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मोदी की ‘मां’ गंगा की गंदगी बनी मौत का धाम

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मोदी की 'मां' गंगा की गंदगी बनी मौत का धाम

गंगा अपनी धारा के साथ मिट्टी ढोने वाली विश्व की सबसे दूसरी बड़ी नदी है. यह मिट्टी ही नहीं, हजारों टन कचरा और सैकड़ों एमएलडी सीवेज भी अपनी धारा में समेटने को विवश है. केवल वाराणसी की गंगा में एक माह में 33 हजार शवों के दाह के बाद 700 टन से अधिक राख-कंकाल गंगा में बहा दिया जाता है. तो वहीं, रोजाना शहर भर से 30 छोटे-बड़े सीवर लगभग 160 एमएलडी से अधिक जहरीला सीवर गंगा में फेंक रहे हैं. इससे गंगा का पानी सड़कर नागरिकों, सैलानियों और मल्लाहों के जीवन में चर्म रोग का दर्द घोलने लगा है.

घाट किनारे बदबूदार, झागदार और अजीब कीड़ेयुक्त जल को देखकर एक बार तो सभी सहम जा रहे हैं. गंगा का यह हाल तब है, जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में बनारस की जनता से कहा था कि ‘मुझे गंगा मैया ने बुलाया है.’ तब उन्होंने बनारसियों को संबोधित करते हुए कहा था –

‘पहले मुझे लगा था कि मैं यहां आया, या फिर मुझे पार्टी ने यहां भेजा है, लेकिन अब मुझे लगता है कि मैं गंगा की गोद में लौटा हूं. न तो मैं आया हूं और न ही मुझे भेजा गया है, मुझे तो गंगा मां ने यहां बुलाया है. यहां आकर मैं वैसी ही अनुभूति कर रहा हूं, जैसे एक बालक अपनी मां की गोद में करता है. मैं बड़ानगर में जन्मा हूं. अब बुद्ध और शिव की धरती की सेवा करने का मुझे सौभाग्य मिला है. यहीं बुद्ध ने संदेश दिया था. गंगा को साबरमती से बेहतर बनाएंगे.’

आपको बता दें कि मोदी ने मांगे थे 60 महीने अब होने को है 95 महीने. अब भी गंगा अपने बदनसीबी पर आंसू बहा रही है और लाखों बनारसी अपने को ठगा-सा महसूस कर रहे हैं.

प्रयाग घाट पर गंगा नदी में नहाते श्रद्धालु-सैलानी. रविदास समेत कई घाटों पर गंदे जल से उठाने वाली बदबू भी एक बड़ी समस्या बन गई है.

बनारस में गंगा का जल इस कदर जहरीला हो गया है कि लाखों लोग अब इसमें नहाने से कतराने लगे हैं. गंगा के प्रति पवित्र आस्था और इसमें नहाने वाले लोग कई बिमारियों से ग्रसित भी हो रहे हैं. खासकर गंगा में रोजाना नहाने, मछली पकड़ने और सिक्के और सोने खोजने वाले गोताखोर अब कई प्रकार के चर्म रोग होने लगे हैं.

बनारस के प्रसिद्ध घाट अस्सी, दशाश्वमेध, मणिकर्णिका, राजेंद्र प्रसाद, हनुमान और प्रयाग घाट पर नहाने वाले भक्त और नागरिकों को एग्जिमा, ल्यूपस, डर्मेटाइटिस और फंगल इंफेकशन जैसे रोग अपना शिकार बना रहे हैं. चर्म रोगों में एग्जिमा और फंगल इंफेकशन ऐसे रोग हैं, जो एक बार हो जाते हैं तो मरते दम तक पीछा नहीं छोड़ते हैं. यह हाल तब है जब गंगा को साफ़ और अविरल बनाने के लिए नमामि गंगे, केंद्रीय पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान समेत कई योजनाओं पर पानी की तरह करोड़ों रुपए फूंके जा रहे हैं.

कब बदलेगी गंगा की तस्वीर ?

