कहा जाता है कि हर किसी का वक्त आता है, तो अब वक्त आ गया है कायरों और गद्दारों का, अत्याचारियों का. अब कायरों, गद्दारों और अत्याचारियों को महान बताते हुए उसका स्वर्णिम इतिहास लिखा जायेगा, और महान लोगों के इतिहास को गर्दिश में मिलाया जायेगा. लेकिन यह एकदम से नहीं होगा, तरीक़े से होगा, लोगों के जेहन में धीरे धीरे घोलते हुए ताकि जल्दी यह समझ में न आये कि कौन गद्दार है और कौन महान. अब गद्दार और महान बनाने का काम संघ के कार्यालय में होगा, इतिहास बदलकर होगा. नया इतिहास लिखकर होगा.
तो ‘नया’ इतिहास लिखने की इस नवीन विधा पर कार्य शुरु हो चुका है. जानकार बताते हैं कि रामायण-महाभारत तक को नये सिरे से लिखा जा रहा है. इस नवीन इतिहास लेखन का एकमात्र उद्देश्य सावरकर, गोलवलकर जैसे संघियों के नफरती चिंटुओं को वीर, महान साबित करना है. गांधी, नेहरु जैसे व्यक्तित्व से आगे चलते हुए भगत सिंह को गद्दार, देशद्रोही, अपराधी साबित करना है. यही संघी इतिहास का नया योगदान होगा. जैसा कि नई दिल्ली में एक किताब के विमोचन के मौके पर भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है –
ज्यादातर इतिहासकारों ने मुगलों के इतिहास को प्रमुखता दी और पांड्य, चोल, मौर्य, गुप्त जैसे साम्राज्य के गौरवशाली इतिहास को नजरअंदाज किया. इतिहास लिखने वालों ने साम्राज्यों का जब भी जिक्र किया तो मुगल साम्राज्य की ही चर्चा की. कि हमारा इतिहास लिखने से हमें कोई नहीं रोक सकता है. अब हम स्वाधीन हैं. किसी के मोहताज नहीं हैं. अब हम हमारा इतिहास खुद लिख सकते हैं.
‘समुद्रगुप्त ने तो पहली बार भारत की कल्पना को चरितार्थ करने का साहस दिखाया मगर उस पर कोई संदर्भ ग्रंथ नहीं लिखा गया. हमें टीका-टिप्पणी छोड़कर हमारे गौरवशाली इतिहास को जनता के सामने रखना चाहिए. संदर्भ ग्रंथों की रचना करनी चाहिए. धीरे-धीरे…जो इतिहास हम मानते हैं गलत है, वह अपने आप निकल जाएगा. सत्य फिर से उजागर हो जाएगा.’
‘भारत ने 1,000 साल तक अपनी संस्कृति, भाषा और धर्म के लिए लड़ाई लड़ी जो व्यर्थ नहीं गई और इस लड़ाई के दौरान कुर्बानियां देने वालों की आत्मा को आज भारत का पुनरुत्थान देखकर शांति मिलती होगी. जब हमारा प्रयास किसी से बड़ा होता है तो अपने आप झूठ का प्रयास छोटा हो जाता है. हमें प्रयास बड़ा करने पर ध्यान देना चाहिए. झूठ पर टीका-टिप्पणी करने से भी झूठ प्रचारित होता है.’
‘किसी भी समाज को अपना उज्ज्वल भविष्य बनाना हो तो उसे अपने इतिहास से प्रेरणा लेनी चाहिए, उससे सीख लेनी चाहिए और अपने इतिहास से सीखकर आगे का रास्ता प्रशस्त करना चाहिए. अगर इतिहास को हम हमारे दृष्टिकोण से लिखने की शुरुआत करें, उस पर बहस करें, नई पीढ़ी अभ्यास करे तो कुछ देर नहीं हुई है. यह लड़ाई बहुत लंबी है. इसके लिए जरूरी है कि हम हमारे इतिहास को सामने रखें.
