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कुत्ता और आदमी

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कुत्ता का आदमी से दोस्ती कैसे हुआ, इस पर बहुत पहले एक कहानी पढ़ा था. कहानी कुछ यूं था – कुत्ता सबसे ताकतवर साथी की तालाश में था, ताकि वह चैन और शांति से जीवन जी सके. उसकी यह तलाश पूरी हुई भेड़िया को देखकर. कुत्ता ने भेड़िया को सबसे ताकतवर जानकार उससे दोस्ती करने की इच्छा जाहिर की. भेड़िया बोला – ठीक है रहो.

कुत्ता शिकार आने पर भौंक कर भेड़िया को सतर्क करता और भेड़िया उस जानवर का शिकार कर खाता और बचे-खुचे खाकर कुत्ता भी संतोष से रहता. इस तरह भेड़िया भी खुश रहता कि शिकार की तलाश में हमेशा सतर्क रहने की जरूरत खत्म हो गई तो वहीं कुत्ता भी प्रसन्न था कि खाना मिल जाता है.

एक दिन एक जानवर को जाते देखकर कुत्ता ने भौंकना शुरु किया. भेड़िया शिकार मिलने की उम्मीद में मांद से बाहर निकला. उसकी नजर ज्यों ही शिकार पर पड़ी, उसका खून जम गया, डर से कांपने लगा और कुत्ता से फौरन गुर्राते हुए कहा – चुप रहो. यह शेर है. तुम हमें भी मरवायेगा.’ यह देखकर कुत्ता भौंचक्का रह गया. अब तक वह जिस भेड़िया को ताकतवर समझ रहा था, यह शेर तो उससे भी बड़ा ताकवर निकला.

कुत्ता ने फौरन फैसला कर लिया और भेड़िया को छोड़कर शेर के पास चला गया. शेर से दोस्ती का प्रस्ताव रखा. शेर ने भी सहमति दे दी. अब कुत्ता खुश था. उसकी पुरानी दिनचर्या भलीभांति निभ रहा था. शिकार देखकर वह भौंककर शेर को सतर्क करता और शेर जाकर शिकार कर लाता. बचे खुचे खाकर कुत्ता का भी मौज था.

एक दिन उसने एक शिकार को देखकर जोर-जोर से भौंकना शुरु किया. शेर तुरन्त मांद.से निकलकर बाहर आया, लेकिन ज्यों ही उसने शिकार को देखा तो उसका भी खून जम गया और डरकर कांपते हुए कुत्ता से कहा – ‘चुप, यह शिकार नहीं, शिकारी है. आदमी है यह. तुम हमें भी मरवायेगा.’ यह देखकर कुत्ता ने भी फौरन.फैसला लिया और शेर का साथ छोड़कर उससे ताकतवर आदमी के पास चला गया.

अब वह शिकारी आदमी जंगलों में घूमता, शिकार करता, खाता और बचाखुचा कुत्ता को भी खिलाता. और कुत्ता भी अपने दिनचर्या में लग जाता. एक दिन एक विशाल जानवर को देखकर कुत्ता जोर-जोर से भौंकने लगा. शिकारी आदमी अपना तीर-धनुष लेकर फौरन बाहर आया. उस विशाल जानवर को देखकर आदमी प्रसन्न हो गया और कुत्ता से कहा – और जोर से भौंको. जाकर काटो इसको, हमें इसका शिकार करना है.’

कुत्ता समझ गया, यह शिकारी आदमी सबसे ताकवर है. वह किसी से नहीं डरता. कुत्ता और जोश में आकर भौंकने और काटने लगा. तब से कुत्ता और आदमी की दोस्ती पक्की हो गई. कुत्ता आदमी के शरणागत हो गया. आज सोशल मीडिया पर दिनेश श्रीनेत का आदमी और कुत्ता पर लिखा एक लेख पढ़ा. वह भी महत्वपूर्ण है, इसलिए पाठकों के सामने उसे यहां हम रख रहे हैं.

बकौल दिनेश श्रीनेत, कुत्ते मेरे लिए हमेशा कौतुहल का विषय रहे हैं. वो अभिजात्य कुत्ते नहीं जिन्हें घर में सजाया जाता है बल्कि स्ट्रीट डॉग. ‘दीवार’ और ‘अग्निपथ’ के अमिताभ की तरह सेल्फमेड और गुरूर से भरे हुए. मगर इंसानों के साथ बड़ी सहजता से घुलमिलकर रहते हैं. मनुष्य को इन कुत्तों से कोई सीधा फायदा नहीं होता. न तो वह उनका दूध पीता है, न उनकी सवारी करता है और न कुत्ते उसका बोझ ढोते हैं. बस किसी भी अन्य जानवर के मुकाबले उनकी संप्रेषणीयता ज्यादा है.

