रविश कुमार
आपदा में अवसर तो आपने सुना ही होगा लेकिन यह तो नहीं सुना होगा कि आपदा आपके लिए थी और अवसर किसी और के लिए था. किसी और के लिए भी नहीं, केवल चंद सौ लोगों के लिए था. आक्सफैम की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार कोरोना के उन दो वर्षों के दौरान दुनिया में हर 30 घंटे में एक नया अरबपति पैदा हो रहा था. हर 33 घंटे में दस लाख लोग अत्यंत गरीबी रेखा के नीचे धकेले जा रहे थे. इस एक डेटा से आप समझ सकते हैं कि कोरोना किसके लिए अवसर लेकर आया था और किसके लिए आपदा.
आठ फरवरी 2021 को राज्यसभा में प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रकवि मैथिलीशरण की कविता की तुकबंदी बनाई और अपने शब्दों को जोड़कर लोगों का आह्वान किया. उस तुकबंदी के सहारे प्रधानमंत्री भारत से कह रहे थे कि अवसर इंतज़ार कर रहे हैं. बस उठकर खड़े होने की ज़रूरत है.
अवसर तो वाकई आया था मगर उन सभी के लिए नहीं जो गरीबी रेखा के नीचे धकेले जा रहे थे. जिनकी नौकरी चली गई थी. सैलरी आधी हो गई थी. उस वक्त अस्सी करोड़ लोग दो वक्त के भोजन के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना पर निर्भर थे, उन्हें उठकर खड़े होने और अवसर को गले लगाने का उपदेश नहीं दिया जा सकता था. बिना पूंजी और काम के कोई अरबपति तो नहीं बन सकता.
बाकी बहुत सारे लोग तो इसी तरह आपदा से अवसर के दायरे से बाहर हो गए जब तालाबंदी ने उन्हें बेघर और बेरोजगार कर दिया. वे शहरों में किराये के घरों को छोड़कर अपने गांवों की तरफ पैदल चलने लगे. कुछ लू से मर गए तो कुछ ट्रेन और बस से टकराकर. तालाबंदी के कारण करोड़ों लोगों की नौकरी चली गई. बाकी बहुत से लोग महामारी की दहशत से घिरे रहे.अस्पतालों के बाहर बिलख रहे थे, तड़प रहे थे. ऐसे लोगों के पास उस समय अवसरों का लाभ उठाने की क्या ही क्षमता बची होगी !
दर्द से मुनाफा
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट आई कि भारत ने आधिकारिक रूप से मरने वालों की जितनी संख्या बताई है, उससे दस गुना ज़्यादा लोग मरे हैं. 47 लाख लोग मरे हैं. भारत सरकार ने इस नंबर को ठुकरा दिया और रिपोर्ट की आलोचना की. लेकिन जब उसी WHO ने आशा वर्करों की तारीफ की तब प्रधानमंत्री ने भी स्वागत में ट्वीट किया.
दर्द से मुनाफ़ा, आक्सफैम की रिपोर्ट का नाम है. इसमें लिखा है कि पिछले कई दशकों की मेहनत से दुनिया भर में करोड़ों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया था, उस मेहनत पर पानी फिर गया. कोरोना के दौरान हर 33 घंटे में 10 लाख लोग अत्यंत गरीबी में धकेले जाने लगे. क्या ये दस लाख लोग इसलिए अत्यंत गरीबी में धकेले गए, क्योंकि अवसरों का लाभ नहीं उठा रहे थे ? अगर कोई इतना भोला है तो उसे भोला ही रहने देना चाहिए.
दावोस में जमा हुए वर्ल्ड इकानॉमिक फोरम के सदस्यों की गरमी का अंदाजा आपको नहीं होगा, इनमें से कई कोरोना के दो साल में कई गुना अमीर हो गए हैं. कैसे अमीर हुए, इसके बारे में दर्द से मुनाफा रिपोर्ट में लिखा है कि –
जब दुनिया भर की सरकारों और केंद्रीय बैंकों ने ग्लोबल अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए पैसे डालने शुरू किए तब उसका लाभ इन अरबपतियों ने उठाया. कर्मचारियों को निकाल दिया. जो रह गए उनकी सैलरी कम कर दी, काम उतना ही हुआ और मुनाफा कई गुना. लिहाजा दो साल में दुनिया भर में 573 नए अरबपति पैदा हो गए. इनमें से 40 नए अरबपतियों का संबंध दवा के कारोबार से है जो टीका, इलाज, टेस्ट पर एकाधिकार रखते हैं.
खाने-पीने की चीज़ों के कारोबार से जुड़े 62 नए अरबपति पैदा हुए हैं. कारगिल परिवार दुनिया में खेती के कारोबार पर एकाधिकार रखता है, सत्तर परसेंट मार्केट इसके कब्ज़े में है. इस एक परिवार में महामारी से पहले आठ अरबपति थे, महामारी के बाद 12 अरबपति हो गए.
