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सत्ता का इकोसिस्टम : मोहम्मद जुबैर गिरफ्तार है, रोहित रंजन फरार है

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सत्ता का इकोसिस्टम : मोहम्मद जुबैर गिरफ्तार है, रोहित रंजन फरार है
सत्ता का इकोसिस्टम : मोहम्मद जुबैर गिरफ्तार है, रोहित रंजन फरार है
रविश कुमार

महाराष्ट्र की शिवसेना और ब्रिटेन की कंज़र्वेटिव पार्टी के के दिन ठीक नहीं चल रहे हैं. उद्धव ठाकरे ने काफी वक्त लगा दिया इस्तीफा देने में, लेकिन बोरिस जॉनसन इस्तीफा देने के लिए तैयार हो गए हैं. उनकी पार्टी के पचास से अधिक लोगों ने इस्तीफा दे दिया है, सरकार के मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया है. इस बग़ावत से भारत के होटल उद्योग को कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि वह इस्तीफा देने वाले किसी होटल में नहीं छिप रहे हैं.

मेरी चिन्ता दूसरी है. इसी अप्रैल में बोरिस भाई गुजरात में बुलडोज़र चला रहे थे, वडोदरा के नज़दीक ब्रिटेन की कंपनी जेसीबी की फैक्ट्री का दौरा करने पहुंचे. उसी वक्त यूपी से लेकर दिल्ली में बुलडोज़र का हल्ला मचा था. इधर बोरिस भाई हलोल में बुलडोज़र पर घूमते दिख गए. जिस देश में अंधा कानून, इंसाफ का तराज़ू नाम से फिल्में बनी हों उस देश में बुलडोज़र का इंसाफ़ नाम से पटकथा लिखी जा रही थी और ऐन बीच कहानी में एक इंटरनेशनल एंगल आ गया जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री का फोटो बुलडोज़र के साथ आ गया. लोगों को समझाया गया कि अब दुनिया भी मान रही है कि बुलडोज़र ही इंसाफ है.

दो महीने बाद बोरिस भाई खुद बग़ावत के बुलडोज़र के नीचे आ गए और 10 डाउनिंग स्ट्रीट से इनका बोरिया बिस्तर बंध गया. कम से कम बोरिस भाई को इतना समझना चाहिए था कि बुलडोज़र को लेकर भारत में क्या चल रहा है ? कूटनीति की परंपरा तो यही कहती है कि किसी देश के दौरे पर हों तो उन मुद्दों का मज़ाक न उड़ाएं जिनसे वहां देश की जनता का एक हिस्सा आतंकित है. उन चीज़ों के साथ फोटो न खिंचाएं जिससे एक तबके को आतंकित किया जाता हो.

मगर बोरिस भाई जैसे नए दौर के नेताओं को इन सब चीज़ों से मतलब नहीं, बोरिस की इस तस्वीर से मीडिया को भी इशारों इशारों में असहाय महसूस कर रही जनता का मज़ाक उड़ाने का मौक़ा मिल गया था. इस तरह की हेडलाइन लिखी गई International bana ‘baba bulldozer’ और British PM ka ‘bulldozer’ Welcome !

बोरिस भाई का बंध गया बोरिया बिस्तर या बोरिस पर बग़ावत का बुलडोज़र. गोदी मीडिया की भाषा में कहानी कहीं की हो, कोई सी भी हो, हर चीज़ों को ऐसे ही पेश किया जाता है. हमारे लिए बोरिस भाई की कहानी कहीं से बोरिंग नहीं है लेकिन इस देश में उससे भी ज़रूरी कहानियां हैं बुलडोज़र का इंसाफ़. बकवास टाइटल है. हमारी फिल्म का टाइटल अलग है. राजू का इंसाफ़.

बी. आर. चोपड़ा की फिल्म थी इंसाफ़ का तराज़ू. उसी से प्रेरित है राजू का इंसाफ़. इंसाफ़ की देवी ने अपना तराज़ू राजू को पकड़ा दिया है. ये मेरी फिल्म का थीम है. लेकिन यह तो जान लीजिए कि इंसाफ़ की यह देवी है कौन ? संगमरमर की बनी हुई आंखों पर पट्टी क्यों बांधे हैं ? एक हाथ में तलवार और एक हाथ में तराज़ू क्यों उठाई हुई हैं ? क्या देवी फ्रेंड की बाज़ुआं में पेन नहीं होता ?

