गिरीश मालवीय
देश मे हर साल बिजली की मांग 7 से 10 प्रतिशत की बीच बढ़ती है, यह पिछले बीस सालों से देखने में आ रहा है. इसमें कोई अनोखी बात नहीं है, इसलिए डिमांड बढ़ गई जैसे मूर्खतापूर्ण तर्क मत दीजिए. सरकार का काम ही होता है कि भविष्य में उत्पन्न होने वाली डिमांड का पूर्वानुमान लगाए और इसके हिसाब से तैयारी कर के रखे. अगर सरकार स्वयं कह रही है कि अर्थव्यवस्था सुधरी है तो स्वाभाविक है कि देश में बिजली की मांग भी तेजी से बढ़ेगी !
दरअसल पॉवर की समस्या अक्टूबर 21 से ही देखने में आ रही थी. इस बात का हल्ला भी मचा था कि देश के अधिकतर पॉवर प्लांट में चार से छह दिनों का कोयला बचा है. आप जानते है कि तब मोदी सरकार क्या बहाना बना रही थी ? सरकार का कहना था कि सितम्बर में बारिश हो गई इसलिए कोयला खदानों में पानी भर गया इसलिए हम कोयला नहीं पहुंचा पाए. आज सरकार कह रही है कि गर्मी में गरमी बढ़ गई इसलिए डिमांड बढ़ गई इसलिए पॉवर क्राइसिस आ गया. यानि बारिश में बारिश हो गई और गर्मी में गर्मी बढ़ गई, ये बहाने बनाए जा रहे हैं.
पिछले साल 2021 में दिवाली आते आते सरकार ने इस पॉवर क्राइसिस से निपटने का एक और यूनिक रास्ता अपनाया उसने नवम्बर में सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी की वेबसाइट पर ताज़ा डेली कोल स्टॉक रिपोर्ट देना ही बंद कर दी, वैसे उस वक्त कोराना की वजह से रेलवे ट्रैफिक कम था, इसलिए जैसे तैसे मालगाड़ी के फेरे बढ़ाकर स्थिति को काबू में किया गया लेकिन तब भी इस समस्या का स्थाई समाधान नहीं सोचा गया और आज देश भर में भयानक बिजली संकट खड़ा हो गया है.
अब आप समझ सकते हैं कि समस्या क्या है और स्थिति कैसे बिगड़ी ? दो दिन पहले बिजली इंजीनियरों के संगठन ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने दावा किया कि रेलवे और विद्युत मंत्रालयों के बीच तालमेल के अभाव से कोयले की कमी हुई, एआईपीईएफ ने एक बयान में कहा, ‘कोयला की कमी के कारण देश भर में बिजली कटौती की वजह कोयला मंत्रालय, रेल मंत्रालय और विद्युत मंत्रालय के बीच तालमेल की कमी है. हर मंत्रालय दावा कर रहा है कि वे बिजली क्षेत्र में मौजूदा गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार नहीं हैं.’
एआईपीईएफ के प्रवक्ता वी. के. गुप्ता ने कहा कि अब उन्होंने (केंद्र सरकार के मंत्रालयों ने) इस मुद्दे को दूसरा रुख दे दिया है और इसे राज्यों की कोयला कंपनियों को समय पर भुगतान करने में असमर्थता से जोड़ा है. जबकि मूल समस्या सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के बीच तालमेल की हैं.
मुसलमान ही नहीं सभी हिन्दुत्व के निशाने पर
आप क्या सोच कर बैठे हैं कि सिर्फ मुसलमान ही इनके निशाने पर हैं ? मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के कुरई के सिमरिया गांव में 2 आदिवासियों की बजरंग दल और राम सेना के लोगों ने पीट-पीटकर हत्या कर दी. आदिवासियों पर आरोप लगाया गया कि उनके पास गाय का मांस है.
पूरी घटना कुछ इस प्रकार हैं कि सोमवार देर रात करीब 3 बजे बात फैली कि तीन व्यक्ति गोमांस लेकर जा रहे हैं. 20 लोगों का समूह आदिवासियों के घर गया और उन पर एक गाय की हत्या का आरोप लगाया. सिमरिया गांव के 52 वर्षीय धानशाह इनवाती, सागर गांव के 35 साल से संपत बट्टी और ब्रजेश नामक व्यक्ति को घेरकर मारपीट शुरू कर दी गईं, तीनों के साथ इतनी बेरहमी से मारपीट की गयी कि धानशाह व संपत की इलाज के लिए जिला अस्पताल ले जाने से पहले ही मौत हो गई. बड़ा सवाल यह हैं कि क्या बुलडोजर इन हत्यारों की सम्पत्ति पर चलाया जाएगा ?
