ब्राह्मण धर्म को मानने वालों ने कुछ भी नया निर्माण नहीं किया है. उसने अपना विकास दूसरों के अमानतों को हथियाकर अथवा उसका विध्वंस कर किया है. बौद्धों के बनाये बौद्ध विहारों को मंदिर बना कर हथिया लिया, जिसे वह हथिया नहीं सका उसका विध्वंस कर दिया, जिसमें नालंदा विश्वविद्यालय को जलाया जाना सर्वविदित है.
ब्राह्मणों ने ठीक यही प्रक्रिया बाबरी मस्जिद को हथियाने में किया. बिना किसी ऐतिहासिक प्रमाण के जबरन उसमें राम का मूर्ति चोरी से रखकर उसे राम मंदिर बताने लगा और मौका पाते ही ऐतिहासिक महत्व के बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर अब राम मंदिर बनाने में जुट गया. ब्राह्मणों और ब्राह्मणवादियों ने अभी हाल ही में कुतुबमीनार को हिन्दू मंदिर तो विश्व धरोहर ताजमहल को शिव मंदिर बताने लगा.
आखिर ब्राह्मणवादी ऐसा क्यों कर रहे हैं ?
यह ऐतिहासिक तथ्य है कि ब्राह्मणों ने जातिवाद जैसी जिस संस्था का निर्माण किया है दरअसल वह शोषण को चिरस्थायी बनाने का एक मनोवैज्ञानिक अस्त्र है. चूंकि इसने शुद्र कहकर तमाम मेहनतकश श्रमिक जनता को जो वास्तव में उत्पादन कर मानव समाज की हर जरूरत को पूरा करता है, को अनपढ़ और अछूत बना दिया है. जिस कारण भारत लंबे समय तक गुलाम रहा.
इस गुलाम भारत में दुनिया भर के लुटेरों और विदेशियों ने शासन किया. कुछ अपार दौलत लुट कर चले गए तो कुछ ने इसी देश को अपना देश बना लिया. इसी विदेशियों में ब्राह्मण भी थे और मुगल भी. ब्राह्मणों ने यहां के लोगों को शुद्र बनाकर उसे अपना दास बना लिया तो मुगलों ने जो अपेक्षाकृत उदार संस्कृति से प्रेरित थे, सर्वांगीण विकास करने का प्रयास किया.
ब्राह्मण जो लंबे समय से भारत में रहते आये हैं, अब अपनी लज्जा को छुपाने के लिए विदेशियों, यहां तक की मुगलों के भी द्वारा निर्मित धरोहरों को अपना बता रहे हैं और शुद्रों को दास बनाये रखने के लिए यह बताने की जरूरत समझ रहे हैं कि दुनिया में जो कुछ भी विकास हुआ है, ब्राह्मणों ने किया है.
लेकिन इसमें दिक्कत यह है कि अंग्रेजों के भारत आने के बाद शुद्रों में काफी विकास हुआ है, जिस कारण वे काफी हद तक अपनी ऐतिहासिक बनावट को समझने लगे हैं. परिणामस्वरूप वह सवाल उठाने लगे हैं. ब्राह्मणों के झूठे आडम्बरों का मजाक उड़ाने लगे हैं. इससे खिजलायें ब्राह्मणों ने दूसरों के निर्मित धरोहरों को अपना बताने के मोदी काल में ज्यादा आक्रामक हो गया है. मथुरा काशी बांकी है, जय श्री राम का आतंककारी उद्घोष इसी का द्योतक है.
ब्राह्मणों का ब्राह्मणवादियों में विकास
अंग्रेजों के आने से पूर्व तक ब्राह्मणों का अबाध वर्चस्व था, और शुद्रों का दास के रुप में निर्बाध पतन. लेकिन अंग्रेजों ने जब भारत में कदम रखा तो सत्ता की मलाई चाटने वाले ब्राह्मणों की जगह उसने दासत्व को प्राप्त शुद्रों को एकजुट किया और ब्राह्मणों के बर्चस्व को धारासाही किया. भीमाकोरेगांव में बना विशाल स्तूप और वहां हर वर्ष 1 जनवरी को शुद्रों द्वारा मनाये जाने वाले विजय उत्सव इसी का प्रतीक है.