ग्रीक देवी हैं तो मैं इन्हें फ्रेंड कह सकता हूं, किसी की आस्था आहत नहीं होगी. दुनिया भर की अदालतों में यह मूर्ति दिख जाती है और जब भी इंसाफ़ का चेहरा दिखाना होता है, यह मूर्ति काम आती है. इस धरती पर यह देवी कब से न्याय की देवी बनी बैठी है, ठीक-ठीक बताना मुश्किल है.

कहीं पढ़ने को मिला कि इंसाफ़ को मूर्ति का रुप देने का श्रेय मिस्त्र की सभ्यता को जाता है तो कहीं पढ़ने को मिला कि 14 वीं सदी में ऐसी मूर्ति पाई गई थी. ज़रूर पक्के तौर पर दावा किया जाता है कि न्याय की इस देवी का संबंध ग्रीक मिथकों के संसार से हैं, जिसके देवी देवता अजब-ग़ज़ब के हैं और भयंकर भी हैं. कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि इंसाफ़ की देवी के पास तलवार भी नहीं बची है, तराज़ू भी लेकर कोई भाग गया है.

एक बार बाग्लादेश में इसी बात पर आंदोलन हो गया कि अदालत के परिसर से इंसाफ की मूर्ति हटाई जाए, हटा दी गई. अमरीका में इस मूर्ति को लेकर कई वाजिब सवाल उठे हैं कि इस मूर्ति का रंग सफेद है और इसका इंसाफ़ श्वेत लोगों के लिए अलग होता है. इसकी तरह जज की कुर्सी पर बैठा शख्स भी व्हाईट बन जाता है और उसके फैसलों में रंगभेद का रंग झलकने लगता है. धीरज के साथ प्राइम टाइम देखा कीजिए, यू ट्यूब में तो फिर से ज़रूर देखिए, ndtv india का यू ट्यूब चैनल है, उसे सब्सक्राइब कर लीजिए, वहां प्राइम टाइम मिल जाएगा. पुलिस तो कभी भी आ जाएगी लेकिन जब तक नहीं आती है तब तक आप फिल्म की तरह प्राइम टाइम देखिए.

उस दिन कौन सा दिन था, याद नहीं जब मैं लपटना के सिनेमा हॉल में महान फिल्मकार बी. आर. चोपड़ा की फिल्म इंसाफ का तराज़ू देखने गया था. फ़िल्म का टाइटल सांग दिमाग़ में ठहर गया. गाने में इंसाफ की यही देवी दिखी. उसके हाथों में तराज़ू दिखा था. ग्रीक कथाओं की देवी है मुझे पता नहीं, ग्रीस देश का नाम भी नहीं सुना था. उस रोज़ न्याय की इस खूबसूरत देवी के हाथ में तराज़ू देखकर पटना के अंटाघाट सब्ज़ी मंडी में सब्ज़ी तौलने वालों का ध्यान आ गया. एक तरफ दो किलो प्याज़ और एक तरफ बटखरा.

मेरे बाल मन में प्रश्न आया, जो मैंने किसी भी प्रधानमंत्री को नहीं बताया, यह प्रश्न मेरे मन की बात का हिस्सा बन कर रह गया. प्रश्न था कि अगर इंसाफ़ तौला जाता है तो कब सौ ग्राम कम हो जाए, कैसे पकड़ा जाता है ? क्या ऐसा हो सकता है कि तराज़ू के एक पलड़े में मोहम्मद ज़ुबैर को बिठाया जाए और दूसरे पलड़े में रोहित रंजन को ? लेकिन जब रोहित रंजन फरार हैं तब अकेले ज़ुबैर को बिठाकर न्याय का संतुलन कैसे होगा ?

एक पलड़े पर केवल ज़ुबैर दिखेगा और एक पलड़ा खाली दिखेगा. हमारी फिल्म राजू का इंसाफ़ की थीम यही है. तराज़ू है तो वह बटखरा कहां है, जिससे संतुलन बनता है ? ज़ुबैर क्यों जेल में है और रोहित क्यों फरार है ? एक पत्रकार है ज़ुबैर, एक पत्रकार है रोहित. ज़ुबैर ने झूठ को पकड़ा, सच उजागर किया. रोहित रंजन ने सच को छुपा कर झूठा वीडियो दिखा दिया. ज़ुबैर गिरफ्तार हैं और रोहित फ़रार हैं. किसी को किसी बात से एतराज़ नहीं है इसलिए हमने अपनी फिल्म का नाम इंसाफ़ का तराज़ू नहीं रखा बल्कि राजू का इंसाफ़ रखा है.

