कश्मीर फाईल्स दिखाकर आतंकियों को जिस तरह हमारी सरकार ने उत्तेजित किया तथा देश में लोगों को जिस तरह उकसाने का काम किया उसका फलितार्थ हमारे सामने है. इस उत्तेजना का इस्तेमाल वोटों की खातिर होने का मकसद भी साफ है. यासीन मलिक को जिस शीघ्रता से निपटाया गया वह सामने है. इतना ही नहीं जब भी कोई पंडित मारा जाता है तभी कुछ तथाकथित आतंकियों के मारे जाने की ख़बरें धड़ाधड़ आ जाती हैं. ये सब पहले क्यों नहीं हो सकता या होता है.
एक तो कश्मीरी पंडितों को दिग्भ्रमित कर घाटी से विस्थापित कराया गया. उनका वतन छिनवाया और उन्हें जितनी कुछ मदद दी गई वैसी कभी कहीं विस्थापन करने वालों को नहीं मिली. वे आज तक इस प्रताड़ना का दंश झेल रहे हैं. अब तो कश्मीर में चुन चुन कर कर्त्तव्य स्थल पर महिलाओं को भी निशाना बनाया जा रहा है.
साहिबान, पहले कहा गया कि नोटबंदी से आतंकवाद का ख़ात्मा हो जाएगा. फिर धारा 370 को गैर संवैधानिक तरीके से हटाया गया. कश्मीर को केंद्र शासित राज्य बनाकर तमाम अधिकार अपने हाथ में लेने के बावजूद आज भी कश्मीर बेहाल है अब और क्या चाहिए साहिब ! पंडित और मुस्लिम दोनों मारे जा रहे हैं. आतंकवाद की जड़ कहां है सबको पता है, उस पर प्रहार की जगह आप कश्मीरियों को ही गुनहगार मान रहे हैं, जिससे वहां की अवाम नाखुश है.
कश्मीरी पंडित तो फिर विस्थापित होने की धमकी दे दिए हैं पर मुस्लिम रियाया का क्या होगा ? उन अमन पसंद और भारत के पक्षधर मुस्लिम समुदाय की भी सुध लीजिए. सभी को एक तराजू पर तौलना बंद कीजिए. पंडितों के विस्थापन को रोकें और शीघ्र यहां चुनाव कराएं. लोकतांत्रिक व्यवस्था सुदृढ़ किये बिना कश्मीर अशांत रहेगा. वहां के लोग सत्ता में आकर अपनी व्यवस्था ख़ुद संभाल लेंगे. जो विस्थापित कश्मीरी पंडित हैं उन्हें भी चुनाव में भागीदारी मिलनी चाहिए. वे घाटी छोड़ें इससे पहले पूरे कश्मीर की सुरक्षा व्यवस्था को चाक चौबंद करें.
याद कीजिए, असम राज्य में जब असम गण परिषद के छात्र इसी तरह उत्तेजक माहौल बनाए थे तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा जी ने उन्हें ही मैदान में उतारा और फिर उन उर्जावान युवाओं ने असम को नई दिशा दी. सब उपद्रव बंद हो गए. मिजोरम में लालडेंगा से समझौता और अवसर देकर मिजो समस्या का समाधान किया गया. बंगलादेश में मुक्ति वाहिनी की मदद कर उन्हें अपने देश के विकास का मौका दिया गया.
कश्मीर के वाशिंदे आज भी अपने कश्मीर को वतन कहते हैं. ये भावना वहां के पंडित, मुस्लिम और सिखों के दिलों में आज भी मौजूद हैं. सरकार के बहकावे में आकर भले वे विस्थापित हुए हैं लेकिन आज भी उनके दिलो-दिमाग में अपने वतन वापसी की छटपटाहट है. उन्हें उनका वतन, हक और आपसे सुरक्षा चाहिए. यही समझौता उनके महाराजा हरी सिंह ने किया था. उसे बहाल किए बिना उनका दर्द नहीं मिटने वाला.
पंडितों के घर ज़मीन पूरी तरह सुरक्षित है उन्हें वहां जाने दीजिए. अलग पंडितों की ऊंची कालोनियां बनाकर मुस्लिम हिंदू के बीच ज़िंदा कश्मीरीरियत को ना बांटिए. कारपोरेट की उपस्थिति ने वहां की फ़िज़ा बदलने की जो कुचेष्टा की हुई है, उस पर विराम लगाएं. नैसर्गिक सौंदर्य का धनी कश्मीर किसी के रहमो-करम की अपेक्षा नहीं करता. वहां के सभी लोगों के पास अपने घर हैं, ऐसा किसी प्रदेश में आपको नहीं मिलेगा. उनके घरों, जमीन पर डाका डालना बहुत मंहगा पड़ेगा. कश्मीरी पंडित आज भी मुस्लिम दिलों में बसते हैं और पंडित भी उनकी यादों को कहां विस्मृत कर पाए हैं. यह मोहब्बत ज़िंदा है और रहेगी.
आरज़ू यही है कि जन्नत के नज़ारे वाले इस कश्मीर को नफरत और व्यापार का केंद्र न बनाएं. यह तय है घाटी का तापमान इस क्षेत्र में हो रही हत्याएं बदस्तूर बढ़ा रही हैं. यह ख़तरे की घंटी है. इससे पम्पौर का जाफ़रान और ज़र्रे ज़र्रे की ग़ुलाब-सी महकती ख़ुशबुएं तथा खूबसूरती भी जाती रहेगी. इन हत्याओं को रोकना और अमन चैन के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था को शीध्र से शीघ्र बहाल करना केंद्र सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है.
- सुसंस्कृति परिहार
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