रविश कुमार
आप चाहें तो एक काम कर सकते हैं, एक सूची बना सकते हैं कि आप किस-किस को मसीहा की तरह देखते हैं ? देखिए कि उस सूची में एलन मस्क भी हैं या नहीं ? आज कल के मसीहाओं की एक खूबी है, वे यह भी बताते हैं कि कब होमवर्क करना है, पुरानी किताबों को फेंकना नहीं है, दान में देना है, गर्मी की छुट्टी के फोटो खींच कर भेजना है. यह सारी बातें आपको खुद से कभी ध्यान में नहीं आ सकती हैं इसलिए ये सब बताने के लिए समाज में कई लेवल पर मसीहा सक्रिय हैं.
एलन मस्क ने भी अपने एक ट्विट में लिखा है कि सोते समय गर्दन किस ऊंचाई पर होनी चाहिए. सोने से तीन घंटे पहले भोजन नहीं करना चाहिए. एक दिन मसीहा लोगों को यह भी बताएंगे कि नहाने के बाद तौलिए से पीठ कैसे रगड़ें, और लोग आंखें फाड़ कर सुनेंगे. बल्कि बता भी रहे होंगे.
बिजली से चलने वाली कार बनाने वाले टेस्ला के संस्थापक हैं मस्क. उपग्रहों की दुनिया में भी सक्रिय हैं. मस्क आज की दुनिया के हीरो हैं. मंगल ग्रह पर चलकर बसने के सपने दिखाते हैं. क्या पता धरती छोड़ कर वहां चले भी जाएं. ट्विटर पर 10 करोड़ से ज़्यादा लोग फॉलो करते हैं, दुनिया के इस सबसे अमीर व्यक्ति को करोड़ों लोग क्यों फॉलो करते हैं, पता नहीं, मस्क उन्हें चवन्नी भी न दे. वैसे बिज़नेस इनसाइडर की एक रिपोर्ट है कि 10 करोड़ में से 23 प्रतिशत फोलोअर नकली भी हो सकते हैं.
मस्क की चालाकी देखिए. 4 जून 2013 को ट्विट करते हैं कि अपनी कंपनी में पहला पैसा डाला है तो निकालने वाले भी आखिरी होंगे यानी शेयर नहीं बेचेंगे. पिछले कुछ महीने में करीब 18 अरब डॉलर के शेयर बेच चुके हैं. अप्रैल में ट्विटर खरीदने की डील करते हैं, और उधर मौके का फायदा उठाकर अपने शेयर बेच देते हैं. आठ अरब डॉलर की रकम उनके खाते में आ जाती है. भारतीय रुपये में कोई 9000 करोड़. अब मस्क ने ट्विटर से डील रद्द कर दी है.
ट्विटर ने मुकदमा कर दिया है. जानकार कहते हैं कि अगर मस्क ने ट्विटर से डील कर ली और एक अरब डॉलर देकर मुकदमे को रफा-दफा कर दिया, तब भी उनके खाते में सात अरब डॉलर की रकम जमा रहेगी. इसे कहते हैं मसीहा बनकर लोगों की जेब काट लेना. इसे ग़लत और सही के फ्रेम में देखना ठीक नहीं होगा लेकिन यह बाज़ार है तो इसका मतलब यह भी है कि आप जिसे मसीहा चुनते हैं उसके फोलोअर नहीं, उसके कस्टमर बन जाते हैं. वह अपना माल आपको बेच कर चल देता है और आप उसे अपना दिमाग़ बेचकर ठगे रह जाते हैं.
भारत में भी एक IPO आया, अपने शेयरों के भाव पहले ही चढ़ा दिए, लोगों ने और चढ़ा दिए. मीडिया ने उसे हीरो बनाया और लोगों के पैसे डूब गए. उस एटीएम वाले के हाथ में IPO से हज़ारों करोड़ रुपये आ गए. जब लिस्ट हुई तो सबके पैसे डूब गए.
