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करोना काल में प्रवासी मजदूर

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हम नहीं चाहते थे मरना
डंगर/बाड़ों में
तूड़ी के ढेरों में
ट्यूबवेल के कोठों में
होटलों में /ढाबों में
तहखानों में/ कारखानों में
शराब के खोखों में
नई-पुरानी इमारतों में
ईंट के भट्टों में
सिमेंट के स्टोरों में
रेत के ढेरों में
शरणार्थी कैंपों में
मंदिर/गुरुद्वारों में
थानों में/ जेलों में
पुलिस की वैनों में

हम तो मरना चाहते थे
अपने ही गांव में
अपने ही देस में
मां के चुल्हे के पास
मां के पल्लू के पास
बापू के छप्पर में
टूटी हुई खाट के पास
अपनी गाय/भैस के पास
घास-फूंस/गोबर के पास
अपनी बस्ती में/अपनों के पास

लेकिन…
हमें तो मारा गया
रात के अंधेरे में
पुलिस के घेरे में
मां ,बहन और ‘भैये’की गाली से
लाठी,डंडे और गोली से
हम ठोकरें खाते रहे सड़क किनारे
हम तड़पते रहे सड़क किनारे
हम सड़ते रहे जमुना जी में
हमें बहते रहे गंगा जी में
लावारिश पशुओं की तरह

हमें कौन दफनाता
कौन करता संस्कार !
हमारी ऐसी किस्मत कहां!

करोना बहुत ख़तरनाक था
पर हम तो उससे भी ज्यादा ख़तरनाक थे शायद
सबसे बड़ी महामारी तो हम ही थे
इसलिए हस्पतालों से ज्यादा
हम पर ध्यान दिया गया

करोना वायरस बताकर
हमें मारा गया
सड़कों पर दौड़ा-दौड़ा कर
साईकलों पर भगा‌-भगा कर
रेल की पटरियों पर सोते हुए
रेल की छतों पर लटकते हुए
बसों की खोज में भटकते हुए
ट्रकों के फट्टों पर चढ़ते हुए
नदियों-नहरों-जंगलों को पार करते हुए
हरियाणा-पंजाब की सीमा
हमारे लिए पाकिस्तान की सीमा हो गई
हम पर गोलियां बरसाईं गई
हमें पकड़ा गया जंगली जानवरों की तरह
हमें जकड़ा गया फरार कैदियों की तरह

हमें तो मारा गया
घेर/घेरकर
हेर/हेरकर
जैसे मारा जाता है
आदमखोर भेड़िये को
खुंखार आतंकवादियों को
चंबल के डाकुओं को
इनामी बदमाश को

हमें तो मारा गया
हमारी टांगें तोड़कर
हमारा सिर फोड़कर
हमारे कपड़े फाड़ कर
हमारे कपड़े उतार कर

हमें मारना ही था
तो कोई और तरीका खोज लेते
तुमने ये तरीके कहां से खोजे
तुमने ये ट्रेनिंग कहां से पाई
ऐसे तो जल्लाद भी नहीं मारता
तुम तो जल्लादों के भी जल्लाद निकले !

हमें इस तरह क्यों मारा गया
इस तरह मार कर तुम्हें क्या मिला
कौन से जन्म का बदला लिया
तुम हमें मारते हो
या कोई पुराना दुश्मनी निकालते हो !
इतनी नफ़रत
इतना गुस्सा
इतनी क्रूरता !

हम जीना नहीं चाहते थे
हम जीने के लिए नहीं भाग रहे थे
हमें तो मरना ही था
हम तो सिर्फ मरने के लिए भाग रहे थे
पर हम इस तरह नहीं मरना चाहते थे
जिस तरह तुमने मारा
एक दिन सबको मरना है
हम भी मर जाते किसी तरह
जैसे बाकी मजदूर मरते हैं
काम करते हुए
ग़रीबी से लड़ते हुए

हम नहीं जानते थे
हमारा मरना या जीना
हमारे हाथ में नहीं
तुम्हारे हाथ में था

हम तो अपन देस जाना चाहते थे !
हम तो कुछ भी नहीं चाहते थे
फिर हमें इतना कुछ क्यों दे दिया गया !
यह कौनसा हिसाब-किताब चुकता किया गया !

हम कहां जा रहे थे !
हमें तो जी कर या मर कर
फिर यहीं आ जाना था
हम कहां तक भाग सकते थे
कोल्हू का बैल भाग कर कहां जाएगा
पिंजरे का पंछी कहां तक उड़ेगा
चौरासी लाख जुनियां हैं साहेब
किसी भी जून में जाएंगे
तुम्हारे आस-पास ही रहेंगे
तुम्हारे ही सेवा करेंगे
तुम्हारे चरणों में ही जीना है
तुम्हारे चरणों में ही मर जाना है
मजदूरी तो बस एक बहाना है
जीना यहां मरना यहां !
इसके सिवा जाना कहां !!

  • जयपाल
    करोना काल प्रथम-लहर मई/जून 2020

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