कितना फर्क है. आल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक और पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर को जब दिल्ली पुलिस बुलाती हैं तो वे अहमदाबाद से चल कर आते हैं, जांच में हिस्सा लेते हैं और जेल जाते हैं. 27 जून को आल्ट न्यूज़ के संस्थापक प्रतीक सिन्हा ट्विट करते हैं कि चिकित्सा जांच के बाद ज़ुबैर को कहीं ले जाया जा रहा है. मुझे और वकील को नहीं बताया जा रहा है कि कहां ले जाया जा रहा है. पुलिस के किसी भी व्यक्ति ने नेमप्लेट नहीं लगाया है. यानी जेब के ऊपर जो नाम लिखा होता है वह नहीं है. ज़ुबैर जांच में सहयोग करते हैं, अदालत उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज देती है. ज़ुबैर के वकील कॉलिन गोंजाल्विस सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी डाली है कि जेल में जुबैर को मौत की धमकी का सामना करना पड़ रहा है. शुक्रवार को इस याचिका पर सुनवाई होगी.

यह घर ज़ी न्यूज़ के ऐंकर रोहित रंजन का घर है. ज़ुबैर पुलिस के पास चल कर आते हैं लेकिन रोहित रंजन को गिरफ्तार करने छत्तीसगढ़ की पुलिस आती है तो नोएडा और गाज़ायिबाद की पुलिस भी आ जाती है. प्रक्रियाओं को लेकर सवाल खड़े होते हैं. इन्हें पालन कराने के लिए ग़ाज़ियाबाद की पुलिस भी मौके पर पहुंच गई और नोएडा की पुलिस भी पीछे से आ गई.

मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि सोसायटी के लोग भी पुलिस से आईकार्ड मांगने लगे क्योंकि वह सादी वर्दी में आई थी. गाज़ियाबाद की पुलिस तर्क देती है कि पहले उसे क्यों नहीं सूचना दी गई. क्या प्रक्रियाओं का सवाल बनाकर दो दो ज़िलों की पुलिस के ज़रिए रोहित को बचाया जा रहा था ? इस जगह ज़ुबैर की तरह रोहित रंजन ख़ुद पुलिस के पास क्यों नहीं हाज़िर हो गए ? उन्होंने तो माफी भी मांग ली थी, तब फिर किस बात का डर था ? क्या ज़ुबैर को रोहित की तरह छूट मिल सकती थी ?

रोहित रंजन को नोएडा पुलिस पूछताछ के लिए ले जाती है और रात को बताती है कि उन्हें गिरफ्तार किया गया था लेकिन ज़मानत पर रिहा हो गए हैं. उसके बाद रोहित कहां है, छत्तीसगढ़ की पुलिस को पता नहीं है. ज़ी न्यूज़ ने अपनी शिकायत में रोहित रंजन का नाम नहीं लिया था. सीनियर प्रोड्यूसर नरेंद्र सिंह और ट्रेनी प्रोड्यूसर विकास कुमार झा का नाम लिया था. इन पर गंभीर अपराध के आरोप लगाए थे लेकिन ये दोनों तो गिरफ्तार नहीं हुए, फिर रोहित रंजन को क्यों गिरफ्तार किया गया ? दोनों की गिरफ्तारी से संबंधित कोई समाचार हमें नहीं मिला.

इंडियन एक्सप्रेस में मालविका प्रसाद की रिपोर्ट छपी है कि जब नोएडा की पुलिस रोहित रंजन को उनके घर से ले गई, उसके कुछ ही मिनट पहले ज़ी मीडिया कोरपोरेशन की तरफ से नोएडा में FIR कराई जाती है. सुबह 8 बज कर 33 मिनट पर. ज़मानत पर रिहा होने के बाद रोहित रंजन के घर पर ताला लगा है. छत्तीसगढ़ पुलिस के डीसीपी उदयन बेहर ने गाज़ियाबाद पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराई है और रोहित को फरार घोषित कर दिया है. यही नहीं छत्तीसगढ़ पुलिस का कहना है कि नोएडा पुलिस ने अभी तक FIR की कॉपी नहीं दी है जबकि FIR पब्लिक डोमेन में होती है.