राजनीति और बिज़नेस के मसीहा जानते है कि लोग किस टाइप के हैं. लोग भी साबित कर देते हैं कि उसी टाइप के हैं. ऐसा कैसे हो जाता है कि मस्क हों, माइक्रोसॉफ्ट के सत्या नडेला हों या फेसबुक के मार्क जुकरबर्ग, ये सभी एक ही समय में अपना शेयर बेचने लगते हैं और लाखों, करोड़ों रुपये निकाल लेते हैं. उसके कुछ समय बाद बाज़ार गिर जाता है और लोग देखते रह जाते हैं. आम लोग क्यों नहीं इनकी तरह की समझदारी पैदा कर लेते हैं.
इन दिनों मस्क ने रिपब्लिकन पार्टी के नेता रॉन डिसैंटिस को सपोर्ट करना शुरू कर दिया है तो ट्रंप मस्क से चिढ़ गए हैं. ट्रंप को ट्विटर ने बैन कर दिया लेकिन ट्रंप ने अपना सोशल मीडिया साइट खोल लिया है. जिसका नाम TRUTH सोशल है. इस पर ट्रंप ने लिखा है कि जब मस्क व्हाइट हाउस आए और अपने कई प्रोजेक्ट के लिए मदद मांगी, जिसके लिए सब्सिडी दी जाती है. उनकी इलेक्ट्रिक कार जो लंबी दूरी तक नहीं चलती है, बिना चालक वाली कार जो दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है और रॉकेटशिप का पता नहीं कहा जाती है, इन सबको सब्सिडी न मिलती तो इनकी कोई औकात नहीं थी.
अगर वे मुझे बता रहे हैं कि वे ट्रंप और रिपब्लिकन के कितने बड़े फैन थे तो मेरा जवाब यही है कि अगर मैं उनसे कहता कि घुटने पर बैठो और गिड़गिड़ाओ तो वो भी करते. ट्रंप की किस बात से सहमत हुआ जाए या किससे असहमत लेकिन दुनिया के इस सबसे अमीर व्यक्ति के बारे में ट्रंप कह रहे हैं कि इनका धंधा सब्सिडी से चमक रहा था. अब वही मस्क आगे के धंधे के लिए किसी और नेता को बढ़ावा दे रहा है.
आप उसी मस्क को मसीहा मानते हैं और एक दिन खुद को गरीबी रेखा से नीचे वाले सर्वे में पाते हैं. उद्योगपति और राजनेता कब हाथ मिला लें और कब एक दूसरे का गला काटने लगे यह समझना किसी के बस की बात नही है. इस कहानी का संबंध दुनिया भर के लोगों से है मगर श्रीलंका से नहीं है. क्योंकि श्रीलंका की कहानी का मसीहा अलग ही लेवल का आइटम निकला. मज़बूत नेता वाले मसीहा की कहानी हर जगह एक समान नहीं होती है. कहीं वे भाग जाते हैं तो कहीं बीस बीस साल के लिए जम भी जाते हैं. चीन और रूस का उदाहरण बार बार देना ठीक नहीं है.
श्रीलंका की आबादी सवा दो करोड़ से कुछ अधिक है, यहां की साक्षरता दर 90 प्रतिशत से अधिक है. इसके बाद भी यहां की जनता को तमिलों और मुसलमानों से ऐसी नफरत हो गई कि उसने गोता बाया राजपक्षा को मसीहा बना लिया. गोता बाया कुछ भी करते, मुसलमान और तमिल से नफरत के नाम पर सिंहला बौद्ध हर बात पर मुहर लगा देते.
यहां तक कि 2019 में जब गोता बाया ने सभी के लिए टैक्स में कमी कर दी, जिससे श्रीलंका का राजस्व खाली होने लगा, महंगाई बढ़ने लगी और जनता की जेब से पैसे गायब होने लगे. 2019 में भारत में केवल कोरपोरेट के टैक्स में कटौती की गई थी, उसी से डेढ़ लाख करोड़ का टैक्स कम हो गया, इसकी भरपाई तरह तरह से की जाने लगी.