दशाश्वमेध पास से जमीन पर फैले कूड़े-कचरे को हटाता सफाईकर्मी

बनारस में करीब 10 लाख लोग घाट किनारे के इलाकों में निवास करते हैं, इनमें से ज्यादातर के दैनिक कार्य और रोजगार सीधे तौर पर गंगा से जुड़ा है. रोजाना बाबा भोलेनाथ और गंगा दर्शन के लिए दो लाख से अधिक श्रद्धालु बनारस आते हैं और जल से आचमन और नहाते भी हैं. इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है. गंगा को छोड़ दे तो इसके घाटों के सफाई की जिम्मेदारी उठाने वाले नगर निगम के कर्मी आते हैं और घाट किनारे पड़े माला-फूल, प्लास्टिक की बोतलें, रैपर, पुराने वस्त्र आदि कूड़े को बटोरकर अपने साथ ले जाते हैं.

रह जाता है तो वह है गंगा की पानी में मिल चुका प्लास्टिक का सॉलिड कचरा, पत्तल, दोना, माला-फूल, अंडर गारमेंट्स, शीशे, लकड़ी, धातु के फ्रेम वाली पुरानी तस्वीरें. इन्हें सफाईकर्मी नदी में उतरकर नहीं निकलते हैं. ये सॉलिड कचरे गंगा की धारा में समाहित होकर इकोसिस्टम को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि पत्थर के घाटों पर छाड़ू लगाना ही गंगा की सफाई है तो अन्य योजनाओं के नाम पर जारी करोड़ों रुपए का काम जमीन पर क्यों नहीं दिखता है ?

गंगा बांट रही चर्च रोग, तिल-तिल मर रहे लोग

बनारस के फेमस दशाश्वमेध घाट के पास बज-बजाते और झागदार गंगा में नहाते लोग

अस्सी घाट पर ऐतिहासिक पीपल के पेड़ के नीचे दुपहरी में सुस्ता रहे स्थानीय राजेश साहनी एक वेबसाइट ‘जनज्वार’ से कहते हैं कि –

‘गंगा के आसपास के इलाका साफ हुआ है. गंगा तो और गन्दी हो गई. इसके पानी में अब नहाने का मन नहीं करता हैं, जबकि बचपन से कुछ साल पहले तक हम रोज गंगा में नहाते आ रहे हैं. हमलोगों के बच्चे तो गंगा की तरफ नहाने आदि के बारे में सोचते भी नहीं हैं, वे बहुत जागरूक हो गए हैं. अब हमारी उम्र 50 साल से अधिक हो गई है.

‘मोदी जी आए तो एक उम्मीद जगी थी, लेकिन यह घटना महज एक छलावा साबित हुई. हमारे मोहल्ले में ही कई सालों से गंगा में नहाने वाले कई लोगों को चर्म रोग की शिकायत है. बड़ी मुश्किल से नाव चलाकर और मजदूरी कर दिनभर के 700 से एक हजार रुपए कमा पाते हैं, इससे अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. काम चलाऊ दवा वगैरह खरीद कर खाते रहते हैं.

‘डॉक्टर इन्हें गंगा के पानी में उतरने से मना करते हैं लेकिन मज़बूरी है, पूजन आदि के काम गंगा में उतरकर ही किया जाता है. ये नाव नहीं चलाएंगे और गंगा में उतरकर नदी पूजन आदि नहीं कराएंगे तो इनका परिवार किसे चलेगा ? पारिवारिक जिम्मेदरियो को पूरा करने में स्कीन की बीमारी दिनोंदिन बढ़ती जाती है. मोहल्ले में ही दो लोगों की मौत विकराल चर्म रोग के कारण हुई है.’

गंगा अपनी अविरलता बनाए रखने में खुद सक्षम है ?

रीवा घाट से अपना काम निबटा कर अस्सी घाट पर मिले साठ साल के केदारनाथ बताते हैं कि गंगा को बचाने का एकमात्र उपाय है, ऊपरी इलाकों में बने बांधों से पानी को छोड़ा जाए. बहुत नहीं तो एक-दो फाटक को खोलकर पानी गंगा में डाला जाए, ताकि गंगा की अविरलता बनी रहे. केदारनाथ इस बात पर जोर देकर कहते हैं कि –

‘गंगा को सरकारी तंत्र या कोई इंसान नहीं साफ कर सकता है. गंगा अपने को साफ़ करने में स्वयं सक्षम है. यदि में हिमालय से आ रहे पानी को बेरोक-टोक आने दिया जाए तो गंगा को साफ़ करने के लिए अरबों-करोड़ों रुपए खर्च करने की जरुरत नहीं पड़ेगी. रोजाना सैकड़ों कुंतल ठोस और नुकसानदायक कचरे को गंगा खुद अपने जलधारा के साथ बहकर बंगाल की खाड़ी में ले जाकर उलट देगी और अपने इकोसिस्टम को नेचुरल बनाए रखेगी.