भाजपा राजनितिक विरोधियों को निपटाने के लिए अपनाता है घटिया हथकंडे
जिग्नेश मेवाणी का मामला बताता है कि भाजपा किस तरह से अपने राजनितिक विरोधियों को निपटाने के लिए घटिया हथकंडे अपनाती हैं. असम की अदालत ने गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी को एक महिला कांस्टेबल पर कथित हमले के ‘बनावटी मामले’ में फंसाने की कोशिश करने के लिए राज्य पुलिस की कड़ी आलोचना की है. लेकिन सवाल तो पहले यह खड़ा होता है कि गुजरात का एक निर्दलीय विधायक को हजार किलोमीटर दूर असम राज्य की पुलिस ने गिरफ्तार ही क्यों किया ?
दरअसल 10 दिन पहले असम पुलिस ने कांग्रेस विधायक को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के आरोप में गिरफ्तार किया था, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ‘गोडसे को भगवान मानते हैं, उनको गुजरात में सांप्रदायिक झड़पों के खिलाफ शांति और सद्भाव की अपील करनी चाहिए.’
इस गिरफ्तारी पर असम पुलिस की तरफ से बयान जारी किया गया कि एक विशेष समुदाय की भावनाओं को आहत करने की वजह से गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी को गिरफ्तार किया गया था. एक अखबार के अनुसार पुलिस सूत्रों ने नाम न छापने की शर्त पर एएनआई को बताया, ‘मेवाणी द्वारा आईपीसी 295 (ए) के तहत किया गया प्राथमिक अपराध धर्म की भावनाओं का अपमान है. अपने ट्वीट के माध्यम से उन्होंने नाथूराम गोडसे की तुलना भगवान से की.’
मात्र इस ट्वीट के आधार पर असम पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. पिछले हफ्ते बुधवार रात करीब 11:30 बजे बनासकांठा के अप पालनपुर सर्किट हाउस में मेवाणी को हिरासत में ले लिया और उन्हे तुरंत ही हवाई मार्ग से असम ले जाया गया.
कोई दमदार मामला नहीं था इसलिए कोर्ट ने इस सोमवार को ही जिग्नेश मेवानी को जमानत दे दी. कायदे से उन्हें छोड़ देना चाहिए था लेकिन आप नीचता की सीमा देखिए कि तुरंत ही असम पुलिस ने उन पर एक और चार्ज ठोक दिया. जमानत के कुछ ही देर बाद जिग्नेश मेवानी पर दूसरे थाने में दर्ज महिला पुलिसकर्मी के साथ बदतमीजी और शील भंग करने की कोशिश करने के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया था.
इस गिरफ्तारी के बाद जिग्नेश को कोर्ट में पेश किया गया, जहां उन्हें 5 दिन की पुलिस रिमांड पर भेजा गया. इस मामले की बारपेटा सेशन कोर्ट में सुनवाई थी लेकीन जिस महिला कॉन्स्टेबल पर हमले का आरोप लगाया गया था उसने अदालत के सामने सच बता दिया और पुलिस की कहानी की पोल खुल गई.
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि FIR (प्रथम सूचना रिपोर्ट) के विपरीत, महिला कॉन्स्टेबल ने विद्वान मजिस्ट्रेट के सामने एक अलग कहानी बताई है. महिला की गवाही को देखते हुए ऐसा लगता है कि आरोपी जिग्नेश मेवाणी को लंबी अवधि के लिए हिरासत में रखने के उद्देश्य से तत्काल मामला बनाया गया है. यह अदालत की प्रक्रिया और कानून का दुरुपयोग है.’
अदालत ने कहा कि दो अन्य पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में महिला पुलिस अधिकारी का शील भंग करने की मंशा का आरोप आरोपी के खिलाफ नहीं लगाया जा सकता, जब वह उनकी हिरासत में था और जिसे किसी और ने नहीं देखा.
बारपेटा सेशन कोर्ट ने मेवाणी को जमानत देने के अपने आदेश में गुवाहाटी हाईकोर्ट से राज्य में हाल के दिनों में पुलिस की ज्यादतियों के खिलाफ एक याचिका पर विचार करने का भी अनुरोध किया. अब आप समझ सकते हैं कि वाल्टेयर ने क्यों कहा था कि ‘जब सरकार ग़लत हो तो आपका सही होना ख़तरनाक होता है.’
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]