भारत ‘वीरों’ की भूमि है. यहां असंख्य ‘वीर’ चारों ओर अटे पड़े हैं. यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि ऐसे ही वीरों के कारण भारत में विदेशी आक्रांताओं का आना जाना लगा रहा है और भारत सदियों तक गुलाम बना रहा. ऐसे ही एक वीर के दर्शन हुए थे बेगूसराय के पूर्वी छोड़ पर बसा एक गांव पंचवीर में. पंचवीर बिहारी जुबान पर घिसकर पचवीर या पचवीरा हो गया है. यहां पंचवीर नाम का एक चौक है. वहीं के निवासी एक मित्र से जब इस जगह के नाम का कारण पूछा तो पता चला, यह वह चौक है, जहां पांच वीर लड़ते हुए शहीद हो गये थे. उन्हीं की याद में इस चौक का नाम पंचवीर यानी पांच वीर रखा गया है.
शहीद पांच वीरों के बारे में मालूम होने पर जिज्ञासा बढ़ी कि आखिर कौन सी लड़ाई में ये शहीद हुए थे. तब पता चला कि उस गांव में एक अतीव सुन्दरी लड़की रहती थी. उससे शादी करने के लिए ये पांच ‘वीर’ तैयार थे. कोई भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं थे लेकिन उस लड़की की शादी तो किसी एक से ही हो सकती थी. ऐसे में तय हुआ कि पांचों आपस में लड़ेगा और जो जीतेगा, वही उस लड़की से शादी करेगा.
तय अनुसार लड़ाई शुरु हुआ. लड़ाई काफी लम्बी चली, लेकिन कोई भी हारने को तैयार नहीं था. परिणामस्वरूप पांचों के पांचों.एक दूसरे मारते हुए ‘शहीद’ हो गये और ग्रामीणों ने मारे गये उस पांचों ‘वीर’ की याद में उस चौक का नाम पंचवीर रख दिया और उसी आधार पर उस गांव का नाम – पंचवीर. इस पांचों ‘वीर’ के मारे जाने के बाद उस सुन्दरी लड़की का क्या हुआ, पूछने पर यह तो पता नहीं चला बहरहाल, एक लड़की से शादी करने के जुनून में ये पांच ‘वीर’ ‘शहीद’ हो कर ‘अमर’ हो गये.
लड़की से शादी करने की इच्छा पाले ‘शहीद’ हुए ये पांचों वीर कितने महान थे, कि उनका शरीर कितना विशाल था, कि वे कितने भारी हथियारों का इस्तेमाल करते थे, इस पर ढ़ेरों कहानियां लोगों के जुबान पर मौजूद था. कहना नहीं होगा, पंचवीर के इन वीरों की दास्तान ही भारत के समस्त वीरों की हकीकत है. इसी कड़ी में हमारे वीर पृथ्वीराज चौहान भी थे, जिनकी कहानियां बड़े ही चटकारे लेकर सुनाई जाती है.
भारत में व्यभिचार ही वीरता है
भारत में व्यभिचार ही वीरता है और व्यभिचारी ही वीर है. यही भारत के ब्राह्मणवादी वीरों का कहानी है, जहां अधिक से अधिक संख्या में स्त्रियों को अपने महल में रखना वीरता का उच्चतम मापदंड माना जाता है. यानी जो जितनी अधिक स्त्रियों को अपने अधीन रखेगा, वह उतना ही बड़ा वीर माना जायेगा. यानी, जो जितना अधिक व्यभिचारी होगा वह उतना ही अधिक वीर होगा. यह अनायास नहीं है कि मौजूदा मोदी शासनकाल में भी बलात्कारी और हत्यारा सेंगर, चिनमयानंद आदि जैसे व्यभिचारी वीरों का महिमामंडन किया जा रहा है.
इन व्यभिचारी वीरों की कहानियां ज्ञात भारत के इतिहास में कुछ को छोड़कर बांकी सभी जगह व्याप्त है. यह भी ध्यान रखने योग्य तथ्य है कि भारतीय ब्राह्मणवादी वीरों के बलात्कार करनेवाले की इस क्षमता को सैद्धांतिक अमलीजामा पहनाने वाले पहले भारतीय सिद्धांतकार थे ‘वीर’ सावरकर. कहा जाता है कि जब किसी ने सावरकर को ‘वीर’ नहीं कहा तो उसने खुद ही अपने नाम के आगे वीर लगा लिया. अब उसके चेले-चपाटे उसे जबरन वीर साबित करने के लिए भाला और त्रिशूल लेकर घूम रहे हैं, और लोगों यहां तक कि औरतों, खासकर गर्भवती औरतों के अजन्मे बच्चों के पेट में त्रिशूल घोंपकर विजय पताका लहरा रहे हैं.
