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अदाणी पावर को इस साल का बेस्ट कर्मचारी अवार्ड नरेंद्र मोदी को क्यों नहीं देना चाहिए ?

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अदाणी पावर को इस साल का बेस्ट कर्मचारी अवार्ड नरेंद्र मोदी को क्यों नहीं देना चाहिए ?

Saumitra Rayसौमित्र राय

अदाणी पावर को इस साल का बेस्ट कर्मचारी अवार्ड नरेंद्र मोदी को क्यों नहीं देना चाहिए ? मैं प्रधानमंत्री शब्द इसलिए नहीं लिख रहा हूं, क्योंकि इस पद पर रहकर मोदी ने अदाणी के लिए श्रीलंका में 500 मेगावाट विंड पावर प्रोजेक्ट का ठेका देने का दबाव डाला क्योंकि मोदी ने कोयले पर इम्पोर्ट ड्यूटी जीरो की. अदाणी के मुनाफे के लिए कोयला आयात किया क्योंकि मोदी ने अदाणी के लिए ड्रोन शो आयोजित करवाया और ब्रांडिंग की.

इतना सब करने के बाद भी मोदी अदाणी की कंपनी के कर्मचारी क्यों नहीं बनते ? मोदी को कुर्सी छोड़कर अदाणी पावर जॉइन कर लेना चाहिए. दोहरा लाभ कमाकर एक फकीर कितना झोली भरेगा ? पूछिये तो देश के प्रधानमंत्री से ?

मोदी सरकार ने 2018 में देश के 6 एयरपोर्ट के निजीकरण को मंजूरी दी, तब यह फैसला सीधे अदाणी को फायदा पहुंचाने के लिए लिया गया था. असल में इस ठेके के लिये नियम और शर्तों को बदलकर बिना अनुभव वाली कंपनियों को बोली लगाने की इजाज़त दी गई. नतीज़ा यह रहा कि गौतम अदाणी को ठेका मिल गया.

ठीक इसी तरह श्रीलंका में 500 मेगावाट विंड एनर्जी का ठेका भी मोदी ने अपने उसी दोस्त अदाणी को दिलवा दिया, जिसके विमान में बैठकर वे 2014 में शपथ लेने दिल्ली आए थे. 2018 और 2022 के बीच अदाणी देश के सबसे बड़े एयरपोर्ट ऑपरेटर, पोर्ट ऑपरेटर और थर्मल कोल उत्पादक बन गए. साथ में मोदी को दूसरी बार सत्ता मिली.

अदाणी और मोदी के रिश्ते और 500 मेगावाट विंड एनर्जी का ठेका दिलाने के लिए श्रीलंका के राष्ट्रपति पर भारतीय प्रधानमंत्री के दबाव को उजागर करने वाले एमएमसी फर्डीनांडो ने इस्तीफा दे दिया है. सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के पूर्व प्रमुख ने NDTV को वह चिट्ठी भेजी है, जो उन्होंने श्रीलंका के वित्त मंत्रालय को लिखी थी.

चिट्ठी में साफ लिखा है कि श्रीलंकाई पीएम के निर्देश पर अदाणी के प्रस्ताव को फौरन मंज़ूरी दी जाए. चिट्ठी यह भी कहती है कि अदाणी के प्रोजेक्ट को अनुमति देने पर भारत और श्रीलंका सरकार सहमत हैं.दिवालिया हो चुके श्रीलंका के राष्ट्रपति आरोपों से मुंह छिपा रहे हैं और मोदीजी की ज़ुबां पर ताले लगे हैं.

क्या बदला ? देश में बहुत ज़्यादा ताक़त चंद हाथों में समा गई. विपक्ष को अब खेल समझ आया है, जब ताक़त उसके हाथ से छिनकर सिस्टम में समा चुकी है. अदाणी की हैसियत आज ठीक वैसी ही है, जैसी 20वीं शताब्दी में अमेरिका के आयल मैगनेट जॉन डी रॉकफेलर की थी. भारत के हालात भी ठीक वैसे ही हैं, जैसे 1990 में रूस के थे. मोदी और अदाणी का रिश्ता अभी से नहीं, 2003 से है.

