श्याम सिंह रावत
शायद आपने निखिल गांधी का नाम सुना होगा. ये श्रीमान जी किसी ज़माने में कोलकाता से जाकर मुंबई में पान का पत्ता बेचा करते थे. आज सिर्फ 55-56 साल की उम्र में हजारों करोड़ की संपत्ति के मालिक बन गये हैं. एसकेआईएल इंफ्रास्ट्रक्चर के कार्यकारी अध्यक्ष निखिल भाई मुंबई के सबसे पॉश कहे जाने वाले नेपियन सी इलाके में रहते हैं. तीन महीने पहले 17 जनवरी को निखिल गांधी के घर पर ED का छापा पड़ा तो हीरे जवाहरात व सिर्फ 30 करोड़ के गहने बरामद हुए थे. इससे आपको इनकी फुल स्पीड तरक्की का अंदाज़ा हो गया होगा. लेकिन रुकिए, कहते हैं कि ईमानदारी से आदमी सिर्फ दाल-रोटी का जुगाड़ कर सकता है, दौलत इकट्ठी नहीं कर सकता. इनकी गाथा आगे पढ़िए.
राफेल विमान सौदे में हुए घोटाले की चर्चा के दौरान इनका नाम सामने आया था. तो फ्रॉड, लूट और झूठ पर आधारित विकास के जिस गुजरात मॉडल की चर्चा कुछ समय पहले देश में छायी रहती थी, निखिल गांधी उसका प्रतिनिधि चेहरा हैं. ये महाशय जी पान बेचते-बेचते कुछ ही सालों के अंदर खिलौने और खिलौनों के अंदर रख कर बहुत-कुछ बेचने लगे. फिर इनकी मुलाकात हुई मामूली समय में फर्श से अर्श तक पहुंचे एक और गुजराती धीरूभाई अंबानी से. धीरूभाई ने निखिल भाई को चिमन भाई के पास इस सलाह के साथ भेजा कि गुजरात के पीपावाव में बंदरगाह बनाओ, भविष्य का धंधा यही है.
पीपावाव में बंदरगाह बनाने की मंजूरी मिली और न सिर्फ बंदरगाह बन गया, बल्कि बंदरगाह को निकटतम ब्रॉड गेज स्टेशन सुरेंद्रनगर से जोड़ने वाली 286 किलोमीटर लंबी रेल लाइन वाली एक रेलवे परियोजना शुरू करके उसमें रेल मंत्रालय के साथ भागीदारी भी की. इसके अलावा पीपावाव बंदरगाह को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ने के लिए 20 किमी लंबा फोर लेन एक्सप्रेसवे का निर्माण भी किया. यानी भाई पर ‘क्रुपा’ खूब बरस रही थी.
अब उसी पीपावाव बंदरगाह पर कंटेनर से 63,000 करोड़ की 9,000 किलोग्राम हेरोइन बरामद की गयी है, जो वहां महीने भर से पड़ा था. कहा जाता है कि बंदरगाह से ड्रग्स की तस्करी पिछले कई दशकों से चल रही थी, जिसका पर्दाफाश अब जाकर हुआ है, उन्हीं धीरूभाई अंबानी के कनिष्ठ पुत्र अनिल अंबानी ने कंगाल होने के बावजूद भी अपनी उच्चस्तरीय राजनीतिक पैठ के बल पर 2015 में पीपावाव बंदरगाह खरीदा था. फ्रॉड, लूट और झूठ पर आधारित विकास के गुजरात मॉडल पर एक बार फिर विचार कर देखिए.
गुजरात में ड्रग्स की बड़ी-बड़ी खेपों के पकड़े जाने का सिलसिला काफी लंबे समय से चल रहा है. वहां 31 जुलाई, 2017 को पोरबंदर में 42,000 करोड़ रुपए मूल्य की 1,500 किलोग्राम बेहतरीन क्वालिटी की हेरोइन तटरक्षक बल ने पकड़ी थी, जिसे तब ऐतिहासिक रूप से पकड़ा गया ड्रग्स का सबसे बड़ा कन्साइनमेंट बताया जा रहा था. आपको याद ही होगा कि गौतम अडाणी के गुजरात स्थित मुंद्रा पोर्ट से 16 सितंबर, 2021 को अफगानिस्तान से ईरान के रास्ते लाई गई 9 हज़ार करोड़ से ज्यादा मूल्य की ड्रग्स बरामद हुई थी.
गौतम अडाणी के इसी मुंद्रा पोर्ट पर 19 जनवरी, 2022 को एक कंटेनर में कार के कबाड़ में छुपाकर लाया गया 90 पैकेट अमेरिकन गांजा बरामद किया गया था. अभी 22 अप्रैल को उसी गुजरात के गांधीधाम में एक बार फिर 2,100 करोड़ रुपए कीमत वाली 300 किलोग्राम ड्रग्स पकड़े जाने के तीन दिन बाद 25 अप्रैल को ईरान में बंदर अब्बास बंदरगाह से भेजी गई 1439 करोड़ रुपए की 205.6 किलोग्राम हेरोइन कांधला पोर्ट पर बरामद की गई.
एक अन्य मामले में इंडियन कोस्ट गार्ड द्वारा अरब सागर में भारतीय जल सीमा में इसी 24 अप्रैल को एक पाकिस्तानी नाव से 56 किलो हेरोइन बरामद की गई थी, जिसकी बाजार में कीमत 280 करोड़ रुपए आंकी गयी है. गुजरात में पिछले एक सप्ताह में 436 किलो ड्रग्स अलग-अलग रेड में पकड़ी गई है. इस तरह पिछले सात महीने के अंदर गुजरात से करीब 30 हज़ार करोड़ से भी ज्यादा मूल्य के ड्रग्स बरामद हो चुके हैं.
अब सवाल यह है कि गुजरात में दुनिया का सबसे बड़ा ड्रग्स रैकेट चलाने वाला कोलंबियाई पाब्लो एस्कोबार गैविरिया या मैक्सिकन पूर्व ड्रग लॉर्ड और एक अंतरराष्ट्रीय अपराध सिंडिकेट, सिनालोआ कार्टेल का सरगना जोकिन आर्किवाल्डो गुज़मैन लोएरा उर्फ ‘एल चापो’ कौन है ? क्या इतनी भारी मात्रा में नशीली दवाएं भारत में बगैर किसी स्थापित नेटवर्क के मंगाई और खपाई जा सकती हैं ? क्या बिना राजनीतिक संरक्षण के ड्रग्स कार्टेल चल सकते हैं ? नहीं, तो फिर इन्हें संरक्षण देने वाला कौन है ?
प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का गृहराज्य गुजरात नशीली दवा के कारोबारियों का पसंदीदा रूट बन गया है, तो कैसे ? जहां से देश को तबाह करने वाली अरबों रुपए की टनों के हिसाब से ड्रग्स आये दिन पकड़ी जा रही हैं.
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