‘इतिहास की कई गौरवशाली घटनाओं पर समय की धूल पड़ी थी, उस समय की धूल को ढंग से हटाकर उन घटनाओं की तेजस्विता को लोगों के सामने लाने का काम इस किताब (जिसका विमोचन अमित शाह कर रहै हैं) के माध्यम से किया गया है. इससे गलत धारणाएं समाज से निकल जाएंगी. इतिहास में अनेक साम्राज्य हुए मगर इतिहास लिखने वालों ने साम्राज्यों का जब भी जिक्र किया तो मुगल साम्राज्य की ही चर्चा की.
‘पांड्य साम्राज्य 800 साल तक चला जबकि अहोम साम्राज्य असम में 650 साल तक चला. इस साम्राज्य ने बख्तियार खिलजी से लेकर औरंगजेब तक को परास्त किया और असम को स्वतंत्र रखा. इसी प्रकार पल्लव साम्राज्य 600 साल तक, चालुक्य साम्राज्य 600 साल तक, मौर्य साम्राज्य 500 साल तक तथा गुप्त साम्राज्य 400 साल तक चला.
‘बाजीराव पेशवा ने अटक से कटक तक भगवा फहराने का काम किया था लेकिन इस प्रकार के कई ऐसे व्यक्तित्व रहे हैं जिनके जीवन को भी न्याय नहीं मिला. हमें इस दिशा में भी काम करना चाहिए. हमारे साम्राज्यों के बारे में काम करना चाहिए. स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर नहीं होते तो 1857 का सत्य छिपा रह जाता.
‘इतिहास को फौरी तौर पर देखने वाले देखते हैं कि इस युद्ध में कौन जीता कौन हारा, मगर उनको मालूम नहीं कि हारकर भी विजेता होने वाले लोगों के इतिहास से ही यह देश बना है. हार गए, मगर विजेता बने. सालों-साल लड़ाइयां लड़ीं. 1857 की क्रांति के बारे में भी हम कह सकते हैं कि हम हार गए थे, परंतु उनको मालूम नहीं कि उस क्रांति ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था.
‘हार और जीत के कारण इतिहास नहीं लिखा जाता, बल्कि वह घटना देश और समाज पर क्या असर छोड़ती है, उससे इतिहास बनता है. आज भारत का पुनरुत्थान देखकर देश के लिए लड़ाई लड़ने वाले और कुर्बानी देने वालों की आत्मा को शांति मिलती होगी. फिर से गौरव के साथ दुनिया के सामने खड़े होने का अवसर आ गया है. देश खड़ा हो रहा है. यह सरकारों से नहीं होता है. समाज जीवन में जब जागृति की चिंगारी फैलती है, वह आग में बदलती है तभी जाकर परिवर्तन आता है. तभी समाज का गौरव जागरूक होता है.’
अमित शाह के इस लंबे व्याख्यान का लब्बोलुआब यह है कि उसे इतिहास के बारे में कुछ भी नहीं पता है. वह केवल संघियों द्वारा प्रयोजित झूठ का आडम्बरपूर्ण प्रदर्शन मात्र है, जिसका एक मात्र ध्येय है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके मनुवादी (ब्राह्मणवादियों) की क्रूरता को महानता की चाशनी में लपेट कर शुद्रों और मेहनतकश जनता को दासता की बेड़ी पहना देना. पिछले आठ साल में संघी और उसके पिछलग्गू इसी जुगत में है. जहां तक अमित शाह के इतिहास ज्ञान का सवाल है, इसका जवाब पुष्प रंजन ने बेहतरीन तरीकों से दिया है. पुष्प रंजन लिखते हैं –
आहोम वंश ने छह सौ वर्षों (1228-1826) तक राज किया. अहोम राजाओं- चुकाफा, चुतेउफा, चुतुफा, चुदांफा, चुचेंफा, चुदैफा, चुदिंफा ( प्रथम-द्वितीय) के बारे में, मैं स्वयं पढ़ चुका हूं. अहोम राजाओं की लम्बी सूची है. पूर्वोत्तर के इतिहासकारों ने अहोम वंशी राजाओं के बारे में ख़ूब लिखा है. आपको बोलने से पहले चाहिए था कि चोल, चालुक्य, पल्ल्व राजाओं के बारे में किस प्राचीन इतिहासकार ने क्या लिखा, उसका अध्ययन कर लेते.