अदानी का त्वरित विकास

गुजरात दंगों में 1000 से ज़्यादा लोगों के कत्लेआम (ज़्यादातर मुस्लिम) के बाद दुनिया ही नहीं, व्यापारिक समुदाय ने भी मोदी को नकार दिया था, तब अदाणी ने अपने दोस्त का साथ दिया. वाइब्रेंट गुजरात का मोदी का नारा और CII को दरकिनार कर अदाणी का जोखिम जुआ खेल गया और जीता भी.

आप जिसे क्रोनी कैपिटलिज्म कहते हैं, वह तो कांग्रेस राज की देन था, लेकिन सत्ता, कॉर्पोरेट और मीडिया को मिलाकर जो खेल खेला गया, मोदी का नया भारत उसी की उपज है. इस नए भारत में एक तरफ अदाणी और अम्बानी जैसे चंद कॉरपोरेट्स के पैसों की ताकत है तो दूसरी ओर सत्ता और सत्ता के हाथों बिकी हुई संस्थाओं, एजेंसियों और समूचे सिस्टम की ताकत है, जो बुलडोज़र के रूप में दिखती है.

इन दोनों के बीच मैं और आप कहां हैं ? किस हैसियत में हैं ? ज़रा सोचिएगा, बहुत से मुगालते दूर हो जाएंगे. इन दोनों ताकतों के बीच यह देश, देश के मुद्दे, अर्थव्यवस्था और लोकतंत्र कहां है ? यह भी सोचिएगा. यह भी कि मीडिया क्यों अपना 75% वक़्त हिन्दू-मुसलमान करने में बिता रही है ? यह भी सोचने वाली बात है.

महंगाई की दर अप्रैल के 7.79% से मई में 7.04% पर ज़रूर आई है, लेकिन यह आधा सच है, पूरा सच यह है कि शहरों में महंगाई अप्रैल के 7.09% से मई में 7.08% ही रही, जबकि गांवों में महंगाई 8.38% से 7.01% पर आई है.

खाद्य वस्तुओं की महंगाई शहरों में अभी भी 8.2% है, जो अप्रैल में 8.09% थी. ईंधन और बिजली की दरों में महंगाई अप्रैल के 10.8% से मई में 9.54% हुई है. आवागमन और संचार के क्षेत्र में महंगाई अप्रैल में क्रमशः 10.8 और 11% से मई में 9.54% पर रही.

भारत में यह लगातार पांचवां महीना है, जब महंगाई की दर रिज़र्व बैंक की उच्च सीमा 6% से अधिक है. मोदीजी और उनके गुर्गों को विकास की बकवास अब बंद कर देनी चाहिए.

अदाणी ने 1990 में मुन्द्रा पोर्ट का लाइसेंस लिया था, उसके बाद से अदाणी का व्यापार लोन पर ही चल रहा है. क्रेडिट सुइस ने 2015 में हाउस ऑफ डेट- रिपोर्ट में आगाह किया था कि अदाणी भारत के उन 10 व्यापारिक घरानों में शामिल है, जिनका लोन जोखिम में है. फिर भी उसे धड़ल्ले से लोन मिल रहा है.

मोदी अपने दोस्त का पूरा साथ दे रहे हैं. मिसाल के लिए अदाणी ग्रीन, जिसका मुनाफ़ा जीरो है, लेकिन कंपनी के पास 863 मिलियन डॉलर का लोन है. आज विदेशी निवेशकों का सारा पैसा उन्हीं कंपनियों को जा रहा है, जो सत्ता से साठ-गांठ कर कानून और टैक्स नियमों को चकमा दे सकते हों.

झारखंड में अदाणी के गोड्डा ताप विद्युत संयंत्र को मोदी ने 2019 के आम चुनाव से पहले ही सेज़ में तब्दील कर दोस्ती निभाई थी. अब लोग भारत में सबसे महंगी बिजली का दाम चुकाएंगे और अदाणी टैक्स छूट के मजे लेगा.

खैर, क्या आप जानते हैं सत्ता और पूंजी के इस केंद्रीकरण का नतीज़ा क्या होने वाला है ? बेतहाशा महंगाई, लूट, शोषण और गुलामी. और जब आप इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएंगे तो बुलडोज़र आपके घर पर भी चलेगा. लाज़िम है हम भी देखेंगे.

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