‘नाविकों को दो साल के कोरोना लॉकडाउन में खाने और काम का ऐसा टोटा पड़ा था कि कई मल्लाहों ने आर्थिक तंगी से तंग आकर गंगा में कूदकर जान दे दी थी. अब गंगा को टूर स्पॉट के रूप में बदला जा रहा है. जाने कहां-कहां से दैत्याकार क्रूज गंगा की छाती पर दहाड़ रहे हैं. इससे मल्लाहों की रोजी-रोटी भी छिनती जा रही है.’

गंगा के आधे से ज्यादा घाटों पर नहाना यानी चर्म रोग को दावत

बनारस में 60 से अधिक घाट हैं, जहां जल की गुणवत्ता अमानक और इंसानों के लिए जहरीली हो चुकी है. इनमें –

गंगा महल घाट, रीवा घाट, तुलसी घाट, भदैनी घाट, जानकी घाट, आनंदमई घाट, राजघाट, जैन घाट, निषाद राज घाट, प्रभु घाट, पंचकोट घाट, चेत सिंह घाट, निरंजनी घाट, शिवाला घाट, दांडी घाट, गुलरिया घाट, हनुमान घाट, पुराना हनुमान घाट, कर्नाटक घाट, हरिश्चंद्र घाट, लाली घाट, विजयनगरम घाट, केदार घाट, चौकी घाट, सोमेश्वर घाट, मानसरोवर घाट, अमृता राव राजा घाट, गौरी घाट,

कोरियन घाट, सर्वेश्वर घाट, राणा महल घाट, दरभंगा घाट, मुंशी घाट, अहिल्याबाई घाट, शीतला घाट, दशाश्वमेध घाट, प्रयाग घाट, राजेंद्र प्रसाद घाट, मान मंदिर घाट, त्रिपुर भैरवी घाट, मीर घाट, नया घाट, नेपाली घाट, ललिता घाट, बली घाट, जला सेन घाट, मणिकर्णिका घाट, बाजीराव घाट, सिंधिया घाट, संकटा घाट, गंगा महल घाट, भोंसले घाट, नंदेश्वर घाट, गणेश घाट, मेहता घाट,

राजा घाट, अटार घाट, राजा ग्वालियर घाट, मंगला गौरी घाट, बेनी माधव घाट, पंचगंगा घाट, दुर्गा घाट, ब्रह्मा घाट, बूंदी परा कोटा घाट, शीतला घाट, गायघाट, हनुमान घाट, लाल घाट, बद्री नारायण घाट, त्रिलोचन घाट, गोला घाट, तेलिया घाट, नया घाट प्रहलाद, केशव घाट, संत रविदास घाट, निषाद घाट, रानी घाट, पंच अखाड़ा घाट और खिड़किया घाट है.

कमोबेश, सभी घाटों पर वैज्ञानिक मानक के अनुरूप पीने और नहाने लायक साफ़ पानी नहीं है. कई बीमारियों को जन्म देते हैं. गंदे जल बीएचयू के चर्म रोग विशेषज्ञ डॉ जेपी सिंह बताते है कि गंदे पानी में नहाने से त्वचा रोगों के पनपने के खतरे अधिक होते हैं. अमानक और जहरीले हो चुके गंगा में लगातार नहाने से एग्जिमा, ल्यूपस, डर्मेटाइटिस और फंगल इंफेकशन खतरा हो सकता है. घाट किनारे रहने वाले सैकड़ों लोगों में चर्म रोग की शिकायत है.

शुरुआत में चर्म रोग तो सामान्य ही होता है लेकिन, उचित इलाज और बचाव नहीं होने से यह रोग गंभीर होता चला जाता है, जो बाद में उम्र ढलने और कमजोर इम्युनिटी को पाकर इसके बैक्ट्रिया और वायरस अधिक नुकसान पहुंचाने लगते हैं. धीरे-धीरे यह क्रिटिकल और इनका इलाज महंगा हो जाता है. गंदे जल से पेट में ऐंठन, पेचिश, पेट में दर्द होता है. दूषित पानी आंखों को भी नुकसान पहुंचाता है. जैसे आंख से पानी आना, आंख लाल हो जाना, सूज जाना, जलन होना, कीचड़ आना आदि.