अंग्रेजों ने जब 1947 को भारत से विदाई ली तब तक स्थिति में भारी बदलाव आ चुका था. अंग्रेजों ने ब्राह्मणों को न्यायिक चरित्र से हीन करार देकर शुद्रों को बड़े पैमाने पर सत्ता से जोड़ा. इसका परिणाम यह हुआ कि पहली बार अंग्रेजों के शासनकाल में सत्ता का स्वाद चखें शुद्रों को नियंत्रित करना अब ब्राह्मणों के लिए बेहद मुश्किल था, इसलिए उसने हिन्दुत्व का नारा देकर शुद्रों में अपना समर्थक पैदा किया और ब्राह्मणवादियों का जमाबड़ा पैदा किया.
भारत की आजादी के बाद शुद्रों को शुद्र न कहकर विभिन्न नामों से पुकारा गया – हरिजन, पिछड़ा, अनुसूचित जाति, दलित, महादलित वगैरह वगैरह और उसका श्रेणी निर्धारित किया गया. अब ब्राह्मणों से भी ज्यादा खतरनाक बन चुके ये ब्राह्मणवादी ब्राह्मण राज्य यानी राम राज स्थापित करने के लिए मरने मारने पर उतारू है. शुद्र नरेन्द्र मोदी इसी ब्राह्मणवादी ताकतों का प्रतीक है.
ब्राह्मणवादियों द्वारा किया गया अजान और लाउडस्पीकर विवाद
ब्राह्मण राज स्थापित करने के इसी जूनून में इन ब्राह्मणवादी शुद्रों ने मुसलमानों को निशाना बनाना शुरु किया, जिसमें अजान, लाउडस्पीकर, मंदिर मस्जिद, हनुमान चालीसा, गाय, श्मशान आदि जैसे दो कौड़ी के मुद्दे उठाये और भड़काये जा रहे हैं, जिसमें शुद्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. महाराष्ट्र सरकार के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के आवास के बाहर हनुमान चालीसा पढ़ने की कोशिश करने वाली शुद्र नवनीत राणा और उसका पति आज जेल में हैं.
अफजल खान लिखते हैं, मस्जिदों में अज़ान और लाउडस्पीकर को लेकर चल रहे विवाद के बीच, महाराष्ट्र के एक हिंदू बहुल गांव ने सर्वसम्मति से गांव की अकेली मस्जिद से लाउडस्पीकर नहीं हटाने का प्रस्ताव पारित किया है. ग्रामीणों ने कहा कि अज़ान दैनिक दिनचर्या का हिस्सा था और गांव में कोई भी इससे परेशान नहीं था.
धसला-पीरवाड़ी महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के जालना जिले में एक समूह ग्राम पंचायत है. इसकी आबादी लगभग 2,500 है, जिसमें लगभग 600 मुस्लिम परिवार शामिल हैं. 24 अप्रैल को, पंचायती राज दिवस को चिह्नित करने के लिए एक ग्राम सभा का आयोजन किया गया, जहां ग्रामीणों ने सर्वसम्मति से मस्जिद से लाउडस्पीकर नहीं हटाने का प्रस्ताव पारित किया.
‘हम ग्रामीण सभी जातियों के हैं. यहां करीब 600 मुस्लिम परिवार रहते हैं. हम वर्षों से शांति और सद्भाव से रह रहे हैं और देश भर में चाहे जो भी राजनीति हो, हमने फैसला किया कि यह हमारे संबंधों और परंपराओं को प्रभावित नहीं करना चाहिए.’ गांव के सरपंच राम पाटिल ने कहा.