मोहम्मद ज़ुबैर गिरफ्तार हैं, रोहित रंजन गिरफ्तार होते हैं, और ज़मानत पर रिहा होकर फरार हो जाते हैं. क्या यह अजीब नहीं है कि ज़ी न्यूज़ ने अपनी शिकायत में जिन दो लोगों का नाम लिया है, उन पर गंभीर अपराध के आरोप लगाए हैं, उनकी गिरफ्तारी की कोई सार्वजनिक सूचना नहीं है. छत्तीसगढ़ की पुलिस कह रही है कि FIR की कॉपी तक नहीं दी जा रही है, नोएडा पुलिस को भी अपना पक्ष बताना चाहिए.

27 अक्तूबर 2017 में जब रमन सिंह मुख्यमंत्री थे, छत्तीसगढ़ की पुलिस गाज़ियाबाद आती है और बीबीसी के पूर्व पत्रकार विनोद वर्मा को गिरफ्तार कर ले जाती है. आरोप था कि विनोद वर्मा के पास कोई CD है जिसके सहारे वे छत्तीसगढ़ के मंत्री को ब्लैकमेल कर रहे हैं. मामला रायपुर के पंडारी थाने में दर्ज हुआ था. विनोद वर्मा ने कहा था कि उन्हें फंसाया जा रहा था लेकिन तब भी विनोद वर्मा फरार नहीं हुए, पुलिस आई और पुलिस के साथ ग़ाज़ियाबाद से रायपुर गए. ग़ाज़ियाबाद की अदालत ने ट्रांज़िट रिमांड भी दिया था. छत्तीसगढ़ से ही पुलिस आई है, ग़ाज़ियाबाद में ही पुलिस आई है, पत्रकार की तलाश में ही पुलिस आई है लेकिन इस बार पत्रकार फरार है. वहीं ज़ुबैर गिरफ्तार है.

पूछना कि उनके केस में क्या हुआ, वे खुद बोलें कि बीजेपी ने क्या कहा था और यह मामला कहां तक पहुंचा है ? एक इकोसिस्टम है. जब सरकार से सवाल करने वाला, सच को उजागर करने वाले को फंसाया जाता है या पकड़ा जाता है तब वह इकोसिस्टम कहता है कि पुलिस से लेकर तमाम एजेंसियों पर भरोसा क्यों नहीं है. वह कहता है कि कोर्ट पर भरोसा कीजिए, अब वह रोहित रंजन के मामले में यह बात नहीं कहता. नहीं कहता कि अगर पुलिस फंसा रही है तो कोर्ट पर भरोसा करो. सवाल करने वालों या विपक्ष के नेताओं के वक्त इकोसिस्टम चीख चीख कर कहता है कि कानून सबके लिए है. रोहित रंजन के समय चीखने वाले चुप हैं.

राहुल गांधी और सोनिया गांधी पर कटाक्ष कर कहा कि देश में कोई महारानी विक्टोरिया या राजकुमार नहीं है कि उनकी जांच नहीं होगी. कानून सभी के लिए समान है. भ्रष्टाचार के लिए सभी की जांच की जा रही है. जनता नेशनल हेराल्ड घोटाले में एक परिवार की संलिप्तता और देश के धन के दुरुपयोग के बारे में जानती है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अगर भ्रष्टाचार हुआ है तो पूछताछ जरूर होगी.

क्या यही बात रोहित रंजन पर लागू नहीं होती है ? जो आम नागरिक की तरह पांच पांच बार ED के पास पूछताछ के लिए हाज़िर होता है, उसे राजकुमार बताया जाता है. तो रोहित रंजन क्या हैं ? क्या राजकुमार हैं, जो फरार हैं ? उनके लिए उसी कानून और कोर्ट की मांग क्यों नहीं हो रही है ? इसलिए हमने फिल्म बनाई है राजू का इंसाफ. हमारी फिल्म का नायक राजू अपने हिसाब से इंसाफ करता है.

राजू के चरणों में जनता की भीड़ है. राजू जिसे कहता है, जनता अपराधी मान लेती है. मेरी कहानी का राजू हैट पहनता है मगर जेंटलमैन हैं, हो ही नहीं सकता. राजू का इंसाफ़ तराज़ू पर तौल कर नहीं मिलता, उसकी आरज़ू से मिलता है. उसके पास मीडिया का पावर है, उसकी तारीफ गाने वाला ऐंकर फरार हो सकता है, उससे सवाल करने वाले पत्रकार के पास एक ही रास्ता बचता है..आखिरी रास्ता…गिरफ्तार.