इस रिपोर्ट में लिखा है कि –
एलॉन मस्क के पास इतना पैसा है कि 90 प्रतिशत दौलत नष्ट भी हो जाए तब भी मस्क दुनिया के चोटी के अमीरों में ही रहेंगे. सोचिए 23 साल में इनकी दौलत जितनी बढ़ी है, उसके बराबर में दो साल के भीतर बढ़ी है. मतलब किस रफ्तार से कुछ लोग कमा रहे थे. क्या आप भी इस दौरान अमीर हुए या उसके बदले आप व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के असर में हर जगह खोदकर कुछ निकालने की योजना बना रहे थे.
जमीन के नीचे कुछ नहीं है, कुछ है तो उन नीतियों के पीछे जो आपको जमीन के नीचे गाड़ रही हैं. यह सबसे बड़ा झूठ है कि मानवता दुनिया को एक करती है, दुनिया को केवल ये चंद अरबपति एक करते हैं जो इसे एक मैदान समझकर चारों तरफ एक नीतियां बनवा रहे हैं. इनकी गिनती कुछ सौ में हैं मगर इन्हीं की एकता अब मानवता की एकता है.
इस रिपोर्ट में लिखा है कि चंद लोगों के हाथ में सारी दौलत आ जाने से राजनीति और मीडिया भ्रष्ट हो जाएंगे. चंद लोग अपनी दौलत से मीडिया और राजनीतिक दल को चलाएंगे. ऐसे में आप कल्पना कर सकते हैं कि आम जनता के साथ क्या होगा. एक दिन वीडियो वायरल कराने का अधिकार और साधन भी आपके हाथ से जाने वाला है. मेरी इस बात को लिखकर पर्स में रख लीजिए. मीडिया के खत्म होने के बाद अगला हमला वायरल कराने वालों पर होगा. मतलब एक ऐसा जमाना आएगा जब आपके पास बल्ब की रोशनी तो होगी मगर उसके नीचे आप अंधेरे में होंगे. केवल विज्ञापन होगा और उसके भीतर एक चमकदार दुनिया होगी.
एक सरकारी विज्ञापन यू-ट्यूब पर है. इस वीडियो की क्वालिटी इतनी अच्छी है कि इसमें जो लोग गरीब कल्याण योजना के लिए लाइन में खड़े हैं, वे गरीब नजर नहीं आते हैं. यूपी की 24 करोड़ आबादी मानी जाती है, इसमें से 15 करोड़ लोग दो वक्त का अनाज नहीं खरीद सकते हैं. यह संख्या बताती है कि भारत के एक बड़े प्रदेश में आर्थिक असमानता कितनी भयावह है. लेकिन आज का संदर्भ असमानता के अलावा पात्रता का भी है, जिसे लेकर यूपी में राशन कार्ड धारकों के बीच हंगामा मचा हुआ है.
राशनकार्ड की वापसी यानी गरीबी का खात्मा
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के इस विज्ञापन में बार-बार इसी का जिक्र है कि कितने हजार करोड़ से यूपी के 15 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज दिया जा रहा है. इसमें या इस तरह के दूसरे विज्ञापन में कहीं भी नहीं बताया गया कि इस योजना के लिए योग्य कौन हैं. जिसके पास कार्ड है, उसे अनाज दिया गया. देश भर में अस्सी करोड़ लोगों को अनाज दिया गया और इसकी तारीफ भी बटोरी गई. दो साल तक यह योजना चली है. किसी ने नहीं सोचा कि कौन योग्य है, राशन कार्ड असली है या नहीं.
इस योजना के लिए कहा गया कि सौ रुपया लीटर पेट्रोल ज़रूरी है, लोगों ने समझा वाकई ज़रूरी है. कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी और बीजेपी नेता वरुण गांधी तक इसके खिलाफ बोलने लगते हैं. तमाम चर्चाओं में माना गया है कि योगी आदित्यनाथ की भारी जीत के पीछे इस अनाज योजना का बड़ा रोल रहा है, लेकिन चुनाव के बाद जब अनाज के दाम की चर्चा शुरू हुई तब विपक्ष मुखर होकर आलोचना करने लगा. आखिर दो साल तक चली इस योजना के दौरान इसकी शर्तों का प्रचार क्यों नहीं हुआ कि कौन पात्र है, कौन नहीं ?
