Home गेस्ट ब्लॉग नरेंद्र मोदी रिलाएन्स को ईस्ट इंडिया कंपनी बनाने के लिए ‘अग्निपथ’ पर देश को धकेल रहे हैं ?

नरेंद्र मोदी रिलाएन्स को ईस्ट इंडिया कंपनी बनाने के लिए ‘अग्निपथ’ पर देश को धकेल रहे हैं ?

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रविश कुमार की फेसबुक पोस्ट ने अग्निवीर को लेकर मेरी एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर से हुई लगभग दो वर्ष पुरानी बातचीत को याद दिला दिया, जिसके सिरों को जोड़ने पर इस योजना के वे सभी जवाब मिलते दिखाई दे रहे हैं, जिन्हें सरकार डिफेन्स फोर्सेस की साख की आड़ में छुपाने का प्रयास कर रही है.

अग्निवीर योजना को लेकर पक्ष और विपक्ष के लगभग सभी बयान, प्रेस कॉन्फ्रेंस में तर्कों और दावों को सुना रविश कुमार के प्राइम टाइम में थोड़ा बहुत जो दिखाया, उसे छोड़ दें तो कहीं भी उस बात की सुगबुगाहट नहीं सुनाई दी, जिसके तार इस लेख में जोड़े जाने का प्रयास किया गया है.

वर्ष 2020 जून 17 को मैं दिल्ली में डीजीपी की पोस्ट से सेवानिवृत हुए भारत के एक नामी सीनीयर आईपीएस अफसर के घर ठहरा हुआ था. नाश्ते की मेज पर उन्होंने बताया कि ‘एक जूनियर आईपीएस का फोन आया है जो एक सिक्युरिटी एजेंसी जिसका नाम कैवलेरी सिक्युरिटी ट्रेनिंग कंपनी है, को वो जॉइन कर रहा है और इसी सिलसिले में मुझसे भी आग्रह किया गया है कि मैं भी बतौर कौन्सिल मेंम्बर जॉइन करूं. इसी सिलसिले में एक-आध दिन बाद मीटिंग है.’

बात आई गई हो गई. कुछ दिनों बाद फिर मिलना हुआ तो डीजीपी साहब ने बताया कि उस सिक्युरिटी कंपनी को उन्होंने जॉइन नहीं किया क्योंकि वो तो सरासर एक फ्रॉड है, कैसे ? उन्होंंने बताया कि ‘कैवेलरी सिक्युरिटी एजेंसी ने दावा किया है कि अपनी ट्रेनिंग अकादमी में वो जिन लोगों को ट्रेन करेंगे उनको 100 प्रतिशत रोजगार भी उपलब्ध होगा, कैसे होगा ?

कंपनी के चेयरमैन इंदरजोत ओबेरॉय ने कहा कि उनकी इस सरकार में अच्छी पैठ है, जहां भविष्य में यह नियम बन सकता है कि जिन्हें भी सिक्युरिटी गार्ड रखने होंगे उन्हें एक खास किस्म के सर्टिफिकेट होल्डर्स को ही गार्ड के रूप में रखना होगा और वही सर्टिफिकेट हम अपनी अकादमी में इन गार्ड्स को देंगे.

मीटिंग में शामिल एक अन्य पूर्व आईपीएस ने पूछा कि अकादमी को चलाने का खर्च आप कैसे वहन करेंगे ? तो ऑबराय ने बताया कि ट्रेनिंग प्रक्रिया में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों से प्रति अभ्यर्थी 75 हजार रुपये की फीस ली जाएगी, जिसमें आर्मी से सेवानिवृत हुए अफसरों की बतौर ट्रेनर्स तनख्वाह और अन्य खर्चे उठाए जाएंगे. इसी के साथ जिला, ब्लॉक और आंचलिक लेवल पर भी कैवेलरी के सेंटर खोले जाएंगे और साथ ही लोगों को इसकी फ्रेंचाईसी भी दी जाएगी और उनसे भी अपना शेयर लिया जाएगा.

अपने प्रोजेक्ट को बताते हुए इंदरजोत ऑबरॉय ने अति उत्साह में यह भी कहा कि अगर कुछ नहीं हुआ तो हमारे पास इतना डाटा इकट्ठा हो जाएगा जिसे हम रिलाइन्स और दूसरे कॉर्पोरेट्स को बेच सकते हैं. (विदित हो कि आज ही अदानी को आंध्र प्रदेश में डाटा सेंटर बनाने की मंजूरी मिली, जिसमें वह 14 हजार करोड़ से अधिक इन्वेस्ट करेंगे). इसके साथ ही वे बोले कि वैसे भी अडानी-अंबानी से आजकल ऐसी डिमांड आने की सुगबुगाहट है.