ज़ुबैर गिरफ्तार है और रोहित रंजन फ़रार है. सियासत के हिसाब से पुलिस खेल खेल रही है. भारत के विदेश मंत्रालय ने ज़ुबैर पर जर्मन विदेश मंत्रालय के बयान पर एतराज ज़ाहिर किया है. कहा है कि ये हमारा आंतरिक मामला है. मामला न्यायालय के अधीन है. हमारी न्याय व्यवस्था स्वतंत्र है. इस पर किसी तरह की टिप्पणी अनुपयोगी है. ऐसा नहीं करना चाहिए.

जर्मनी के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि अगर भारत खुद को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहता है तो उससे उम्मीद की जाती है कि प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ज़रूरी स्थान मिले. पत्रकार की ज़ुबैर गिरफ़्तारी पर जर्मनी ने कहा कि उसके संज्ञान में है और मामले पर नजर भी.

ज़ुबैर और प्रतीक सिन्हा को ओस्लो के Peace Research Institute of Oslo ने नोबेल पुरस्कार के लिए प्रस्तावित किया है. इस समय भारत की आज़ादी का अमृत महोत्सव चल रहा है. आज़ादी की लड़ाई दरअसल जेल के भय से लड़ने की लड़ाई थी. बहुत लोग माफी मांग कर जेल से आ गए तो बहुतों ने जेल में जान दे दी. जेल को अपना घर बना लिया, गीत रचे और जेल का डर जनता के बीच से भगा दिया. ऐसे गीतों पर अंग्रेज़ी हुकूमत ने प्रतिबंध लगा दिए.

1997 में उत्तर प्रदेश के संस्कृति विभाग ने निःशुल्क वितरण हेतु प्रतिबंधित गीतों का संग्रह प्रकाशित किया था. इस संग्रह के लिए 1997 में संस्कृति विभाग के अधिकारी बधाई के पात्र हैं. जेल में तरह-तरह की यातनाएं दी जाती थीं. कैदी को कम से कम सामान दिया जाता था लेकिन आज़ादी के दीवाने तकलीफों की परवाह नहीं करते थे. इसी किताब में एक कविता है –

यहां हम जेल जाने के लिए तैयार बैठे हैं,
खुदा जाने ये हाकिम क्यों किए इनकार बैठे हैं.
ठसाठस जेल खाने भर गए हैं आज भारत के,
न कम्बल है, न तसले हैं दिवाला काढ़ बैठे हैं.

तसला का बहुत ज़िक्र है. इसी पर एक पूरी कविता आपको पढ़ कर सुनना चाहता हूं. कविता का नाम है तसला महिमा. उस समय जेल में तसला मिला करता होगा, जिसका इस्तेमाल कैदी तरह तरह से करते होंगे. तो इस कविता में तसले का संबंध जेल से बन जाता है

यदि सच पूछो तो काराग्रह में,
सर्वस्व हमारा है तसला
दुख कन्द नसावन सुखदायक
प्रिय इष्ट सहारा है तसला
खाना इसमें ही खाते हैं
पीते पानी सुख पाते हैं
इस पर ही बलि-बलि जाते हैं
यह ह्रदय दुलारा है तसला
कुर्सी का काम यही देता
बन तकिया दुख है हर लेता
दुख सिन्ध से नैय्या है खेता
भव पार उतारा है तसला
कैदी जब मन बहलाते हैं,
तबला वे बना मिल गाते हैं
इसी को ही वाद्य बनाते हैं
यह ही निस्तारा है तसला
जब धूप ग्रीष्म की कड़ी पड़े
या वर्षा की अति झड़ी पड़े
बन छाता रक्षक घड़ी पड़े
यह दुख सहारा है तसला
जब युद्ध परस्पर ठनता है
यह चक्र सुदर्शन बनता है
अति मुग्ध जेल की जनता है
चितरंजन प्यारा है तसला
सच्चा साथी इसको जानो
सुख दुख में इसको पहिचानो
मन में महिमा इसकी मानो
गुण विस्तृत विस्तारा है तसला
कर स्वच्छ बना इस का दर्पण
करते प्रतिक्षण इसका पूजन
निश दिन करते हैं आराधन
अद्भुत है न्यारा है तसला
स्वच्छ पात्र यही अति सुख कर है
अरु शक्ति अमोघ शक्तिधर है
प्राणों का प्यारा मनहर है
नयनों का तारा है तसला

