ रही है.
आंद्रिया ने लिखा है –
‘वेश्यावृत्ति अपनेआप में ही स्त्री देह का दुरुपयोग है. हममें से जो ऐसा कहते हैं, उन पर अति-साधारण सोच या सामान्य विचारों से युक्त होने के आरोप लगाए जाते हैं लेकिन सचमुच वेश्यावृत्ति अपने आप में सरल, साधारण है. और यदि आपके पास सहज, सामान्य दिमाग नहीं है तो आप इसे कभी समझ नहीं सकते.
‘आप जितने जटिल, पेचीदा होते जाते हैं, उतना ही आप सत्य से दूर होते जाएंगे- आप अधिक सुरक्षित होते जाएंगे, ज्यादा खुश होंगे, वेश्यावृत्ति पर बात करते हुए आप बहुत आनंदित होंगे. वेश्यावृत्ति में कोई भी स्त्री सम्पूर्ण स्वस्थ नहीं होती. स्त्री-देह का जिस प्रकार वेश्यावृत्ति में इस्तेमाल होता है उस प्रकार किसी भी मानव-शरीर का उपयोग करना असंभव है. इसके बावजूद वेश्यावृत्ति के अंत में, या मध्य में, या आरम्भ के निकट ही पूरे मनुष्य शरीर को प्राप्त करना भी असंभव है. यह असंभव ही है. और बाद में स्त्री भी कभी पूर्ण नहीं हो पाती, खुद से ही वंचित हो जाती है. वेश्यावृत्ति में दुरुपयोग व दुर्व्यवहार झेलती औरत के पास कुछ विकल्प होते हैं.
आपने ऐसी साहसी महिलाओं को भी देखा होगा जो महत्वपूर्ण चुनाव करती हैं : वे जो जानती हैं उसका इस्तेमाल करती हैं, जो कुछ जानती हैं उसे आप तक संप्रेषित करने का प्रयास भी करती हैं, फिर भी हर कोई परिपूर्णता से वंचित रह जाता है, अधूरा, अपर्याप्त रह जाता है. क्योंकि जब हमला आपके भीतर हो रहा हो, क्रूरता आपकी त्वचा के अंदर हो रही हो, तो आपका बहुत कुछ छिन जाता है. हम अपने दर्द को एक-दूसरे तक संप्रेषित करने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं. इसकी वकालत करते हैं, इसके सटीक सम्प्रेषण के लिए सादृश्य निर्मित करते हैं. मेरे अनुसार वेश्यावृत्ति की तुलना सिर्फ सामूहिक बलात्कार से की जा सकती है.’
Read Also –
वेश्यावृत्ति को वैध रोजगार बताने वाले को जानना चाहिए कि सोवियत संघ ने वेश्यावृत्ति का ख़ात्मा कैसे किया ?
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से सामंतवाद का कामुकता से, पूंजीवाद का अर्द्धनग्नता (सेमी पोर्नोग्राफी) से और परवर्ती पूंजीवाद का पोर्नोग्राफी से संबंध
समाजवादी काल में सोवियत संघ (रूस) में महिलाओं की स्थिति
कामुकता का जनोत्सव है बाबा रामदेव फिनोमिना
महिला, समाजवाद और सेक्स
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]