कैसे कहें, इस देश के गृह मंत्री को 12 वीं सदी के दो इतिहासकारों आचार्य हेमचन्द्र और कल्हण के बारे में पता भी है, या नहीं ? उन्हें छोड़ें, 15 वीं सदी के कश्मीरी इतिहासकार और संस्कृत कवि जोनराज को ही अमित शाह पढ़ लेते. पद्मनाभ 15 वीं शताब्दी के भारतीय कवि और इतिहासकार थे. उन्होंने 1455 में प्रसिद्ध ग्रंथ, ‘कान्हड़दे प्रबन्ध’ की रचना की थी. यह प्राचीन गुजराती या पुराने राजस्थानी की श्रेष्ठ कृति मानी जाती है, संभवतः देश के गृह मंत्री ने पद्मनाभ का नाम भी नहीं सुना होगा.
उन्हीं के गुजरात में जन्में आचार्य हेमचन्द्र (1145-1229) संस्कृत के महापण्डित थे और ‘कलिकालसर्वज्ञ’ कहे जाते थे. वे कवि थे, काव्यशास्त्र के आचार्य थे, योगशास्त्रमर्मज्ञ थे, जैनधर्म और दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान् थे, टीकाकार थे और महान कोशकार भी थे. आचार्य हेमचन्द्र को पाकर गुजरात अज्ञान, धार्मिक रुढियों एवं अंधविश्वासों से मुक्त हो पाया था.
आचार्य हेमचन्द्र संस्कृत के अन्तिम महावैयाकरण थे. उनके भाष्य की हस्तलिखित प्रति बर्लिन के हम्बोल्ट विश्वविद्यालय में है. मुझे उस दुर्लभ ग्रन्थ को हम्बोल्ट यूनिवर्सिटी में देखकर गर्व की अनुभूति हुई थी. देश के गुरुह मंत्री ने इन्हें पढ़ा होता, तो अल्ल-बल्ल बोलने की ज़रूरत नहीं पड़ती. हाथ में एक किताब पकड़कर विमोचन करते हुए फोटो खिंचा लेने, और बिना तथ्य के कुछ भी बोल देने से ज्ञानी नहीं हो जाइएगा मोटा भाई.
तो, अमित शाह अनपढ़ों और क्रूर ब्राह्मणवादियों का महान इतिहासकार हो सकता है, लेकिन उसका यह दौ कौड़ी का ज्ञान देश-समाज के किसी काम का नहीं है. इतिहास ही क्यों इन संघियों ने तो विज्ञान का भी पुनर्लेखन कर रहा है. इन संघियों के नजर में न्यूटन, आइंस्टीन, डार्विन जैसे महान वैज्ञानिक चोर, डकैत और बेईमान हैं. हत्यारा और धूर्त संघी अमित शाह इतिहास ही नहीं, विज्ञान भी बदलने जा रहा है.
Read Also –
106वीं विज्ञान कांग्रेस बना अवैज्ञानिक विचारों को फैलाने का साधन
गुंडे इतिहास तय कर रहे हैं और भारत गौरवशाली महसूस कर रहा है
नाम में क्या रखा है ? नाम में इतिहास रखा है जनाब !
इतिहासकार प्रो. शम्सुल इस्लाम से क्यों घबराता है RSS ?
वामपंथियों ने इतिहास से लुप्त कर दिया एक कड़वा सच : ममी की पुकार
नेहरू को बदनाम करने की साजिश में यह सरकार हमें ‘इतिहास’ पढ़ा रही है
स्युडो साईंस या छद्म विज्ञान : फासीवाद का एक महत्वपूर्ण मददगार
वर्तमान का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है – शर्म पर गर्व
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]