मजबूत सरकार देेने वाले श्रीलंका के मज़बूत नेता भागने के लिए कई देशों से गिड़गिड़ाते रहे. अंत में भाग कर मालदीव पहुंच गए हैं. इनके भाई बासिल राजपक्षे को पहले श्रीलंका में ही एयरपोर्ट पर रोक लिया गया लेकिन अब जानकारी मिल रही है कि वो भी देश छोड़कर निकल चुके हैं. बासिल पूर्व वित्त मंत्री हैं. जनता को विकास दिखे और पहले से ज़्यादा विकास दिखे इसके लिए महिंदा राजापक्षा ने भी खूब सारे एक्सप्रेस वे बनवाना शुरू कर दिया.
हंबनटोटा बंदरगाह और कोलंबो पोर्ट सिटी के प्रोजेक्ट में ही 17 अरब डॉलर की लागत आने वाली थी. हमबनतोता 2011 में बन कर तैयार हो गया लेकिन लगातार घाटा ही देता रहा. सरकार ने जो पैसे लगाए, डूबने लगे. इन सबका प्रचार होता था कि गेम चेंजर हैं, लेकिन कभी फायदा नहीं हुआ. चीन को लीज़ पर देने के समय जानकार चेतावनी दे रहे थे कि इससे चीन का इलाके पर कब्जा हो जाएगा लेकिन उल्टा गोता बाया जनता को याद दिला देता था कि मुसलमानों और तमिलों से नफरत करना है, जनता उस काम में लग जाती थी.
राजनीतिक रुप से लाभ का ध्यान रख कर प्रोजेक्ट लांच किया जाने लगा और जनता विकास की वाहवाही में तबाही की ताली बजाने लगी. श्रीलंका में आपातकाल लग गया है, आज वहां भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को गोली चलानी पड़ी और आंसू गैस के गोले दागने पड़े. हज़ारों की भीड़ ने प्रधानमंत्री और कार्यवाहक राष्ट्रपति रनिल विक्रमसिंघे का दफ़्तर घेर लिया. प्रदर्शनकारियों की भीड़ संसद का भी घेराव करने लगी. और देखते देखते श्रीलंका के सरकारी टीवी नेटवर्क के दफ्तर में भी घुस गए जिसके कारण थोड़ी देर के लिए प्रसारण रोकना पड़ा. श्रीलंका के कई प्रांतों में अनिश्चितकाल के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया है.
गोटाबाया के सिंगापुर में शरण लेने की खबर है. खबरें हैं कि वे मालदीव से सिंगापुर जा सकते हैं. राजपक्षे ने सेना से कहा कि वे सेना के कमांडर हैं इसलिए उन्हें भागने के लिए जहाज़ देना ही पड़ेगा. गोता बाया सेना के जहाज़ से ही मालदीव भागे हैं. गोटाबाया के भाषणों को ठीक से सुनेंगे तो आपको बहुत कुछ याद आएगा. वे अपनी ग़लती कभी नहीं मानते थे, हर बात में पिछली सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते थे.
2019 के चुनाव में गोता बाया ने श्रीलंका की मुद्रा के कमज़ोर होने का मुद्दा खूब उठाया था ठीक यही मुद्दा 2014 में भारत में छा चुका था, तब श्रीलंका में गोता बाया जनता को सपने दिखा रहे थे कि उस पर टैक्स बढ़ गया है, सत्ता में आएंगे तो कम करेंगे, सत्ता में आए तो सभी के लिए टैक्स इस तरह से कम किया कि ख़ज़ाना ही खाली हो गया. श्रीलंका छोड़ कर भाग गए धर्मपुरुष और मसीहा गोता बाया राजापक्षा के भाषण का छोटा सा हिस्सा सुनकर देखिए. कुछ याद आए तो भी याद न करें –
25 जून 2021 का गोटाबाया ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा था कि 2015-2019 के बीच जो पहले की सरकार थी उस समय कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आई, कोरोना जैसा कोई ग्लोबल संकट नहीं था, बिना किसी ठोस कारण के राज्यों के प्रशासन की वजह से अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई. 2019 से ही अर्थव्यव्स्था में गिरावट आने लगी थी, हमारे देश पर बाहरी क़र्ज़ा बढ़ने लगा. जनता पर टैक्स डबल हो गया. रुपया कमजोर हो गया और चीजों के दाम आसमान छूने लगे. विदेशी मुद्रा का भंडार गिरने लगा. मुझे एक बर्बाद अर्थव्यवस्था विरासत में मिली थी.