भावनाओं का ऐसा सीधा-सच्चा प्रदर्शन कोई कुत्तों से सीखें. शक-सुबहा होने पर कान खड़े करना, संदेह गहरा होने पर गुर्राना, बात इससे आगे बढ़े तो जंग का ऐलान कर देता और लड़ाई पर बात आ जाए तो जान लड़ा देना – ये गुण मनुष्यों ने कुत्तों से ही सीखे होंगे. क्योंकि इंसान तो मिट्टी के लोंदे जैसा है, भावनाओं को व्यक्त करने की क्षमता तो उसमें सभ्यता के साथ आई है. बंदरों की प्रजाति का ही तो है.

वैसे भी बंदर मुझे कुत्तों के मुकाबले बहुत ठस टाइप लगते हैं, काफी हद तक स्वार्थी भी. उनका ज्यादातर वक्त फालतू की उछल-कूद और शोर मचाने में बीतता है. अपने आसपास को नुकसान पहुंचाने में भी बंदर आगे रहते हैं. पेड़ पर चढ़ेंगे तो फल खाएंगे कम गिराएंगे ज्यादा.

दुर्भाग्य से बंदरों के यही गुण मनुष्य में भी है इसीलिए ग्लोबल वार्मिंग भी हो रही है. मनुष्य या फिर दूसरे जानवरों में कुत्तों वाली बात नहीं है- चाहे गाय हो या घोड़ा या बकरी. वे निर्जीव वस्तुओं से बेहतर बस इसलिए हैं कि हिलते-डुलते हैं. बाकी मनुष्य उनको सारा सम्मान इसलिए देता है कि उनका उपयोग या कहें तो शोषण करता है।

इसके मुकाबले कुत्तों की जीवन शैली में एक किस्म का संतुलन दिखता है. वे मनुष्य से ज्यादा संज़ीदा, व्यावहारिक और मितव्वयी होते हैं. कुछ करने को नहीं होगा तो कुत्ता आराम से सोता हुआ मिलेगा. अब ऐसा भी नहीं सोता कि दीन-दुनिया की खबर ही न रहे और इतना भी अलर्ट नहीं रहता कि दूसरों का जीना मुश्किल कर दे.

कुत्ते फालतू मेहनत नहीं करते, वे न गधे हैं न घोड़े और न ही बैल. हां, जरूरत आने पर जान लड़ाकर दौड़ेंगे, भौंक-भौककर आसान सिर पर उठा लेंगे. आपको ही नाराज़ कर देंगे, मार खा लेंगे, मगर आपको नुकसान नहीं पहुंचने देंगे.

कुत्ते न सिर्फ अभिव्यक्त करना जानते हैं बल्कि आपकी अभिव्यक्ति को भी समझते हैं. आपका कब खेलने का मन है, कब चुपचाप रहने का, कब आप उदास हैं और कब स्नेह जता रहे हैं. उनका स्नेह और कृतज्ञता प्रदर्शन भी लाजवाब है. उनकी पूंछ क्या कमाल इंडीकेटर है. कुछ खाने को दीजिए और ‘दुम का दोलन’ देखिए, उसके आगे ‘थैंक्यू’, ‘आई एप्रीशिएट’, ‘चीयर्स’ जैसे शब्द बेकार हैं. शुक्रिया कहना, कृतज्ञ होना मनुष्यों ने इस सृष्टि में जरूर कुत्तों से सीखा होगा.

कुत्ता इस सृष्टि में प्रसन्नता और दुलार लेकर ही आया था और इन्हीं गुणों के साथ मनुष्य के पीछे-पीछे लग लिया. मनुष्य ने भी उसको रहने की जगह दी और पेट भरने को खाना दिया. बदले में कुत्ते ने क्या दिया ? थोड़ा प्यार-दुलार, वफादारी और सबसे बड़ी बात कमिटमेंट. एक बार वह आपके प्रति कमिटेड हो गया तो अपने-आप की भी नहीं सुनता. आप जहां जाएंगे आपके पीछे साए की तरह लगा रहेगा. दुलार दें चाहे दुत्कार, उसकी वफादारी में कोई फर्क नहीं आएगा. धर्मराज को तो स्वर्ग तक छोड़कर आया.

कुत्ते की इस स्वाभाविक खूबी की इंसानों ने कद्र नहीं की. उनके सहज स्नेह को लालच का नाम दे दिया जबकि लालच के मामले में मनुष्य का मुकाबला कुत्ते क्या ही कर पाएंगे ! हद तो तब हुई है जब कुत्ता शब्द एक गाली की तरह प्रयोग होने लगा.

इंसान मन तो डोल जाता है मगर लालची से लालची कुत्ते भी किसी ‘अतिरिक्त लाभ’ के लिए अपने मालिक को छोड़कर किसी और के पीछे नहीं चल देते. यह भी मनुष्य की प्रजाति का दोहरापन ही है कि उसने अपने सबसे वफादार साथी को इज्जत नहीं बख़्शी.

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