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मोहम्मद जुबैर के फैक्ट चेक के सच से संघियों का खौफ

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मोहम्मद जुबैर के फैक्ट चेक के सच का खौफ
मोहम्मद जुबैर के फैक्ट चेक के सच का खौफ
कृष्ण कांत

झूठ को उजागर करने वाला जेल जा रहा है. झूठ फैलाने वाला सम्मान पा रहा है. नफरत फैलाने वाला ऊंची कुर्सी पा रहा है. नफरत को नफरत कहने वाला सजा पा रहा है. हत्या करने वाले का स्वागत हो रहा है. जो मर गया उस पर मुकदमा हो रहा है. जो धार्मिक उन्माद फैला रहा है, उसे अभयदान मिला हुआ है. जो अमन की बात कर रहा है वह जेल जा रहा है. यह न्यू इंडिया है. यह न्यू इंडिया का अमृतकाल है. न्यू इंडिया के अमृतकाल में आपका स्वागत है.

मैंने फैक्ट चेक टीम के साथ काम किया है, इसलिए मैं कह सकता हूं कि आल्टन्यूज इस देश की बेहतरीन फैक्ट चेक वेबसाइट है. वह पहली वेबसाइट है, जिसने राजनीतिक झूठ के रैकेट का पर्दाफाश करना शुरू किया, जिसने झूठ के सहारे समाज में जहर घोलने वाले गुब्बारों की बार-बार हवा निकाली, जिसने सांप्रदायिक उन्माद बढ़ाने वाले फर्जी दावों का पर्दाफाश किया. ‘आल्टन्यूज’ के काफी बाद में मेनस्ट्रीम मीडिया संस्थानों ने भी अपनी-अपनी टीम बनाई और फैक्ट चेक करना शुरू किया.

कार्टून : हेमन्त मालवीय

बड़े मीडिया हाउस आम तौर पर राजनीतिक मामलों में पड़ने से बचते हैं. जैसे कोई भी संस्थान नाम लेकर यह कहने से बचता है कि प्रधानमंत्री, मंत्री, प्रवक्ता या फलां दिग्गज नेता ने अपने हैंडल से या भाषण से झूठ फैलाया. आल्टन्यूज यह करता है. आल्टन्यूज में वह साहस है जो दूसरों में नहीं है. दुःखद है कि जो काम दिग्गज पत्रकारों को करना चाहिए था, वह कुछ युवा मिलकर कर रहे हैं. सरकार को यह बर्दाश्त नहीं है.

फिल्म के इस दृश्य में हनिमून शब्द के ‘नि’ को ‘नु’ बना दिया गया और ‘मू’ को ‘मा’ बना दिया गया. इस तरह ‘हनीमून’ शब्द को बदलकर ‘हनुमान’ बना दिया गया. इसी दृश्य के स्क्रीनशॉट फ़िल्म से लेकर 2018 में ट्वीट करने पर 2022 में जुबैर को गिरफ्तार किया गया है.

जिस पोस्ट को लेकर जुबैर की गिरफ्तारी की बात कही जा रही है, वह 1983 में आई ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘किसी से ना कहना’ का एक दृश्य है. सेंसरबोर्ड से पास हुई फिल्म का दृश्य ट्वीट करने के लिए किसी फर्जी अकाउंट ने शिकायत की थी, जिसके आधार पर पत्रकार को गिरफ्तार कर लिया गया. यह शायद 70 में पहली बार टाइप अनोखा कारनामा हो ! यही सब विडंबनाएं हमें विश्वगुरु बनाएंगी !

लेकिन यह बाहरी आवरण है जो सबको दिख रहा है. अंदरूनी सड़न कहीं ज्यादा बढ़ चुकी है. भाजपा की प्रवक्ता ने लाइव शो में मोहम्मद साहब पर घटिया टिप्पणी की. उस मसले को जुबैर ने जोर-शोर से उठाया. भाजपा को उसे लेकर बैकफुट पर आना पड़ा. दुनिया भर में देश की बदनामी हुई. इसके पहले धर्म संसद में जो जहर उगला गया, जुबैर ने उसे भी मजबूती से सामने रखा था. इसके बाद से जहर उगलने वाले कुछ जंतु जुबैर के खिलाफ अभियान चला रहे थे.

