Home कविताएं अब बंद भी करो बजाना झुनझुना

अब बंद भी करो बजाना झुनझुना

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अब बंद भी करो,
बजाना झुनझुना,
अपने वादों, अपनी बातों का,

कब तक समझाऊं मन को,
कबतक बहलाऊं दिल को,
अब न मन समझता है,
न दिल बहलता है,
तुम्हारे झूठे वादों और बातों से,

मन को समझाने, और
दिल को बहलाने के लिए,
पेट का भरा होना भी चाहिए,
खाली पेट किसी को देखा है हंसते,
मन को समझाते और,
दिल को बहलाते,

बहुत हुए तेरे वादे,
बहुत सुनी तेरे मन की बातें,
इन वादों से, इन बातों से,
मन समझता नही,
दिल बहलता नहीं,

बहुत मजाक तूने कर लिया,
अब सहा नहीं जाता,
क्यों छिड़कते हो जले पर नमक,
अपनी मजबूरियां का नाम मत ले,
हमारी भी हैं मजबूरियां
हम भी अब मजबूर हैं,
खत्म हो गई है सहनशक्ति,

जानते नहीं क्या,
भूखा क्या नहीं कर सकता,
वह धरती हिला सकता है,
पहाड़ को गिरा सकता है,
सागर को लांघ सकता है, और
तुम्हें तुम्हारी कुर्सी से,
नीचे गिरा भी सकता है,

देखा नहीं क्या,
दुनिया में शहंशाहों को गिरते,
तानाशाहों को मरते, और
दुनिया के मेहनतकशों को,
दुनिया को हिलाते,
अपनी दुनिया को बनाते,

अब रोक न सकेंगे हमको,
तुम्हारे वादे और तुम्हारी बातें,
हम ईंट से ईंट बजा देंगे,
तुम्हें भागना ही होगा,
अपना झोला लेकर.

  • राम अयोध्या सिंह / 20.06.202

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