कभी-कभी कंजेक्टीबाइटिक जैसी आंख की बीमारी भी हो जाती है, जो एक दूसरे से फैलती है. साथ ही दूषित पानी के संपर्क में आने से गले में भी तकलीफ होने लगती है. गले में अंदर सूजन आना, गिल्टियां होना व आवाज भारी होने का कारण भी दूषित पानी भी बनता है. इन रोगों से बचाव के लिए लोग साफ पानी में नहाये. किसी प्रकार की समस्या होने पर तत्काल डॉक्टर को दिखाएं.

क्या मानक है साफ़ पानी के ?

तुलसीघाट स्थित संकट मोचन फाउंडेशन के अध्यक्ष विशंभरनाथ मिश्र बताते हैं कि पीने योग्य पानी में कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया 50 एमपीएन (मोस्ट प्रोबेबल नंबर- सर्वाधिक संभावित संख्या)/100 मिली और एक लीटर पानी में बीओडी की मात्रा 3 मिलीग्राम से कम होनी चाहिए.

नगवां और रविदास घाट पर गंगा का पानी गंदगी से भी बदतर हो गया है. पानी में घुलनशील ऑक्सीजन घट रही है. 100 मिली जल में 24,000,000 फीकल कॉलीफार्म काउंट आ रही है, जबकि नहाने-धोने के लिए 500 फीकल कॉलीफार्म काउंट का मानक निर्धारित है. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बनारस में गंगा जल और नदी के इको सिस्टम की क्या हालत है ?

छोड़ा जाए बांधों से पानी

बीएचयू के साइंटिस्ट और रिवर एक्सपर्ट प्रो. बी. डी. त्रिपाठी कहते हैं, हाल के वर्षों में गंगा के जल में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है. गंगा के घटते फ्लो और इसमें लगातार समाहित हो रहे कई एमएलडी सीवर गंगा के इकोसिस्टम के लिए चुनौती बन गए हैं. तमाम प्रयासों के बाद भी जो सुधार होने चाहिए थे, वह नहीं हो पाए हैं. गंगा बेसिन के अबाध प्रवाह के लिए पानी छोड़ा जाए.

गंगा जल के इस्तेमाल के लिए जल्द ही पॉलिसी बनाई जाए. एसटीपी प्लांट को पूरी क्षमता के साथ चलाया जाए वरना गंगा के इको सिस्टम को तबाही से नहीं बचाया जा सकेगा. STP प्लांट आखिर जलमल-सीवर का करते क्या हैं ? ‘गंगा में गिरने वाले डायरेक्ट सीवर की बीओडी- 120 मिलीग्राम-लीटर से अधिक होती है. यह मलजल अति जहरीला और मछली-जलीय जीवों के अस्तित्व को तबाह कर देने वाला होता है.

गंगा में प्रदूषण के कारण

  • गंगा अपनी धारा के साथ मिट्टी ढोने वाली विश्व की सबसे दूसरी बड़ी नदी है. यह मिट्टी ही नहीं और हजारों टन कचरा और सैकड़ों एमएलडी सीवेज भी अपनी धारा में समेटने को विवश है. केवल वाराणसी की गंगा में 33 हजार शवों के दाह के बाद 700 से अधिक राख-कंकाल गंगा में बहा दिया जाता है. तो वहीं, रोजाना शहर भर से 30 छोटे-बड़े सीवर लाभभाग 160 एमएलडी से अधिक जहरीला सीवर गंगा फेंट रहे हैं.
  • गंगा के प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है, कल कारखानों के जहरीले रसायनों को नदी में बिना रोक के गिराया जाना. 750 से अधिक प्रदूषणकारी इंडस्ट्री इकाइयों का प्रदूषण आज भी गंगा में मिल रहा है. कल कारखानों या थर्मल पावर स्टेशनों का गर्म पानी भी रसायन, काला या रंगीन केमिकल नदी में जाता है तो नदी के पानी को जहरीला बनाने के साथ-साथ नदी के स्वयं के शुद्धिकरण की क्षमता को भी नष्ट कर देता है.
  • गंगा में जगह-जगह डेड जोन बन गए हैं. कहीं आधा, कहीं एक तो कहीं 2 किलोमीटर की डेट जो मिलते हैं, यहां से गुजरने वाला कोई जीव-जंतु और वनस्पति जीवित नहीं बचता है.
  • खेती में रासायनिक खादों और जहरीले कीटनाशकों का प्रयोग. यह रसायन बरसात के समय वह नदी में पहुंच जाते हैं. नदी की पारिस्थितिकी को बिगाड़ देते हैं.
  • गंगा में प्रदूषण का एक बड़ा कारण जीवन शैली की धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा है. गंगा में केवल वाराणसी में 33000 शवों को जलाने के बाद 700 टन से अधिक राख और कंकाल गंगा में बहा दिया जाता है.