क्या अब हम राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी बहसें करेंगे ? कोई मोहम्मद साहब पर गंदी टिप्पणी करे तो जवाब में कोई राम, कृष्ण और ब्रम्हा, विष्णु, महेश पर गंदी टिप्पणी करे ? ऐसा करने की जरूरत क्या है ? इसे कौन बढ़ावा दे रहा है ? क्या भाजपा सरकार समाज में ऐसे घटियापन को बढ़ावा नहीं दे रही है ? अगर नहीं, तो उस प्रवक्ता पर कानूनी कार्रवाई अब तक क्यों नहीं हुई ? क्या उसका अपराध फिल्मी दृश्य ट्वीट करने से भी छोटा था ?

जिस प्रवक्ता की वजह से दंगा हुआ, धार्मिक फूट बढ़ी, दुनिया भर में बदनामी हुई, उसे गिरफ्तार नहीं किया गया लेकिन उस बात को सबके सामने उठाने की कीमत जुबैर को चुकानी पड़ी. धार्मिक भावनाएं भड़काने का जो आरोप मोहम्मद ज़ुबैर पर है, वही नूपुर शर्मा पर है. नूपुर ने नफरत फैलाई, जुबैर ने सबके सामने रखा. जुबैर जेल गए, नूपुर शर्मा को पुलिस सुरक्षा मिल गई.

दुनिया यह सब देख रही है. एक देश के तौर पर अभी हमको और बदनाम होना है, और बेइज्जत होना है. आपस में और लड़ना है और विध्वंस देखना है. तमाम गोदी पत्रकार इस बात पर खुश हो रहे हैं कि जुबैर गिरफ्तार हो गए. नोटों में चिप वाली चिपचिपी-लिजलिजी, रीढ़विहीन पत्रकारिता निहाल हो गई है. उन्हें खुशी है कि आल्ट न्यूज न रहे तो नोटों में चिप और गाय माता द्वारा आक्सीजन उत्सर्जन का भंडाफोड़ नहीं होगा.

क्या पत्रकार, क्या बुद्धिजीवी, क्या जनता, सब दो धड़ों में बंटे हैं. अब न्याय कोई सामाजिक मूल्य नहीं है. अब न्याय इंसानियत का तकाजा नहीं है. अब अन्याय पर ताली बजाने वालों का संगठित गिरोह है. अब ऐसे लोगों को खतम किया जा रहा है जो विरोधी पर भी अन्याय को अन्याय कहें. ऐसे लोगों को कुचला जा रहा है जो निर्दोष पर अत्याचार का विरोध करें. हमारे बुनियादी उसूलों पर बुल्डोजर चलाया जा रहा है. हमें एक निकृष्ट समाज बनाया जा रहा है.

तीस्ता सीतलवाड़ को जेल क्यों हुई ? उन्होंने क्या षडयंत्र किया था ? क्या यह कहना अपराध है कि तीन हजार निर्दोषों की हत्या की जवाबदेही तय हो ? क्या गुजरात में दंगा नहीं हुआ था ? क्या सरकार ने उसे होने नहीं दिया था ? क्या अटल बिहारी वाजपेयी ने राजधर्म का पालन करने की नसीहत नहीं दी थी ? क्या पूरी दुनिया को नहीं मालूम है कि गुजरात में क्या हुआ था ? लेकिन उसकी सजा तीस्ता सीतलवाड़ को मिलेगी.

समाज में भीतर तक जहर भरा जा रहा है. क्या हम आप नहीं जानते कि इस जहर का नतीजा क्या होता है ? क्या हमने 1947 से कोई सबक नहीं सीखा ? शायद नहीं. अब हम सबके लिए अपनी-अपनी राजनीतिक और धार्मिक कुंठा ही सर्वोपरि है. ‘बांटो और राज करो’ का अंग्रेजी फार्मूला सफल हो चुका है. हम सब बंट चुके हैं. हम सब नफरत में इतने डूब गए हैं कि जिंदा दिख रहे हैं लेकिन मर चुके हैं.

हो सकता है कि आपको जुबैर सामान्य लग रही होगी, लेकिन मुझे दिख रहा है कि इस देश में एक अघोषित आपातकाल है जो घोषित आपातकाल से बहुत बुरा और बहुत खतरनाक है. विरोधी पार्टियों पर ​ईडी छोड़ दी गई है और असहमत नागरिकों पर पुलिस छोड़ दी गई है. अब आपको सिर्फ वही सोचना और बोलना है, जैसा सुल्तान का आदेश हो. आप इससे चिंतित नहीं हैं तो आपकी निश्चिंतता आपको मुबारक हो, आप बहुत खुशनसीब हैं !

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