इसके बाद डीजीपी साहब ने मेरे आगे एक पूरा मेल और कंपनी का प्रोस्पेक्टस रख दिया और कहा कि तसल्ली से पढ़ लेना. जब खोजबीन की तो कई तथ्य सामने आए जिन्हें आज दो साल बाद अग्निवीर से जोड़ा जाए तो हम पाएंगे कि यह तथ्य दो ब्लॉक की तरह आपस में एकदम सटीक बैठते हैं. इन तथ्यों को कुछ छुपाये हुए तथ्यों के साथ मिलाकर देखने पर असल तस्वीर बनती है, इसी क्रम में एक और जानकारी जरूरी है.

17 अगस्त वर्ष 1998 को रिलाएन्स ने एक कंपनी का गठन किया जिसका नाम है ग्लोबल कॉर्पोरेट सिक्युरिटी, जिसके तहत एक अकादमी का गठन हुआ. रिलाएन्स सिक्युरिटी एण्ड रिस्क मैनेजमेंट अकेडेमी इस सिक्युरिटी कंपनी ने अपनी अकादमी में सुरक्षा अधिकारी तैयार करने शुरू किये और हर वर्ष इसमें 60 अधिकारी तैयार किये गए.

प्रारम्भिक रूप से इस ट्रेनिंग प्रोग्राम को चलाने का जिम्मा कैप्टन वी. वी. भट्ट को दिया गया और बाद में अन्य सैकड़ों सैन्य अफसरों ने अपनी सेवाएं दीं. इस अकादमी में शामिल होने के लिए अभ्यर्थी के पास एनसीसी का सर्टिफिकेट सी या बी होना जरूरी है, अन्यथा राज्य या राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी होना जरूरी है.

इस अकादमी में भर्ती के लिए पुरुषों की लंबाई 5 फुट 9 इंच और महिलाओं की 5 फुट 6 इंच होनी अनिवार्य है, साथ ही स्नातक 50% अंकों से किया हो. जीसीएस की साइट पर बताया गया है कि ट्रेनिंग के दौरान ही सालाना 3.75 लाख रुपये का मानदेय इन 60 अधिकारियों को दिया जाएगा. ट्रेनिंग पूरी करने के बाद इन्हें रिलाएन्स की ही साइट्स पर ड्यूटी अफसर के तौर पर तैनाती का प्रावधान है. यह अकादमी महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के एक पेट्रोकैमिकल प्लांट में चलाई जाती है, जो रिलाएन्स का ही है.

अब यहां तक तो ऐसी कोई आपत्तिजनक बात नहीं दिखती है पर क्या अफसरों को तैयार करने वाली इस रिलायंस को अब उसके अधीन काम करने वाले सिपाही भी चाहिए ? कड़ियों को जोड़ें और सेना के आचरण को जानने वाले जानते होंगे कि सेना में आदेश की पालना एक बड़ा फैक्टर है. आदेश अफसर का होता है, पालना सिपाही को करनी है.

इसी क्रम में ऐसा दिखता है कि अफसर तो रिलाएन्स ने अपने मिजाज के तैयार किये और सिपाही तो खैर सिपाही है, आदेश मानने की ट्रेनिंग फौज से अधिक कहीं और नहीं दिलाई जा सकती. मतलब आदेश रिलाएन्स का होगा, पालना सिपाही करेगा, पर आदेश क्या होगा ये भविष्य के गर्भ में है.

कैवेलरी सिक्युरिटी कंपनी के मॉडल में अभ्यर्थियों को अपनी ही ट्रेनिंग के लिए 75 हजार रुपये जमा कराने थे, जो योजना शायद सिरे न चढ़ सकी तो क्या उस खर्च को खुद पर न आने देने के लिए पूंजीपतियों ने अपनी कंपनियों के लिए सिपाही का खर्च सरकार पर डाल कर अपने प्लान की इतिश्री कर ली है ? और सरकार इन्हीं पूंजीपतियों के लिए अग्निवीर की आग के धुएं में सब छुपाने का प्रयास कर रही है ?

जनरल वी. के. सिंह ने कहा कि फौज कोई रोजगार कार्यक्रम नहीं है, इस बात से पूर्णतया सहमत होते हुए वी. के. सिंह से पूछा जाना चाहिए तो फिर इस योजना को सरकार ला ही क्यों रही है ? जिन 46 हजार लोगों को सरकार प्रशिक्षित करेगी उन पर सेना बजट का अच्छा-खासा पैसा खर्च होगा ? तो क्या महज 4 साल के लिए सेना अपनी ऊर्जा और बजट खर्च करके पूंजीपतियों के हाथ अपने सैनिक बेच देगी ?

क्या यह भी मजह इत्तेफाक है कि श्री श्री रविशंकर, रामदेव सरीखे बाबा जो असल में उद्योगपति ही हैं, इस योजना के समर्थन में विरोधियों को देशद्रोही बता रहे हैं, क्या महिंद्रा, टाटा, और देश के अन्य उद्योगपतियों ने केवल मोदी समर्थन के लिए इस योजना का समर्थन कर दिया है ?

कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार ने कहा कि ‘मोदी खुद को डॉ. डैंग समझते हैं और जनता को चूहा जिसमें सूई लगा कर देखते हैं कितना उछलेगा’, सुन कर बात पर हंसी या सकती है. पर मोदी इतने बेवकूफ नहीं जो केवल चूहे की उछाल देखने के लिए सूई पर खर्च कर दें ! साथ ही विदित हो कि सेना में जाने वाले मोदी का असल वोट बैंक भी हैं. तो मोदी इतने कच्चे व्यापारी नहीं जो सौदा इतना महंगा करें और हासिल कुछ नहीं. उनके खून में व्यापार है, इसका दावा खुद मोदी कर चुके हैं.

मेरी इस बात पर एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि तो क्या 46 हजार को रिलाएन्स में भर्ती किया जा सकेगा ? ऐसा संभव तो नहीं दिखता. इस वाजिब सवाल को एक बार फिर पूंजीवादी गणित से ही समझा जा सकता है. एक दौर आया था जब इस देश में इंजीनियर बनाने के लिए कॉलेज कुक्कुरमुत्ते की तरह उग आए थे. पर क्या सच में इतने इंजीनियर किसी कंपनी या कुल मिलाकर कंपनियों में खपे ? जवाब है नहीं, तो किसलिए ये इंजीनियर बनाए जा रहे थे ?

दरअसल ‘बेंचस्ट्रेन्थ’ एक शब्द है जो मैदान में खड़े खिलाड़ी पर दबाव बनाने का माध्यम है. आपके पास कम से कम 5 गुना की अगर नफ़री सिर्फ इस ताक में खड़ी है कि कब किसी को निकाला जाए तो मुझे मौका मिले, तो ये नफ़री किसी कंपनी या संस्था को इसी बात की बढ़त देती है कि बेटा तुम नहीं तो कोई और काम करना है तो मेरे तय दाम पर काम करो, अन्यथा बाहर तुम जैसे बहुत खड़े हैं. यही बात काम करने वाला भी जानता है और अपने अधिकारों की पुड़िया कुएं में डालने के बाद ही बड़ी-बड़ी कंपनियों में इंजीनियर का पद वफादारी से संभालता है. अग्निवीर तो फिर भी अनुशासन सीख कर आएगा तो उसे तो शायद यह दबाव भी महसूस न हो.

हमारे देश में भावनाएं आहत होने का फैशन है, जिसके तहत भाजपा नेता विजयवर्गीय की बात जिसमें उन्होंने ‘अग्निवीरों को भविष्य का भाजपाई चौकीदार बताया है’ बेशक विरोध झेल रही है, पर उस बात में 100 प्रतिशत सच्चाई है. इसमें ऐसी कोई भी बात नहीं जो भविष्य के गर्त में छुपी है. साफ-साफ दिखाई देने वाली चीज भी अगर साफ न दिखाई दे वह भी तब जब सरकार का नेता ही दिखा रहा हो तो उसमे दोष आंख का नहीं अक्ल का है.

पूरे प्रकरण में केवल एक बात चौंकाने वाली और शर्मनाक है और वह है डिफेन्स अधिकारियों का डिफेन्स की इज्जत को मटिया मेट करना. रक्षा अधिकारियों ने अपनी रीढ़ को केंचुए में तब्दील करते हुए न केवल भाजपा का प्रवक्ता बनने की शर्मनाक हरकत की बल्कि इसी क्रम में नौजवानों को धमका कर गुंडई का भी नमूना पेश किया.

जबकि एक आत्मसम्मानी सैनिक के रूप में सेना के अधिकारियों को सरकार से दो टूक कहना चाहिए था कि पॉलिसी लेवल की बात को सेना कैसे जस्टीफ़ाई कर सकती है और क्यों करे ? जबकि रक्षा मंत्रालय, गृह मंत्रालय और रक्षा सचिव को इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री के सामने बोलना चाहिए और प्रधानमंत्री को या रक्षा मंत्री को जनता के सामने इसी क्रम में आज एक नए सिपाही एनएसए अजीत दोभाल को मोदी ने मैदान में उतार दिया.

खैर, सब कड़ियों को मिला कर देखने पर इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि राज्य सभा में या रिलाएन्स जैसी कंपनियों की टॉप मोस्ट पोस्ट पर सेवानिवृत होने के बाद सेना से या अन्य सरकारी विभागों से लोगों को क्रीम पोस्टिंग नहीं दी जाएगी. खास तौर पर पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई के राज्य सभा जाने के बाद तो इस बात की संभावना प्रबल ही है जबकि अग्निवीरों के पास सेना की खाकी वर्दी के बाद गार्ड की नीली वर्दी पहनने की मजबूरी और रिलाएन्स से लेकर महिंद्रा, बाबा रामदेव और श्रीश्री तक के पास सुनहरा अवसर है कि वे बिना पैसा लगाए ट्रेंड मैन पावर हथियाएंगे. बचे-खुचे भारत के पास डर कि ईस्ट इंडिया कंपनी रिलाएन्स की शक्ल में तो नहीं आ जाएगी ?

  • विवेक कुमार राय

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