श्रीलंका जैसे देश के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की घोषणा अनाप शनाप तरीके से होने लगी हैं. राजापक्षा ने दावा किया है कि 2021 तक 10,000 पुल बनाए गए, 14000 तालाबों का संरक्षण किया गया. 1000 से अधिक खेल के मैदान बनाए गए. 100 छोटे और मध्यम शहरों का विकास किया गया. श्रीलंका में सौ शहरों के विकास का प्लान लांच हुआ था, भारत के स्मार्ट सिटी की तरह. काश हम बता पाते या दिखा पाते कि उन स्मार्ट सिटी के क्या हाल हैं… !
भारत के एक स्मार्ट सिटी का हाल दिखाना चाहते हैं. क्या श्रीलंका ने अपनी क्षमता के हिसाब से ये काम किया या बड़ा काम दिखाने के चक्कर में राजापक्षा ने श्रीलंका को लोन में डूबा दिया ? आज के दिव्य भास्कर ने लिखा है कि अहमदाबाद को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए 1900 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं लेकिन शहर का हाल वैसा ही है जैसा 10-15 साल पहले थे. लोगों को पता तो चले कि यह पैसा कहां गया ? हर साल अहमदाबाद म्यूनिसिपल कारपोरेशन नालों की सफाई पर 100 करोड़ खर्च करता है मगर कोई बदलाव नहीं दिखता है. दस साल में अहमदाबाद म्यूनिसिपल कारपोरेशन का बजट भी दोगुना हो गया लेकिन जनता की परेशानी कम नहीं हुई. संदेश ने अहमदाबाद की तुलना वेनिस से की है बस वहां के गोंडोला की जगह यहां कारें तैर रही हैं.
श्रीलंका में सरकार अपने यार पूंजीपतियों को फायदा पहुंचा रही थी, उनके लिए लोन रहे थी और जनता को इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर सपने बेच रही थी. अक्तूबर 2021 में विश्व बैंक तारीफ करता है कि श्रीलंका एक लाख किलोमीटर सड़क बनाने जा रहा है. तब के परिवहन मत्री फर्नांडो विश्व बैंक की तारीफ को बढ़ा चढ़ाकर बताते हैं कि 500 मिलियन डॉलर का लोन मिला है. उतनी सड़क की ज़रूरत है या नहीं, लेकिन विकास के नाम पर लोगों की छत पर भी सड़क बना दी जाए तो लोग कहेंगे भई वाह, अब आंगन से भी एक सड़क निकाल दीजिए. कहने का मतलब है कि सड़क ज़रूरी तो है लेकिन इस तरह से एक ही बार में बादल के फटने की तरह सड़कों का जाल ज़रूरी है ?
30 मार्च 2022 को राज्यसभा में परिवहन मंत्री नितिन गडकरी कांग्रेस नेता दिग्विजिय सिंह के सवाल के जवाब में कहते हैं कि मार्च 2014 में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) पर 23,796 करोड़ का बकाया था, लेकिन अब 3 लाख 47 हज़ार करोड़ से अधिक का बकाया हो गया है. 14 गुना बढ़ गया है. दो अगस्त 2021 को गडकरी राज्यसभा में बीजेपी सांसद सुशील मोदी को जवाब देते हैं कि मार्च 2017 में NHAI पर 74,742 करोड़ कर्ज़ था, मार्च 2021 में 3 लाख 6 हज़ार करोड़ से अधिक का कर्ज़ हो गया. यह खबर दिसंबर 2021 की है.