ऐसी ही एक कविता का शीर्षक है ससुराल के अन्दर साहब. इसकी पहली दो पंक्तियां हैं – जेलखाने का नहीं कुछ भी हमें डर साहब. कौन जाता नहीं ससुराल के अन्दर साहब. कभी और सुनाऊंगा. अमरावती से अनुराग द्वारी की तीसरी रिपोर्ट. यहीं की सांसद हैं नवनीत राणा. निर्दलीय. नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा हनुमान चालीसा पाठ के बाद सुर्खियों में रहे. अमरावती में हुए उमेश कोल्हे हत्याकांड को दोनों आतंकी साजिश बता रहे हैं, सीमा पार से तार जोड़ रहे हैं लेकिन एनडीटीवी को अपनी तफ्तीश में पता लगा है कि जिस व्यक्ति को इस हमले का मास्टर माइंड बताया जा रहा है और वह मुख्य आरोपी भी है, उसने ना सिर्फ पिछले चुनावों में राणा दंपत्ति के लिये प्रचार किया बल्कि इलाके के लोगों के मुताबिक उनके बेहद करीबी भी था. सांसद और विधायक दोनों इससे झंकार करते हैं और कहते हैं कि जिस भी दल का कार्यकर्ता हो, कड़ी सज़ा मिलनी ही चाहिए.

छोटे व्यापारी परेशान हैं कि मार्का लगे बटर, दही और लस्सी, छाछ, पनीर, पापड़ मुरमुरे और गुड़ को पैक करके बेचने पर पांच प्रतिशत जीएसटी लगाने का फैसला उन्हें बर्बाद कर देगा. बड़े व्यापारियों को फायदा होगा. व्यापारी संघ का कहना है कि 85 प्रतिशत जनता बिना ब्रांड वाले प्रोडक्ट का इस्तेमाल करती है, उस पर बहुत भार पड़ेगा.

जो जनता 100 रुपया लीटर पेट्रोल का स्वागत कर रही थी, हमने प्राइम टाइम में दिखाया भी था कि कैसे लोग महंगाई का सपोर्ट कर रहे हैं, वे पांच प्रतिशत जीएसटी का विरोध कर रहे हैं, यह ठीक बात नहीं है. इसके वापस लिए जाने की मांग हितों के हित राष्ट्रहित में उचित नहीं है. बोरिस भाई. इनके बारे में द गार्डियन अखबार ने अपने संपादकीय में लिखा है कि ये झूठे तो है हीं, फ्राड भी हैं.

गार्डियन नोएडा से नहीं छपता है वर्ना इस अखबार का साइन बोर्ड तक जेल में होता. मैं पढ़ रहा हूं लेकिन डर भी लग रहा है कि इसे पढ़ने के कारण लंदन की पुलिस मेरी तलाश में नोएडा न आ जाए.
fraud is a word that can describe a person and an action; deception and the deceiver. Boris Johnson is both.

मतलब बोरिस जॉनसन के काम और व्यक्तित्व में ही फ्राड और धोखा झलकता है. यह धोखेबाज़ है. सीरीयल लायर है. यानी हर समय झूठ बोलने वाला. यह व्यक्ति देश को एक झूठ बेचा गया उसका अवतार है. हे ग्रीक देवी प्लीज़ हेल्प मी, मैं गार्डियन का संपादकीय पढ़ रहा हूं. जो बोरिस के बारे में लिखता है कि जिसने भी बोरिस जानसन के कैरियर को फोलो किया है, वह देख सकता है कि उसका रास्ता झूठे बयानों और धोखेबाज़ियों का रहा है. इसके आत्ममुग्ध चरित्र से देश को जो नुकसान पहुंचा है, उसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है.

मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि बोरिस जॉनसन से मिलता जुलता इतना झूठ बोलने बोलने वाला एक भी नेता भारत में नहीं है. लोग मेरे इस दावे पर विश्वास क्यों नहीं कर रहे हैं, करना चाहिए. बोरिस जानसन ने कहा है कि उन्होंने नए कैबिनेट की नियुक्ति कर दी है, जब तक कोई नया प्रधानमंत्री नहीं चुन लिया जाता, वही प्रधानमंत्री रहेंगे और हम और आप ब्रेक लेते रहेंगे.

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