अजान सामाजिक जीवन का दिनचर्या तय करने का साधन
आज जब अजान के तर्ज पर हनुमान चालीसा का पांच बार पाठ पढ़ने का कवायद चल रहा है तब यह जानना बेहद मौजूं है कि अजान प्रत्येक दिन एक निर्धारित वक्त पर होता है, जो मनुष्य के दिनचर्या को निर्धारित करता है. यह नियमबद्ध अजान वक्त का इतना पाबंद होता है कि इससे घड़ी तक मिलाई जा सकती है, जबकि कानफोडू हनुमान चालीसा या जागरण का समय से कोई मतलब नहीं है. यह कभी भी शुरु हो सकता है और कभी भी बंद हो सकता है. संकल्प बताते हैं,
‘अज़ान ग्रामीणों के लिए जीवन का एक तरीका बन गया है, जिसके आधार पर हर कोई अपने नियमित काम करता रहता है. ग्रामीण सुबह अजान के बाद काम करना शुरू करते हैं और दोपहर एक के बाद दोपहर 1.30 बजे लंच ब्रेक लेते हैं. शाम की अज़ान शाम 5 बजे. दिन के काम के अंत का संकेत देता है, एक शाम 7 बजे. रात के खाने का समय और फिर अंतिम अज़ान के बाद रात 8.30 बजे जब हर कोई सो जाता है.
इसके उलट चौबीसों घंटे बजने वाले घड़ियाल, घंटा, कानफोडू आवाज में चिंग्घाड़ता हनुमान चालीसा, जागरण वगैरह से आप समय का पता लगाना तो दूर समय भी भूल जायेंगे. दिन या रात भी समझ में नहीं आयेगा. बहुत से लोग तो इस कानफोडू आवाज के कारण मर तक जाते हैं, या विरोध करने पर मार भी दिये जाते हैं. इसीलिए नियमबद्ध अजान की तुलना चौबीसों घंटे चलनेवाले कानफोडू जागरण वगैरह से तुलना नहीं की जा सकती.
मस्जिद के मौलवी जहीर बेग मिर्जा ने ग्राम सभा को यहां तक कह दिया था कि किसी भी तरह की आपत्ति होने पर लाउडस्पीकर की आवाज कम कर दी जाएगी लेकिन क्या जागरण या चालीसा के नाम पर 24 घंटा बजने वाला लाऊडस्पीकर और घंटा का मुस्टंडे क्या ऐसी आश्वासन दे सकता है ? कतई नहीं. गोदी मीडिया का ही एक ब्राह्मण पत्रकार ने जो आवाज धीमी करने को कहा तो न केवल उसे पीटा गया बल्कि उसके बच्चे को भी अपहरण कर लिया और उसकी पत्नी को नंगा कर सरेआम घुमाने का कोशिश करने लगा.
ब्राह्मण और ब्राह्मणवादी
अंग्रेजी सत्ता के अधीन और उसके बाद ब्राह्मण और शुद्रों में भारी बदलाव आया है. ब्राह्मण जहां उदार और मानवतावादी दृष्टिकोण को अपनाने की ओर आगे बढ़े तो वहीं शुद्रों में ब्राह्मणवादी अपसंस्कृति ने जो पकड़ा. जिस संस्कृति को ब्राह्मणों ने तिलांजलि देने का प्रयास किया वहीं शुद्रों ने ब्राह्मणवादी अपसंस्कृति (जातिवाद, छुआछूत वगैरह) सर चढ़कर बोलने लगा. आज ब्राह्मणों से भी ज्यादा खतरनाक ब्राह्मणवादी शुद्र है, जो रामराज्य के नाम पर दासत्व की बेड़ी पहनने के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार है. ब्राह्मणवादी शुद्र नरेन्द्र मोदी और नवनीत राणा इसका बेजोड़ नमूना है.
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