गडकरी का बयान है कि अभी टोल टैक्स से NHAI को 40,000 करोड़ की कमाई हो रही है. अगले तीन साल में 1 लाख 40 हज़ार करोड़ तक ले जाने का इरादा है. अगर इन दिनों व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में मीम कम आ रहे हैं तो आप पेट्रोल डीज़र पर उत्पाद शुल्क, परीक्षा फार्म से लेकर दही पर लगने वाली जीएसटी और इंकम टैक्स के अलावा टोल टैक्स का भी हिसाब जोड़ सकते हैं. आपको गर्व करने का मौका मिलेगा कि आप कहां कहां टैक्स देते हैं. हर एक्सप्रेस वे को गैर ज़रूरी घोषित नहीं किया जा सकता लेकिन यह सवाल तो पूछा ही जा सकता है कि जितना निवेश हुआ है, उसके मुताबिक वह फल दे रहा है या नहीं ? विकास बड़ा लगे और जनता की आंखें चौंधिया जाए इसलिए अब सड़क के उदघाटन में लड़ाकू विमान लाया जाता है.
विकास में आर्थिक शक्ति के साथ-साथ सैन्य शक्ति का तड़का लगा दिया जाता है. आर्थिक मामलो के पत्रकार टी एन नाइनन ने एक लेख लिखा है कि भारत के ट्रांसपोर्ट सेक्टर, रेल, सड़क और हवाई मार्ग में अप्रत्याशित रुप से निवेश किया जा रहा है. अगले दो तीन सालों में पता चलेगा कि निवेश से कितना बदलाव आता है. उम्मीद है अच्छा होगा लेकिन आशंकाएं जाती नहीं हैं.
भारत में कोई भी विमान कंपनी पैसा नहीं कमा रही है. हवाई यात्रियों की संख्या महामारी से पहले की तरह हो चुकी है लेकिन हवाई विमानों की तकनीकि खराबी की खबरें बढ़ती जा रही हैं. विमान कंपनियों के पास स्टाफ को देने के लिए पैसा नहीं हैं, इसके बाद भी विमान कंपनियां नए नए विमान खरीदने के आर्डर दे रही हैं. भारत में हाईवे की जगह एक्सप्रेस वे बनने लगे हैं इससे काफी कुछ सुधरा भी है, ट्रक की रफ्तार बढ़ी है लेकिन एक औसत ट्रक एक दिन में जितनी दूरी तय करता है वह जस का तस है. जितना निवेश हो रहा है उसकी वापसी के आसार नज़र नहीं आते. इतना निवेश हो रहा है तो कम से कम ट्रैफिक में भी वृद्धि दिखनी ही चाहिए. वर्ना पैसे कहां से वापस होंगे !
आज के ही हिन्दू में खबर छपी है कि 14 एयरपोर्ट पर गो फर्स्ट एयरक्राफ्ट के टेक्निशियन तीन दिनों से हड़ताल पर हैं. हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार इनकी शिकायत है कि 18 महीने से कइयों को सैलरी नहीं मिली है और सैलरी भी काफी कम है. केबिन के 110 सदस्य भी बीमारी का बहाना बनाकर छुट्टी पर चले गए हैं. एयरलाइन ने सिक लीव पर जाने की बात से इंकार किया है. हिन्दू ने लिखा है कि इंडिगो के कर्मचारी भी सिक-लीव पर चले गए थे. इस रिपोर्ट में एक टेक्निशियन ने लिखा है कि उसने अपनी ट्रेनिंग पर पांच लाख रुपये खर्च किए लेकिन नौकरी मिली 8000 रुपये की, इस समय 16000 मिल रहा हैं. अब तो काम भी काफी बढ़ गया है लेकिन सैलरी नहीं बढ़ रही.
