Home गेस्ट ब्लॉग नया भारत और नई चुनौतियां : मोदी को हर पल नंगा करो, जनता को जगाओ

नया भारत और नई चुनौतियां : मोदी को हर पल नंगा करो, जनता को जगाओ

8 second read
0
0
307
जगदीश्वर चतुर्वेदी

जो लोग इतनी तबाही के बाद भी मोदी-मोदी के नशे में चूर हैं, उनके लिए हम तो यही कहना चाहेंगे कि अपनी अक्ल पर विश्वास करो, आंखें खोलकर सामने बाजार-बैंक-खेत-खलिहान में मच रही तबाही देखो. मोदी के आने के बाद सरकारी बैंकों को प्रतिदिन करोडों रूपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है, हरेक व्यापारी परेशान है, नौकरियां एकसिरे से गायब हैं, सिर्फ भाड़े के टट्टुुओं की टोलियां साइबर से लेकर शहरों तक साम्प्रदायिक उन्माद और असत्य के प्रचार में लगी हैं. ये प्रचारक पेड कर्मचारी हैं. इनके भरोसे देश को लूटा जा रहा है, जनता को ठगा जा रहा है. इनसे देश का विकास संभव नहीं है. जजों से लेकर आम जनता तक सब परेशान हैं.

टीवी की कैद में सारे देश को बंदी बना लिया गया हैं. पूरे परिवेश को बंदी बना लिया है. इसके कारण आप सच्चाई देख नहीं पा रहे. स्थिति की भयावहता का अनुमान इससे ही लगा सकते हैं कि रेल का सामान्य भाड़ा कई गुना बढाकर वसूला जा रहा है लेकिन आम लोग प्रतिवाद नहीं कर रहे हैं. विपक्ष डर के मारे चुप बैठा है. यदि आप लोगों ने अक्ल के दरवाजे नहीं खोले तो प्रधानमंत्री मोदी भारत को पाषाणयुग में बहुत जल्दी ले जाएंगे, जहां आदमी नंग-धडंग रहेगा, उसके पास न तो कोई काम होगा और न उसकी कोई आमदनी होगी. भारत को नंग-धडंग होने से बचाने के लिए जरूरी है मोदी को हर पल नंगा करो, जनता को जगाओ.

आरएसएस के साइबर लेखकों को विकास का इन दिनों कोई विषय नजर नहीं आ रहा. वे कृषि पर नहीं बोल रहे, किसानों की आत्महत्याओं पर नहीं बोल रहे, वे देश की अर्थव्यवस्था में जो नकारात्मक लक्षण सामने आर्थिक अखबारों को नजर आ रहे हैं उन पर नहीं बोल रहे. वे बोलने के लिए कोई निरीह पशु या अप्रासंगिक विषय चुन रहे हैं.

इससे एक बात साफ हो गयी है कि आरएसएस के कलमघिस्सुओं की देश के किसी गंभीर समस्या में कोई रूचि नहीं है. कम से कम पांच साल में इतना ही कर देते कि कांग्रेस ने जिन नीतियों को बनाया था उनको नष्ट करके नई नीतियां बनाकर लागू करते, लेकिन मोदी सरकार एप बनाने, वेबसाइड लॉच करने, विदेश यात्रा करने, विज्ञापन देने, मीडिया का गला घोंटने, चंदा वसूली और चुनाव जीतने में व्यस्त रहे.

आरएसएस और मोदी सरकार द्वारा कम्युनिस्टों को बदनाम किया गया लेकिन असल में प्रतिबद्ध कैडर तो हर स्तर पर आरएसएस के पास है. किसी भी संस्थान में जाइए संघी मिल जाएंगे. देश के अंदर नए विचारधारात्मक विकास में ये लोग सबसे बड़ी बाधा हैं. भारत की पहचान अब इनसे ही होती है. 70साल के विकास की महानतम उपलब्धि है आरएसएस जैसे संगठन की प्रतिगामी और साम्प्रदायिक विचारधारा के लोगों का हर क्षेत्र में वर्चस्व.

पत्रकारों का एक बड़ा समूह इस समय जिस तरह की हरकतें कर रहा है उससे भारत की इमेज को बट्टा लगा है. खबरों के चयन को लेकर जिस तरह की अराजकता व्याप्त है उससे यह भी पता चलता है कि पत्रकारों को खबरों के चयन का बोध ही नहीं है. पत्रकार के अंदर से अगर खबर का बोध ही खत्म हो जाए तो वह खबरों के नाम पर नरक इकट्ठा कर सकता है. फिलहाल भारतीय मीडिया में यही हो रहा है.

सवाल उठा क्या हमारे पत्रकार और खासकर टीवी पत्रकार व्यवहार में वही आचरण कर रहे हैं जैसा वे पढ़कर आए थे ? क्या उनको खबरें पढ़ाते समय यह नहीं बताया गया कि खबरों के भी स्तर होते हैं, स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय या विश्व स्तर की खबर में वे कोई अंतर नहीं करते ? टीवी पत्रकारों की अवस्था किसी गधे से बेहतर नहीं है. विश्वास न हो तो विदेशी चैनल देखें और सीखें.

ऐसा नहीं है अमेरिका में बलात्कार नहीं होते, चोरी-डकैती या ज्ञानचोरी की घटनाएं नहीं होतीं लेकिन वहां टीवी में इसका स्तरीकरण, क्षेत्रीकरण साफ दिखेगा. हमारे यहां जो राष्ट्रीय और ग्लोबल चैनल हैं उनके यहां लोकल, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय का भेद ही नजर नहीं आता. इसके कारण टीवी पर खबरें नॉनसेंस हो गयी हैं. खबरों में क्षेत्रीयबोध जब गायब हो जाता है तो मीडिया अप्रासंगिक हो जाता है.