कई हफ्ते से यूपी के अखबारों में खबर छप रही है कि जो लोग योग्य नहीं हैं, उन्होंने मुफ्त राशन लिया है, उन्हें राशन कार्ड लौटाना होगा, वरना उनसे अनाज के दाम वसूले जाएंगे. राशन की दुकानों के बाहर लोग कार्ड लौटाने जा रहे हैं. रविवार को यूपी सरकार की तरफ से कहा जाता है कि सरकार या विभाग की तरफ से ऐसा कोई नया आदेश जारी नहीं हुआ है. जब आदेश जारी नहीं हुआ तब इतने दिनों से लोगों के राशन कार्ड क्यों लिए जा रहे थे ? क्या अब वे वापस कर दिए जाएंगे ?
अमर उजाला की एक खबर आगरा से छपी है. अख़बार लिखता है कि अप्रैल भर में 43,000 लोगों ने राशन कार्ड सरेंडर कर दिए हैं. इसी अखबार की एक खबर बाराबंकी जिले से है. यहां पर 12 हज़ार राशन कार्ड सरेंडर किए गए हैं. उन्नाव ज़िले की खबर बताती है कि यहां पर साढ़े सात हज़ार से अधिक राशन कार्ड लौटाए गए हैं. अमर उजाला ने चार मई के दिन गोरखपुर से यह खबर छापी है. इसमें काफी विस्तार से लिखा है कि डीएम का निर्देश जारी हुआ है. ट्रैक्टर, एयरकंडीशन, लाइसेंसी वालों को राशन कार्ड निरस्त कराना होगा.
इसके लिए एक जिले में 1340 टीमें बनाई गई हैं, जिसे ज़िले भर में यह काम दो से चार दिनों के भीतर करना है कि कौन-कौन से लोग अपात्र हैं. इतना बड़ा अभियान चल रहा है, वह भी मुख्यमंत्री के क्षेत्र में, क्या इसकी जानकारी लखनऊ को नहीं होगी ? ऐसा हो नहीं सकता कि सरकार को पता न हो और जिला स्तर पर अपने आप शुरू हो गया हो. एक सवाल यह भी है कि अगर शासन की तरफ से आदेश नहीं रहा होगा तब एक साथ कई जिलों में यह अभियान कैसे शुरू हो गया ?
अलग-अलग ज़िलों से अमर उजाला में छपी ख़बरें बता रही हैं कि हर ज़िले से हजारों लोगों ने राशन कार्ड लौटाए हैं, जो नए आदेश के मुताबिक इस योजना के योग्य नहीं थे. क्या इन लोगों ने गलत तरीके से मुफ्त अनाज लिया ? यह सवाल नैतिकता का भी है और आर्थिक संकट का भी.
न्यूजक्लिक की रिपोर्ट में मजदूर किसान मंच के बृज बिहारी का बयान छपा है, उनका दावा है कि उन्होंने अवध इलाके में सर्वे किया है, जिसके अनुसार 89 प्रतिशत लोगों के पास राशन कार्ड था. अगर कार्ड वापस लिया गया तो अब केवल 30-35 प्रतिशत लोगों के पास ही कार्ड लगेगा. जिन लोगों ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान लिया है, वे लोग राशन कार्ड की पात्रता से बाहर हो जाएंगे. 2020 से यह योजना चल रही है लेकिन क्या इस तरह से लाउडस्पीकर लगाकर मुनादी कराई गई कि जो लोग योग्य नहीं हैं, वे अपना राशन कार्ड लौटा दें.
एक सूचना और है. यूपी में जून के महीने से फ्री अनाज के कोटे से गेहूं नहीं मिलेगा. पांच महीने के लिए तीन किलो गेहूं फ्री दिया जाना था जो अब नहीं दिया जाएगा. इसकी जगह पर पांच किलो चावल दिया जाएगा. यानी जो लोग कह रहे थे कि गेहूं के निर्यात से भारत में संकट हो सकता है, उनकी बात सही थी. रवीश रंजन अपनी रिपोर्ट में बता रहे हैं कि गाजियाबाद जिले में 6500 से अधिक लोगों ने अपने राशन कार्ड लौटा दिए हैं. हापुड़ में भी लोग कार्ड लौटाने के लिए राशन की दुकानों के बाहर नज़र आ रहे हैं. किसी ने पूछा है कि केवल राशन की ही रिकवरी होगी या फोटो वाला झोला भी वापस करना पड़ेगा ?
इस रिपोर्ट से एक सच्चाई यह भी आ रही है कि दहेज में बाइक मिली है तो इसका मतलब यह नहीं कि अनाज खरीदकर खाने के लायक हो गए हैं. आर्थिक असमानता के इस इंडिकेटर के बारे में अर्थशास्त्री को भी पता नहीं होगा और न मार्केट को कि लोग कर्ज़ लेकर बाइक खरीद रहे हैं और दहेज में दे रहे हैं. इसका भी डेटा होना चाहिए कि कितनी बाइक दहेज के लिए ख़रीदी जा रही है.
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