ज़ाहिर है महंगाई का दबाव भी परेशान कर रहा है. 11 जुलाई के एनडीटीवी की खबर छपी है कि इंडिगो ने कहा है कि वह टेक्निशियन की सैलरी की दिक्कतों को दूर कर लेगा. यह खबर भी तो छपी ही थी टाइम्स आफ इंडिया में कि इंडिगो के कर्मचारी और पायलट छुट्टी लेकर और एयर इंडिया का इंटरव्यू देने चले गए थे. इस कारण बहुत सारी फ्लाइट कैंसिल कर दी गई थी. यह खबर तो आपने देखी ही होगी कि 24 दिनों में नौवीं बार स्पाइस जेट के विमान में खराबी रिपोर्ट हुई है. दुबई से मदुरै के लिए स्पाइस जेट का विमान उड़ान नहीं भर सका.ऐसी खबरें हमारी नज़रों के सामने से नहीं गुज़रती हैं, इसलिए लगता है कि सब ठीक है. श्रीलंका पर लौट कर आते हैं, कम से कम वहां तो अभी सरकार भी नहीं है और वहां की पुलिस वारंट लेकर दिल्ली भी नहीं आ सकती. पूरी दुनिया में प्रेस का दमन हो रहा है.मैं श्रीलंका की बात कर रहा हूं. द संडे लीडर के संपादक लसांता विक्रमतुंगे की कहानी सुनाना चाहता हूं.
2009 में लसांता विक्रमतुंगे की हत्या कर दी गई थी. हत्या से ठीक पहले विक्रमतुंगे ने कॉलम लिखा था जिसमें इसबात की आशंका जताई थी कि उनकी हत्या हो सकती है. विक्रमतुगे ने एक बात लिखी थी कि(इसे स्क्रीन पर बोल्ड में लिखना) मैं उम्मीद करता हूं कि मेरी हत्या को आज़ादी की हार के रूप में नहीं देखा जाएगा, बल्कि लोगों को आज़ादी की प्रेरणा मिलेगी. लसांता की हत्या का आरोप गोता बाया राजापक्षा पर लगा था लेकिन तब भी श्रीलंका की जनता गोता बाया को मसीहा बनाने में लगी हुई थी. गोटाबाया के सनकी और हिंसक होने के तमाम आरोपों को किनारे लगा कर वहां की जनता उसे अवतार घोषित करने लगी. इसी 13 मई को विक्रमतुंगे की हत्या के मामले की सुनवाई हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय अदालत में चल रही थी. इस हत्या की जांच कर रहे अधिकारी निशांता सिल्वा ने बयान दिया कि उसने अपनी जांच में पाया है कि लसांता विक्रमतुंगे की हत्या में गोटाबाया राजापक्षा का हाथ है.
निशांता ने गोटाबाया से पूछताछ भी की थी लेकिन तब तक गोता बाया राजापक्षा राष्ट्रपति चुन लिए गए और इस डर से निशांता सिल्वा को देश छोड़ कर भागना पड़ा. गोटाबाया के हर ज़ुल्म को वहां की बहुसंख्यक जनता ने सही माना, यहां तक कि विक्रमातुंगे की हत्या की परवाह नहीं की जबकि विक्रमातुंगे बौद्ध बहुसंख्यक तबके से आते थे, बस वे गोटाबाया के गोदी मीडिया का हिस्सा नहीं थे, तमिल नरसंहार के खिलाफ बोल रहे थे, मुसलमानों के खिलाफ नफरत और हिंसा की आलोचना कर रहे थे, रक्षा मंत्रालय के भ्रष्टाचार को उजागर कर रहे थे, श्रीलंका की जनता ने पत्रकार की हत्या कराने वाले नेता को महानायक बना दिया. क्या यह सब सुनकर सिहरन नहीं हो रही है, क्या आप पहली बार ये कहानी सुन रहे हैं….भारत में कभी नहीं सुनी. सिर्फ यही एक कहानी नहीं है, अगर आपको भारत में मीडिया के गोदी मीडिया बनने और पत्रकारों के दमन की कहानी से एतराज़ है तो श्रीलंका की कहानी तो सुन ही सकते हैं.