जैसा कि ऊपर कहा गया है सावरकर ने इन व्यभिचारियों को वीर होने का तगमा दिया और बलात्कार को दुश्मन के खिलाफ हथियार के तौर पर प्रस्तुत किया. इन्हीं बलात्कारी या कहें व्यभिचारी वीरों में से एक था – पृथ्वीराज चौहान. आज चौहान के समर्थक चौहान को राजपूत और गुर्जर साबित करने के लिए तलवारें भांज रहे हैं. तो एक गिरोह उसे सम्राट साबित करने के लिए फिल्मों का सहारा लेकर इतिहास को ही तोड़ने-फोड़ने के महान कार्य में व्यस्त है.
जैसा कि एक फिल्म में पृथ्वीराज चौहान बने कनाडियन कॉमेडियन ने कहा है कि अब फिल्में ही इतिहास हौगी, तो आइये, देखते हैं पृथ्वीराज चौहान के इतिहास की कुछ मजेदार बातें.
यह ऐतिहासिक तौर पर स्थापित तथ्य है कि पृथ्वीराज चौहान का निधन 1192 में हो चुका था जबकि मुहम्मद गौरी की मृत्यु सन 1206 में हुई थी. जबकि पृथ्वीराज चौहान बने कनाडाई कॉमेडियन अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म में मुहम्मद गौरी पृथ्वीराज चौहान के हाथों मारा जाता है ? खैर, अब यही इतिहास है. व्यभिचारियों को वीर मानने वाले इस देश में कल्पित कहानियां ही इतिहास है. इसे किसी साक्ष्य और तथ्यों की जरूरत नहीं होती. क्योंकि ये तो संभव ही नहीं है कि पृथ्वीराज चौहान अपनी मृत्यु के 14 साल बाद आकर मुहम्मद गौरी की हत्या कर देंगे !
लोकनायक योद्धा उदल की हत्या के बाद आल्हा द्वारा दिया गया जीवनदान
पृथ्वीराज चौहान के सेनापति चामुंडा राय ने उदल की पीठ पर वार करके उन्हें मार डाला. जब इस बात का पता आल्हा को चला तो वो क्रोधित हो उठे और पृथ्वीराज चौहान की सेना पर मौत बनकर टूट पड़े. आल्हा के सामने जो आया मारा गया. 1 घण्टे के घनघोर युद्ध के बाद पृथ्वीराज और आल्हा आमने-सामने थे.
दोनों में घमासान युद्ध हुआ, जिसमें पृथ्वीराज चौहान बुरी तरह घायल हो गया. क्रोधित आल्हा जब पृथ्वीराज चौहान को मारने वाले थे तब आल्हा के गुरु गोरखनाथ के कहने पर आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान को जीवनदान दिया. उन्होंने कहा कि प्रतिशोध के लिए किसी की जान लेना धर्म नहीं है. गुरु की आज्ञा मानते हुए आल्हा ने पृथ्वीराज को प्राणदान दे दिया.
पृथ्वीराज चौहान की व्यभिचारी ‘वीरता’
पृथ्वीराज विजय महाकाव्य के दशम सर्ग के उत्तरार्ध के अनुसार पृथ्वीराज चौहान की कुल 16 पत्नियां थीं –
- मंडोर के चंद्रसेन की पुत्री चंन्द्र कंवर पडिहारी
- आबू के राव आल्हण पंवार की पुत्री इच्छनी पंवारी
- मण्डोर के राव नाहड़ प्रतिहार की पुत्री जतन कंवर
- देलवाड़ा के रामसिंह सोलंकी की पुत्री प्रताप कंवर
- नागौर के दाहिमा राजपूतों की पुत्री सूरज कंवर
- गौड़ राजकुमारी ज्ञान कंवर
- यादव राजकुमारी यादवी पद्मावती
- गहलोत राजकुमारी कंवर दे
- बड़ गूजरों की राजकुमारी नंद कंवर
- आमेर नरेश पंजन की राजकुमारी जस कंवर कछवाही
- राठौर तेजसिंह की पुत्री शशिव्रता
- देवास की सोलंकी राजकुमारी चांद कंवर
- बैस राजा उदय सिंह की पुत्री रतन कंवर
- सोलंकिया राजकुमारी सूरज कंवर
- प्रताप सिंह मकवाड़ी की पुत्री गूजरी, और
- कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता गाहडवाल।
मतलब कि हर जाति की उनकी एक पत्नी थीं और कुछ तो एक ही नाम की दो दो थी. जिस जयचंद्र को आजतक ‘गद्दार’ कह कर लगभग गद्दार का प्रयायवाची बना दिया गया है, वह जयचंद्र और कोई नहीं बल्कि कन्नौज के राजा थे और संयोगिता उनकी बेटी थी.
कन्नौज के राजा की 14 वर्षीय पुत्री से पृथ्वीराज का संबंध
गौतम शर्मा लिखते हैं – 10वीं सदी में दिल्ली के राजा हुए अनंगपाल, जिनकी दो पुत्रियां ही थी. बड़ी पुत्री से हुए पृथ्वीराज चौहान और छोटी पुत्री से हुए कन्नौज के राजकुमार जयचंद. पृथ्वी बड़ी लड़की के पुत्र और वीर होने के कारण नाना अनंगपाल के वारिस हुए. उन्हें दिल्ली विरासत में मिली.