अन्य कारणों में रेत खनन भी प्रमुख है. गंगा पर शुरू में ही तथा अन्य स्थानों पर बांध और बैराज बना दिए गए हैं, इससे गंगा के जल प्रवाह में भारी कमी आई है.

शासन को भेजा गया है प्रपोजल

वाराणसी के महाप्रबंधक रघुवेन्द्र कुमार रोजाना सैकड़ों एमएलडी सीवर के गंगा में समाहित होने के सवाल पर बताते हैं कि पहले से गंगा में सीवर जाना कम हुआ है लेकिन ये बात भी सच है कि वाराणसी के सैकड़ों एमएलडी सीवेज को ट्रीट करने के लिए आधा दर्जन एसटीपी नाकाफी हो रहे हैं. शासन और विभाग को नए और अधिक क्षमता वाले एसटीपी के लिए प्रपोजल भेजा गया है. जैसे ही अनुमोदन आता है, वैसे ही नए एसटीपी पर काम शुरू कर दिया जाएगा.

रमना एसटीपी की क्षमता महज 50 एमएलडी की है, जिससे पूरी क्षमता से सीवेज को ट्रीट किया जा रहा है. शेष 60-80 एमएलडी सीवर सीधे गंगा में जा रहा है.

नागरिक भी अपनाएं वैज्ञानिक सोच

राजीव कुमार सिंह बताते है कि बनारस में सीवर के बाद शव को जलाने के बाद इसकी राख और अधजले अस्थी और लकड़ी-राख आदि से गंगा के प्रदूषण का बड़ा कारण है. इसको रोकने के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत सरकारी प्रयासों से गंगा तट के किनारे विद्युत शवदाह गृह बनाने की योजना चल रही है, परंतु हिंदू धर्म की पारंपरिक मान्यताएं इसमें बाधक है. इसके लिए हिंदू मानसिकता को बदलना होगा.

गंगा को निर्मल रखने के लिए देश की कृषि उद्योग शहरी विकास तथा पर्यावरण संबंधी नीतियों में मूलभूत परिवर्तन लाने की जरूरत हैं. साथ ही रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों पर पूर्ण रोक लगानी पड़ेगी, तभी जाकर के गंगा के अस्तित्व और इसके इकोसिस्टम को बचाया जा सकता है ताकि सदियों से सभ्यताओं को सींचती आ रही गंगा अनवर रूप से बलखाती रहे.

डॉक्टर संदीप चौधरी ने किया सावधान

वाराणसी के जिला चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर संदीप चौधरी ने बताया कि गंगा के गंदे पानी में लोग नहा रहे हैं, तो उन्हें सावधान हो जाना चाहिए. गर्मी अपने पूरे रौ में चल रही है और लोगों को इससे परेशानी हो रही है, ऐसे में खुले आसमान के नीचे तपती धूप में लोग गंगा के या किसी भी गंदे जल स्रोत में नहाएंगे तो उन्हें फंगल इन्फेक्शन और बैक्टीरिया की अटैक का खतरा बढ़ जाता है.

लिहाजा, उन्हें त्वचा से संबंधित किसी भी प्रकार की दिक्कत होने पर तत्काल डॉक्टर को दिखाएं. साथ ही साथ वह साफ पानी में नहाने की कोशिश करें. ऐसे किसी भी सीवर आदि वाले मिश्रित जल में नहाने से बचें.

  • उपेंद्र प्रताप (जनज्वार)

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