गोटाबाया के राष्ट्रपति बनने के पहले ही हफ्ते में पत्रकारों पर हमले शुरू हो गए थे. उनके भाई महिंदा राजापक्षा के दौर में भी पत्रकारों का खूब दमन हुआ, जनता ने उसके बाद भी गोटाबाया राजापक्षा को राष्ट्रपति चुना. इस साल अप्रैल में जब जनता सड़कों पर आई तब भी गोता बाया की आदत नहीं सुधरी थी.आप इस वीडियो में देख सकते हैं कि कैसे वहां की सेना पत्रकारों को लात जूते से मार रही है. Newsfirst नाम के मीडिया के चार पत्रकार प्रदर्शन का कवरेज कर रहे थे, यह श्री लंका का सबसे बड़ा नेटवर्क है लेकिन इसके चार पत्रकारों को इस तरह से पीटा जा रहा है, आप केवल श्रीलंका की कहानी सुन रहे हैं, भारत की नहीं, ठीक से देखिए.
गोटाबाया 2005 से 2015 तक रक्षा सचिव थे, उनके दौर को श्रीलंका में प्रेस की स्वतंत्रता का काला दौर माना जाता है. इंडियन एक्सप्रेस की 2019 की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि जब इनके भाई महिंदा राजापक्षा राष्ट्रपति थे तब 2006 से 2015 के बीच 44 पत्रकारों की हत्या हुई थी. मगर वहां की जनता को मीडिया नहीं मसीहा चाहिए था. वहां की अदालतें भी मसीहा के आगे झुक गईं. 14 पत्रकार आज तक लापता हैं. लिखा है कि श्रीलंका के सैंकड़ों पत्रकार देश छोड़ कर भाग गए. द डिप्लोमैट का एक लेख है कि गोता बाया के राज में प्रेस का दमन हो रहा है. दुनिया की तमाम संस्थाएं सोती रहीं.
पत्रकारों पर हमले हो रहे थे, श्रीलंका की अदालतें राष्ट्रपति की दास बन गई थीं. जिस समाज में पत्रकारों की यह हालत होती है एक दिन उस समाज की भी यही हालत हो जाती है. आज उसके सबसे बड़े मज़बूत नेता देश छोड़ कर भाग गए हैं, मज़बूत नेता बनाने वाली जनता कंगाल होकर लाइनों में लगी है. उसे दवा नहीं मिल रही है पेट्रोल तो छोड़ ही दीजिए. द कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट ( the Committee to Protect Journalists) ने अपनी रिपोर्ट में गोटाबाया के एक बयान का ज़िक्र किया है. 18 नवंबर 2019 को गोता बाया राष्ट्रपति बनते हैं और 12 दिसंबर 2019 को एक स्थानीय मीडिया संस्थान में भाषण देते हुए कहते हैं. सकारात्मक आलोचना के कई अवसर मौजूद हैं लेकिन वे मीडिया संस्थानों से उम्मीद करते हैं कि पक्ष में भी रिपोर्टिंग करें जिससे देश की प्रतिष्ठा बढ़ें.
भारत श्रीलंका जैसा कभी नहीं होगा लेकिन गोटाबाया की यह दलील भारत में भी कई बार सुनाई देती है.श्रीलंका की कहानी इसलिए नहीं सुनाई जानी चाहिए कि ऐसा भारत में हो जाएगा, ऐसा कभी नहीं होगा, बल्कि इसलिए सुनाई जानी चाहिए कि जब भी पत्रकारों का दमन हो,सतर्क हो जाना चाहिए.90 प्रतिशत साक्षरता दर वाले श्रीलंका के लोगों ने जो किया, 78 प्रतिशत साक्षरता दर वाले भारत के लोग भी वही कर रहे हैं. नज़रअंदाज़ कर देते हैं. आज पटना में RTI कार्यकर्ताओं की हत्या को लेकर जनसुनवाई हुई. इस जनसुनवाई के लिए अरुणा रॉय और निखिल डे पटना आए थे. पिछले दस साल में बिहार में 20 RTI कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है. बिहार में सबसे अधिक हत्या हुई है. RTI कार्यकर्ताओं के परिवार के लोगों ने इस मंच पर आकर अपनी कहानी बताई. पिछले साल चंपारण के हरसिद्धी के RTI कार्यकर्ता विपिन कुमार की हत्या कर दी गई थी. इनके पिता विजय कुमार अग्रवाल ने बताया कि अभी तक हत्यारे नहीं पकड़े गए हैं.