यदि छिनतई-बलात्कार की खबरों को आप ग्लोबल खबरें बनाएंगे तो भारत की इमेज एक क्रिमिनल राष्ट्र की ही बनेगी. मीडिया यह नहीं जानता कि उसे कब, कहां और किसको सम्बोधित करना है या खबरें देनी हैं. मोदीभक्ति को इतने फूहड़ ढ़ंग से अंजाम दिया जा रहा है कि उसने भोंपू को भी शर्मिंदा कर दिया है. आज सारी दुनिया में भारत की जो खराब इमेज बनी है उसमें मोदी सरकार के अलावा मीडिया कवरेज की सबसे बड़ी भूमिका है. संक्षेप में, असभ्य भारत की दुनिया में इमेज बनाने वाले दो प्रमुख तत्व हैं पहला हिंदुत्व और आरएसएस का प्रचार और दूसरा है कारपोरेट मीडिया.

मोदी निर्मित ने भारत में सबसे बड़ा संकट धर्मनिरपेक्षता के लिए पैदा हुआ है. बुर्जुआ दलों का भारत में धर्मनिरपेक्षता के प्रति अटूट संबंध है. इस संबंध में दो नजरिए मिलते हैं – एक ओर वे दल हैं जो धर्मनिरपेक्षता और अहिंसा के अंतर्संबंध पर बल देते हैं, दूसरी ओर वे दल हैं जो धर्मनिरपेक्षता का हिंसा से संबंध जोड़ते हैं. समग्रता में हिंसा वाले पहलू ने भारत को गहरे प्रभावित किया है.

नया पहलू है धर्मनिरपेक्षता के अपराधीकरण के अन्तस्संबंध का. धर्मनिरपेक्ष राजनीति तब ही लोकतंत्र में सकारात्मक भूमिका अदा करती है जब वह नागरिक अधिकारों और उसके नज़रिए से समूचे समाज को परिभाषित करे. नागरिक अधिकारों के परिप्रेक्ष्य के बिना धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता में बहुत बड़ा अंतर नज़र नहीं आता, ख़ासकर अपराधीकरण के प्रसंग में.

दलीय राजनीति के मौजूदा परिप्रेक्ष्य में अपराधीकरण और भ्रष्टाचार दो बड़े नकारात्मक तत्व हैं, इनसे कमोबेश सभी दल प्रभावित हैं. दलीय राजनीति को नागरिक परिप्रेक्ष्य में रूपान्तरण किए बिना मौजूदा लोकतंत्र को बचाना संभव नहीं है. आरंभ में अपराधीकरण और भ्रष्टाचार को बुर्जुआ के गुण माना जाता था. आज ये दोनों चीज़ें आम राजनीति और जीवनशैली में घुलमिल गयी हैं. यह बुर्जुआजी की सबसे बड़ी सफलता है.

नया परिवर्तन यह है कि सत्ता पाने के लिए गैर-वाम दल विभिन्न तरीकों के जरिए धर्मनिरपेक्षता को प्रदूषित कर रहे हैं, मसलन, भाजपा कठोर हिंदुत्व की ओर गयी तो दूसरी ओर भाजपा विरोधी गैर वाम दलों ने सॉफ्ट हिंदुत्व के हथकंडे अपनाए. इस तरह धर्मनिरपेक्षता में घालमेल आरंभ हुआ. धर्मनिरपेक्षता के अपराधीकरण की यह शुरुआत है. मोदी और आरएसएस ने इस समूची प्रक्रिया को नई बुलंदियों पर पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उसने इसमें असहिष्णुता को समायोजित करके पेश किया.
मौजूदा हिंसा की जड़ें इसी राजनीतिक असहिष्णुता में छिपी हैं.

फिलहाल सभी राजनीतिकदलों में असहिष्णुता चरम पर है. कोई असहिष्णुता छोड़ने को तैयार नहीं है. मौजूदा हिंसा को पहल करके रोकने के लिए कोई दल तैयार नहीं है, उलटे गरम-गरम बयान आ रहे हैं या फिर उपेक्षा करके चुपचाप हिंसा देख रहे हैं. यह मनोदशा अ-लोकतांत्रिक और हिंसक है. हिंसा का जबाव हिंसा नहीं है, हिंसा का जबाव पुलिस भी नहीं है. हिंसा जबाव है शांति. वह संवाद-सहयोग के बिना स्थापित नहीं हो सकती. लोकतंत्र के ये दोनों महत्वपूर्ण तत्व हैं.

जो दल लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए कल तक वोट मांग रहे थे वही दल आज मुंह फुलाए, गुस्से में ऑफिस में बैठे हैं या हिंसा में मशगूल हैं. हिंसा को हिंसा या घृणा या निंदा से खत्म नहीं कर सकते. हिंसा को खत्म करने के लिए शांति, सहयोग और संवाद की जरूरत है.

मुग़लों से लोहा ले रहे प्रवक्ताओं को बीजेपी ने अरबों के दबाव में हटाया ?
भारत में इस्लामोफोबिया के खेल और कार्यप्रणाली
एंटी मुसलिम कॉमनसेंस में जीने वाले लोग संविधान के शासन को नहीं मानते
मोदी के प्रचार अभियान की विशेषताएं

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…