Home कविताएं धर्म की जीत

धर्म की जीत

0 second read
0
0
522

धर्म की जीत

कोई कितना ही बड़ा धार्मिक क्यों न हो
कोई कितना ही बड़ा नमाजी क्यों न हो
बड़े से बड़े पादरी को ही ले लीजिए
या किसी घोर तपस्वी को ही देख लीजिए
जब इनकी टांग ट्रक के नीचे आ जाये
या छत से नीचे सिर के बल गिर जाएं
या कोई सांढ़ इन्हें उठा कर पटक दे
या चलती गाड़ी से नीचे गिर जाएं
या मंदिर मस्जिद के चक्कर में
भक्त और बन्दे के बीच
सर फुटौव्वल हो जाये
पैर टूट के हाथ में आ जाये
या हाथ टूट कर नीचे लटक जाए
पसलियों का कचूमर निकल जाए
या खोपड़ी में चकन्दर निकल आये

इमरजेंसी के इस संकट काल में
घोर धार्मिक भी
किसी भी कीमत पर
मंदिर मस्जिद गिरजा नहीं जाएगा
अल्लाह का असली बन्दा हो
या भगवान का कट्टर वाला भक्त
एक्सीडेंट हो जाने के बाद
किसी भी कीमत पर
अपने आराध्य के दर पर
इस उम्मीद में नहीं जाएगा कि
उसका रब
सब ठीक कर देगा
फैक्चर को जोड़ देगा
दर्द को रिलीफ देगा
फ़टी चमड़ी सिल देगा
टूटी हड्डियों को बना देगा
जबड़े को सीधा कर देगा
पसलियों को दुरुस्त कर देगा
या भीतर की सूजन को
दूर कर देगा
संकटमोचन मंदिर का पुजारी भी
ऐसा नहीं करेगा और
रब्बुलआलमीन का मुअज्जिम भी
कभी ऐसा नही सोचेगा

पग पग पड़े ढेलों में
भगवान देखकर
जो भक्त हाथ जोड़ लेता है
इमरजेंसी में
वही भक्त
भगवान से नाता तोड़ लेता है
अल्लाह का ओरिजनल वाला
बन्दा भी
ऐसे हालात में
अल्लाह से मुंह मोड़ लेता है
और
भाग्य के अकाट्य सत्य को भूल कर
तकदीर के फलसफे को दूर कर
सीधे हॉस्पिटल की ओर दौड़ लेता है

अल्लाह
आपातकाल में काम नहीं आता
जबकि वह हमेशा
आपातकाल में ही रहता है
इमरजेंसी में
भक्तजनों के संकट
क्षण में दूर नहीं हो पाते
अल्लाह की रहमत
इमरजेंसी में नाकाम हो जाती है
सारा धार्मिक निजाम
ऐसे नाजुक वक्त पर
फेल हो जाता है
सारा गैबी इल्म भी
इमरजेंसी में
रफूचक्कर हो जाता है
दुआओं की जगह
दवाएं असर करती हैं
प्रार्थनाओं की जगह
पेनकिलर रिलीफ देता है
इस दौरान
सारे धर्म
अपने अपने आश्वासनों के साथ
ऑपरेशन थियेटर के
बन्द दरवाजे के बाहर से
मरीज के ठीक होने का इंतजार करते हैं

दवाओं की मेहरबानी से
नर्स की कदरदानी से
अगर बन्दा बच गया तो
ऊपरवाले की रहमत
मनौती भखौती का असर
भगवान की दया
अल्लाह का फजल
साबित कर दिया जाता है
डॉक्टर्स की मेहनत से
साइंस की अजमत से
बन्दा ठीक हो गया तो
अच्छे कर्मों का परिणाम
बता दिया जाता है
और इस चमत्कार को
बुराई पर अच्छाई की जीत
समझ कर
पूरी जिंदगी
इस जीत का जश्न मनाया जाता है
और आदमी
पहले से ज्यादा
धार्मिक हो जाता है.

अगर
बन्दा चल बसा तो
नियति पर दोष मढ़ लिया जाता है
या मुकद्दर का खेल बता दिया जाता है
आदमी मर जाता है
लेकिन उसका धर्म
मरने के बाद भी
उसका साथ नहीं छोड़ता
आदमी के मरते ही
आइसीयू के बाहर खड़ा उसका धर्म
अपनी मृत्युपरांत सेवाओं के साथ
मरीज के सिरहाने हाजिर हो जाता है
और जब तक
आत्मा को शांति न दिला दे
अपना फर्ज
पूरा करके ही दम लेता है.

कुल मिलाकर
दोनों ही परिस्थितियों में
धर्म की जीत तय है
मर गया तो भी धर्म की विजय
जी गया तो भी धर्म की जीत.

  • शकील प्रेम

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध

    कई दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण ये शहर अब अपने पिंजरे में दुबके हुए किसी जानवर सा …
  • मेरे अंगों की नीलामी

    अब मैं अपनी शरीर के अंगों को बेच रही हूं एक एक कर. मेरी पसलियां तीन रुपयों में. मेरे प्रवा…
  • मेरा देश जल रहा…

    घर-आंगन में आग लग रही सुलग रहे वन-उपवन, दर दीवारें चटख रही हैं जलते छप्पर-छाजन. तन जलता है…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…