आरटीआई कार्यकर्ता के रूप में विपिन के काम से स्थानीय स्तर पर काफ़ी खलबली मच गई थी, पिता का कहना हैं कि प्रशासन की भूमिका संदिग्ध रही हैं . वहीं कई ऐसे आरटीआई कार्यकर्ताओं के परिवार के लोग थे जिन्हें अब मामला रफ़ा दफ़ा करने की धमकी मिल रही हैं जैसे शुभम जो बाँका से आते है और उनके मामा प्रवीण कुमार झा की पिछले साल हत्या हुई और उल्टे अब धमकी मिल रही हैं. ये वाली कहानी श्रीलंका की नहीं है, भारत की है. क्या जनता को सच से इतनी नफरत हो गई है कि सूचना जुटाने वालों की हत्या से उसे फर्क ही नहीं पड़ता है? गोदी मीडिया के दौर में पत्रकारिता की बुनियाद ही बदल चुकी है. कुछ RTI कार्यकर्ता बचे हुए हैं जो अपनी जान जोखिम में डाल कर सूचनाओं को जमा कर रहे हैं ताकि भ्रष्टाचार को उजागर कर सकें, आपको क्यों लगता है कि नेता जी के कह देने से कि भ्रष्टाचार खत्म हो गया है. ये यूपी के अखबारों की ख़बरें हैं, सारी कतरनें पिछले दो तीन दिनों की हैं.
पशुपालन विभाग में पचास करोड़ के गबन की खबर है तो होमियोपैथी के संस्थानों ने 47 करोड़ का छात्रवृत्ति घोटाला किया है, अनुसूचित जाति के छात्रों का फंड हड़प लिया जबकि वे छात्र भी नहीं है, इसी तरह बस्ती ज़िले के PWD विभाग में भी 43 करोड़ के गबन का मामला पकड़ा गया है.ये सारी खबरें छपी तो हैं मगर बड़ी बड़ी नहीं.क्या आप ये सब नहीं जानना चाहते? अगर भ्रष्टाचार खत्म हो चुका है तो फिर कैसे छप रही हैं.यूपी के ही स्वास्थ्य विभाग में तबादले को लेकर स्वास्थ्य मंत्री ने सवाल उठा दिए. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बयान छपा है कि तबादले की जांच हो रही है. अगर भ्रष्टाचार की संस्कृति खत्म हो गई है तो यह सब कैसे हो रहा है.बिहार के राजस्व मंत्री का बयान छपा है कि उनके विभाग पर माफिया का कब्ज़ा हो गया है. ये सारी खबरें उस दौर की है जब माफिया और भ्रष्टाचार के मिटा देने की खबरें छप रही हैं.मंत्री कह देते हैं कि विभाग पर माफिया का कब्ज़ा है और देश चुप्पी साध लेता है.
सत्यमेव जयते के लिए जान देने वाले पत्रकारों और RTI कार्यकर्ताओं की हत्या पर समाज सतर्क क्यों नहीं होता, सरकारें क्यों घमंड में रहती हैं. भारत का हाल श्रीलंका जैसा नहीं होगा लेकिन आप यह नहीं कह सकते कि श्रीलंका में जो हो रहा है, उससे मिलता-जुलता भारत में नहीं हो रहा है. प्रेस की स्वतंत्रता की रैंकिंग में भारत का स्थान श्रीलंका से भी नीचे हैं. श्रीलंका 146 वें नबंर पर है और भारत 150 वें पर. भारत की रैकिंग से अगर आपको एतराज़ है तो क्या आप श्रीलंका में पत्रकारों की सच्ची कहानियों को भी दफन कर देंगे,तब भी जब वहां का फर्ज़ी मसीहा अपने परिवार के साथ देश छोड़ कर भाग गया है.
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