जयचंद की पुत्री हुई संयोगिता, जो कनौज की राजकुमारी हुई. बेहद खूबसूरत. जिस पर मोहित हुए दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान, जो रिश्ते में संयोगिता के मौसेरे चाचा थे. पिता के उम्र से भी बड़े पृथ्वीराज तब तक 15 और शादी कर चुके थे.
पृथ्वीराज और संयोगिता के प्रेम प्रसंग की जानकारी होते ही जयसिंह एक बाप की तरह संयोगिता की शादी तय कर दी. ये खबर पृथ्वीराज को भी मिली. शादी के दिन ही पृथ्वीराज अपनी भतीजी संयोगिता को ले भागे. इस तरह संयोगिता अपने मौसेरे चाचा की 16वीं पत्नी बनी.
दिल्ली उन दिनों भी शक्तिशाली था, कन्नौज कमजोर लेकिन पृथ्वीराज चौहान और जयचंद इन दोनों मौसेरे भाइयों के बीच संयोगिता प्रकरण एक शूल की तरह पड़ा था. उधर अफगान लड़ाका और पंजाब का शासक गोरी दिल्ली के फिराक में था. इधर पृथ्वीराज भी विस्तारवादी नीति के तहत पंजाब के फिराक में थे.
1191 में हरियाणा के करनाल के निकट तराईन में गोरी-पृथ्वीराज आमने सामने हो गए, जिसमें पृथ्वीराज पंजाब के कुछ क्षेत्र जीतने में कामयाब रहे. गोरी हार का बदला लेना चाहता था, इधर जयचंद अपनी बेटी का. दुश्मन का दुश्मन दोस्त नीति के तहत दोनों एक साथ हो गए.
फिर हुआ एक साल बाद 1192 में तराईन का दूसरा युद्ध, जिसमें पृथ्वीराज बंदी बना लिए गए. फिर बीच सभा में गोरी द्वारा उनकी हत्या कर दी गई. इस तरह जयचंद और गोरी दोनों ने अपना बदला पुरा किया. यहां यह जानना महत्वपूर्ण है कि उस समय तक देश की कही भी कोई भी कल्पना ही नहीं थी इसलिए बतौर देश ‘हिंदुस्तान’ भी नहीं था, जिसकी कल्पना हम आज के देश की तरह करते हैं.
आज व्यभिचारी पृथ्वीराज चौहान को महिमामंडित क्यों किया जा रहा है ?
15 पत्नी पहले से रहने के बाद अपने मौसेरे भाई की बेटी, जो रिश्ते में उसकी भी बेटी लगती, को विवाह मंडप से उठा ले जाना और विवाह करना, आज के दौर में भी खासकर उत्तर भारत में उचित नहीं माना जाता और व्यभिचार की श्रेणी में आता है. ऐसे में सहज ही सवाल उठता है कि आज के दौर में इस व्यभिचारी संकुचित दृष्टिकोण वाले पृथ्वीराज को महिमामंडित क्यों किया जा रहा है ?
दरअसल, भारत की ब्राह्मणवादी विकृत संस्कृति बलात्कार को अपराध नहीं मानता है, उल्टे बलात्कारियों और व्यभिचारियों के कुकर्म का विरोध करने वालों को ही अपराधी मानता है और बलात्कारियों और व्यभिचारियों को ईश्वर तुल्य. कठुआ में बलात्कारियों के पक्ष में जुलूस निकालने वाले भाजपाइयों को दुनिया ने देखा और थू-थू किया. सेंगर ने तो बलत्कृत लड़की के पूरे खानदान को ही मैं टा दिया. तेल मालिस करवाने वाला चिंम्यानंद की शिकायत करने वाली लड़की को ही जेल में बंद करा दिया.
अब जब सुप्रीम कोर्ट ने भी व्यभिचार यानी, देह व्यापार की खुली छूट दे दिया है और पृथ्वीराज चौहान के बहाने व्यभिचार को नैतिक रुप से स्थापित करने का कुचक्र रचा जा रहा है, तो इसके साफ मायने हैं कि व्यभिचार और बलात्कार एक बार फिर इस देश नैतिक होने जा रहा है, भले ही इसके लिए फर्जीवाड़ा ही क्यों न करना पड़े.
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Shiladitya
August 13, 2023 at 4:06 am
Kisi bhimte se likha gaya ek ghatiya blog hai ye.Iska sar mundwa k mu kala kar k lampost se bandh k kora marna chahiye.Be buniad blog.
ROHIT SHARMA
August 15, 2023 at 5:11 am
सिर से पैर तक नफरत में धंसे हुए आप स्वयं इस आलेख के विरुद्ध कोई प्रमाण नहीं दे रहे हैं. आपको प्रमाण सहित बाते करनी चाहिए न कि अपने नफरत को जाहिर करना चाहिए. आप अपने हाल पर जीने के लिए अभिशप्त हैं.